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अर्थव्यवस्था में सुधार के लिये दूरसंचार क्षेत्र को मज़बूत करने की ज़रूरत

  • 13 Sep 2017
  • 8 min read

संदर्भ

इसमें कोई दो राय नहीं कि आज देश की अर्थव्यवस्था को कई दिक्कतों से दो-चार होना पड़ रहा है। इसके लिये जहाँ मौजूदा सरकार के कुछ कदम ज़िम्मेदार हैं तो वहीं कुछ चीज़ें विरासत में भी मिली हैं। बहरहाल, कोशिश यह होनी चाहिये कि आगे सुधारों को गति प्रदान की जाए।

संचार क्षेत्र पर ध्यान देने की ज़रूरत क्यों?

  • दरअसल, मूलभूत बुनियादी ढाँचा हमारी तात्कालिक आवश्यकता है। ज़रूरत इस बात की है कि कुछ सामान्य व्यवस्थाएँ निर्मित की जाएँ और संरचनात्मक एवं उत्पादक गतिविधियों को अंजाम दिया जाए, लेकिन इसमें समय लगेगा और ऐसा करना आसान भी नहीं होगा। 
  • ऐसे में बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में ब्रॉडबैंड सबसे त्वरित गति से और सर्वाधिक प्रतिफल प्रदान कर सकता है। इसके लिये ऐसी नीतियाँ अपनानी होंगी जो थोपे गए प्रशासनिक प्रतिबंधों के बजाय मौजूदा संसाधनों को उचित पहुँच दे पाएँ।
  • संचार क्षेत्र पर सबसे पहले ध्यान देना इसलिये भी लाभदायक है क्योंकि ऊर्जा, पानी और सीवेज तथा परिवहन आदि क्षेत्रों में काम करना काफी जटिल है और इन कामों में पूंजी भी बहुत ज़्यादा लगेगी। साथ ही बेहतर संचार सहयोग के साथ अन्य बुनियादी सुविधाओं का निर्माण और प्रबंधन करना भी आसान हो जाएगा।

क्यों चिंताजनक हैं सरकार के तत्कालीन प्रयास?

  • सरसरी तौर पर देखें तो यही प्रतीत होता है कि सरकार संचार क्षेत्र में सुधार के गंभीर प्रयास कर रही है। विदित हो कि हाल ही में एक अंतर-मंत्रालय समूह (inter ministerial group-IMG) का गठन किया गया था, जिसे ऋणग्रस्त दूरसंचार क्षेत्र में सुधारों को गति देने के उपाय सुझाने थे।
  • हालाँकि इस आईएमजी की अंतरिम रिपोर्ट से कोई अच्छे संकेत नहीं निकलते दिखाई दे रहे हैं। दरअसल, इसमें सुझाव दिया गया है कि किसी बड़े नीतिगत बदलाव की आवश्यकता नहीं है क्योंकि सुधार के संकेत मिल रहे हैं।
  • दुर्भाग्य की बात है कि आईएमजी की अंतिम अनुशंसा में स्पेक्ट्रम और लाइसेंस शुल्क भुगतान को 10 वर्ष के बजाय 16 वर्ष कर दिया है और ब्याज दरों में करीब 2 फीसदी की कमी कर  दी है।
  • बहरहाल लाइसेंस शुल्क या स्पेक्ट्रम शुल्क में कोई कमी नहीं की गई है, न ही समावेशन के लिये स्पेक्ट्रम की सीमा शिथिल की गई है, लेकिन अत्यधिक नकदी और अत्यधिक प्रतिस्पर्धा वाले इस क्षेत्र में पूंजी की आवश्यकता को कुछ और महीने तक टालने तथा अन्य प्रस्तावित उपायों से हालात में किसी प्रकार के महत्त्वपूर्ण बदलाव की संभावना न के बराबर ही है।

बड़े बदलाव आवश्यक क्यों?

  • हमें कड़े नीतिगत कदम उठाने की तत्काल आवश्यकता है, क्योंकि नेटवर्क और डिलीवरी क्षेत्र में त्वरित सुधार की आवश्यकता है और संचार में सुधार इस क्षेत्र को मज़बूती प्रदान करेगा|
  • गौरतलब है कि पहले से संकटग्रस्त संचार क्षेत्र का राजस्व वर्ष 2016 में रिलायंस जियो के आगमन के बाद तेज़ी से गिरा है। इसके साथ ही सरकार का लाइसेंस और स्पेक्ट्रम शुल्क भी कम हुआ है।
  • यह चिंतनीय है कि रिलायंस जियो ने पूरे बाज़ार में उथल-पुथल मचाने के बावजूद जून 2017 तक के छह माह के लिये केवल 47.81 करोड़ रुपए की राशि लाइसेंस और स्पेक्ट्रम शुल्क के रूप में चुकाई। यह सेवाप्रदाताओं के कुल भुगतान के एक फीसदी से भी कम था क्योंकि उसका राजस्व कम रहा।
  • इसके विपरीत भारती एयरटेल ने 2,902.75 करोड़, वोडाफोन ने 2005.25 करोड़ और आइडिया सेल्युलर ने 1677.67 करोड़ रुपए चुकाए। इस नीति ने इस क्षेत्र को बहुत बुरी तरह प्रभावित किया, क्योंकि राजस्व और सरकारी संग्रह में तेज़ी से गिरावट आई और इससे बुनियादी ढाँचा कमज़ोर हुआ।
  • यद्यपि केवल उच्च सरकारी राजस्व को मानक मानना भी ठीक नहीं है। स्टैंडर्ड एंड पुअर्स की एक रिपोर्ट में राजस्व में इस वर्ष 10 फीसदी गिरावट का अनुमान है। लेकिन यह तो केवल एक पहलू है। फिर भी बाज़ार में गिरावट की संभावना है क्योंकि परिचालन राजस्व और सरकारी संग्रह में कमी उसे प्रभावित करेगी।

आगे की राह

  • वर्ष 1997-98 में संचार क्षेत्र में एक ठहराव की स्थिति देखी जा रही थी, तब तत्कालीन राजग सरकार ने वर्ष 1999 में दूरसंचार नीति की मदद से एक राजस्व साझेदारी व्यवस्था की थी।
  • इस व्यवस्था के तहत आरंभ में सरकार की हिस्सेदारी बहुत ज़्यादा थी लेकिन बाद में इसमें कमी की गई और प्रतिस्पर्धा बढ़ाई गई। मोबाइल टेलीफोनी में तेज़ इज़ाफा हुआ और इसके साथ ही सरकारी राजस्व भी बढ़ा। ब्रॉडबैंड में भी हमें वैसी ही तेज़ी लानी होगी और इसके लिये तत्काल कुछ नीतिगत कदमों की आवश्यकता है जैसे:

• लागत कम करने के लिये बुनियादी संरचना साझा करना। इसके लिये दो-तीन कंपनियों का समूह बने, ताकि प्रतिस्पर्धा बनी रहे और इनकी निगरानी सरकार के पास रहे। उल्लेखनीय है कि साझा नेटवर्क विकसित करने के लिये हमारे पास आवश्यक उपकरण उपलब्ध हैं, ज़रूरत है तो बस नीतियों में आवश्यक बदलाव की।
• स्पेक्ट्रम को एक साझा सार्वजनिक संसाधन बनाया जाए। आवंटित स्पेक्ट्रम के लिये लाइसेंसशुदा सेवाप्रदाताओं और विनिर्माताओं तथा डेवलपरों को द्वितीयक पहुँच (प्राथमिक धारक को प्राथमिकता दी जाती है) उचित राजस्व-साझेदारी वाली कीमत पर दी जाए। इसकी शुरुआत बिना इस्तेमाल के टीवी की बची हुई फ्रीक्वेंसी से की जाए।
• वाई-फाई के लिये वैश्विक मानकों के अनुरूप स्पेक्ट्रम आवंटित किया जाए।

निष्कर्ष

  • पिछले कुछ वर्षों में संचार उद्योग की क्षमता बुरी तरह प्रभावित हुई है, जबकि देश को बेहतर प्रदर्शन और पहुँच की आवश्यकता है; क्योंकि देश में करीब 30 करोड़ डाटा ग्राहक हैं।
  • हमें एक पर्याप्त नेटवर्क पहुँच का निर्माण करना होगा, तभी शिक्षा, स्वास्थ्य और मनोरंजन की सरकारी और वाणिज्यिक ज़रूरतें पूरी की जा सकेंगी।
  • केवल सरकार ही उचित नीतियाँ और नियम विकसित कर सकती है। ऐसा करने से स्पेक्ट्रम और नेटवर्क का अधिकतम इस्तेमाल संभव होगा। बेहतर नेटवर्क और सेवाओं से हम सभी लाभान्वित होंगे। इसके साथ ही सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा।
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