भारतीय राजव्यवस्था
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘बंधुत्व’ शब्द की प्रासंगिकता
- 22 Oct 2020
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इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारतीय संविधान की प्रस्तावना में वर्णित ‘बंधुत्व’ शब्द की प्रासंगिकता से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ:
भारत के संविधान-निर्माण की ऐतिहासिक यात्रा में विद्वानों ने कुछ अहम घटनाओं का उल्लेख किया है। इनमें से एक प्रमुख घटना थी-भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस का वर्ष 1931 का ‘मौलिक अधिकार’ संकल्प/प्रस्ताव। भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस ने कराची अधिवेशन में यह संकल्प लिया कि ‘भविष्य में किसी भी संविधान में लोगों के मौलिक अधिकारों जैसे- संगठन बनाने की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति एवं प्रेस की स्वतंत्रता, अंतःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मनाने, आचरण की स्वतंत्रता’ को शामिल किया जाएगा।
भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस का कराची अधिवेशन (वर्ष 1931):
- 29 मार्च, 1931 में कराची में काॅन्ग्रेस का अधिवेशन आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता सरदार वल्लभ भाई पटेल ने की थी। इस अधिवेशन में ‘दिल्ली समझौते’ यानि गांधी-इरविन समझौते को स्वीकृति प्रदान की गई। ‘पूर्ण स्वराज्य’ के लक्ष्य को फिर से दोहराया गया तथा भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव की वीरता एवं बलिदान की प्रशंसा की गई। यद्यपि काॅन्ग्रेस ने किसी भी प्रकार की राजनीतिक हिंसा का समर्थन न करने की अपनी नीति भी दोहराई।
- इस अधिवेशन में काॅन्ग्रेस ने दो मुख्य प्रस्तावों को अपनाया जिनमें एक ‘मूलभूत राजनीतिक अधिकारों’ से तो दूसरा ‘राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रमों’ से संबंधित था।
- मूलभूत राजनीतिक अधिकारों से जुड़े प्रस्ताव में निम्नलिखित प्रावधान थे:
- अभिव्यक्ति व प्रेस की स्वतंत्रता तथा संगठन बनाने की स्वतंत्रता।
- सार्वभौम व्यस्क मताधिकार के आधार पर चुनावों की स्वतंत्रता।
- सभा व सम्मेलन आयोजित करने की स्वतंत्रता।
- जाति, धर्म व लिंग के आधार पर भेदभाव किये बिना कानून के समक्ष समानता।
- सभी धर्मों के प्रति राज्य का तटस्थ भाव।
- निःशुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की गारंटी।
- अल्पसंख्यकों तथा विभिन्न भाषाई क्षेत्रों की संस्कृति, भाषा एवं लिपि के संरक्षण व सुरक्षा की गारंटी।
- राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम से संबंधित जो प्रस्ताव पारित हुआ, उसमें निम्नलिखित प्रावधान सम्मिलित थे-
- मज़दूरों एवं किसानों को अपनी यूनियन बनाने की स्वतंत्रता।
- मज़दूरों के लिये बेहतर सेवा शर्तें, महिला मज़दूरों की सुरक्षा तथा काम के नियमित घंटे।
- किसानों को कर्ज से राहत और सूदखोरों पर नियंत्रण।
- अलाभकारी जोतों को लगान से मुक्ति।
- लगान और मालगुजारी में उचित कटौती।
- प्रमुख उद्योगों, परिवहन और खदान को सरकारी स्वामित्व एवं नियंत्रण में रखने का वचन।
एनिहिलेशन ऑफ कास्ट (Annihilation of Caste):
- भारतीय संविधान निर्माण की यात्रा में दूसरी अहम घटना वर्ष 1936 में बी. आर. अंबेडकर का भाषण ‘एनिहिलेशन ऑफ कास्ट’ (Annihilation of Caste) थी, जिसमें उन्होंने कहा था ‘यदि आप जाति नहीं चाहते हैं तो आपका आदर्श समाज क्या है, यह एक प्रश्न है जो आपसे पूछा जाना ज़रूरी है। यदि आप मुझसे पूछें तो मेरा आदर्श स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर आधारित समाज होगा।’
- इतिहास के आलोक में बी. आर. अंबेडकर प्रमुख नेताओं में से एक थे जिन्होंने ‘भ्रातृत्त्व’ या ‘बंधुत्व’ शब्द को भारत की संवैधानिक चर्चा में शामिल किया।
उद्देश्य प्रस्ताव (Objectives Resolution):
- संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को हुई। 13 दिसंबर, 1946 को जवाहर लाल नेहरू ने ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पेश किया, इसमें संवैधानिक संरचना के ढाँचे एवं दर्शन की झलक थी। इस प्रस्ताव को 22 जनवरी, 1947 को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया।
- इसमें कहा गया कि भारत के सभी लोगों के लिये न्याय, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्वतंत्रता एवं सुरक्षा, अवसर की समता, विधि के समक्ष समता, विचार एवं अभिव्यक्ति, विश्वास, भ्रमण, संगठन बनाने आदि की स्वतंत्रता तथा लोक नैतिकता की स्थापना सुनिश्चित की जाएगी।
- यद्यपि उपरोक्त शब्द प्रस्तावना की एक स्पष्ट रूपरेखा प्रस्तुत करते थे किंतु इसमें ‘बंधुत्व’ शब्द का अभाव था।
- 21 फरवरी, 1948 को प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में बी. आर. अंबेडकर ने संविधान सभा के अध्यक्ष बाबू राजेंद्र प्रसाद को लिखे पत्र में कहा था कि ‘प्रारूप समिति ने प्रस्तावना में ‘बंधुत्व’ से संबंधित एक नया खंड जोड़ा है हालाँकि यह उद्देश्य प्रस्ताव में नहीं है। प्रारूप समिति ने महसूस किया कि वर्तमान समय में भारत में बंधुत्व एवं सद्भाव की सबसे अधिक आवश्यकता है।’
- गौरतलब है कि 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के बाद देशभर में जनाक्रोश चरम पर था।
- 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा के अपने प्रसिद्ध भाषण में बी. आर. अंबेडकर ने कहा कि ‘बंधुत्व के बिना समानता और स्वतंत्रता की जड़ें अधिक गहरी नहीं होंगी।’
भारतीय संविधान और ‘बंधुत्व’:
- ‘बंधुत्व’ का अर्थ है- भाईचारे की भावना।
- भारतीय संविधान एकल नागरिकता तंत्र के माध्यम से भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करता है।
- मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद-51A) भी कहते हैं कि प्रत्येक भारतीय नागरिक का कर्तव्य है कि वह धार्मिक, भाषाई, क्षेत्रीय अथवा वर्ग विविधताओं से ऊपर उठकर सौहार्द्र और आपसी भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करेगा।
- प्रस्तावना में बताया गया है कि ‘बंधुत्व’ के दायरे में दो बातों को सुनिश्चित करना होगा-
- व्यक्ति का सम्मान
- देश की एकता और अखंडता (‘अखंडता’ शब्द को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया)
भारतीय संदर्भ में ‘बंधुत्व’ के सम्मुख चुनौतियाँ:
- भारतीय संविधान में वर्णित एकल नागरिकता के बावजूद वर्ष 2002 के गुजरात दंगे, नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर विरोध एवं हिंसा, भाषाओं पर आधारित उत्तर-दक्षिण विभाजन, अक्षमता एवं विविधता के कारण अन्य सामाजिक गतिरोध आदि सामाजिक सद्भाव में असंतुलन उत्पन्न कर रहे हैं।
- भारतीय संविधान में व्यक्तिगत एवं लोकतांत्रिक प्रणाली की बेहतरी के साथ-साथ व्यक्ति की गरिमा बनाए रखने की बात कही गई है किंतु इसके सम्मुख चुनौतियों में जाति, लिंग आधारित आय असमानता, महिलाओं की निम्न सामाजिक स्थिति जैसे- बलात्कार, घरेलू हिंसा, कम आर्थिक भागीदारी, लोकतांत्रिक देश के चुनावों में धन और बाहुबल का बढ़ता उपयोग आदि शामिल हैं।
- भारत की 1% जनसंख्या के पास 73% संपत्ति है। वर्ष 2017 में इस शीर्ष 1% जनसंख्या की संपत्ति में वृद्धि, भारत के केंद्रीय बजट में हुई वृद्धि से अधिक थी।
- नेशनल इलेक्शन वॉच (National Election Watch) और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफाॅर्म (Association for Democratic Reforms- ADR) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, जहाँ एक ओर वर्ष 2009 में गंभीर आपराधिक मामलों वाले सांसदों की संख्या 76 थी, वहीं वर्ष 2019 में यह बढ़कर 159 हो गई। इस प्रकार वर्ष 2009-19 के बीच गंभीर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सांसदों की संख्या में कुल 109% की बढ़ोतरी देखने को मिली।
- WHO की रिपोर्ट के अनुसार, प्रतिदिन 3 में से 1 महिला किसी न किसी प्रकार की शारीरिक हिंसा का शिकार होती है।
- ‘देश की एकता और अखंडता’ में राष्ट्रीय अखंडता के दोनों मनोवैज्ञानिक और सीमायी आयाम शामिल हैं। इससे भारतीय संघ की बदली न जा सकने वाली प्रकृति परिलक्षित होती है। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय अखंडता के लिये बाधक, सांप्रदायिक, क्षेत्रवाद, जातिवाद, भाषावाद इत्यादि जैसी बाधाओं से पार पाना है किंतु अभी भी देश में ग्रेटर नगालिम, गोरखालैंड जैसे क्षेत्रों के लिये आंदोलन किये जा रहे हैं तो वहीँ भारत-चीन सीमा विवाद, भारत-पाकिस्तान सीमा विवाद जैसी चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं।
संवैधानिक मूल्य के रूप में ‘बंधुत्व’ की स्थापना के लिये किये जाने वाले प्रयास:
- आपसी मतभेदों को कम करना: अल्पसंख्यकों को एक खास विचारधारा का पालन करने के लिये मजबूर नहीं किया जाना चाहिये बल्कि परस्पर सद्भाव एवं सम्मान की भावना से लोगों के बीच सभी मतभेदों को कम किया जाना चाहिये।
- जन सहानुभूति को बढ़ावा देना: भ्रातृत्त्व का विचार सामाजिक एकजुटता के साथ घनिष्ठ रूप से संबंधित है जिसे जन सहानुभूति के बिना पूरा करना असंभव है। कुछ वैज्ञानिकों और दार्शनिकों का मानना है कि सहानुभूति एक विशिष्ट मानवीय गुण है, यह मानव में जन्मजात होता है किंतु इसे सिखाया एवं पोषित किया जा सकता है।
- सामाजिक एकजुटता: न्यायपूर्ण एवं मानवीय समाज में सामाजिक एकजुटता प्रमुख घटक होता है। न्याय के लिये लड़ाई उन लोगों द्वारा लड़ी जानी चाहिये जो उस अन्याय के साथ रहते हैं।
- सामूहिक देखभाल: प्रत्येक वर्ष कम-से-कम दो मिलियन लोगों की भूख, स्वच्छ पानी, स्वास्थ्य सेवा और आवासीय सुविधा न होने के कारण मृत्यु हो जाती है। वहीँ भारत में वर्ष 1943 के बंगाल दुर्भिक्ष में मरने वाले लोगों की संख्या तीन मिलियन थी। ये आँकड़े सामाजिक और राजनीतिक जीवन में बंधुत्व की विफलता का प्रमाण हैं जिससे निपटने के लिये सामूहिक देखभाल की अवधारणा को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
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नोआम चॉम्स्की (Noam Chomsky) ने टिप्पणी की कि सामाजिक सुरक्षा का विचार मूल रूप से सिर्फ ऐसा विचार है जहाँ हमें एक दूसरे का ध्यान रखना चाहिये।
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- भाईचारे को बढ़ावा: भारत में हाल के वर्षों में मुसलमानों, ईसाईयों और दलितों को लक्षित करने वाले घृणित अपराधों के कारण जब समाज के बाकी लोग चुप रहते हैं तो समाज में भाईचारा विफल होने लगता है। इसलिये उन मुद्दों पर मिलकर आवाज़ उठाई जानी चाहिये जो संवैधानिक दायरे में आते हैं।
निष्कर्ष:
- उल्लेखनीय है कि स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के पश्चिमी विचारों ने 19वीं सदी में भारतीय समाज के पुनर्जागरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। तत्कालीन भारतीय समाज में कई रुढ़िवादी धार्मिक और सामाजिक मान्यताएँ प्रचलित थीं, जिनमें से कई बुराई का स्वरूप धारण कर चुकी थीं। विभिन्न समाज सुधारकों ने इन्ही बुराईयों को समाप्त करने का प्रयास किया। इसके द्वारा न केवल भारतीय समाज जागृत हुआ, बल्कि उसमें राष्ट्रवाद की भावना का भी प्रसार हुआ।
- संविधान सभा की प्रारूप समिति के एक सदस्य के. एम. मुंशी के अनुसार, ‘व्यक्ति की गरिमा’ का अर्थ यह है कि संविधान न केवल वास्तविक रूप से भलाई तथा लोकतांत्रिक तंत्र की मौजूदगी सुरक्षित करता है बल्कि यह भी मानता है कि प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्त्व पवित्र है।’
- एक मज़बूत ‘नेशन-स्टेट’ के लिये ‘बंधुत्व’ एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है जो बड़े पैमाने पर विविधता वाले भारत जैसे देश को आपस में एक सूत्र में बांधे रख सकता है तथा समानता और स्वतंत्रता की जड़ों को मज़बूत कर सकता है।
“जैसे विभिन्न धाराएँ, विभिन्न दिशाओं से बहते हुए आकर एक ही समुद्र में मिलती हैं, वैसे ही मनुष्य जो मार्ग चुनता है, चाहे वे अलग-अलग प्रतीत होते हों, सभी एक ही सर्वशक्तिमान ईश्वर की ओर ले जाते हैं। “वसुधैव कुटुंबकम” का संदेश देते हुए वे सारे विश्व को एक परिवार मानने की शिक्षा देते हैं।”
-: स्वामी विवेकानंद :-
अभ्यास प्रश्न: ‘संवैधानिक परिप्रेक्ष्य में बंधुत्व के बिना समानता और स्वतंत्रता की जड़ें अधिक गहरी नहीं हो सकती हैं।’ वर्तमान घटनाओं के संदर्भ में इस कथन का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)