काजीरंगा : पर्यावरण संरक्षण से उपजे सवाल | 17 Feb 2019
सन्दर्भ :
वन्य जीव संरक्षण के मामले में काज़ीरंगा राष्ट्रीय पार्क की कामयाबी काफ़ी बड़ी है | असम में एक शताब्दी पहले जब इस पार्क की स्थापना की गई तो यहाँ गिने-चुने एक सींग वाले भारतीय गैंडे थे | अभी यहाँ एक सींग वाले 2400 गैंडे हैं, जो कि पूरी दुनिया के इस तरह के गैंडों की दो-तिहाई आबादी है | किन्तु, पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उठाये जा रहे क़दमों को आज सवालिया निगाहों से देखा जा रहा है क्योंकि हाल ही में हुई कई मासूमों की मौत से शिकारियों की रोकथाम हेतु किये गए प्रयासों में पैबंद लगे हुए नज़र आ रहे है|
प्रमुख बिंदु :
- काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान भारत का सबसे पुराना वन्य जीव संरक्षण क्षेत्र है। 1905 में इसे पहली बार अधिसूचित किया गया था और 1908 में इसका गठन संरक्षित वन के रूप में किया गया जिसका क्षेत्रफल 228.825 वर्ग किलोमीटर था।
- इसका गठन विशेष रूप से एक सींग वाले गैंडे के लिए किया गया था, जिसकी संख्या तब यहां लगभग 24 जोड़ी थी।
- 1916 में काजीरंगा को एक पशु अभयारण्य घोषित किया गया था और 1938 में इसे आगंतुकों के लिए खोला गया था। 1950 में इसे एक वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया।
- 429.93 वर्ग किलोमीटर के साथ वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत 1974 में काजीरंगा को राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अधिसूचित किया गया, जो फिलहाल बढ़कर अब 899 वर्ग किमी. हो गया है।
- काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान देश के उत्तर पूर्वी क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है।
- वर्ष 2015-16 के दौरान राष्ट्रीय उद्यान में कुल 1,62,799 पर्यटकों ने दौरा किया, जिनमें 11,417 विदेशी पर्यटक शामिल थे।
- पर्यटकों की इस संख्या से 4.19 करोड़ रुपये का प्रवेश शुल्क राजस्व के रूप में अर्जित किया गया ।
पृष्ठभूमि :
- यह सच है कि काज़ीरंगा इस इलाक़े में पर्यटन मुख्य आकर्षण है जिसके केंद्र में गैंडे हैं| हर साल एक लाख 70 हज़ार से ज़्यादा लोग यहां आते हैं और ये ठीक-ठाक पैसे खर्च करते हैं |
- ऐसे में इसे आसानी से समझा जा सकता है कि पार्क को शिकारियों से बचाने के लिए राजनीतिक दबाव क्यों इतना ज़्यादा है |
- पार्क के अधिकारियों ने अवैध शिकार को रोकने के लिए सभी प्रयास किए हैं जिनमें कठोर गश्त और फील्ड ड्यूटी भी शामिल हैं।
- बुनियादी ढांचे की कमी, उपकरणों की कमी, स्टाफ की कमी, एक बहुत ही असुरक्षित सीमा, एक बहुत ही प्रतिकूल इलाका होने के बावजूद भी अवैध शिकार को रोकने के हरसंभव प्रयास किए गए हैं।
- 2013 में शिकारियों ने कई गैंडे मारे थे | यह संख्या बढ़ती जा रही थी तब स्थानीय नेताओं ने कड़ी कार्रवाई की मांग की थी | पार्क के निदेशक ने इस मांग से ख़ुशी जताई थी |
- एमके यदवड़ा द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में काज़ीरंगा में शिकारियों पर काबू पाने की रणनीतियों की विस्तृत जानकारी दी गई थी जिसमें कहा गया था कि पार्क में घुसने वाले आदेश न मानें तो उन्हें गोली मारी जा सकती है |
- उन्होंने अपनी सिफ़ारिशों की व्याख्या करते हुए कहा कि पर्यावरण से जुड़े अपराध (जिसमें कि अवैध शिकार भी शामिल है ) हत्या से भी संगीन है | क्योंकि वे बड़ी ख़ामोशी से पृथ्वी की सभी सभ्यताओं के अस्तित्व को नष्ट कर देते हैं |
- उन्होंने पार्क को सुरक्षित रखने के लिए बिना समझौता किए कड़े क़दम उठाने का समर्थन किया था और सिफारिश की थी कि गोली चलाना अनचाहा है और इसमें गार्डों को सिखाने की ज़रूरत है |
मुखर विरोध एवं प्रदर्शन :
- गत वर्ष जुलाई में सात साल के बच्चे पर गार्ड ने अचानक गोली चलाई जो उसके पैर को काफी गंभीर रूप से ज़ख़्मी कर गई | पाँच घंटे की दूरी पर असम के मुख्य हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया होने के बाद चार से पांच महीनों तक उसकी कई सर्जरी हुई | हॉस्पिटल की कई कोशिशों के बावजूद वह मुश्किल से चल पाता है |
- हालाँकि पार्क इस बात को स्वीकार करता है कि उसने इस मामले में बड़ी ग़लती की थी | इलाज में पार्क की तरफ से ही सारा खर्च वहन किया गया. परिवार वालों को दो लाख रुपए का मुआवजा भी दिया गया था | किन्तु ,बच्चे के विकलांग होने के बाद ग्रामीणों में काफी रोष था |
- दरअसल, लोगों के मारे जाने की बढ़ती संख्या को लेकर विरोध-प्रदर्शन वैसे भी चरम पर था और इस घटना के बाद अपना विरोध दर्ज कराने के लिए सैकड़ों लोगों ने पार्क मुख्यालय की तरफ मार्च किया था|
- ध्यातव्य है कि मानवाधिकार कैंपेनर प्रणब डोली जो स्थानीय आदिवासी समुदाय से ही हैं, के दस्तावेज़ों के मुताबिक़ कई मामलों में सूचनाओं का पर्याप्त अभाव है | उन्होंने इस प्रकार के मृतकों की सूची बनाकर रखी है | उन्होंने भारत के सूचना अधिकार क़ानून के तहत कई अनुरोध किए हैं |
- इन आवेदनों की प्रतिक्रिया में जो जवाब मिले हैं, उनसे पता चलता है कि ज़्यादातर मामलों को ठीक से नहीं देखा गया |
- ज़्यादातर मामलों की न्यायिक जांच नहीं की गई और इनकी कोई फोरेंसिक रिपोर्ट और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भी नहीं है |
- पार्क का कहना है कि वह इस जांच के लिए जवाबदेह नहीं है; क़ानून के तहत जो भी संभव होगा वही किया जाएगा |
- पार्क का कहना है कि पिछले तीन सालों में अवैध शिकार के मामले में केवल दो लोगों पर मुक़दमा चला |
- आश्चर्यजनक रूप से इसी वक्त 50 लोगों को पार्क में गोली मारी गई | पार्क में मारे गए लोगों की संख्या पर सवाल करने कहा गया कि मारे गए लोगों की संख्या ज़्यादा इसलिए है क्योंकि यहां सशस्त्र शिकारी गैंग काफी सक्रिय हैं और इन्होंने सुरक्षाबलों को साथ गोलीबारी की थी |
- हालांकि आंकड़ों से संकेत मिलते हैं एनकाउंटर एकतरफा रहा है | रिपोर्ट्स के मुताबिक़ पिछले 20 सालों में शिकारियों के हाथों केवल एक गार्ड मारा गया था | इसकी तुलना में इसी वक्त गार्डों के हाथों 106 लोग मारे गए|
- कहा जा रहा है कि पार्क के आसपास रहने वाले आदिवासियों के हक़ों को वन्यजीव सुरक्षा के नाम पर मारा जा रहा है |
- डोली के अनुसार ज़्यादा लोगों को मारे जाने की वजह पार्क के सुरक्षाकर्मियों को क़ानूनी कवच प्राप्त होना है |
- इस तरह की माफी ख़तरनाक है | इस वजह से पार्क और उसके आसपास रहने वाले लोगों के बीच वैमनस्य फैल रहा है |
- पार्क के पास देखते ही गोली मारने वाली नीति के ख़िलाफ़ लोगों से हमेशा कहा जाता है कि वे अपनी आवाज़ बुलंद करें |
- इस मामले को लंदन स्थित चैरिटी सर्वाइवल इंटरनेशनल में भी लाया गया था |
- इस संस्था की कैंपेनर सोफी ग्रिग का कहना है कि इस पार्क का संचालन क्रूरता के साथ किया जा रहा है|
- यहाँ न कोई अदालत है, न कोई जज है और न ही कोई सवाल करने वाला है सबसे चिंताजनक और डराने वाली बात यह है कि इस योजना को पूरे भारत में बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है |
- आश्चर्य है कि दुनिया भर के बड़े वन्यजीव संरक्षण और चैरिटी संस्थान, जिसमें वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड भी शामिल है, इन तथ्यों की अनदेखी कर रहे हैं |
- डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया वेबसाइट के मुताबिक़ काज़ीरंगा के गार्डों को घात लगाकर हमला करने की ट्रेनिंग दी जाती है |
- इसके साथ ही फंड भी मुहैया कराया जाता है. इन्हें रात में देखने के लिए ख़ास उपकरण भी उपलब्ध कराए जाते हैं ताकि अवैध शिकार पर लगाम लग सके |
इंडिया में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ संरक्षण प्रोग्राम को चलाने में मदद करने वाले डॉ दिपांकर घोष का मानना है कोई भी किसी को मारकर अच्छा महसूस नहीं करता है | सुरक्षा के लिए जो भी ज़मीन पर करने की ज़रूरत है उसे किया जा रहा है | अवैध शिकार रूकना चाहिए | डब्ल्यूडब्ल्यूएफ, जो असम में वन विभाग का बड़ा साझेदार है और वन विभाग को उपकरण और फंड मुहैया कराता है, क्या इस दिशा में कोई कारगर प्रयास नहीं कर सकता?
निष्कर्ष :
सवाल यह है कि हमें विलुप्तप्राय जानवरों की सुरक्षा में कहाँ तक जाना चाहिए? निश्चित रूप से वन्यजीव संरक्षण बेहद महत्वपूर्ण ही नहीं बल्कि एक पर्यावरणीय अनिवार्यता है किन्तु, विचारणीय है कि अवैध शिकार को रोकने के लिए किये गए प्रयासों की आड़ में आम व्यक्ति के जीवन से खिलवाड़ किया जाना किसी भी रूप में सही नहीं ठहराया जा जा सकता |