भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था में सीबीआई की भूमिका और इसकी स्वायत्तता का मुद्दा | 14 Jul 2017
संदर्भ और मुद्दा
समय-समय पर यह सुनने को मिलता है कि अमुक मामले की जाँच सीबीआई कर रही है या माँग उठती है कि फलाँ मामले की जाँच सीबीआई से कराई जाए। प्रायः ऐसे मामले सीबीआई को सौंपे जाते हैं, जिनमें प्रभावशाली लोग शामिल होते हैं। आजकल बिहार के एक पूर्व मुख्यमंत्री और उनके परिवारीजनों पर चल रही सीबीआई की कार्रवाई चर्चा का विषय बनी हुई है। इसी प्रकार कुछ समय पूर्व लखनऊ में हुई कर्नाटक कैडर के एक आईएएस अधिकारी की मौत की जाँच भी सीबीआई कर रही है। निस्संदेह सीबीआई आज देश का शीर्षस्थ अन्वेषण अभिकरण है, जिसने पूर्व में अनेक राष्ट्रीय महत्त्व के बहुचर्चित मामलों की छानबीन भी की है।
आइये, प्रश्नोत्तर के माध्यम से यह जानने-समझने का प्रयास करते हैं कि सीबीआई क्या है? इसका अधिकार क्षेत्र क्या है? सीबीआई को किस प्रकार के मामलों की जाँच सौंपी जाती है? साथ ही, सीबीआई को कितनी स्वायत्तता प्राप्त है?
1. क्या है सीबीआई?
सीबीआई, कार्मिक विभाग, कार्मिक पेंशन तथा लोक शिकायत मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन कार्यरत एक प्रमुख अन्वेषण पुलिस एजेंसी है। यह नोडल पुलिस एजेन्सी भी है, जो इंटरपोल के सदस्य-राष्ट्रों के अन्वेषण का समन्वयन करती है। एक भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी से हटकर सीबीआई एक बहुआयामी, बहु-अनुशासनात्मक केंद्रीय पुलिस, क्षमता, विश्वसनीयता और विधि शासनादेश का पालन करते हुए जाँच करने वाली एक विधि प्रवर्तन एजेंसी है और यह भारत में कहीं भी अपराधों का अभियोजन करती है।
2. देश को सीबीआई की आवश्यकता क्यों पड़ी?
माना जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत में ब्रिटिश सरकार के खर्चों में उल्लेखनीय रूप से तीव्र वृद्धि हुई थी, जिसकी वजह से देश में भ्रष्ट कारोबारियों तथा सरकारी अधिकारियों की लूट-खसोट काफी बढ़ गई थी। चूँकि स्थानीय पुलिस इस प्रकार के मामलों की पड़ताल करने में समर्थ नहीं थी, इसलिये ब्रिटिश सरकार को आवश्यकता महसूस हुई एक दक्ष और विशिष्ट बल की। इसलिये युद्ध तथा आपूर्ति विभाग में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच-पड़ताल के लिये 1941 में विशेष पुलिस की स्थापना (Special Police Establishment-SPE) की गई थी। युद्ध के बाद के वर्षों में भी एक केंद्रीय जाँच एजेंसी की आवश्यकता महसूस की गई और तब 1946 में अस्तित्व में आया दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (Delhi Special Police Establishment-DPSE Act)। इस अधिनियम ने विशेष पुलिस स्थापना की देखरेख गृह विभाग को हस्तांतरित कर दी और इसके कार्यों की परिधि में भारत सरकार के सभी विभागों को शामिल कर लिया गया। राज्यों की सहमति से इसे राज्यों में भी लागू किया जाता है। बाद में 1963 में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना का नाम बदलकर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI) कर दिया गया। हालाँकि, आज भी सीबीआई का कार्यक्षेत्र 1946 में बने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम से ही निर्धारित होता है।
3. सीबीआई किस प्रकार के मामलों की जाँच करती है?
आरंभ में एसपीई की दो शाखाएं थीं—1. सामान्य अपराध शाखा 2. आर्थिक अपराध शाखा। डीएसपीई अधिनियम के तहत सामान्य अपराध शाखा केन्द्र सरकार और सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों के उन कर्मचारियों की जाँच करती थी, जिनके बारे में यह संदेह होता था कि वे रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार में लिप्त हैं तथा आर्थिक अपराध शाखा आर्थिक/राजकोषीय नियमों के उल्लंघन के विभिन्न मामलों की जाँच करती थी। प्रतिभूति घोटाले से संबंधित मामलों और आर्थिक अपराधों में वृद्धि होने के कारण कार्य की अधिकता और भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण की वज़ह से 1994 में अलग से एक अपराध शाखा स्थापित की गई थी।
इसे आयात-निर्यात, विदेशी मुद्रा, पासपोर्ट आदि तथा ऐसे अन्य सम्बद्ध केंद्रीय कानूनों के उल्लंघन के मामलों की जाँच करने की शक्ति दी गई थी। यह सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में बेईमानी, धोखाधड़ी और गबन के उन गंभीर मामलों की भी जाँच कर सकती थी, जो कई राज्यों में संगठित गिरोहों द्वारा किये जाते थे। इसके अलावा, यह सार्वजनिक सेवाओं तथा सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं और उपक्रमों में व्याप्त भ्रष्टाचार के बारे में जानकारी एकत्र करती थी।
4. सीबीआई ने परंपरागत अपराधों की जाँच करना कब शुरू किया?
एक भ्रष्टाचार निरोधी जाँच एजेंसी के रूप में काम शुरू करने वाली सीबीआई को समय बीतने के साथ-साथ सरकार और न्यायपालिका के विभिन्न क्षेत्रों से पारंपरिक अपराध और भागलपुर अंखफोड़वा कांड, भोपाल गैस कांड आदि जैसे अन्य विशिष्ट मामलों की जाँच के अनुरोध मिलने शुरू हो गए। 1980 के दशक की शुरुआत से संवैधानिक न्यायालयों ने भी खोजबीन और जाँच के लिये सीबीआई को मामले भेजने शुरू कर दिये। वर्ष 1987 में यह निर्णय लिया गया कि सीबीआई के तहत दो जाँच प्रभागों अर्थात् भ्रष्टाचार निरोधक प्रभाग और विशेष अपराध प्रभाग का गठन किया जाए। इसके बाद में सीबीआई भ्रष्टाचार और आर्थिक अपराधों के अलावा परंपरागत अपराधों जैसे हत्या, अपहरण, आतंकवादी अपराध इत्यादि जैसे चुनिंदा मामलों की जाँच का कार्य भी करने लगी। इसके अलावा, राजीव गाँधी हत्याकांड तथा बाबरी विध्वंस आदि जैसे राष्ट्रीय महत्त्व के बहुचर्चित मामलों की जाँच के लिये समय-समय पर स्पेशल सेल का भी गठन किया जाता रहा।
5. सीबीआई का अधिकार क्षेत्र क्या है?
डीएसपीई अधिनियम 1946 की धारा 2 के तहत केवल केन्द्रशासित प्रदेशों में अपराधों की जाँच के लिये सीबीआई को शक्ति प्राप्त है। हालाँकि, केंद्र द्वारा रेलवे तथा राज्यों जैसे अन्य क्षेत्रों में उनके अनुरोध पर इसके अधिकार क्षेत्र को बढ़ाया जा सकता है। वैसे सीबीआई केवल केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित मामलों की जाँच के लिये अधिकृत है। कोई भी व्यक्ति केंद्र सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और राष्ट्रीयकृत बैंकों में भ्रष्टाचार के मामले की शिकायत सीबीआई से कर सकता है। इसके अलावा, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामलों में सीबीआई स्वयं कार्रवाई कर सकती है। जब कोई राज्य केंद्र से सीबीआई की मदद के लिये अनुरोध करता है तो यह आपराधिक मामलों की जाँच करती है या तब जब सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय इसे किसी अपराध या मामले की जाँच करने का निर्देश देते हैं।
6. सीबीआई की स्वायत्तता का मुद्दा क्या है?
प्रायः यह आरोप लगता रहा है कि सरकार अपने विरोधियों को चुप कराने के लिये सीबीआई का दुरुपयोग करती है। वैसे कहने के लिये सीबीआई एक लगभग स्वायत्त संस्था है, लेकिन वस्तुस्थिति क्या है, यह किसी से छिपा नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय अपनी एक टिप्पणी में इसे ‘पिंजरे में बंद तोता’ बता चुका है। देखा जाए तो दुनियाभर में सभी संस्थाएं किसी-न-किसी के प्रति जवाबदेह होती ही हैं। कोई कार्यपालिका, कोई विधायिका और कुछ न्यायपालिका के प्रति जवाबदेह होती हैं। सर्वोच्च न्यायालय की उपरोक्त टिप्पणी के बाद संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान 2013 में तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम की अध्यक्षता में सीबीआई को जाँच के मामले में व्यापक स्वायत्तता देने के उद्देश्य से पाँच सदस्यीय मंत्री समूह बनाया गया था।
सीबीआई को स्वायत्तता देने के पक्ष और विपक्ष में विशेषज्ञों के अलग-अलग विचार हैं:
विपक्ष: सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण मानते हैं कि सत्ता में बैठी सरकार यह तय करती है कि सीबीआई कैसे कार्य करेगी; और यह उन चीज़ों से स्पष्ट हो जाता है कि क्या किया गया है और क्या नहीं? उत्तर प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों का मामला देखें—जब-जब सत्ता में बैठी सरकार को उन पर दबाव बनाना होता है तो सीबीआई उनके खिलाफ दर्ज आय से अधिक संपत्ति के मामले में कार्रवाई फिर से शुरू कर देती है। इसके अलावा भी पहले विरोध करने वाली सीबीआई कई मामलों में न्यायालय का निर्णय आने के बाद आश्चर्यजनक रूप से चुप्पी साध लेती है।
मध्य: सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक प्रकाश सिंह का कहना है कि सीबीआई बराबर आलोचना का शिकार होती रही है। किन्हीं विशिष्ट परिस्थितियों के चलते संस्थाएँ बनाई जाती हैं। कई बार ऐसा होता है जब प्रतिक्रियाएँ एक राजनीतिक एजेंडा के तहत आगे बढ़ती प्रतीत होती हैं, और कई बार ऐसा भी होता है जब प्रतिक्रियाएँ किसी स्थिति से निपटने की वास्तविक इच्छा को प्रतिबिंबित करती हैं। दोनों ही स्थितियों में संस्थानों को उन्नत करने और उनके आधुनिकीकरण की आवश्यकता है। सीबीआई तब तक एक अव्वल दर्ज़े की जाँच एजेंसी की तरह काम करती है, जब तक सरकार इसकी कार्य-प्रणाली में हस्तक्षेप नहीं करती या उसे प्रभावित नहीं करती।
पक्ष: ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट के पूर्व महानिदेशक नवनीत राजन वासन की राय में सीबीआई ने वर्षों से एक स्वतंत्र, उद्देश्यपरक और निष्पक्ष जाँच एजेंसी के रूप में अपनी पहचान बना ली है। इसने जनता, न्यायपालिका और मीडिया का विश्वास जीता है, तभी तो संवेदनशील और जटिल मामलों की जांच सीबीआई से कराने की मांग बराबर की जाती है| विशेषकर वहाँ, जहाँ सार्वजनिक सेवाओं में उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार के मामले सामने आते हैं। उच्च मानकों और निष्पक्षता के साथ सीबीआई जांच इस संस्था के आंतरिक नियंत्रण, उद्देश्यपूर्ण मूल्याँकन तथा स्वतंत्र और ईमानदार राय को महत्त्व देने का परिणाम है। अभियुक्त का रसूख या किसी विशेष संगठन के साथ उसकी संबद्धता का जाँच के संबंध में कोई महत्त्व नहीं होता।