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ग्रेटा थनबर्ग: पर्यावरण संरक्षण की कमान बच्चों के हाथ

  • 30 Mar 2019
  • 13 min read

संदर्भ

पृथ्वी को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव से बचाने के लिये दुनियाभर में कई तरह के प्रयास लगातार चलते रहे हैं। इसी कड़ी में नया नाम जुड़ा है School Strike for Climate अभियान का। दिलचस्प बात यह है कि इस अभियान की शुरुआत करने वाली एक लड़की है, जो केवल 16 साल की है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिये आवाज़ उठाने वाली इस लड़की का नाम है ग्रेटा थनबर्ग। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह कि इस स्वीडिश पर्यावरण कार्यकर्त्ता को हाल ही में 2019 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिये नामित किया गया है।

क्यों और कैसे चर्चा में आई ग्रेटा?

यह सभी जानते हैं कि पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन की वज़ह से गंभीर संकट का सामना कर रही है। पर्यावरणविदों का मानना है कि यदि समय रहते कार्बन उत्सर्जन को कम करने के प्रयास नहीं किये गए तो जीव-जगत का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए ग्रेटा ने अगस्त 2018 में स्वीडिश संसद के बाहर पर्यावरण को बचाने के लिये स्कूल स्ट्राइक यानी हड़ताल की थी। स्कूल की यह हड़ताल इतनी चर्चा में रही कि धीरे-धीरे इसमें लगभग पूरी दुनिया के स्कूली बच्चे शामिल हो गए। आज इस आंदोलन में लगभग एक लाख स्कूली बच्चे शामिल हो चुके हैं।

कम उम्र के बड़े इरादों का नाम है ग्रेटा

आपको बता दें कि केवल नौ साल की आयु में ग्रेटा ने क्लाइमेट एक्टिविज़्म में हिस्सा लेना शुरू किया था, तब वह तीसरी कक्षा में पढ़ रही थीं। अपने देश में ग्रेटा बिजली का बल्ब बंद करने से लेकर पानी की बर्बादी रोकने और खाने को न फेंकने जैसी बातें सुनती आई थीं। वज़ह पूछने पर उन्हें बताया गया कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये ऐसा किया जा रहा है। ग्रेटा का कहना है कि यह जानकर उन्हें बहुत हैरानी हुई कि लोग इसके बारे में कम ही बात करते हैं। यदि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को मनुष्य अपने प्रयासों से कम कर सकता है तो हमें इसके बारे में बात करनी चाहिये।

पिछले साल दिसंबर में पोलैंड के काटोविस में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सम्मलेन (CoP24) में ग्रेटा ने भी हिस्सा लिया था और इसे संबोधित किया था। इस बड़े और अंतर्राष्ट्रीय मंच से ग्रेटा ने अपने संबोधन में कहा, 'हम दुनिया के नेताओं से भीख मांगने नहीं आए हैं। आपने हमें पहले भी नज़रअंदाज़ किया है और आगे भी करेंगे। अब हमारे पास वक्त नहीं है। हम यहाँ आपको यह बताने आए हैं कि पर्यावरण खतरे में है।'

    • इसके अलावा, दावोस में विश्व आर्थिक मंच (WEF) के एक सत्र को ग्रेटा ने संबोधित किया था।
    • इतना ही नहीं स्वीडन की इस स्कूल छात्रा ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी एक वीडियो के ज़रिये संदेश भेजा था, जिसमें जलवायु परिवर्तन को लेकर प्रभावी कदम उठाने की अपील की गई थी।
    • आज ग्रेटा की मुहिम से प्रभावित होकर लगभग 2000 स्थानों पर पर्यावरण को बचाने के लिये आंदोलन-प्रदर्शन हो रहे हैं।

school strike

  • ग्रेटा ने अपनी बात लोगों तक पहुँचाने के लिये ट्विटर का भी सहारा लिया है।
  • इसमें कोई दो राय नहीं कि जलवायु परिवर्तन के वैश्विक प्रभावों की वज़ह से वर्तमान में जिस प्रकार की पर्यावरणीय एवं सामाजिक परिस्थितियाँ बन गई हैं, उसकी शायद ही किसी ने कल्पना की होगी। यदि अगले एक दशक में इसकी रोकथाम नहीं की गई तो इसके भयावह परिणाम सामने आ सकते हैं।
  • यही कारण था कि ग्रेटा थनबर्ग ने स्टॉकहोम, हेलसिंकी, ब्रसेल्स और लंदन सहित कई शहरों में अलग-अलग मंचों पर जाकर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये आवाज़ उठाई।

पहले-पहल तो ग्रेटा पर किसी का ध्यान नहीं गया और उनका साथ देने कोई नहीं आया। इसके बावजूद उन्होंने अपने अभिभावकों को यकीन दिलाया कि वह सही राह पर है। उनकी माँ ने, जो एक जानी-मानी ऑपेरा गायिका हैं, ग्रेटा के अभियान से प्रेरित होकर विमान यात्रा करना छोड़ दिया ताकि वायु प्रदूषण में कमी लाने में आंशिक सहयोग कर सकें। इससे उनके अपने और पति के काम पर असर भी पड़ा। ग्रेटा के पिता एक अभिनेता और लेखक हैं। इन तीनों ने माँसाहार भी छोड़ दिया। धीरे-धीरे ग्रेटा के धरने में उनकी कक्षा के विद्यार्थी जुड़ने लगे।

फ्राइडेज़ फॉर फ्यूचर

इसी वर्ष 15 मार्च को विश्व के कई शहरों में स्कूली विद्यार्थियों ने पर्यावरण संबंधी प्रदर्शनों में भाग लिया और भविष्य में भी प्रत्येक शुक्रवार को ऐसा करने का फैसला लिया है, जिसे उन्होंने ‘फ्राइडेज़ फॉर फ्यूचर’ (अपने भविष्य के लिये शुक्रवार) का नाम दिया है। अब हर शुक्रवार के दिन बच्चे स्कूल जाने की बजाय सड़कों पर उतरकर अपना विरोध दर्ज करवाएंगे ताकि विश्व के नेताओं का ध्यान पर्यावरणीय संकट की ओर दिलवाया जाए।

15 मार्च को दुनियाभर के कई शहरों में लाखों की संख्या में विद्यार्थी स्कूल न जाकर सड़कों पर उतरे थे और रैलियाँ आयोजित करते हुए पर्यावरण में आ रहे बदलावों को लेकर विरोध प्रदर्शन किये गए थे। भारत की राजधानी दिल्ली समेत 125 से ज्यादा देशों में में रैलियां हुई थीं और इसको इतिहास में पर्यावरण के मुद्दे पर बच्चों और किशोरों की ओर से किये सबसे बड़े प्रयास के तौर पर दर्ज किया गया। केवल UK में ही 100 से अधिक शहरों और कस्बों में इस किस्म के प्रदर्शन किये गए। ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में हुई रैली में 30 हज़ार से ज़्यादा बच्चे ‘पर्यावरण यात्रा’ में शामिल हुए थे।

भारत में पर्यावरण सुरक्षा में बच्चों का योगदान

इससे यह तो स्पष्ट है कि पर्यावरण सुरक्षा की मुहिम में बच्चे, विशेषकर किशोर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन पर्यावरण की सुरक्षा के लिये बच्चों से अग्रणी भूमिका निभाने की अपील करते समय हमें यह ध्यान में रखना होगा कि पर्यावरण के साथ हमारा संबंध सहयोग पर आधारित होना चाहिये। बच्चों की दृढ़ता का उपयोग वन्यजीव संरक्षण लक्ष्य की प्राप्ति में भी किया जा सकता है। इसी के मद्देनज़र भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRI), देहरादून ने नवोदय विद्यालय समिति और केंद्रीय विद्यालय संगठन के साथ एक समझौता किया है। 10 वर्ष के लिये किये गए इस समझौते के तहत इन संस्थानों के विद्यार्थियों के बीच जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य के साथ प्रकृति कार्यक्रम की शुरुआत भी की गई है ताकि पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने और कौशल हासिल करने के प्रति छात्रों की दिलचस्पी बढ़ाई जा सके। इसका एक अन्य उद्देश्य स्कूली बच्चों को व्यावहारिक कौशल सीखने के लिये एक मंच प्रदान करना है ताकि वे अपने संसाधनों का न्यायसंगत इस्तेमाल कर सकें तथा वन और पर्यावरण के संरक्षण को जन आंदोलन बनाने के लिये युवाओं का एक कैडर तैयार कर सकें। इस समझौते से पर्यावरण के राष्ट्रीय और वैश्विक मुद्दों के बारे में देश के युवाओं को संवेदनशील बनाया जा सकेगा और वे अधिक ज़िम्मेदार नागरिक बन सकेंगे। गौरतलब है कि ICFRI पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्तशासी परिषद है।

पाठ्यक्रम में ज़रूरी है पर्यावरण

पर्यावरण शिक्षा में विद्यार्थियों को बताया जाता है कि प्राकृतिक और प्रदूषण मुक्त पर्यावरण को बनाए रखने के लिये पारिस्थितिकी तंत्र को कैसे व्यवस्थित रखा जाता है। इस शिक्षा का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संबंधित चुनौतियों का सामना करने के लिये पर्यावरण शिक्षा के साथ आवश्यक कौशल और विशेष ज्ञान प्रदान करना है। 1972 में UNESCO द्वारा आयोजित मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम सम्मेलन के बाद पर्यावरण शिक्षा को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिलनी शुरू हुई थी। इस सम्मेलन के बाद UNESCO ने अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रम की भी शुरुआत की थी। बच्चों को देश का भविष्य मानते हुए भारत में भी उनको पर्यावरण चुनौतियों से निपटने के लिये तैयार किये जाने की ज़रूरत के मद्देनज़र देशभर में पर्यावरण को पाठ्यक्रम में अनिवार्य विषय के रूप में शामिल किया गया है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी पर्यावरण को लेकर कई पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

ग्लोबल वार्मिग का खतरा सभी के लिये बड़ी चुनौती है और बच्चों, किशोरों तथा युवाओं को इससे बचने और इसके दुष्प्रभावों को कम करने के लिये प्रदूषण, अनुपयोगी पदार्थ प्रबंधन, जैव विविधता, जलवायु परिर्वतन के प्रति संवेदनशील व जागरूक बनाना आवश्यक है। हमें यह हरगिज़ नहीं भूलना चाहिये कि सतत् पर्यावरण संतुलन का मूल भाव पीढ़ी-दर-पीढ़ी सबको एक समान प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करने का अवसर देने पर टिका है। अर्थात् भावी पीढ़ियों को भी प्राकृतिक स्रोत की मात्रा और शुद्धता उतनी ही प्राप्त हो सके, जितनी वर्तमान पीढ़ी और हमारे पूर्वजों को मिल रही थी। अगर मौजूदा पीढ़ी प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग अपनी ज़रूरतों से कहीं अधिक करेगी, विशेषकर उनका जिनका पुनर्चक्रण नहीं किया जा सकता, तो आने वाली पीढ़ी के हिस्से में न केवल न्यूनतम स्रोत आएंगे बल्कि ऐसी ज़मीन, जंगल, पानी और हवा की विरासत हाथ लगेगी जो प्रदूषण से विषैली होगी।

यह एक कटु सत्य है कि पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर फैसले लेने या नीतियाँ बनाने की प्रक्रिया में बच्चों की आवाज़की कभी कोई गुंजाइश नहीं रही, लेकिन यह भी सच है कि जलवायु परिवर्तन के संभावित दुष्परिणामों के सबसे बड़े भुक्तभोगी आज के बच्चे ही होंगे।

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