नदी तलछट प्रबंधन नीति का विकास शीघ्र | 18 Mar 2017
विदित हो कि सरकार ज़ल्दी ही एक नदी तलछट प्रबंधन नीति का विकास करेगी। गौरतलब है कि इस संबंध में पूर्व में कई समितियाँ गठित की गई थीं, जिन्होंने तलछट की समस्या पर अध्ययन किया और उपयुक्त उपाय सुझाए। ज़ाहिर है आज एक ऐसी तलछट प्रबंधन पद्धति के निर्माण की आवश्यकता है जो कि पर्यावरण के अनुकूल और व्यावहारिक होने के साथ-साथ तकनीकी तथा आर्थिक रूप से भी संभव भी हो।
तलछट नीति कि आवश्यकता क्यों ?
- दरअसल, नदियों के तलछट में साल दर साल गाद जमता जा रहा है। यह समस्या गंभीर हो गई है क्योंकि तलछट के अवरुद्ध होने से नदियों की बहाव की क्षमता में परिवर्तन देखा जा रहा है, जिससे बाढ़ का स्तर बढ़ रहा है। गौरतलब है कि सामान्य तौर पर यह महसूस किया जा रहा है कि भारत की नदियों का तलछट प्रबंधन, सीमित वैज्ञानिक ज्ञान पर आधारित है। अतः तलछट प्रबंधन के लिये एक अलग दृष्टिकोण वांछनीय है, जिसमें तलछट का आवश्यक ज्ञान और उचित प्रबंधन शामिल हो और उपलब्ध वैज्ञानिक ज्ञान का व्यापक अनुप्रयोग हो।
- नदियों में गाद और ड्रेजिंग सहित तलछट प्रबंधन का मुद्दा काफी समय से लोगों का ध्यान खींच रहा है। नदियों में तलछट प्रबंधन के संबंध में एक समग्र नीति बनाने की आवश्यकता है क्योंकि अगर इसका प्रबंधन नहीं किया जाएगा तो बाढ़ की गंभीर समस्याएँ पैदा होंगी तथा नदी के प्रवाह और नौवहन पर असर पड़ेगा।
भारत में तलछटीकरण एक गंभीर समस्या
- भारत में तलछटीकरण एक गंभीर समस्या है। नदी का उद्गम स्थल हिमालयी क्षेत्र हो या प्रायद्वीपीय पठार भारत में अधिकांश नदियाँ तलछटीकरण की समस्या से ग्रस्त हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारतीय नदियों में विश्व की सभी नदियों का लगभग 5 प्रतिशत जल बहता है परन्तु भारतीय नदियों के रास्ते विश्व के कुल तलछटों का 30 प्रतिशत से भी अधिक भाग महासागरों तक जाता है। नदियों में होने वाला यह तलछटीकरण यहाँ स्थित विभिन्न जलाशयों, सिंचाई प्रणालियों व जल विद्युत परियोजनाओं के लिये एक गम्भीर चुनौती के रूप में उभरा है। विदित हो कि नदियों में तलछट की यह मात्रा भू-अपरदन का परिणाम है। भू-अपरदन अनाच्छादन की वह प्रक्रिया है, जिसमें मृदा की ऊपरी सतह सामग्री अलग होकर प्रवाहित होती है।
तलछटीकरण के व्यापक समस्या कैसे ?
- यह चिंतनीय है कि तलछटों के निम्नीकरण से भारत की औसतन ऊँचाई 22 मि.मी. प्रति शताब्दी की दर से कम हो रही है। कई नदियाँ तलछटीकरण की वज़ह से अपना रास्ता बदल लेती हैं और जान-माल की हानि पहुँचाती हैं। नदी मार्ग में तलछट जमा होने के कारण ही बिहार की कोसी नदी लगभग हर साल अपना रास्ता बदल लेती है, जिससे जान-माल को भारी क्षति पहुँचती है। यही कारण है की कोसी नदी को ‘बिहार का शोक’ कहा जाता है।
- वस्तुतः नदी जल में तलछट की अधिक मात्रा टरबाइनों को हानि पहुँचाती है व विद्युत उत्पादन को प्रभावित करती है, अतः नदियों में तलछट की अधिक मात्रा जल विद्युत परियोजनाओं के लिये भी एक खतरा है। भारतीय नदी घाटियों में प्रति वर्ष आने वाली बाढ़ों का एक मुख्य कारण भी नदी मार्ग में अत्यधिक मात्रा में जमा होने वाले तलछट ही हैं। अधिक तलछट से नदी की गहराई कम हो जाती है व चौड़ाई अधिक। ऐसी स्थिति में जब अधिक वर्षा होती है तो नदियों में पानी अधिक हो जाता है और आस-पास के क्षेत्रों में बाढ़ के रूप में फैल जाता है। तलछट का प्रभाव यहीं तक सीमित नहीं रहता, जब बाढ़ आती है तो उपजाऊ भूमि की ऊपरी परत पानी के साथ बह जाती है।
क्या हो आगे का रास्ता ?
- तलछटीकरण की समस्या के समाधान के लिये पहले उन क्षेत्रों को जानने की ज़रूरत है जहाँ अपरदन और तलछटीकरण की समस्या अधिक प्रबल है। ये जानने के लिये विभिन्न नदी घाटियों का निरन्तर सर्वेक्षण ज़रूरी है। तलछटीकरण की इस समस्या से निपटने के लिये मृदा संरक्षण परिमापों और बाँध संचालित परियोजनाओं को लागू किया जाना आवश्यक है।
- तलछट की समस्या को कम करने के लिये जलागम प्रबंधन कार्यक्रमों को विस्तृत स्तर पर लागू करने की भी ज़रूरत है। जलागम प्रबंधन में मानव भूमि और जल संसाधनों को अधिक बुद्धिमता से उपयोग करता है व जल के प्रवाह को नियंत्रित करता है, जिससे जल की अपरदन करने की क्षमता कम हो जाती है। जलागम प्रबंधन कार्यक्रम अगर सुव्यवस्थित ढंग से लागू किए जाए तो निश्चित तौर पर नदियों में तलछट की मात्रा को नियन्त्रित किया जा सकता है। इन सभी बातों पर गौर किया जाए तो सरकार का यह प्रयास निश्चित ही सराहनीय है।
निष्कर्ष
यह एक कड़वा सत्य है की मानवीय क्रियाकलाप तलछटीकरण की समस्या को अधिक जटिल बनाते हैं। यदि हम स्वयं को पर्यावरण सुरक्षा के प्रति संवेदनशील नहीं बनाते हैं तो सरकार की सभी नीतियाँ असफल ही प्रमाणित होंगी। अब जब सरकार ने तलछटों की उत्पत्ति, प्रवाह, जमाव, मापन, विश्लेषण और समाधान के संबंध में वैज्ञानिक जागरूकता के अभाव का संज्ञान लेते हुए तलछट नीति लाने कि बात की है तो हमें भी ख़ुद को पर्यावरण के प्रति जागरूक कर लेना होगा।