भारत में वित्तीय समावेशन | 14 Sep 2017
भूमिका
किसी भी देश के आर्थिक विकास का मुख्य आधार है उस देश का बुनियादी ढाँचा होता है। यदि बुनियादी ढाँचा ही कमज़ोर हो तो कितना भी प्रयास किया जाए व्यवस्था को मज़बूत नहीं बनाया जा सकता है। यही कारण है कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में विकास एवं उन्नति हेतु किये जाने वाले प्रयासों को बल प्रदान करने के एक लिये नीति निर्माताओं द्वारा एक ऐसे मार्ग का अनुसरण किया जाता है जिसके माध्यम से सरकार आम आदमी को अर्थव्यवस्था के औपचारिक माध्यम में शामिल कर सके।
- वस्तुतः यही कारण है कि 'वित्तीय समावेशन' के तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को भी आर्थिक विकास के लाभों से संबद्ध किया जा सके, कोई भी व्यक्ति आर्थिक सुधारों से वंचित न रहे।
- इसके तहत देश के प्रत्येक नागरिक को अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में शामिल करने का प्रयास किया जाता है। ऐसा इसलिये किया जाता है, ताकि गरीब आदमी को बचत करने के साथ-साथ विभिन्न वित्तीय उत्पादों में सुरक्षित निवेश करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।
पृष्ठभूमि
- वर्ष 1980 और 1990 के दशकों में शुरू किये गए ढाँचागत समायोजन कार्यक्रमों के परिणामस्वरूप हुए वित्तीय सुधारों का लाभ अनेक विकासशील देशों को भी मिला।
- यदि भारत के संबंध में बात करें तो 20वीं शताब्दी के आरंभ में भारत में केवल एक बीमा कंपनी (जो जीवन बीमा एवं कुछ साधारण बीमा योजनाओं का संचालन करती थी) और एक स्टॉक एक्सचेंज कार्यरत थे।
- परंतु अब यह दृश्य बदल गया है, वर्तमान में देश में 20 से अधिक बैंक, अनेक बीमा कंपनियाँ तथा स्टॉक एक्सचेंजों के साथ-साथ कई प्रकार के वित्तीय संस्थान कार्यरत हैं। वस्तुतः इसका मूल कारण आर्थिक सुधारों के फलस्वरूप हुआ देश का वित्तीय समावेशी विकास है।
- हालाँकि, वित्तीय समावेशन के विषय में यह स्पष्ट कर देना अत्यंत आवश्यक है कि इसका कार्यक्षेत्र केवल बैंकिंग सेवाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह बीमा, इक्विटी उत्पादों और पेंशन उत्पादों आदि विभिन्न प्रकार के वित्तीय सेवाओं के संबंध में भी समान रूप से लागू होता है।
- स्पष्ट रूप से वित्तीय समावेशन का अर्थ, बैंकिंग सेवा से वंचित किसी भी क्षेत्र में स्थित बैंक शाखा में केवल एक बैंक खाता खोलना मात्र कतई नहीं है।
वित्तीय समावेशन के अभाव से उत्पन्न चुनौतियाँ
- वस्तुतः किसी व्यवस्था में वित्तीय समावेशन का अभाव होना समाज एवं व्यक्ति दोनों के लिये हानिकारक होता है।
- जहाँ तक व्यक्ति का संबंध है, वित्तीय समावेशन के अभाव में बैंकों की सुविधा से वंचित लोग मजबूरीवश अनौपचारिक बैंकिंग क्षेत्र से जुड़ने के लिये बाध्य हो जाते हैं। इन क्षेत्रों में ब्याज़ की दरें भी अधिक होती हैं और उधार दी गई राशि की मात्रा भी काफी कम होती है।
- चूँकि अनौपचारिक बैंकिंग ढाँचा कानून की परिधि से बाहर होता है, अत: उधार देने वालों और उधार लेने वालों के बीच उत्पन्न किसी भी प्रकार के विवाद का कानूनी तरीके से निपटान नहीं किया जा सकता है।
- इसके इतर जहाँ तक सवाल है वित्तीय समावेशन के सामाजिक लाभों का, तो आपको बताते चलें कि वित्तीय समावेशन के परिणामस्वरूप न केवल उपलब्ध बचत राशि में वृद्धि होती है, बल्कि वित्तीय मध्यस्थता की दक्षता में भी वृद्धि होती है। इतना ही नहीं नित नए व्यावसायिक अवसरों को प्राप्त करने की सुविधा भी प्राप्त होती है।
- इस परिस्थिति में सरकार द्वारा प्रायोजित सर्वसुलभ बैंकिंग प्रणाली के परिणामस्वरूप अधिक प्रतिस्पर्धी बैंकिंग परिवेश की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक आर्थिक विविधीकरण में योगदान प्राप्त हुआ है।
वित्तीय समावेशन के लाभ क्या-क्या हैं?
- आम आदमी को अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में शामिल किये जाने से देश की अर्थव्यवस्था को बहुत से लाभ भी प्राप्त होते हैं।
- जहाँ एक ओर इससे समाज में कमज़ोर तबके के लोगों को उनकी ज़रूरतों तथा भविष्य की आवश्यकताओं के लिये धन की बचत करने, विभिन्न वित्तीय उत्पादों जैसे - बैंकिंग सेवाओं, बीमा और पेंशन उत्पादों आदि में भाग लेकर देश के आर्थिक क्रियाकलापों से लाभ प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहन प्राप्त होता है।
- वहीं दूसरी ओर इससे देश को 'पूंजी निर्माण' की दर में वृद्धि करने में भी सहायता प्राप्त होती है।
- इसके फलस्वरूप होने वाले धन के प्रवाह से देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलने के साथ-साथ आर्थिक क्रियाकलापों को भी संवर्धन प्राप्त होता है।
- इसके अतिरिक्त वे लोग जो वित्तीय दृष्टि से विकास की मुख्यधारा में शामिल नहीं हुए हैं, प्राय: अपनी बचत अथवा निवेश को भूमि, भवन अथवा गहनें आदि जैसी अनुत्पादक आस्तियों में लगाते हैं।
- जबकि वित्तीय दृष्टि से अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में शामिल लोग ऋण सुविधाओं का आसानी से उपयोग कर पाते हैं, फिर चाहे वे संगठित क्षेत्र में काम कर रहे हों अथवा असंगठित क्षेत्र में, शहरी क्षेत्र में रहते हों अथवा ग्रामीण क्षेत्र में।
- वित्तीय समावेशन से सरकार को सरकारी सब्सिडी तथा कल्याणकारी कार्यक्रमों में अंतराल एवं हेरा-फेरी पर रोक लगाने में भी मदद मिलती है, क्योंकि इससे सरकार उत्पादों पर सब्सिडी देने के बजाय सब्सिडी की राशि सीधे लाभार्थी के खाते में अंतरित कर सकती है।
वित्तीय समावेशन की दिशा में सरकार द्वारा उठाए गए कदम
- देश के प्रत्येक व्यक्ति के वित्तीय समावेशन पर विशेष बल देने के लिये केंद्र सरकार द्वारा निम्नलिखित उपाय किये गए हैं।
जन-धन योजना
♦ बैंकिंग सेवाओं की पहुँच में वृद्धि करने और यह सुनिश्चित करने के लिये कि सभी परिवारों के पास कम से कम एक बैंक खाता हो, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 15 अगस्त, 2014 को प्रधानमंत्री जन-धन योजना नामक एक राष्ट्रीय वित्तीय समावेशन मिशन की घोषणा की गई।
♦ इस योजना को 28 अगस्त, 2014 को औपचारिक रूप में शुरू किया गया।
♦ अगस्त, 2017 के मध्य तक इस योजना के अंतर्गत तकरीबन 29.48 करोड़ बैंक खाते खोले गए, जो अपने-आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।
♦ ध्यातव्य है कि इन खातों में से तकरीबन 17.61 करोड़ खाते ग्रामीण/अर्द्धशहरी क्षेत्रों और शेष 11.87 करोड़ खाते शहरी क्षेत्रों में खोले गए।
♦ जन-धन योजना के तहत खाता खोलने पर मिलने वाले अतिरिक्त लाभ
♦ ग्राहक को एक रुपे (RUPAY) डेबिट कार्ड ज़ारी किया जाता है जिसमें 1 लाख रुपये का बीमा कवर होता है।
♦ इसके अतिरिक्त, खाते को छ: महीने तक संतोषजनक रूप में संचालित करने पर ग्राहक को 5,000 रुपए की ओवर ड्राफ्ट सुविधा भी प्रदान की जाती है।
♦ ग्राहकों को एक विशेष समय तक खाता खोले रखने के लिये 30,000 रुपए का जीवन बीमा भी दिया गया है।
बीमा और पेंशन स्कीम
♦ सभी नागरिकों और विशेषकर गरीब एवं सुविधा रहित लोगों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये सरकार द्वारा प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना शुरू की गई।
♦ पूर्व की प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीआई) में 18 से 70 वर्ष के आयु समूह को कवर किया गया था, जबकि प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना के अंतर्गत 18 से 50 वर्ष के आयु समूह के उन सभी लोगों को कवर किया गया है, जिनके पास बैंक खाते मौजूद हैं।
♦ यह योजना केवल 12 रुपए वार्षिक के वहनीय प्रीमियम पर 2 लाख रुपए का जोखिम कवर प्रदान करती है।
अटल पेंशन योजना
♦ इस योजना को वर्ष 2015 में 18 से 40 आयु वर्ग के सभी खाताधारकों के लिये शुरू किया गया था।
♦ इस स्कीम के अंतर्गत अभिदाता को मासिक पेंशन की गारंटी प्रदान की जाती है।
♦ इसके तहत केंद्र सरकार द्वारा भी कुल अंशदान के 50 प्रतिशत का योगदान किया जाता है, बशर्ते कि यह 1000 रुपए प्रतिवर्ष से अधिक न हो।
वरिष्ठ पेंशन बीमा योजना
♦ वे सभी अभिदाता जिन्होंने 15 अगस्त, 2014 से 14 अगस्त, 2015 तक वी.पी.बी.वाई. में अभिदान किया है, उन्हें 9 प्रतिशत का सुनिश्चित गारंटी रिर्टन प्रदान किया जाएगा।
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना
♦ इस योजना को गैर-कारपोरेट लघु व्यापार क्षेत्र को औपचारिक वित्तीय सुविधाएँ प्रदान करने के लिये अप्रैल 2015 में शुरू किया गया।
♦ इस स्कीम का मुख्य उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था के गैर वित्तपोषित क्षेत्र को प्रोत्साहित करना एवं बैंक वित्तपोषण सुनिश्चित करना है।
इसके अतिरिक्त देश में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये और भी बहुत सी योजनाओं को शुरू किया गया, जिनमें जीवन सुरक्षा बंधन योजना, सुकन्या समृद्धि योजना, किसान क्रेडिट कार्ड, सामान्य क्रेडिट कार्ड और भीम एप जैसी योजनाएँ शामिल हैं।
अन्य पहल
♦ इन सबके अलावा ए.टी.एम. और व्हाइट लेबल ए.टी.एम. की नीतियों का उदारीकरण भी किया गया है।
♦ ए.टी.एम. के नेटवर्क का विस्तार करने के लिये आर.बी.आई. द्वारा गैर-बैंकिंग संस्थाओं को ए.टी.एम. (जिन्हें व्हाइट लेबल ए.टी.एम. कहा जाता है) शुरू करने की अनुमति भी दी गई।
♦ आर.बी.आई. के अनुरोध पर वाणिज्यिक बैंकों द्वारा वित्तीय उत्पादों तक जनता की पहुँच सुनिश्चित करने हेतु जागरूकता और शिक्षा प्रदान करने के लिये वित्तीय जागरूकता केंद्र शुरू किये गए हैं।
♦ इस नीति का उद्देश्य यह है कि वित्तीय समावेशन को वित्तीय साक्षरता के समानांतर चलाया जाना चाहिये, क्योंकि बिना वित्तीय साक्षरता के वित्तीय समावेशन को सुनिश्चित करना एक असंभव कार्य है।
♦ इसके अतिरिक्त आधार और बैंक खातों की सहायता से प्रत्यक्ष लाभ अंतरण को सफल बनाना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।
स्टैंड-अप इंडिया
♦ इस योजना को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा महिला उद्यमियों द्वारा ग्रीनफील्ड उद्यमों के लिये 10 लाख रुपए से 1 करोड़ रुपए तक के बैंक ऋण तथा पारिवारिक सहायता प्रदान करने के लिये शुरू किया गया।
♦ ध्यातव्य है कि इस योजना के अंतर्गत अगस्त 2017 के मध्य तक 38,477 ऋण धारकों को लगभग 8,277 करोड़ रुपए के ऋण वितरित किये जा चुके हैं।
♦ देश में वित्तीय समावेशन को और अधिक मज़बूत बनाने के लिये सरकार द्वारा बैंकों को ग्रामीण क्षेत्रों में माइक्रो ए.टी.एम. स्थापित करने की सलाह दी गई है, जिसके परिणामस्वरूप दिसंबर 2016 तक तकरीबन 1,14,518 माइक्रो ए.टी.एम. स्थापित किये जा चुके हैं।
वेंचर कैपिटल स्कीम
♦ सरकार द्वारा अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग के लोगों को रोज़गार मांगने के बजाए रोज़गार देने की दिशा में प्रयत्न करते हुए इस योजना को प्रारंभ किया गया है।
♦ इस योजना में योग्य उद्यमियों को पहले 50 लाख रुपए से 15 करोड़ रुपए तक ऋण उपलब्ध कराया जाता था, जिसकी सीमा बाद में घटाकर 20 लाख रुपए से 15 करोड़ रुपए तक निर्धारित कर दी गई।
♦ इस योजना के तहत सरकार द्वारा अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों को समर्थ बनाते हुए आत्मनिर्भरता प्रदान करने तथा अन्य लोगों को रोज़गार प्राप्त करने में सक्षम बनाने का कार्य किया जा रहा है।इस योजना के तहत ब्याज की दर 10 प्रतिशत से घटाकर 8 प्रतिशत कर दी गई है। ♦ इस योजना का मूल मंत्र अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों को रोज़गार आश्रित न रहकर रोज़गार उपलब्ध कराने में सक्षम बनाना है।
निष्कर्ष
जैसा कि स्पष्ट है सरकार वित्तीय प्रणाली में प्रत्येक परिवार के समावेशन के लक्ष्य के प्रति पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध है, ऐसा करने का एकमात्र उद्देश्य देश के विकास से प्राप्त विधिक लाभों को जन-जन तक पहुँचाना है। इसके अतिरिक्त जनता से जुटाई गई निधियों (जो पहले औपचारिक चैनल में शामिल नहीं थी) को औपचारिक चैनल में शामिल करने का भी प्रयास किया जा रहा है, ताकि देश की अर्थव्यवस्था को संबल प्राप्त हो और विकास का मार्ग प्रशस्त हो सके।