गणतंत्र दिवस पर आमंत्रित किये जाने वाले अतिथि के सम्मान का क्या अर्थ है? | 27 Jan 2017

गौरतलब है कि 26 जनवरी 2017 को देश के 68 वें गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर अबु धाबी के युवराज तथा संयुक्त अरब अमीरात के उप-सर्वोच्च कमांडर शेख मोहम्मद बिन ज़ायेद अल नाहयान ने शिरकत की| सम्भवतः यह यात्रा भारत एवं संयुक्त अरब अमीरात के द्विपक्षीय संबंधों में एक नया मोड़ साबित होगी|

  • इस वर्ष गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर संयुक्त अरब अमीरात के युवराज को आमंत्रित करने के परिप्रेक्ष्य में नई दिल्ली ने यह स्पष्ट किया है कि भारत ने खाड़ी देशों के साथ अपने सम्बन्धों को और अधिक विस्तार देने के लिये खाड़ी देशों के राष्ट्राध्यक्षों अथवा सरकारों के प्रमुखों को बतौर मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करने की परम्परा को आरंभ कर दिया है| 
  • वास्तविकता यह है कि भारत एवं संयुक्त अरब अमीरात के मध्य द्विपक्षीय संबंधों (जिनका वर्तमान में पर्याप्त सामरिक महत्त्व है) को एक नया मोड़ देने के परिपेक्ष्य में संयुक्त अरब अमीरात के शह्ज़ादे की इस भारत यात्रा के दौरान व्यापक सामरिक साझेदारी होने की आशा व्यक्त की जा रही हैं| 


आपसी सम्बन्धों को बढ़ावा प्रदान करने पर बल

  • प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वर्ष 2015 के अगस्त माह में खाड़ी राष्ट्रों की यात्रा के दौरान भारत एवं खाड़ी देशों के मध्य द्विपक्षीय सम्बन्धों को बढ़ावा देने पर बहुत ज़ोर दिया गया था|
  • गौरतलब है कि श्री मोदी भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने 34 वर्षों में पहली बार संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा की| 
  • इतना ही नहीं बल्कि कूटनीतिक रूप से असामान्य घटनाक्रम के रूप में श्री मोदी की यूएई की यात्रा के मात्र 6 माह पश्चात् ही यूएई के युवराज ने भारत के मुख्य अतिथि के रूप में नई दिल्ली की सरज़मीं पर कदम रखा| ऐसे में एक वर्ष से भी कम की समयावधि में यह भारत की उनकी दूसरी यात्रा है| 
  • परंपरागत रूप से, भारत के खाड़ी देशों के साथ हमेशा से बहुत नज़दीकी एवं मित्रवत सम्बन्ध रहे हैं|ध्यातव्य है कि खाड़ी देशों में भारतीय मूल के तकरीबन 2.6 मिलियन लोग निवास करते हैं| यह एक ऐसा प्रवासी समूह है जिससे देश को 15 बिलियन डॉलर का प्रेषण प्राप्त होता है|
  • हालाँकि, इस सबके बावजूद भी दशकों से किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री ने खाड़ी देशों की यात्रा करने के विषय में विचार नहीं किया |
  • ध्यातव्य है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से पूर्व वर्ष 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गाँधी ने अंतिम बार खाड़ी देशों की यात्रा की थी| हालाँकि इंदिरा गाँधी की उस समय की यात्रा के दौरान जिन सम्बन्धों को बढ़ावा प्रदान किया गया था वे अब समाप्त हो गए है, परन्तु भारत एवं खाड़ी देशों के मध्य सामरिक संबंधों की मजबूत कड़ी के रूप में उपस्थित अति महत्त्वपूर्ण व्यापार और वाणिज्य (जिसमें तेल व्यापार भी शामिल है) अभी भी आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं |


सामरिक संबंधों पर जोर

  • यद्यपि बीते कुछ समय में भारत एवं संयुक्त अरब अमीरात के मध्य व्यापार सम्बन्धों में काफी मज़बूती आई है| तथापि ये दोनों देश राजनैतिक एवं सामरिक सम्बन्धों में एकसमान विचारों को आत्मसात करने में हमेशा असमर्थ रहे हैं |
  • चूँकि नई दिल्ली को खाड़ी क्षेत्र में अपने आर्थिक और भू-सामरिक हितों को सुरक्षित रखने की आवश्यकता है| अतः वर्तमान में भारत ने संयुक्त अरब अमीरात के साथ अपने सम्बन्धों को नए आयाम प्रदान किये है ताकि संयुक्त अरब अमीरात के साथ सम्बन्धों को नई ऊँचाइयों पर पहुचाँया जा सकें|
  • गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत एवं संयुक्त अरब अमीरात के मध्य सुरक्षा एवं रक्षा संबंधों, समुद्री क्षेत्र में सहयोग, साइबर सुरक्षा के साथ-साथ ऊर्जा क्षेत्र को बढ़ावा देने पर बल दिये जाने की संभावना है|
  • ध्यातव्य है कि संयुक्त अरब अमीरात भारत की कच्चे तेल की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु सबसे विश्वनीय भागीदार है| 
  • हाल ही में इन दोनों देशों ने संयुक्त अरब अमीरात की अबु धाबी राष्ट्रीय तेल कंपनी (Abu Dhabi National Oil Company - ADNOC) द्वारा भारत में एक रणनीतिक पेट्रोलियम रिज़र्व स्थापित करने पर सहमति जताई है|
  • द्विपक्षीय व्यापार के मंच पर, भारत तथा संयुक्त अरब अमीरात ने आगामी पाँच वर्षों में अपने व्यापार प्रतिशत को 60 प्रतिशत तक बढ़ाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है|
  • विदित हो कि पिछले कुछ समय में संयुक्त अरब अमीरात की अर्थव्यवस्था को आतंकी समूह आईएसआईएस के प्रभाव के कारण भारी क्षति उठानी पड़ी है|
  • हालाँकि इस सबके बावजूद भारत सरकार ने न केवल संयुक्त अरब अमीरात को भारत के विकास पथ का साझेदार बनने हेतु बल्कि दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारे जैसी बड़ी औद्योगिक परियोजनाओं का हिस्सा बनने हेतु भी आमंत्रित किया है|
  • ध्यातव्य है कि इन दोनों देशों ने भारत -संयुक्त अरब अमीरात अवसंरचना निवेश कोष (India-UAE Infrastructure Investment Fund) बनाने पर भी सहमति जताई है| हालाँकि इस कोष का निर्माण होने से भारत के अवसंरचनात्मक विकास में भारी निवेश होने की भी आशा व्यक्त की जा रही है| 
  • परन्तु इस निवेश कोष को प्रभावी रूप प्रदान करने के लिये भारत को न केवल इस निवेश के लिए आवश्यक नियमों तथा राजनीति को प्रभावी एवं सशक्त रूप प्रदान करने की आवश्यकता है बल्कि इसे अपनी प्रतिबद्धताओं को भी सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है| 


आतंकी चुनौतियाँ

  • उल्लेखनीय है कि भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा के दौरान जारी किये गए संयुक्त बयान के अंतर्गत सुरक्षा तंत्रों का उन्नयन करने तथा आपसी रक्षा सहयोग को बढ़ावा देने पर बल दिया था|
  • इस संयुक्त बयान में इस क्षेत्र विशेष में शांति, स्थिरता एवं सुरक्षा संबंधी साझा खतरों से निपटने के लिये, विशेषकर आईएसआईएस के रूप में बढ़ते खतरे एवं खाड़ी क्षेत्र में बढ़ती साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं से निपटने पर अधिक बल दिया गया था|
  • ध्यातव्य है कि यूएई (UAE) आईएसआईएस के बढ़ते प्रभाव को न केवल एक गंभीर खतरे के रूप में इंगित करता है बल्कि इसके प्रतिरोध के लिये एक सशक्त अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन के निर्माण पर भी बल देता है|
  • इसके अतिरिक्त भारत एवं यूएई ने आतंकवाद का सामना करने के लिये आपसी सहयोग  को बढ़ावा देने के साथ-साथ ख़ुफ़िया सूचनाओं को साझा करने पर भी सहमति जताई है|
  • पठानकोट एवं उरी कांड के पश्चात् पकिस्तान से संबद्ध आतंकी समूहों की तीव्र आलोचना करते हुए पाकिस्तान के विरुद्ध यूएई के सख्त रवैये ने यह स्पष्ट कर दिया है कि संयुक्त अरब अमीरात के बदलते सत्ता प्रारूप ने जहाँ एक ओर भारत के प्रति नरमी का रुख अपनाया है वहीँ वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को पृथक करने की भारत की मंशा को भी बल प्रदान किया है| 


अन्य प्रमुख तथ्य

  • आपसी सम्बन्धों को गति प्रदान करते हुए भारत तथा संयुक्त अरब अमीरात ने 26 जनवरी 2017 को व्यापक सामरिक भागीदारी समझौते एवं रक्षा, सुरक्षा, व्यापार तथा ऊर्जा जैसे क्षेत्रों से सम्बन्धित एक दर्जन से भी अधिक संधियों पर हस्ताक्षर किये है|
  • हालाँकि, जैसा कि भारत ने आशा की थी वर्ष 2015 में यूएई द्वारा प्रतिबद्ध 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर की संधि को उन चौदह संधियों में शामिल नहीं किया गया है, जिन पर श्री मोदी तथा अबु धाबी के युवराज शेख मोहम्मद बिन ज़ायेद अल नाहयान के मध्य वार्ता के पश्चात् हस्ताक्षर किया गया था| 
  • हालाँकि,जैसा कि विदेश मंत्रालय ने आशा कि थी, इन दोनों पक्षों ने 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश से सम्बन्धित किसी भी संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं|


निष्कर्ष

हाल ही में कांधार में हुए आतंकी हमले में खाड़ी देशों के पाँच कूटनीतिज्ञ मारे गए| इस हमले का आरोपी पाकिस्तान से संबद्ध आतंकी समूह तालिबान था| इस आतंकी घटना के कारण यूएई एवं पाकिस्तान के मध्य रिश्तों में भारी तनाव की स्थिति बनी हुई है| स्पष्ट है कि भारत को इसी स्थिति का लाभ उठाते हुए अपने एवं यूएई के मध्य सामरिक संबन्धों को और अधिक सुदृढ़ करने पर बल देने का प्रयास करना चाहिये| हालाँकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत ने यूएई के साथ अपने संबंधों को कईं आयामों पर विकसित करने का सफल प्रयास किया है| तथापि इसे यूएई के साथ-साथ अन्य खाड़ी देशों के साथ अपने सामरिक संबंधों को सशक्त बनाने के लिये, अपने वायदों एवं प्रतिबद्धताओं पर पूर्णतया खरा उतरना होगा ताकि 21वीं सदी की एक बेहतरीन साझेदारी को विकसित किया जा सके|