भारतीय अर्थव्यवस्था
ऐसे कैसे बढ़ेगा गैस-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर भारत?
- 18 Dec 2018
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संदर्भ
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि देश आने वाले कुछ वर्षों में गैस-आधारित अर्थव्यवस्था में बदल जाएगा। यह बात प्रधानमंत्री ने शहरी गैस वितरण (CGD) बोली प्रक्रिया के नौवें दौर के तहत 129 ज़िलों के 65 भौगोलिक क्षेत्रों में सिटी गैस वितरण परियोजना की आधारशिला रखते हुए कही थी। पहली नज़र में देखा जाए तो यह किसी ख्वाब के हकीकत में बदल जाने जैसा दिखाई देता है। ऐसा इसलिये कि गैस-आधारित अर्थव्यवस्था में ऊर्जा पर आने वाली लागत बहुत कम हो जाती है और यह इको-फ्रेंडली भी होती है।
फिलहाल क्या है स्थिति?
- भारत सरकार गैस-आधारित अर्थव्यवस्था की दिशा में आगे बढ़ने के लिये देशभर में ईंधन के रूप में पर्यावरण अनुकूल स्वच्छ ईंधन अर्थात् प्राकृतिक गैस के उपयोग को बढ़ावा देने पर विशेष ज़ोर दे रही है।
- मौजूदा समय में देश के ऊर्जा मिश्रण (Energy Mix) में गैस की हिस्सेदारी 6.2 प्रतिशत है। वर्तमान में देश में लगभग 45 मिलियन टन तेल के बराबर प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल किया जाता है।
- इस आँकड़े को 2020 तक 15 प्रतिशत के स्तर तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है। इस मामले में वैश्विक औसत 24 प्रतिशत है।
- भारत में गुजरात में प्राकृतिक गैस का सबसे बेहतर इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि वहाँ इसकी उपलब्धता और वितरण की बेहतर सुविधाएँ मौजूद हैं।
- गुजरात में होने वाली ऊर्जा की कुल खपत में प्राकृतिक गैस का हिस्सा 25 प्रतिशत है।
प्राकृतिक गैस ही क्यों?
देश में बढ़ रही आर्थिक गतिविधियों ने ईंधन और ऊर्जा की माँग बहुत बढ़ा दी है। ऊर्जा की इस बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के प्रयासों में स्वच्छ ऊर्जा पर ध्यान देना भी ज़रूरी है। पर्यावरण को ज़्यादा नुकसान पहुँचाए बिना भी विकास हो सकता है। ऐसे में ऊर्जा ज़रूरतों के लिये प्राकृतिक गैस का अधिकतम इस्तेमाल बहुत ज़रूरी है। कोयला एवं अन्य द्रव ईंधनों की तुलना में प्राकृतिक गैस एक बेहतर ईंधन है क्योंकि यह पर्यावरण अनुकूल, सुरक्षित और किफायती होती है। प्राकृतिक गैस की आपूर्ति ठीक उसी तरह से पाइपलाइनों के ज़रिये की जाती है, जैसे कि किसी व्यक्ति को नल के ज़रिये पानी मिलता है। इसके लिये सिलेंडरों या अन्य किसी प्रकार के स्टोरेज टैंकों की आवश्यकता नहीं पड़ती तथा इस तरह से बचे स्थान का इस्तेमाल अन्य कार्यों के लिये किया जा सकता है।
Independent Transport System Operator & Gas Trading Exchange
गैस की कीमतों पर ध्यान देने और गैस ग्रिड के संचालन के लिये एक Independent Transport System Operator भी बनाया गया है। इसके साथ ही देश में फ्री गैस मार्केट का वातावरण बनाने और इस सेक्टर में पारदर्शिता बनाए रखने के लिये Gas Trading Exchange बनाने पर भी काम चल रहा है।
कम उत्सर्जन (Low Emission)
कोयला एवं अन्य द्रव ईंधनों की तुलना में प्राकृतिक गैस एक बेहतर ईंधन है क्योंकि यह इको-फ्रेंडली, सुरक्षित और सस्ता ईंधन है। हमारे देश के शहरों में हवा में मौज़ूद कणों (Suspended Particulate Matter) का अधिक होना एक बड़ी पर्यावरण समस्या है। इसकी वज़ह से वायु प्रदूषण जानलेवा स्तर तक पहुँच जाता है। लेकिन प्राकृतिक गैस आधारित ईंधन का एक बड़ा फायदा यह है कि इसमें Particulate Matter (PM) का उत्सर्जन बहुत कम होता है।
हर हाल में फायदेमंद
- सिर्फ घरों तक प्राकृतिक गैस की पहुँच बढ़ाने से काम चलने वाला नहीं, इसके साथ-साथ देश के ऑटोमोबाइल सेक्टर तथा लघु और मध्यम उद्योगों तक भी इसकी पहुँच सुनिश्चित करनी होगी। तभी प्राकृतिक गैस देश के लोगों का सामाजिक स्तर बढ़ाने में सहायक हो सकेगी।
- अन्य पारंपरिक ईंधनों की तुलना में प्राकृतिक गैस का एक आर्थिक लाभ यह भी है कि यह LPG से 40 प्रतिशत सस्ती होती है।
- CNG को पेट्रोल और डीज़ल का एक बेहतर विकल्प माना जाता है। पेट्रोल की तुलना में यह 60 प्रतिशत और डीज़ल की तुलना में 45 प्रतिशत सस्ती होती है।
- ऊर्जा के इस साधन यानी प्राकृतिक गैस से होने वाली बचत को बच्चों की शिक्षा जैसे उपयोगी क्षेत्रों में इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे सामाजिक-आर्थिक विकास में तेज़ी लाई जा सकती है।
- इसे देश के उन शहरों में स्पष्ट अनुभव किया जा सकता है, जहाँ प्राकृतिक गैस पिछले 10 वर्षों से आम आदमी के इस्तेमाल के लिये उपलब्ध है।
सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास
सरकार देश में एक पारदर्शी और बाज़ार अनुकूल गैस व्यवसाय प्रणाली बनाने की कोशिश कर रही है। गैस की कीमतों में काफी उतार-चढ़ाव होता है, ऐसे में गैस के विपणन के लिये एक पारदर्शी प्रणाली बनाना जरूरी है।
नीतिगत सुधारों के ज़रिये देश में गैस के उत्पादन में वृद्धि करने के प्रयास किये जा रहे हैं। स्वच्छ ईंधन पर जोर देने के लिये गैस आयात अनुबंध नए सिरे से तय किये जा रहे हैं और बायो CNG को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
बिना विस्तार किये और उत्पादन बढ़ाए नहीं चलेगा काम
नवंबर 2018 तक देश में 1491 CNG स्टेशन, 46,40,998 घरेलू, 27,097 कमर्शियल और 8278 औद्योगिक कनेक्शन थे। यदि गैस-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर वास्तव में कदम बढ़ाने हैं, तो निश्चित ही यह स्थिति ऊँट के मुंह में जीरे के समान है। वर्तमानक्ले जाने की क्षमता रखती है। इसके अलावा, 11,216 किमी. पाइपलाइन निर्माणाधीन है।
प्राकृतिक गैस या तो घरेलू रूप से उत्पादित होती है या इसका LNG के रूप में आयात किया जाता है। भारत में इसका उत्पादन असम, बॉम्बे हाई, कृष्णा-गोदावरी बेसिन और कावेरी बेसिन में होता है। इसके अलावा, देश में चार LNG आयात टर्मिनल हैं - गुजरात में दाहेज और हज़ीरा, महाराष्ट्र में दाभोल और केरल में कोच्चि। इन सभी की कुल क्षमता 26.7 मिलियन टन स्टैंडर्ड क्यूबिक मीटर प्रतिवर्ष है। इनके अलावा तमिलनाडु के एन्नोर और ओडिशा के धामरा में दो अन्य LNG टर्मिनल निर्माणधीन हैं।
बढ़ती खपत और कम होता उत्पादन
भारत में ऊर्जा की खपत प्रतिवर्ष 4.2 फीसदी की दर से बढ़ रही है, जो विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है। ऐसे में गैस-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाने से पहले इसकी किफायती दामों पर पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। वर्तमान में ऐसा देखने को नहीं मिलता और देश में कई गैस-आधारित विद्युत संयंत्र पर्याप्त मात्रा में गैस न मिलने की वज़ह से बंद पड़े रहते हैं या अपनी पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं कर पाते। स्पष्ट है कि जब तक आपूर्ति को बढ़ाया नहीं जाता, तब तक बनाया गया इंफ्रास्ट्रक्चर सालों-साल तक बेकार पड़ा रहता है। प्राकृतिक गैस की आपूर्ति उत्पादन या आयात में वृद्धि करके सुनिश्चित की जा सकती है।
निरंतर बढ़ रही है मांग
भारत आज विश्व में तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है। वैश्विक तौर पर ऊर्जा की मांग सबसे अधिक भारत में बढ़ने की संभावना है। वर्तमान में भारत की तेल और गैस की मांग 22.9 करोड़ मीट्रिक टन की है, जिसके 2040 में तीन गुना बढ़कर 60.7 करोड़ मीट्रिक टन होने की संभावना है। ऐसे में देश में अपस्ट्रीम तेल और गैस क्षेत्र में निवेश की पर्याप्त संभावनाएँ हैं।
इतनी आसान नहीं है राह, लंबा सफर तय करना है अभी
भारत की प्रति व्यक्ति गैस की खपत विश्व औसत का केवल 7 प्रतिशत है, जो कि 0.42 टन तेल के बराबर है। वर्तमान में देश में 24,842 मेगावाट प्राकृतिक गैस आधारित बिजली की कुल स्थापित क्षमता है, जिसमें आधे से अधिक प्राकृतिक गैस की उपलब्धता के अभाव निष्क्रिय पड़ी है। एक ओर लाख प्रयास करने के बावजूद जहाँ गैस का उत्पादन बढ़ नहीं पा रहा है, वहीं इसकी मांग में साढ़े चार फीसदी की दर से बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में कहा जा सकता है कि देश की अर्थव्यवस्था को गैस आधारित अर्थव्यवस्था में बदलने के लिये अभी भी एक लंबा सफर तय करना होगा।