इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की विश्वसनीयता | 19 Mar 2017
सन्दर्भ
गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की राज्य विधानसभाओं के लिये हाल ही में हुए चुनावों के नतीजों की घोषणा के बाद, ई.वी.एम. अर्थात इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की गड़बड़ी को लेकर राजनीतिक बयानबाज़ी का सिलसिला शुरू हो गया है। भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में वोटों की गिनती में गड़बड़ी की साजिश संभव तो है, लेकिन डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ते इस देश को वोटों के लिये दोबारा बैलेट बॉक्स की तरफ वापस भेजना कितना सही है?
प्रमुख बिंदु
- हाल के उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीज़ों के बाद कुछ राजनीतिक दलों ने ई.वी.एम. की विश्वसनीयता के खिलाफ़ आवाज़ उठाते हुए इन चुनावों के दौरान ई.वी.एम. मशीनों में छेड़छाड़ किये जाने का आरोप लगाया है।
- ध्यातव्य है कि 11 मार्च 2017 को बसपा की राष्ट्रीय महासचिव की ओर से चुनाव आयोग (Election Commission of India) को एक ज्ञापन सौंपा गया। हालाँकि यह ज्ञापन कोई विशिष्ट आरोप लगाए बगैर दिया गया है।
- चुनाव आयोग ने 11 मार्च 2017 को ही इस ज्ञापन को खारिज करते हुए बसपा को विस्तृत जवाब दे दिया है।
- विदित हो कि ई.वी.एम का उपयोग शुरू किये जाने के बाद इन मशीनों में कथित छेड़छाड़ के बारे में इस तरह की कुछ चिंताएँ पहले भी व्यक्त की जा चुकी हैं। कुछ राजनीतिक दलों का कहना है कि कई देशों ने ई.वी.एम. का इस्तेमाल बंद कर दिया है अतः भारत को भी इनकी विश्वसनीयता पर विचार करना चाहिये।
- तकनीकी विशेषज्ञ भी ई.वी.एम. से छेड़छाड़ की आशंका को पूरी तरह खारिज नहीं करते। साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि वोटिंग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ये मशीनें इंटरनेट से कनेक्टेड नहीं होतीं, लिहाज़ा इनमें साइबर क्राइम की कोई तरकीब काम नहीं करेगी, लेकिन सुरक्षा में तैनात लोगों की मदद से इस मशीन में गड़बड़ी की जा सकती है। ई.वी.एम. मशीन एक तरह का कंप्यूटर ही है और वोटों की गिनती के दौरान या पहले, इसके लॉगरिथ्म (Logarithm) या मैकेनिज़्म को छेड़ा जा सकता है|
ई.वी.एम. की विश्वसनीयता से संबंधित प्रमुख मामले
उच्चतम न्यायालय/उच्च न्यायालय में भी इस तरह की चिंताएँ जताई जा चुकी हैं। हालाँकि इन आरोपों को चुनाव आयोग द्वारा सिरे से खारिज किया जाता रहा है| चुनाव आयोग ने इस बार भी स्पष्ट रूप से यह बात दोहराई है कि ई.वी.एम. में निहित तकनीकी एवं प्रशासनिक सुरक्षा के चलते इसमें छेड़-छाड़ की कोई गुंजाइश नहीं है और इस तरह चुनाव प्रक्रिया की प्रामाणिकता बनी रहती है। वर्ष 2001 के बाद ई.वी.एम में संभावित छेड़-छाड़ के मसले को विभिन्न उच्च न्यायालयों में उठाया जा चुका है। कुछ प्रमुख मामले निम्नलिखित हैं -
ई.वी.एम पर प्रमुख न्यायिक निर्णय
- मद्रास उच्च न्यायालय-2001
- केरल उच्च न्यायालय-2002
- दिल्ली उच्च न्यायालय-2004
- कर्नाटक उच्च न्यायालय-2004
उपर्युक्त सभी उच्च न्यायालयों ने भारत में हुए चुनावों में ई.वी.एम. के उपयोग में निहित तकनीकी सुदृढ़ता और प्रशासनिक उपायों के समस्त पहलुओं पर गौर करने के बाद यह पाया है कि भारत में ई.वी.एम. विश्वसनीय, भरोसेमंद एवं पूरी तरह से छेड़-छाड़ मुक्त हैं। इनमें से कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों के आदेशों के खिलाफ याचिकाकर्ताओं की अपीलों को उच्चतम न्यायालय ने सिरे से खारिज कर दिया है।
- कर्नाटक उच्च न्यायालय एवं मद्रास उच्च न्यायालय दोनों ने ही यह अवलोकन किया कि मतपत्र/मतपेटी वाली चुनाव प्रणाली की तुलना में चुनाव में ई.वी.एम. के उपयोग के कई लाभ हैं। मद्रास उच्च न्यायालय ने भी स्पष्ट शब्दों में ई.वी.एम. में छेड़-छाड़ किये जाने की संभावना से साफ इनकार किया है।
- गौरतलब है कि मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि कोई वायरस या बग डालने का सवाल भी नहीं पैदा होता है क्योंकि ई.वी.एम. की तुलना पर्सनल कम्प्यूटर से नहीं की जा सकती है। कम्प्यूटर में अंतर्निहित सीमाएँ होती हैं क्योंकि उसमें इंटरनेट के जरिए कनेक्शन होता है और उसके विशेष डिजाइन को देखते हुए प्रोग्राम विशेष में छेड़-छाड़ की जा सकती है, लेकिन ई.वी.एम. स्वतंत्र इकाइयाँ होती हैं और ई.वी.एम. में प्रोग्राम पूरी तरह से एक भिन्न प्रणाली के रूप में होता है।
- इसके पश्चात्, वर्ष 2009 में हुए आम चुनाव के बाद भी राजनीतिक दलों ने यह कहते हुए इस मसले को तूल दिया था कि ई.वी.एम. पूरी तरह से छेड़-छाड़ मुक्त नहीं हैं और इसमें फेरबदल की गुंजाइश रहती है। हालाँकि, कोई विशिष्ट आरोप नहीं लगाया गया और न ही किसी अदालत में वे इसे साबित कर पाए।
- इस सन्दर्भ में चुनाव आयोग ने यह खुली चुनौती दी कि यदि कोई भी व्यक्ति यह साबित कर सकता है कि इस मशीन से छेड़-छाड़ की जा सकती है तो उसे ऐसा करने की खुली छूट है। इस अवसर के तहत् मशीनों को खोलने एवं आंतरिक कलपुर्जों को खोलकर दिखाने के बावजूद कोई भी व्यक्ति इस मशीन में किसी भी तरह की छेड़-छाड़ की गुंजाइश को प्रदर्शित नहीं कर पाया। इस कार्यवाही की वीडियोग्राफी भी की गई थी।
- वर्ष 2010 में चुनाव आयोग की एक बैठक में असम एवं तमिलनाडु के कुछ राजनीतिक दलों को छोड़ सभी राजनीतिक दलों ने ई.वी.एम. के कामकाज के तरीके पर संतुष्टि जताई। उसी दौरान वी.वी.पी.ए.टी.(वोटर वेरिफिएबल पेपर आडिट ट्रेल) का विचार सामने रखा गया, ताकि आगे और ज्यादा जाँच संभव हो सके।
ई.वी.एम. की पृष्ठभूमि
- मतपत्रों के उपयोग से जुड़ी कुछ विशेष समस्याओं से निजात पाने और प्रौद्योगिकी के विकास से लाभ उठाने के उद्देश्य से आयोग ने दिसंबर, 1977 में ई.वी.एम. का विचार सामने रखा था, ताकि मतदाता बगैर किसी संशय के सही ढंग से अपने वोट डाल सकें और अवैध वोटों की संभावनाओं को पूरी तरह से खत्म किया जा सके।
- संसद द्वारा दिसंबर 1988 में इस कानून में संशोधन करते हुए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में एक नई धारा 61ए को जोड़ा गया। इसके तहत वोटिंग मशीनों के उपयोग के लिये आयोग को अधिकार दिया गया था।
- केन्द्र सरकार ने जनवरी 1990 में चुनाव सुधार समिति का गठन किया था जिसमें अनेक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय दलों के प्रतिनिधि शामिल थे। चुनाव सुधार समिति ने बाद में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का आकलन करने के उद्देश्य से एक तकनीकी विशेषज्ञ समिति का गठन किया।
- समिति ने यह निष्कर्ष निकाला कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन एक सुरक्षित प्रणाली है। अत: विशेषज्ञ समिति ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग किये जाने के बारे में अप्रैल 1990 में सर्वसम्मति से सिफारिश की।
- वर्ष 2000 के बाद ई.वी.एम. का उपयोग राज्य विधानसभाओं के लिए हुए 107 चुनावों और वर्ष 2004, 2009 और 2014 में लोकसभा के लिए हुए 3 चुनावों में किया जा चुका है।
ई.वी.एम. की तकनीकी सुरक्षा
अकसर देखा गया है कि सम्पूर्ण सावधानी के बावजूद भी किसी मशीन विशेष की सुरक्षा में सेंध लगाया जाना संभव है। अतः इसमें गड़बड़ी की संभावना को पूर्णतः नकारा नहीं जा सकता। ई.वी.एम. की सुरक्षा की बात करें तो ये ‘स्टैंड एलोन’ (stand alone) मशीन है। मतलब इसकी सुरक्षा के मद्देनजर इसे किसी नेटवर्क से नहीं जोड़ा गया है अतः इसमें छेड़-छाड़ करने के लिये एक-एक मशीन से छेड़-छाड़ करनी पड़ेगी। प्रत्येक मशीन में पृथक रूप से ऐसा प्रयास किये जाने की गुंजाइश नहीं के बराबर है। ई.वी.एम. में निम्नलिखित तकनीकी सुरक्षा उपायों को अपनाया गया है-
- इस मशीन में छेड़-छाड़ की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिये इसे इलेक्ट्रॉनिक तरीके से सुरक्षित बनाया गया है।
- इन मशीनों में उपयोग किये गए प्रोग्राम (सॉफ्टवेयर) को वन टाइम प्रोग्राम या मास्क्ड चिप का रूप दे दिया जाता है, ताकि इसमें किसी भी तरह का फेरबदल अथवा छेड़-छाड़ कतई संभव न हो सके।
- इसके अलावा, इन मशीनों की न तो किसी वायर के जरिये अथवा वायरलेस ढंग से ही किसी अन्य मशीन या प्रणाली से नेटवर्किंग की जाती है। अत: इसके डेटा में फेरबदल की कोई भी संभावना नहीं रहती है।
- ई.वी.एम. के सॉफ्टेवयर को बी.ई.एल. (रक्षा मंत्रालय का पी.एस.यू.) और ई.सी.आई.एल. (परमाणु ऊर्जा मंत्रालय का पी.एस.यू.) के इंजीनियरों के एक चुनिंदा समूह द्वारा एक-दूसरे से बिल्कुल अलग इन-हाउस रूप से विकसित किया जाता है।
- दो-तीन इंजीनियरों का एक चुनिंदा सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट समूह सोर्स कोड की डिजाइनिंग करता है तथा इस कार्य के लिये किसी और से कोई अनुबंध नहीं किया जाता।
- सॉफ्टवेयर की डिजाइनिंग का काम पूरा हो जाने के बाद सॉफ्टवेयर का परीक्षण एवं आकलन सॉफ्टवेयर आवश्यकता विनिर्देशों (एस.आर.एस.) के अनुसार एक स्वतंत्र परीक्षण समूह द्वारा किया जाता है।
- इस प्रक्रिया से यह सुनिश्चित हो जाता है कि वास्तव में केवल निर्धारित उपयोग के लिये ही तय की गई आवश्यकताओं के अनुरूप इस सॉफ्टेवयर को बनाया गया है या नहीं।
- विदित हो कि ई.वी.एम. के सोर्स कोर्ड को हमेशा कड़ी सुरक्षा से स्टोर करके रखा जाता है। इसकी निगरानी एवं नियंत्रण की पूरी व्यवस्था की जाती है ताकि केवल अधिकृत अधिकारीगण ही इस कोड तक पहुँच सकें।
- ई.वी.एम. मशीन में जो माइक्रोचिप लगी होती है, उसी में वोट स्टोर होते हैं और इसे 10 साल तक सुरक्षित रखा जाता है।
- विदित हो कि ई.वी.एम. मशीन में एक मिनट में सिर्फ पाँच वोट ही डाले जा सकते हैं।
- वर्ष 2006 में कुछ अतिरिक्त विशेषताएँ भी ई.वी.एम. में शामिल की गईं जैसे- बैलट यूनिट और कंट्रोल यूनिट के बीच गतिशील कोडिंग, रीयल टाइम घड़ी लगाना, पूर्ण डिस्प्ले सिस्टम लगाना और ई.वी.एम. में हर बार बटन को दबाने पर तारीख और समय का अंकित होना इत्यादि।
प्रक्रियात्मक और प्रशासनिक सुरक्षा
चुनाव आयोग ने ई.वी.एम. के सन्दर्भ में सुरक्षा उपायों की एक विस्तृत एवं चरणबद्ध प्रशासनिक प्रणाली और प्रक्रियात्मक निगरानी एवं नियंत्रण की पुख्ता व्यवस्था कर रखी है जिसका उद्देश्य किसी भी संभावित दुरुपयोग अथवा प्रक्रियात्मक खामी की रोकथाम सुनिश्चित करना है।
- इन सुरक्षा उपायों पर पारदर्शी रूप से अमल किया जाता है जिसमें हर चरण में राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और उनके प्रतिनिधियों की सक्रिय एवं दस्तावेज संबंधी भागीदारी रहती है, ताकि ई.वी.एम. की प्रभावकारिता और विश्वसनीयता पर उनका विश्वास बना रहे।
- प्रत्येक चुनाव के पहले राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में ई.वी.एम. बनाने वाली कंपनियों के इंजीनियरों द्वारा चुनाव में उपयोग में लाई जाने वाली प्रत्येक ई.वी.एम. मशीन की प्रथम स्तरीय जाँच की जाती है।
- इसके बाद ई.वी.एम. की प्लास्टिक कैबिनेट नियंत्रण इकाई सील की जाती है। राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि इस पर हस्ताक्षर करते हैं और इसे स्ट्रॉंग रूम में रखा जाता है। इस चरण के बाद प्लास्टिक कैबिनेट नियंत्रण इकाई को खोला नहीं जा सकता।
- इसके अतिरिक्त, प्रथम स्तरीय जाँच के समय राजनीतिक दलों द्वारा चुनी गई पाँच प्रतिशत इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों से राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों द्वारा कम से कम एक हजार वोट डाले जाते हैं। इसके लिये राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को इस बात की अनुमति दी जाती है कि वे अपनी इच्छा अनुसार मशीनें उठाएँ।
- शेष मशीनों में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के समक्ष छद्म मतदान कराया जाता है जिसमें राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को भी स्वयं भाग लेने की अनुमति दी जाती है। इसे दस्तावेज के रूप में दर्ज भी किया जाता है।
- इसके बाद विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में आवंटित करने के लिये रखी गई ई.वी.एम. मशीनों को दो बार कंप्यूटर सॉफ्टवेयर द्वारा जाँचा जाता है और ई.वी.एम. मशीनों को मतदान केंद्रों को वितरित करने से पूर्व उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों की उपस्थिति में मतदान केन्द्रों के लिये स्थानांतरित किया जाता है। राजनीतिक दलों/उम्मीदवारों को ई.वी.एम. क्रम संख्या वाली सूची दी जाती है।
- बनावटी मतदान खत्म होने के बाद ई.वी.एम. मशीनें धागे और हरे कागज की सील से सील की जाती है ताकि चुनाव कराने के लिये उपयोग में आने वाले बटनों को छोडकर सभी बटन तक पहुँच ब्लॉक कर दी जाए। कागज और धागे की इन सीलों पर पोलिंग एजेंटों के हस्ताक्षर की अनुमति है।
- इस प्रकार चरणबद्ध रूप से सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को प्रथम चरण की जाँच, मतदान से पहले ई.वी.एम. मशीनें तैयार करने, बनावटी मतदान आदि में भाग लेने का अवसर दिया जाता है।
- मतदान के दिन वास्तविक मतदान से पहले भी उम्मीदवारों और उनके प्रतिनिधियों को इस तथ्य से संतुष्ट कराया जाता है कि ई.वी.एम. मशीनें संतोषजनक रूप से काम कर रही हैं।
- मतदान सम्पन्न होने के बाद पोलिंग एजेंटों की उपस्थिति में पीठासीन अधिकारी ‘क्लोज’ बटन दबाते हैं। इसके बाद ई.वी.एम. मशीन में कोई वोट नहीं डाला जा सकता।
- ततपश्चात् पूरी ई.वी.एम. सील कर दी जाती है। सीलों पर उम्मीदवारों और उनके हस्ताक्षर की अनुमति होती है। मतगणना शुरू होने से पहले उम्मीदवार और उनके एजेंट हस्ताक्षर सटीक होने की जाँच कर सकते हैं। मतदान केन्द्रों से मतगणना स्टोर रूम तक ई.वी.एम. मशीनों को ले जाने वाले वाहनों के पीछे-पीछे उम्मीदवार या उनके प्रतिनिधि चलते हैं।
- इसके अतिरिक्त मतगणना के लिए ई.वी.एम. मशीनें रखने के लिए बने स्ट्रॉंगरूम को सील कर दिया जाता है और स्ट्रॉंग रूम की दिन-रात निगरानी की जाती है। स्ट्रॉंगरूम की सीलों पर उम्मीदवारों और उनके प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर का प्रावधान है। उन्हें दिन-रात स्ट्रॉंगरूम पर नजर रखने की भी अनुमति है।
- ध्यातव्य है कि एक ई.वी.एम. मशीन में 3840 वोट डाले जा सकते हैं लेकिन चुनाव आयोग की व्यवस्था के मुताबिक एक पोलिंग बूथ पर 1500 से ज्यादा मतदाता नहीं हो सकते।
- विदित हो कि एक ई.वी.एम. में 16 उम्मीदवारों के नाम डाले जा सकते हैं। अगर ज्यादा उम्मीदवार हों तो एक और ई.वी.एम. को जोड़ा जाता है किन्तु इस तरह से कुल चार ई.वी.एम. ही आपस में जोड़े जा सकते हैं।
मतदाता सत्यापन योग्य पेपर ऑडिट ट्रेल
भारत निर्वाचन आयोग ने 2010 में राजनीतिक दलों के साथ हुई मंत्रणा के आधार पर पारदर्शिता बढाने की दृष्टि से मतदाता सत्यापन योग्य प्रेपर ऑडिट ट्रेल (वोटर वेरिफिएबल पेपर आडिट ट्रेल-वी.वी.पी.ए.टी) के उपयोग करने पर विचार किया।
- वी.वी.पी.ए.टी लागू करने का अर्थ यह है कि नियंत्रण इकाई में मत की रिकॉर्डिंग के साथ उम्मीदवार के नाम और चुनाव चिह्न वाली कागजी पर्ची निकाली जा सके ताकि किसी तरह के विवाद के मामले में ई.वी.एम. मशीनों में दिखाए जा रहे परिणाम की पुष्टि कागजी पर्ची गिनकर की जा सके।
- वी.वी.पी.ए.टी के अंतर्गत बैलट इकाई से प्रिंटर जुड़ा होता है और इसे मतदान के खाँचे में रखा जाता है। सात सेकेंड के लिए वी.वी.पी.ए.टी. पर कागजी पर्ची दिखती है।
- 2013 में भारत निर्वाचन आयोग द्वारा वी.वी.पी.ए.टी. के डिजाइन की मंजूरी दी गई और उच्चतम न्यायालय ने चरणबद्ध तरीके से वी.वी.पी.ए.टी. लगाने का आदेश दिया और सरकार से वी.वी.पी.ए.टी. प्राप्त करने के लिये धन स्वीकृत करने को कहा।
- इस संबंध में जून 2014 में आयोग ने 2019 में होने वाले लोकसभा आम चुनाव में प्रत्येक मतदान केन्द्र पर वी.वी.पी.ए.टी. लागू करने का प्रस्ताव किया और सरकार से 317 करोड़ रूपये की राशि मांगी गई।
- अब तक 255 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों और 9 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में वी.वी.पी.ए.टी. का उपयोग किया गया है।
- वर्ष 2017 में, हाल ही में पाँच राज्यों में हुए चुनावों में भारत निर्वाचन आयोग द्वारा 52000 वी.वी.पी.ए.टी. की तैनाती की गई थी।
- भारत निर्वाचन आयोग 2014 से आवश्यक संख्या में वी.वी.पी.ए.टी. तैयार करने के लिए सरकार से 3174 करोड़ रूपये की राशि जारी करने का आग्रह कर रहा है, ताकि 2019 के लोकसभा आम चुनाव में सभी मतदान केन्द्रों पर वी.वी.पी.ए.टी. का उपयोग हो सके।
ई.वी.एम. की विश्वसनीयता के संबंध में निर्वाचन आयोग का मत
चुनाव आयोग ने चुनाव में ई.वी.एम के कार्य दोषमुक्त तरीके से सुनिश्चित करने के लिये व्यापक तकनीकी और प्रशासनिक प्रणाली की व्यवस्था की है। इस तरह भारत निर्वाचन आयोग, ई.वी.एम. के सुरक्षित कामकाज को लेकर पूरी तरह संतुष्ट है।
- उल्लेखनीय है कि अब तक इस तरह के आरोप लगाने वालों में से कोई भी यह सिद्ध नहीं कर पाया है कि देश की चुनाव प्रक्रिया में उपयोग में लाई गई भारत निर्वाचन आयोग की ई.वी.एम. मशीनों में जोड़-तोड़ या छेड़-छाड़ की जा सकती है। अतः आयोग इस तरह के आरोपों को साक्ष्य विहीन मानकर नामंजूर करता आ रहा है।
- भारत निर्वाचन आयोग आश्वस्त है कि ई.वी.एम. मशीनों से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती और आयोग ई.वी.एम. उपयोग करने वाली निर्वाचन प्रक्रिया की शुद्धता से पूरी तरह संतुष्ट है।
- भारत निर्वाचन आयोग चरणबद्ध तरीके से वी.वी.पी.ए.टी की तैनाती करके निर्वाचन प्रक्रिया में नागरिकों के विश्वास को और सुदृढ़ करने के लिए प्रयासरत है।
- 2004, 2009 तथा 2014 में हुए राष्ट्रव्यापी आम चुनावों सहित पिछले अनेक वर्षों में हुए चुनावों में आयोग ने इन मशीनों के उपयोग पर संतोष प्रकट किया है।
- भारत निर्वाचन आयोग का दावा है कि अब तक कोई यह प्रदर्शित नहीं कर सका है कि निर्वाचन आयोग द्वारा उपयोग की जाने वाली ई.वी.एम. मशीनों से छेड़छाड़ की जा सकती है और इसमें किसी तरह का जोड़-तोड़ किया जा सकता है। यदि इस तरह का कोई सबूत दिखाये जाने का दावा किया जा रहा है तो निश्चित ही वह निजी रूप से एकत्रित, भारत निर्वाचन आयोग की तरह दिखने वाली मशीने हैं और भारत निर्वाचन आयोग की वास्तविक ई.वी.एम. मशीनें नहीं हैं।
- विदित हो कि इस सन्दर्भ में भारत निर्वाचन आयोग मुख्यालय में 2009 में एक असाधारण कदम उठाते हुए ई.वी.एम मशीनों के बारे में छोटे से छोटे संदेह और गलतफहमियों को दूर करने के लिये एक डेमॉन्सट्रेशन कार्यक्रम किया गया था।
निष्कर्ष
भारत का निर्वाचन आयोग अभी भी ई.वी.एम. मशीनों के अचूक होने के बारे में अपने विश्वास प्रकट करते हुए दावा कर रहा है कि हमेशा की तरह ई.वी.एम मशीनें छेड़छाड़ मुक्त हैं। इस तथ्य में कोई दो राय नहीं कि अभी तक भारत में सफल तौर पर प्रचलित यह वोटिंग मशीनें सुरक्षित हैं। लेकिन फिर भी साइबर सुरक्षा नीति के मद्देनजर इसकी सुरक्षा परतों पर दोबारा विचार करने में कोई बुराई नही है। अगर अमेरिका जैसे विकसित देश की वोटिंग मशीन में छेड़छाड़ की बात सामने आई है तो भारत को भी इस तरह की गड़बड़ियों से रोकने की कोशिश करनी चाहिए। अतः आवश्यक है कि ई.वी.एम. जैसी अहम डिजिटल मशीन की सुरक्षा को दोबारा जाँच लिया जाए।