अंतर्राष्ट्रीय संबंध
डब्लूटीओ को पुन:संयोजित करना
- 07 Feb 2017
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पृष्ठभूमि
गौरतलब है कि 8 फरवरी से होने वाली विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization – WTO) के महानिदेशक राबर्ट अज़ेवेदो Roberto Azevêdo की भारत यात्रा में के दौरान वैश्विक व्यापार नियमों (Global Trade Rules) से संबंधित बुनियादी ढाँचे पर विचार मंथन किये जाने की संभवना व्यक्त की जा रही है| ध्यातव्य है कि ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (Trans-Pacific Partnership - TPP), जो सम्भवतः व्यापार नियमों का अगुआ बन चुकी थी, की समाप्ति की घोषणा की जा चुकी है|
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- वस्तुतः टीपीपी की समाप्ति की घोषणा का आधार वर्ष 2015 में नैरोबी में सम्पन्न हुए दसवें मंत्रीस्तरीय सम्मेलन (Ministerial Conference) के दौरान उस समय लगभग तैयार माना गया था जब संयुक्त राज्य अमेरिका ने विश्व व्यपार संगठन को लगभग अप्रासंगिक करार देने के लिए टीपीपी की ओर रुख किया था|
- इस सम्मेलन की समाप्ति दोहा चक्र की वार्ता (Doha Round negotiations) में विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों द्वारा किसी भी महत्वपूर्ण विषय के सन्दर्भ में निर्णय लिये बिना ही कर दी गई थी|
- ध्यातव्य है कि वर्ष 2001 में विकासशील देशों (विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों में बहुसंख्यक) की आवश्यकताओं के प्रति विश्व व्यापार संगठन को अधिक उत्तरदायी बनाने हेतु विद्यमान व्यापार नियमों की समीक्षा करने के लिए इन वार्ताओं को दोहा के मंत्रिस्तरीय सम्मलेन द्वारा बाध्यकारी बताया गया था|
- विदित हो कि विकासशील विश्व द्वारा पिछले कुछ वर्षों से डब्ल्यूटीओ की प्रासंगिकता पर कईं सवाल खड़े किये गए है क्योंकि इस संगठन की प्राथमिकताओं का निर्धारण करने में धनी राष्ट्रों का हस्तक्षेप बहुत अधिक रहा है| ऐसे में विकासशील विश्व की आवश्यकताओं एवं विकास हेतु डब्लूटीओ की जवाबदेहिता संदेह उत्पन्न करती है|
- यही कारण है कि कई महत्वपूर्ण समझौतों में संशोधन करने तथा उन्हें विकासशील देशों की विकासात्मक आवश्यकताओं के लिए अधिक उत्तरदायी बनाने के लिए विकासशील देशों के प्रयासों एवं सिफारिशों का गम्भीरतापूर्वक आकलन नहीं किया गया है|
- इसी तरह अल्पविकसित देशों के हितों से संबद्ध गंभीर चिंता के मुद्दों, विशेषकर वैश्विक बाज़ारों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की इनकी सक्षमता संबंधी विषय में भी कोई विशेष विचार नहीं किया गया है|
खाद्य भंडारण के मुद्दे पर चुप्पी
- ध्यातव्य है कि डब्लूटीओ द्वारा कृषि एवं बौद्धिक संपदा अधिकारों के विषय में लागू की गई विषम नियमावली भी विकासशील राष्ट्रों के समक्ष एक गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है|
- कृषि के क्षेत्र में भी डब्ल्यूटीओ के नियमों का झुकाव विकसित राष्ट्रों की ओर है जबकि छोटे किसानों के हितों को हमेशा ही पूरी तरह से नजरंदाज किया गया है|
- ध्यातव्य है कि कुछ समय पहले भारत के द्वारा खाद्य सुरक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दे को डब्ल्यूटीओ के समक्ष उठाया गया था और इस मुद्दे पर बहस भी की गई थी कि संप्रभु राष्ट्रों (Sovereign States) के पास गरीबों को सब्सिडी युक्त खाद्य (Subsidised food) उपलब्ध कराये जाने संबंधी अधिकार होना चाहिये|
- यह मुद्दा उस समय उभरकर सामने आया जब सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System - PDS)के तहत खाद्य के सार्वजनिक भंडारण (Public stockholding of food) के लिए दी जाने वाली कृषि सब्सिडी में डब्ल्यूटीओ के विषयों का अनुकरण किये जाने के मुद्दे पर विचार किया गया|
- जब विश्व के कई देशों द्वारा भारत की सार्वजानिक वितरण प्रणाली के दृष्टिकोण की अवहेलना की गई तो भारत के विरोध से यह बात उभरकर सामने आई कि यदि भारत अपनी खाद्य सुरक्षा की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये कृषि सब्सिडी में वर्णित विषयों का उल्लंघन करता है तो इसके विरुद्ध कोई दंडात्मक कार्यवाही नहीं की जाएगी|
- हालाँकि इस सन्दर्भ में भारत द्वारा सम्पूर्ण विश्व का ध्यान इस मुद्दे की ओर आकर्षित किया गया कि खाद्य सुरक्षा के उद्देश्यों को पूरा करने के लिये खाद्य सामग्री के सार्वजनिक भंडारण की समस्या पर विशेष रूप से गौर किये जाने की आवश्यकता है|
- हालाँकि डब्लूटीओ द्वारा व्यापार सुगमता के संबंध किये गये समझौतों में तीव्रता लाने की बात कही गई है| इन समझौतों में किसी देश के व्यापारिक लेन-देन में आने वाली लागत में कटौती करने में सहायक सभी तत्वों को शामिल किया गया है|
- हालाँकि यह स्पष्ट कर देना अत्यंत आवश्यक है कि वास्तव में व्यापार सुगमता एक ऐसा क्षेत्र नहीं है जो विकासशील देशों को केवल इसलिये उत्साहित करें क्योंकि वैश्विक बाज़ारों में उनकी साझेदारी बहुत ही निम्न स्तर की होती है और उन्हें इसमें बढ़ोतरी करने का प्रयास करना चाहिये|
- इसके अतिरिक्त, इस समझौते के तहत वर्णित प्रतिबद्धताओं को स्वीकार करने के लिए विश्व के सभी देशों को अपनी सीमा शुल्क प्रक्रिया और सुविधाओं में बदलाव करने की आवश्यकता है, इस परिवर्तन को अधिकांश गरीब देशों के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य के रूप में वर्णित किया गया है| वस्तुतः इन संशोधनों को लागू करने के लिए वित्तीय सुविधाओं की उपलब्धता एक महत्वपूर्ण चुनौती है|
- हालाँकि, अपने प्रारंभिक विरोध के बावजूद विकासशील देशों के द्वारा वर्ष 2013 में संपन्न हुए बाली मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (Bali Ministerial Conference) में व्यापार सुगमता के अनुबंध को स्वीकृत किया गया|
अनुबंध के चार वर्ष पश्चात् की स्थिति
- उक्त सन्दर्भ में वर्ष 2017 के दिसम्बर माह में ब्यूनोस एरेस (Buenos Aires) में होने वाली ग्यारहवें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन की बैठक (11th Ministerial Conference) में विश्व की बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थायें भाग ले रही है|
- इस सम्मेलन में विश्व व्यापार संगठन में शामिल करने के लिये चुने जाने वाले मुद्दें क्रमशः इलेक्ट्रॉनिक वाणिज्य (Electronic Commerce) और निवेश (Investment) पर विशेष चर्चा की जाएगी|
- इन मुद्दों के समावेश को वाणिज्य के अंतर्राष्ट्रीय मंडल (International Chamber of Commerce - ICC) और बी-20 (business- 20 यानी जी-20 देशों के कारोबारी समूहों को प्रदर्शित करने वाला समूह) द्वारा समर्थन प्रदान किया जाएगा|
- ध्यातव्य है कि आईसीसी तथा बी-20 द्वारा सितम्बर 2016 में ई –वाणिज्य के मुद्दे पर “डब्ल्यूटीओ पैकेज” (WTO package) को अंगीकार करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया गया था| इस प्रस्ताव में ई-वाणिज्य के बेहतर अधिग्रहण के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को प्रोत्साहन देने के मुद्दे पर विशेष बल दिया गया था|
- इस प्रस्ताव में यह मुद्दे पर विशेष बल दिया गया था कि एक प्रभावी ई-वाणिज्य परिवेश की स्थापना होने से, वृहद और छोटे कारोबारों के मध्य संतुलन स्थापित करने में सहायता प्राप्त होगी| इसके बलबूते छोटे कारोबारों को बाज़ारों तक अपनी पहुँच बढ़ाने के मार्ग में आने वाली बाधाओं से निपटने में सहायता प्राप्त होगी|
- गौरतलब है कि आईसीसी एवं बी-20 के द्वारा यह प्रस्तावित किया गया कि इस पैकेज के अंतर्गत विकासशील देशों को क्षमता निर्माण करने में सहायक संसाधन भी उपलब्ध कराए जाने चाहिये|
- यह दृष्टिकोण बहुत हद तक व्यापार सुगम्यता समझौते (Trade Facilitation Agreement Facility) के समान प्रतीत होता जान पड़ता है| इसके अतिरिक्त, यह प्रस्ताव विकासशील और अल्प विकसित देशों को व्यापार सुगम्यता समझौते के क्रियान्वयन के लिए समर्थन भी प्रदान करता है|
- हालाँकि डब्लूटीओ के समक्ष सबसे बड़ी समस्या वित्त संसाधनों को संचित करने की है, क्योंकि डब्लूटीओ के पास अपनी कोई वित्तीय शाखा मौजूद नहीं है|
- गौरतलब है कि डब्लूटीओ के डायरेक्टर जनरल ई-कॉमर्स को बढ़ावा देने का भरपूर प्रयास कर रहे है| अज़ेवेदो द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, इस समय विश्व की 43% आबादी इंटरनेट की पहुँच में है, स्पष्ट है कि इंटरनेट के कारण व्यापार तथा व्यापार के संचालन के तरीकों में व्यापक परिवर्तन आया है|
- हालाँकि श्री अज़ेवेदो द्वारा प्रस्तुत ये आँकड़े वास्तविकता से कोसों दूर है, क्योंकि वर्ष 2015 में निम्न विकासशील देशों तथा कम आय वाले देशों की क्रमशः 12.6% तथा 9.4% आबादी ही इंटरनेट संबद्ध थी|
- इतना ही नहीं बल्कि कम मध्यम आय वाले देशों का प्रतिशत स्तर भी वैश्विक औसत से कम ही है| उक्त आँकड़ों के विवरण से स्पष्ट है कि अभी तक विश्व की कितनी आबादी इंटरनेट से लाभान्वित हुई है और कितनी नहीं|
निवेश का विभाजनकारी मुद्दा
- विश्व व्यापार संगठन के आरम्भ से ही में इसके मुद्दे (जिसमें निवेश का मुद्दा भी शामिल है) विभाजनकारी परन्तु लगभग सही मुद्दे रहे हैं| ध्यातव्य है कि पिछले कुछ समय से निवेश समझौते को डब्लूटीओ के मूल मुद्दों में शामिल किये जाने के कई प्रयास किये गए हैं|
- हालाँकि इन सभी मुद्दों का विकासशील देशों के द्वारा बराबर विरोध किया गया है, हाल का ऐसा ही एक मुद्दा निवेशकों के हितों को ध्यान में रखकर लाया गया द्विपक्षीय निवेश संधि का मुद्दा है|
- इस संधि के अंतर्गत निवेशकों एवं राष्ट्रों के मध्य उन्जे विवादों को हल करने संबंधी प्रावधानों को शामिल किया गया था|
निष्कर्ष
स्पष्ट है कि भविष्य में डब्लूटीओ के अंतर्गत निवेश तथा ई-कॉमर्स जैसे मुद्दों को शामिल किये जाने से अमीर राष्ट्रों एवं गरीब राष्ट्रों के मध्य बनी खाई के कम होने की बजाय और बढ़ने की सम्भावना है| यही कारण है कि वर्तमान में मौजूद वैश्वीकरण के मॉडल से दुनिया का, विशेषकर विकासशील दुनिया का मोह्भंग होने का कारण समस्त विश्व में समानता के अवसरों को प्राप्त करने तथा वैश्विक बाज़ार में अपनी-अपनी पहुँच सुनिश्चित करने का एक ऐतिहासिक अवसर प्राप्त हुआ है| अब देखना यह होगा कि क्या मिस्टर अज़ेवेदो इस नई व्यवस्था के अग्रदूत साबित होंगे अथवा नहीं|