आरएनए तकनीक और भारत के सन्दर्भ में इनकी उपयोगिता | 02 May 2017
सन्दर्भ
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी नित नए आयाम छु रहे हैं, जीन-सम्पादन यानी जीन-एडिटिंग के क्षेत्र में भी विज्ञान ने अहम् प्रगति की है। ‘बिल्डिंग ब्लॉक ऑफ़ लाइफ’ कहे जाने वाले डीएनए पर किये जाने वाले अनुसन्धान मानव सभ्यता के लिये एक वरदान के ही समान हैं।
- डीएनए आधारित अध्ययनों से फसल की गुणवत्ता और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई जा सकती है, आनुवांशिक बीमारियों का इलाज किया जा सकता और इसके अलावा भी बहुत से ऐसे कार्य हैं जिनमें डीएनए आधारित खोज एवं अनुसंधान महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
- विदित हो कि आरएनए-आधारित अनुसन्धान भी उतने महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं, जितना कि डीएनए आधारित अनुसन्धान, लेकिन उनका उन्नत स्थिति में नहीं होना चिंताजनक है।
- उल्लेखनीय है कि भारतीय परिस्थित्तियों में तो आरएनए आधारित तकनीक एवं प्रौद्योगिकी अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण हैं।
डीएनए और आरएनए में अंतर
- डीएनए (डीऑक्सीरिबोन्यूक्लिक एसिड) सभी जीवों में पाया जाने वाला एक वंशानुगत पदार्थ है।
- जब यह कोशिका के नाभिक में मौज़ूद रहता है तो इसे परमाणु डीएनए कहा जाता है।
- डीएनए की कुछ मात्रा माइटोकांड्रिया में भी पाई जाती है जिसे एमटीडीएनए या माइटोकांड्रियल डीएनए (mtDNA or mitochondrial DNA) के नाम से जाना जाता है।
- जबकि आरएनए (राईबोन्यूक्लिक एसिड) सभी जीवित कोशिकाओं में पाया जाता है। यह डीएनए से निर्देश लेता है जो प्रोटीन के संश्लेषण को नियंत्रित करता है।
आरएनए पर आधारित तकनीक
- आरएनए आधारित प्रौद्योगिकी में सबसे प्रचलित प्रौद्योगिकी आरएनए हस्तक्षेप (RNA interference-RNAi) है।
- आरएनएआई एक जीन साइलेंसिंग तकनीक है जो कि ‘डबल-स्ट्रैंडेड आरएनए’ के माध्यम से लक्षित कोशिकाओं में प्रोटीन संश्लेषण को रोकता है और उनकी गतिविधियों को बढ़ा या घटा सकता है।
- कोशिकाओं को परजीवी जीनों (वायरस एवं ट्रांसपोसोन) से बचाने में आरएनए हस्तक्षेप की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- एंटीसेन्स तकनीक भी यही कार्य करती है लेकिन ‘सिंगल- स्ट्रैंडेड आरएनए’ के माध्यम से।
आरएनए आधारित तकनीक भारत के लिये उपयोगी क्यों?
- बीटी कपास और अन्य आनुवांशिक रूप से संशोधित फसलों के हो रहे विरोध को देखते हुए, भारतीय संदर्भ में ‘आरएनए हस्तक्षेप’ का व्यापक महत्त्व है।
- हाल ही में, आनुवांशिक रूप से संशोधित सरसों को ‘आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति की अनुमति प्राप्त होने के बावजूद, उच्चतम न्यायालय के समक्ष दायर याचिका के कारण इसकी खेती रोक दी गई है।
- यह अपेक्षित है कि भारत आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों के विनियमन के लिये एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करे। इन परिस्थितियों में आरएनए-आधारित समाधान एक व्यवहार्य विकल्प हो सकता है।
- आरएनएआई प्रौद्योगिकियों पर आधारित दवाओं के माध्यम से लोगों के कोलेस्ट्रॉल के स्तर में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है।
- भारत सहित विश्व के कई देशों में मोटापा एक गंभीर समस्या बनती जा रही है, ऐसे में यह तकनीक अत्यंत ही उपयोगी प्रमाणित हो सकती है।
- यह तकनीक, अक्वायर्ड इम्युनो डेफिसिअन्सी सिंड्रोम (एड्स) जैसे संक्रमणों के उपचार में भी बहुत महत्त्व रखता है।
- भारत सहित एशिया के कई देशों में एड्स एक बड़ी लाइलाज बीमारी है। अतः आरएनए तकनीक पर आधारित दवाओं को बढ़ावा मिलना चाहिये।
- एंटीसेन्स तकनीक की सहायता से टमाटर के एक किस्म के उत्पादन में आशाजनक परिणाम देखने को मिले हैं। टमाटर के इस किस्म को सामान्यतः ‘फ्लावर सावर’ के नाम से जाना जाता है और ये जल्दी ख़राब नहीं होते हैं।
- भविष्य में एंटीसेन्स तकनीक की सहायता से कैंसर के इलाज़ की सम्भावनाएँ व्यक्त की जा रही हैं।
समस्याएँ एवं चुनौतियाँ
- भारत में ऐसी कंपनियों की संख्या बहुत ही कम है, जो ‘आरएनए हस्तक्षेप’ और एंटीसेन्स जैसी तकनीकों पर काम कर रही हों।
- भारत में उन तकनीकों का विकास अभी शैशवावस्था में है जिनसे कि न्यूक्लिक एसिड का चिकित्सीय इस्तेमाल किया जा सके।
क्या हो आगे का रास्ता
- भारत को सर्वप्रथम नैनो तकनीक पर आधारित, लक्षित आरएनए-वितरण उत्पाद विकास पर केंद्रित घरेलू सुविधाओं का विकास करना होगा।
- अमेरिका, रूस, जापान सहित इस क्षेत्र में पहले से अपेक्षित विकास कर चुके अन्य देशों के अनुसंधान संस्थानों के साथ, सरकार का सभी स्तरों पर सक्रिय सहयोग होना चाहिये।
- चौथी औद्योगिक क्रांति में नैनो तकनीक के महत्त्व को उजागर करने के लिये शैक्षिक संस्थानों और सरकारी एजेंसियों को देशव्यापी सेमिनार और संगोष्ठी आयोजित करना चाहिये।
- सरकार को अपने जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान कार्यक्रमों के तहत नैनो-जैव प्रौद्योगिकी के विकास पर बल देना चाहिये।
निष्कर्ष
भारत यदि आरएनए तकनीक में नई ऊँचाइयों को छूता है तो चिकित्सा पर्यटन के क्षेत्र में बेहतर कर रहा यह देश नैनो तकनीक पर आधारित दवाओं का भी हब बन सकता है। इससे भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि के साथ-साथ भारतीय कंपनियों को इस क्षेत्र में नवीन अनुसन्धान में मदद भी मिलेगी।