उर्जित पटेल का जाना...शक्तिकांत दास का आना | 12 Dec 2018
संदर्भ
पिछले कुछ समय से चल रही गहमागहमी तथा अटकलों को और बढ़ाते हुए रिज़र्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने 10 दिसंबर को इस्तीफा दे दिया। इसके बाद तुरत-फुरत कदम उठाते हुए भारत सरकार ने आर्थिक मामलों के पूर्व सचिव शक्तिकांत दास को तीन साल के लिये RBI का नया गवर्नर नियुक्त कर दिया।
गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से रिज़र्व बैंक और केंद्र सरकार के बीच केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता के मसले को लेकर टकराव की स्थिति बनी हुई थी। चर्चा यह थी कि भारत सरकार ने रिज़र्व बैंक की संरक्षित निधि में से 3.60 लाख करोड़ रुपए की मांग की थी, जिसका बैंक ने विरोध किया था। रिज़र्व बैंक के गवर्नर के इस्तीफे का यह मुद्दा देखने में बेशक सामान्य प्रतीत होता हो, लेकिन वस्तुतः ऐसा है नहीं।
क्यों शुरू हुआ विवाद? (What’s the Controversy?)
दरअसल, UPA के दूसरे कार्यकाल में रिज़र्व बैंक के गवर्नर बने रघुराम राजन का कार्यकाल समाप्त होने के बाद सितंबर 2016 में उर्जित पटेल को गवर्नर नियुक्त किया गया था। इसके दो महीने बाद ही भारत सरकार ने विमुद्रीकरण करने का फैसला किया, जिसकी व्यापक आलोचना हुई। लेकिन उस समय उर्जित पटेल, मोदी सरकार के ‘यस मैन’ बनकर सामने आए। सरकार के साथ उनका विवाद शुरू हुआ जून 2017 में, जब उनके नेतृत्व वाली मौद्रिक नीति समिति ने पॉलिसी मीटिंग से पहले वित्त मंत्री से मिलने से इनकार कर दिया। इसके बाद सरकार को दिये जाने वाले डिविडेंड और उसके बाद हुए कुख्यात PNB घोटाले को लेकर भी सरकार तथा बैंक के बीच मतभेद सामने आए। RBI का पक्ष मज़बूती से रखते हुए पटेल ने सरकार से बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 को धारदार बनाने के लिये कहा। इसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र के 11 बैंकों को Prompt Corrective Action Framework के तहत लाने के मुद्दे पर भी सरकार और रिज़र्व बैंक के बीच तलवारें खिंच गईं।
विवाद के प्रमुख बिंदु
- NPA के मसले पर रिज़र्व बैंक की सख्ती के पक्ष में नहीं थी सरकार
- सरकार चाहती थी बिजली कंपनियों (DISCOMs) की मदद के लिये मानकों में बदलाव, लेकिन रिजर्व बैंक नहीं था इसके पक्ष में
- सरकार स्वतंत्र भुगतान नियामक बोर्ड बनाकर उसे अपने नियंत्रण में चाहती है, लेकिन रिज़र्व बैंक इस पर नियंत्रण का इच्छुक
- वित्तीय समाधान एवं जमा बीमा विधेयक-2017, आर्थिक पूंजी ढाँचा, सरकारी और निजी बैंकों को लेकर नियामकीय अधिकारों की मांग जैसे मुद्दों पर दोनों में एक राय नहीं
कह सकते हैं कि बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था के लिये केंद्रीय बैंक जिन कठोर कदमों के पक्ष में था, वे सरकार को अनुकूल प्रतीत नहीं हो रहे थे। ऐसे में जो हालात बन गए थे, उसमें निश्चित तौर पर किसी भी गवर्नर के लिये काम करना आसान नहीं होता। इसके अलावा, रिज़र्व बैंक के बोर्ड की 19 नवंबर को हुई बैठक में जिस तरह से सरकार ने दखल दिया, उसे केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता को कम करने वाला माना गया। फाइनेंस और बैंकिंग का अनुभव रखने वाले उर्जित पटेल ने अपने कार्यकाल में बैंकों के NPA की समस्या के समाधान के लिये कदम उठाए। इसके अलावा, उन्होंने डिजिटल पेमेंट के लिये ओम्बडसमैन बनाने सहित आम लोगों के हित में भी कई पहलों को अमलीजामा पहनाया। कहा तो यह भी गया कि सरकार और RBI बोर्ड की बैठक के बाद दोनों में सुलह हो गई है, लेकिन माना जा रहा है कि अब भी दोनों के बीच कई मसलों पर एक राय नहीं थी।
भारत में रिज़र्व बैंक गवर्नर की चयन प्रक्रिया
कनाडा, यूनाइटेड किंगडम तथा कुछ अन्य पश्चिमी देशों के विपरीत भारत में रिज़र्व बैंक के गवर्नर के चयन की कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं है। इसके लिये किसी प्रकार का कोई आवेदन नहीं मांगा जाता और सामान्यतः प्रधानमंत्री तथा वित्त मंत्री आपसी परामर्श के बाद किसी उपयुक्त व्यक्ति को चुन लेते हैं। जैसे 11 दिसंबर की रात शक्तिकांत दास को रिज़र्व बैंक का 25वाँ गवर्नर चुन लिया गया।
उर्जित पटेल होने के मायने
सर्वप्रथम तो यह जान लीजिये कि इस नाम का ज़िक्र हमने केवल प्रतीक स्वरूप ही किया है। रिज़र्व बैंक के गवर्नर का पद बेहद महत्त्वपूर्ण है और भारत जैसी तेज़ी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था के संदर्भ में तो यह और भी अहम हो जाता है। उर्जित पटेल के अप्रत्याशित इस्तीफे के बाद भारत सरकार ने शक्तिकांत दास को नया गवर्नर नियुक्त कर दिया। वैसे RBI एक्ट की धारा 7(2) कहती है कि बैंक के सामान्य कामकाज की देखरेख का ज़िम्मा सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के पास होगा और बैंक द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सभी प्रकार की शक्तियाँ तथा अधिकार भी इसी बोर्ड के पास होंगे। वहीं RBI एक्ट की धारा 7(3) कहती है कि गवर्नर की अनुपस्थिति में सबसे वरिष्ठ डिप्टी गवर्नर के पास शक्तियों को इस्तेमाल करने का अधिकार होगा।
देश की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा नियामक RBI
रिज़र्व बैंक देश की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा नियामक है। ऐसे में उसके काम और स्वायत्तता में दखल देने के नतीजे गंभीर हो सकते हैं। दखल इस स्तर तक बढ़ गया था कि केंद्र सरकार ने RBI एक्ट की धारा-7 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करने तक की चेतावनी दे दी थी। सरकार को यह समझना होगा कि रिज़र्व बैंक का गवर्नर कोई अदना सरकारी कर्मचारी नहीं होता, जिसकी बातों को यूं ही नज़रअंदाज़ कर दिया जाए। फिर यह तो इस्तीफे का मामला है, जो निश्चित ही निजी कारणों को लेकर तो नहीं ही दिया गया।
उर्जित पटेल ने पर्याप्त धैर्य, संयम और विवेक का परिचय दिया। उनके इस्तीफे से इतना तो साफ है कि वे अब और दबाव सहन करने की स्थिति में नहीं थे। उर्जित पटेल ने 6 सितंबर, 2016 को रिजर्व बैंक के गवर्नर का पद संभाला था। इससे पहले वह रघुराम राजन के साथ डिप्टी गवर्नर के पद पर रहते हुए मौद्रिक नीति विभाग का काम देखते रहे। उन्हें मुद्रास्फीति के खिलाफ लड़ने वाले व्यक्ति के तौर पर जाना जाता है।
एक्सपर्ट कमेंट (Expert Comment)
उर्जित पटेल के इस्तीफे के मुद्दे पर रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने अपनी प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार दी- “यह ऐसा वाकया है जिस पर सभी भारतीयों को चिंतित होना चाहिये...क्योंकि हमारे संस्थानों का मज़बूत होना विकास और अर्थव्यवस्था के सतत विकास और इक्विटी के लिये महत्त्वपूर्ण है। हमें विस्तार से पड़ताल करनी चाहिये कि आखिर वह क्या गतिरोध था जिसके चलते उन्हें ज़बरदस्ती यह आखिरी फैसला लेना पड़ा।“
भविष्य में बचना होगा ऐसी स्थिति से
पिछले महीने आयोजित रिज़र्व बैंक बोर्ड की बैठक से लगा था कि सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच गतिरोध अब दूर हो चुका है। लेकिन लगता नहीं है कि सब कुछ ठीक हो गया है। हाल ही में RBI के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने भी बैंक की स्वायत्तता को बनाए रखने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया था। कारण चाहे कुछ भी रहे हों, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि उर्जित पटेल का इस्तीफा रिज़र्व बैंक की साख के लिये एक चुनौती है।
पहले भी हुए हैं ऐसे मामले
उर्जित पटेल आज़ादी के बाद से पाँचवें ऐसे गवर्नर हैं जिन्होंने इस्तीफा दिया है। 1957 में वित्त मंत्री टी.टी. कृष्णामाचारी के साथ विवाद के बाद बेनेगल रामा राउ ने इस्तीफा दिया था। के.आर. पुरी ने मई 1977 में तथा आर.एन. मल्होत्रा ने 1990 में और एस. वेंकिटरमणन ने दिसंबर, 1992 में इस्तीफा दिया था।