आवश्यक किन्तु उपेक्षित है ‘सोशल ऑडिट’ | 20 Jul 2017

संदर्भ
हाल ही में सोशल ऑडिट को लेकर गठित एक जॉइंट टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट में सोशल ऑडिट को प्रशासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने का एक अहम माध्यम बताया है। विदित हो कि उच्चतम न्यायालय भी एक पीआईएल को लेकर चल रही सुनवाई के दौरान इस टास्क फोर्स के सुझावों पर गहनता से विचार कर रहा है। इस लेख में हम यह समझेंगे कि सोशल ऑडिट क्या है और इसके क्या लाभ हैं?

क्या है सोशल ऑडिट ?

  • कोई नीति, कार्यक्रम या योजना से वांछित परिणाम हासिल हो पा रहा है या नहीं? उनका क्रियान्वयन सही ढंग से हो रहा है या नहीं? इसकी छानबीन यदि जनता स्वयं करे तो उसे सोशल ऑडिट कहते हैं। यह एक ऐसा ऑडिट है जिसमें जनता, सरकार द्वारा किये गए कार्यों की समीक्षा ग्राउंड रियलिटी के आधार पर करती है।
  • दरअसल, पूरे विश्व में आजकल प्रातिनिधिक प्रजातंत्र की सीमाओं को पहचानकर नीति-निर्माण और क्रियान्वयन में आम जनता की सीधी भागीदारी की मांग जोर पकड़ रही है।
  • निगरानी के अन्य साधनों के साथ ही सामुदायिक निगरानी के विभिन्न साधनों के अनूठे प्रयोग हो रहे हैं। सोशल ऑडिट ऐसी ही एक अनूठी पहल है।
  • उल्लेखनीय है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 में सोशल ऑडिट का प्रावधान किया गया है।
  • इस कानून की धारा-17 के अनुसार साल में दो बार ग्राम सभा द्वारा सोशल ऑडिट किया जाना आवश्यक है।
  • ग्राम सभा, ग्राम पंचायत क्षेत्र में निवास करने वाले सभी पंजीकृत मतदाताओं का एक साझा मंच है। ग्रामीण क्षेत्र में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की यह सबसे महत्त्वपूर्ण संस्था है।

कैसे किया जाता है सोशल ऑडिट ?

  • सर्वप्रथम ग्राम सभा एक सोशल ऑडिट समिति का चयन करती है, जिसमें आवश्यकतानुसार पाँच से 10 व्यक्ति हो सकते हैं। यह समिति, जिस कार्यक्रम या योजना की सोशल ऑडिटिंग करनी होती है, उससे संबंधित सभी दस्तावेज़ और सूचनाएँ एकत्र करती है।
  • एकत्रित दस्तावेज़ों की जाँच-पड़ताल की जाती है तथा उनका मिलान किये गए कार्यों तथा लोगों के अनुभवों एवं विचारों के साथ किया जाता है।
  • तत्पश्चात एक रिपोर्ट बनाई जाती है, जिसे पूर्व-निर्धारित तिथि को ग्राम सभा के समक्ष रखा जाता है। ग्राम सभा में सभी पक्ष उपस्थित होते हैं और अपनी बातें रखते हैं। यदि कहीं गड़बड़ी के प्रमाण मिलते हैं तो उनका दोष-निवारण किया जाता है।
  • यदि ग्राम सभा में ही सभी मसलों को नहीं निपटाया जा सकता है तो उसे उच्चाधिकारियों के पास भेज दिया जाता है। कार्यक्रम को और प्रभावी बनाने हेतु सुझाव भी ग्राम सभा के सदस्यों द्वारा दिया जाता है।
  • विदित हो कि सोशल ऑडिट के लिये बुलाई गई ग्राम सभा की अनुशंसाओं का एक निश्चित अवधि के भीतर पालन किया जाता है और अगली ग्राम सभा में कार्रवाई का प्रतिवेदन भी प्रस्तुत किया जाता है।

सोशल ऑडिट के उद्देश्य

  • व्यवस्था की जवाबदेही सुनिश्चित करना।
  • जन-सहभागिता बढ़ाना।
  • कार्य एवं निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना।
  • जनसामान्य को उनके अधिकारों एवं हक के बारे में जागरूक करना।
  • कार्ययोजनाओं के चयन एवं क्रियान्वयन पर निगरानी रखना।

सोशल ऑडिट महत्त्वपूर्ण क्यों ?

  • सोशल ऑडिट की व्यवस्था को यदि भलीभाँति लागू किया जाए तो इससे कई लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं, जो सुशासन में मददगार साबित होंगे, जैसे:

• इससे लोगों को सहजतापूर्वक सूचना मिलेगी और शासन व्यवस्था पारदर्शी होगी।
• जवाबदेही बढ़ेगी, जिससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकेगा।
• नीतियों और कार्यक्रमों की योजना-निर्माण में आम जनता की भागीदारी बढ़ेगी।
•सोशल ऑडिट से ग्राम सभा या शहरी क्षेत्रों में मोहल्ला-समिति जैसी प्रजातांत्रिक संस्थाओं को मज़बूती मिलेगी।

कैसे सोशल ऑडिट को और प्रभावी बनाया जाए ?

  • अगर हम अपने आस-पास नजर दौड़ाते हैं तो पाते हैं कि नीतियों का सही क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है, कहीं इसका कारण भ्रष्टाचार है तो कहीं प्रशासन की सुस्ती।
  • हालाँकि सबसे बड़ा सवाल यह है कि इनसे मुक्ति के उपाय कौन से हैं? दीर्घकालिक उपाय तो राष्ट्रीय और व्यक्तिगत चारित्रिक उत्थान ही है।
  • लेकिन, यदि हम शासन व्यवस्था में सोशल ऑडिट को प्रोत्साहित और स्थापित करने का प्रयास करें तो तात्कालिक परिणाम मिलने की संभावना है।
  • कई राज्यों की ग्राम-पंचायतों में सोशल ऑडिट किया जा रहा है, लेकिन इसे और अधिक व्यापक एवं प्रभावी बनाने के लिये इसके बारे में लोगों को बताना होगा, उन्हें जागरूक बनाना होगा और उन्हें प्रशिक्षण देना होगा।
  • इसके साथ ही सोशल ऑडिट की अनुशंसाओं को लागू करने के लिये समयबद्ध और उचित कार्रवाई पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष
जितना आवश्यक नीतियों का निर्माण करना है, उतना ही ज़रूरी अब तक हुई प्रगति का आकलन करना भी है। कागजों पर दिखने वाले विकास और वास्तविक धरातल पर होने वाले विकास के बीच की खाई पाटने का सोशल ऑडिट एक अचूक हथियार साबित हो सकता है।