भारत की जल-क्षमता का पुनर्निर्माण | 28 Apr 2025

यह एडिटोरियल 27/04/2025 को बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित “Saving water: India needs a balanced management template to avert crisis” पर आधारित है। इस लेख में भारत में गंभीर जल संकट को दर्शाया गया है, जो हिमालय में 23 वर्षों के निचले स्तर पर हिमपात और तेज़ी से घटते भूजल द्वारा उजागर हुआ है।

प्रिलिम्स के लिये:

हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र, NITI आयोग की ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (CWMI)’ रिपोर्ट 2019, आर्द्रभूमि, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, अनुच्छेद 262, केंद्रीय जल आयोग (CWC), समग्र जल प्रबंधन सूचकांक, ब्लू ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर 

मेन्स के लिये:

भारत में जल संकट में योगदान देने वाले प्रमुख कारक, भारत में जल नीति की वर्तमान रूपरेखा। 

भारत गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है, क्योंकि हिमालय में हिमपात 23 वर्षों के निचले स्तर पर है, जिससे प्रमुख नदी प्रणालियाँ खतरे में हैं। लगभग 600 मिलियन भारतीय पहले से ही उच्च जल तनाव का सामना कर रहे हैं, कृषि के अत्यधिक दोहन और शहरीकरण के कारण भूजल में कमी तेज़ी से हो रही है। वास्तविक जल मूल्य निर्धारण, फसल विविधीकरण और मज़बूत प्रदूषण नियंत्रण को लागू करने के लिये प्रभावी समाधानों की आवश्यकता है, साथ ही जल संचयन एवं चेक डैम जैसे समुदाय-आधारित दृष्टिकोणों की भी आवश्यकता है।

भारत में जल संकट में योगदान देने वाले प्रमुख कारक क्या हैं? 

  • जलवायु परिवर्तन और हिम स्थायित्व में कमी: ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने और हिम के स्थायित्व में कमी के कारण नदियों का प्रवाह गंभीर रूप से कम हो रहा है और जल उपलब्धता अस्थिर होती जा रही है।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2024 में, भारत को वर्ष के प्रारंभिक नौ महीनों में 93% दिनों में चरम मौसमी घटनाओं का सामना करना पड़ा, जो बढ़ती जलवायु परिस्थितियों के प्रभाव को उजागर करता है।
      • बदले में, हिमालय में हिमपात में कमी से गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु बेसिन के जल प्रवाह पर सीधा प्रभाव पड़ता है, जिससे गर्मियों में जल संकट बढ़ जाता है।
    • हालिया आँकड़े बताते हैं कि नवंबर 2024 और मार्च 2025 के दौरान हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में हिमपात का स्तर सामान्य स्तर से 23.6% कम था।
  • भूजल का अत्यधिक दोहन और जलभृतों का ह्रास: सिंचाई और पुनर्भरण के बिना शहरी आपूर्ति के लिये भूजल पर अत्यधिक निर्भरता ने महत्त्वपूर्ण जलभृतों को समाप्त कर दिया है।
    • असंवहनीय जल निकासी दरें उत्तरी मैदानों में दीर्घकालिक जल सुरक्षा और कृषि अनुकूलन के लिये खतरा उत्पन्न करती हैं।
    • उदाहरण के लिये, सत्र 2002-2021 के दौरान उत्तरी भारत में लगभग 450 क्यूबिक किलोमीटर भूजल नष्ट हो गया तथा जलवायु परिवर्तन से इसकी कमी और तीव्र हो जाएगी।
  • अनुपयुक्त कृषि पद्धतियाँ और फसल का गलत संरेखण: हरित क्रांति के परिणामस्वरूप अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में भी धान और गन्ना जैसी जल-गहन फसलों को बढ़ावा मिला है।
    • निःशुल्क बिजली और सस्ता सिंचाई जल कृषि और शहरी क्षेत्रों में अकुशलता, जल की बर्बादी और अति प्रयोग को बढ़ावा देता है।
    • उदाहरण के लिये, कृषि आधारित जनगणना (सत्र 2015-16) के अनुसार, बड़े किसान, जो पंजाब में धान उगाने वाले क्षेत्र के 10% (लगभग 3,50,000 हेक्टेयर) के मालिक हैं, केवल एक किलोग्राम चावल का उत्पादन करने के लिये अनुमानित 5,337 लीटर जल की खपत करते हैं, जो जल संसाधनों के अत्यधिक उपयोग को उजागर करता है।
  • शहरीकरण, नगरीय उष्मा द्वीप और बुनियादी अवसंरचना की कमी: तीव्र, अनियोजित शहरीकरण और नगरीय उष्मा द्वीप सतही जल के वाष्पीकरण को बढ़ा रहे हैं तथा जल आपूर्ति को समाप्त कर रहे हैं।
    • शहरों में 31% शहरी परिवारों, जिनमें से अधिकांश अनाधिकृत कॉलोनियों और झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं, के पास पाइप-से-जल की सुविधा नहीं है, जिसके कारण असंवहनीय शहरीकरण हो रहा है। 
    • शहरी जल प्रबंधन प्रणालियाँ माँग से पीछे हैं, जिससे प्रमुख शहरों में शहरी ‘डे ज़ीरो’ संकट का खतरा है। उदाहरण के लिये, बंगलूरू को वर्ष 2024 में ‘डे ज़ीरो’ का सामना करना पड़ सकता है।
      • इसके अलावा, शोध से पता चलता है कि तीव्र ऊष्मा द्वीप प्रभाव वाले शहरी क्षेत्रों में सिंचाई, भूनिर्माण और घरेलू उपयोग के लिये जल की अधिक मांग होती है, जिसके कारण पहले से ही जल की कमी का सामना कर रहे क्षेत्रों में जल तनाव बढ़ जाता है। 
  • जल प्रदूषण और नदी संदूषण: औद्योगिक अपशिष्ट, सीवेज निर्वहन और कृषि अपवाह ने सतही और भूजल की गुणवत्ता को गंभीर रूप से दूषित कर दिया है।
    • विषाक्त जल पीने, सिंचाई एवं पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के लिये उपयोगी संसाधनों को कम कर देता है, जिससे जल की कमी और बढ़ जाती है।
    • जल गुणवत्ता पर NITI आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का 70% जल दूषित है। 
      • PVC पाइपों के कारण होने वाला सीसा संदूषण भारत में भूजल प्रदूषण के प्रमुख कारकों में से एक है।
  • खंडित जल प्रशासन और नीतिगत पक्षाघात: कई अतिव्यापी प्राधिकरण, अपर्याप्त समन्वय और एकीकृत बेसिन-स्तरीय योजना की कमी कार्रवाई को कमज़ोर करती है।
    • जल कानूनों का अकुशल प्रवर्तन तथा जवाबदेही का अभाव जल क्षरण और कुप्रबंधन को बढ़ाता है।
    • विश्व बैंक ने पाया कि बेहतर जल प्रबंधन नीतियों को लागू करने में विफलता के परिणामस्वरूप वर्ष 2050 तक क्षेत्रीय सकल घरेलू उत्पाद में 2-10% की हानि हो सकती है।
  • जल-कुशल प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण में विलंब: ड्रिप सिंचाई, वर्षा जल संचयन और स्मार्ट जल निगरानी की कम पहुँच के कारण जल संरक्षण की सफलता सीमित हो गई है।
    • पारंपरिक बाढ़ विधियाँ हावी हैं, जिससे कृषि और शहरी वितरण प्रणालियों में बड़े पैमाने पर बर्बादी होती है।
    • आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों ने ही सूक्ष्म सिंचाई के तहत महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों को अपनाया है। (NITI आयोग)
  • प्राकृतिक पुनर्भरण प्रणालियों का विनाश: शहरी विस्तार, झीलों पर अतिक्रमण और बाढ़ के मैदानों के विनाश ने जलभृत पुनर्भरण क्षमता को न्यूनतम कर दिया है।
    • भूजल पुनःपूर्ति में कमी से जलभृत में दीर्घकालिक गिरावट आती है, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में।
    • पिछले चार दशकों में भारत ने अपनी लगभग एक-तिहाई प्राकृतिक आर्द्रभूमि खो दी है।
      • बड़े शहरों में यह संकट बहुत बड़े पैमाने पर है। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, बंगलूरू में 1.5 लाख करोड़ रुपए की कीमत की लगभग 10,787 एकड़ झील भूमि पर अतिक्रमण किया गया है।
  • जल-संबंधी स्वास्थ्य एवं स्वच्छता संकट: दूषित एवं दुर्लभ जल के कारण वेक्टर जनित एवं जलजनित रोग फैलते हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बोझ बढ़ता है।
    • जल की कमी सीधे तौर पर सीमांत समूहों में रुग्णता, मृत्यु दर और सामाजिक-आर्थिक कमज़ोरियों से जुड़ी हुई है।
    • स्टॉकहोम इंटरनेशनल वाटर इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, 210 मिलियन भारतीयों के पास बेहतर स्वच्छता तक पहुँच नहीं है और 21% संक्रामक रोग असुरक्षित जल से संबद्ध हैं। 
  • अंतर-राज्यीय और स्थानीय जल विवाद: सीमित जल संसाधनों पर प्रतिस्पर्द्धी मांग क्षेत्रों, किसानों और सेक्टरों के बीच विवादों को बढ़ावा दे रही है।
    • जल-वितरण के समझौतों पर तनाव भारत में ‘जल युद्ध’ के उभरते खतरे को उजागर करता है।
    • उदाहरण के लिये, महाराष्ट्र की ऊपरी गोदावरी परियोजना में, नहर के ऊपरी छोर पर स्थित किसानों ने अवैध रूप से जल की दिशा बदल दी, जिससे इसके वितरण को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया।
      • इसके अलावा, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को सिंचाई के जल को लेकर किसानों के साथ निरंतर विवादों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि यह निकटवर्ती नदियों और पंचना बाँध से मिलने वाली आपूर्ति पर निर्भर है।

भारत में जल प्रशासन के लिये वर्तमान रूपरेखा क्या है?

  • संवैधानिक और कानूनी कार्यढाँचा
    • सातवीं अनुसूची की राज्य सूची की प्रविष्टि 17 के अंतर्गत जल एक राज्य विषय है, जो राज्यों को जलापूर्ति, सिंचाई, नहरों, जल निकासी एवं तटबंधों की प्राथमिक जिम्मेदारी देता है।
      • हालाँकि, संघ सरकार संघ सूची की प्रविष्टि 56 के अंतर्गत अंतर-राज्यीय नदी विनियमन और विवादों में भूमिका निभाती है।
    • अनुच्छेद 262 संसद को अंतर-राज्यीय जल विवादों पर निर्णय लेने का अधिकार देता है तथा ऐसे विवादों पर सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र पर रोक लगाता है।
      • प्रमुख कानूनों में अंतर-राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 और नदी बोर्ड अधिनियम, 1956 शामिल हैं।
  • संस्थागत संरचना 
    • जल शक्ति मंत्रालय (वर्ष 2019 में गठन किया गया) जल संसाधन मंत्रालय और पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय को मिलाकर राष्ट्रीय जल संसाधन प्रबंधन की देखरेख करता है।
    • केंद्रीय जल आयोग (CWC) (CWC) बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और बहुउद्देशीय परियोजनाओं पर सलाह देता है।
    • केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) भूजल संसाधनों और नियामक अनुमोदनों का प्रबंधन करता है।
  •  विनियामक और नीतिगत पहल
    • राष्ट्रीय जल नीति (वर्ष 2012) जल प्रबंधन के लिये मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान करती है, एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित करती है, पेयजल को प्राथमिकता देती है और संरक्षण को बढ़ावा देती है।
    • मॉडल भूजल (सतत्  प्रबंधन) विधेयक, 2017: केंद्र द्वारा तैयार यह विधेयक स्थानीय निकायों को भूजल को विनियमित करने का अधिकार देता है।
    • विद्युत टैरिफ नीति, 2016: इसमें यह अनिवार्य किया गया है कि सीवेज उपचार संयंत्रों के 50 किमी. के दायरे में आने वाले ताप विद्युत संयंत्रों को उपचारित सीवेज जल का उपयोग करना होगा, जिसकी लागत टैरिफ में शामिल की जाएगी।
    • NITI आयोग द्वारा ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (CWMI) सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद को बढ़ावा देने के लिये जल प्रबंधन प्रदर्शन के आधार पर राज्यों की रैंकिंग करता है।
    • विस्तृत भूजल मानचित्रण के लिये CGWB द्वारा राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण एवं प्रबंधन कार्यक्रम (NAQUIM)।
  • न्यायिक और अधिकार-आधारित विकास
    • सर्वोच्च न्यायालय ने सुरक्षित जल उपलब्धता को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा माना है।
    • न्यायालयों ने नदियों (जैसे: यमुना, गंगा) के प्रदूषण, भूजल निष्कर्षण सीमा और औद्योगिक अनुपालन मानदंडों से संबंधित मुद्दों में हस्तक्षेप किया है।

भारत में प्रभावी जल प्रबंधन से संबंधित प्रमुख केस स्टडीज़ क्या हैं? 

  • मिशन काकतीय, तेलंगाना: तेलंगाना में लघु सिंचाई को बढ़ावा देने के लिये तालाबों का जीर्णोद्धारसंधारणीय कृषि के लिये समुदाय आधारित जल प्रबंधन को बढ़ावा देना।
  • नीरू-चेट्टू कार्यक्रम, आंध्र प्रदेश: बेहतर प्रबंधन पद्धतियों के माध्यम से सूखाग्रस्त क्षेत्रों में सिंचाई और जल आपूर्ति में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया गया। सिंचाई अवसंरचना की मरम्मत और रखरखाव को प्राथमिकता दी गई।
  • जलयुक्त शिवार अभियान, महाराष्ट्र: जल भंडारण और संरक्षण में सुधार करके महाराष्ट्र को सूखा मुक्त बनाने का लक्ष्य। कुशल निगरानी के लिये जियो-टैगिंग जैसे अभिनव समाधानों का उपयोग किया जाता है।
  • कपिल धारा योजना, मध्य प्रदेश: MGNREGA के मध्यम से लघु किसानों को सिंचाई सहायता प्रदान करती है। निजी भूमि पर जल संचयन संरचनाओं के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करती है।
  • जल बचाओ, पैसे कमाओ योजना, पंजाब: वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करके किसानों को जल और बिजली बचाने के लिये प्रोत्साहित करती है। अपव्यय को कम करने और संसाधन दक्षता को बढ़ावा देने में मदद करती है।
  • जखनी गाँव मॉडल, बुंदेलखंड, उत्तर प्रदेश: सामुदायिक प्रयासों से जल की कमी वाले गाँव में जल की आत्मनिर्भरता आई। इसमें वर्षा जल संचयन, तालाबों का जीर्णोद्धार और संधारणीय कृषि पद्धतियाँ शामिल हैं।

प्रभावी जल प्रबंधन के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है? 

  • एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन की ओर परिवर्तन: भारत को जल को एक अंतर्संबंधित पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में प्रबंधित करके बेसिन-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।
    • प्राकृतिक जल विज्ञान चक्र को सुरक्षित रखने के लिये जलग्रहण क्षेत्रों के पुनर्भरण, नदी पुनर्वनीकरण और जलग्रहण क्षेत्र संरक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
      • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये भुगतान (PES) मॉडल ग्रामीण समुदायों को जल संग्रहण क्षेत्रों के संरक्षण के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
    • बाँध संचालन में पारिस्थितिकीय प्रवाह मानदंड अनिवार्य होने चाहिये। जल प्रबंधन में जैवविविधता, मृदा स्वास्थ्य और जलवायु अनुकूलन उद्देश्यों को आंतरिक रूप से शामिल किया जाना चाहिये।
  • भागीदारीपूर्ण जल नीति को संस्थागत बनाना: जल नीति को शीर्ष-स्तरीय प्रशासनिक नियंत्रण से हटाकर पंचायतों और जल उपयोगकर्त्ता संघों (WUA) को सशक्त बनाना आवश्यक है।
    • निर्णय लेने का विकेंन्द्रीकरण संदर्भ-विशिष्ट संरक्षण प्रथाओं और न्यायसंगत जल वितरण को सुनिश्चित करता है।
    • स्थानीय संस्थाओं के लिये क्षमता निर्माण और जवाबदेही कार्यढाँचे को मज़बूत किया जाना चाहिये।
    • समुदाय-नेतृत्व वाले जलग्रहण विकास को शासन मॉडल के रूप में मुख्यधारा में लाया जाना चाहिये।
  • जल-स्मार्ट कृषि के लिये कृषि नीतियों को पुनः उन्मुख करना: फसल विविधीकरण नीतियों में स्थानीय कृषि-पारिस्थितिक स्थितियों के अनुकूल कम जल-उपयोग वाली फसलों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कैलोरी उत्पादन के बजाय जल उत्पादकता से जोड़ने से प्रोत्साहन में बदलाव आएगा।
      • ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसी सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियाँ अपवाद नहीं, बल्कि आदर्श बननी चाहिये।
    • कृषि-वानिकी, वर्षा आधारित कृषि प्रणालियों और परिशुद्ध कृषि को लक्षित विस्तार की आवश्यकता है।
  • प्रभावी जल मूल्य निर्धारण: भारत को जल की बर्बादी को रोकने के लिये जल मूल्य निर्धारण को युक्तिसंगत बनाना होगा, साथ ही गरीब और ग्रामीण समुदायों के लिये किफायती उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी।
    • उद्योगों और बड़े किसानों के लिये जल का वॉल्यूमेट्रिक मूल्य निर्धारण लागू करने से संरक्षण के लिये सुदृढ़ प्रोत्साहन उत्पन्न हो सकते हैं।
      • शहरी जल शुल्कों को उपयोग स्लैब के आधार पर उत्तरोत्तर रूप से डिज़ाइन किया जा सकता है।
    • भूजल और सतही जल के तनाव स्तरों के अनुरूप पारदर्शी टैरिफ-निर्धारण तंत्र महत्त्वपूर्ण है।
  • शहरी जल-संवेदनशील योजना और बुनियादी अवसंरचना का पुनरुद्धार: शहर के मास्टर प्लान में जल-संवेदनशील डिज़ाइन सिद्धांतों (ब्लू ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर) को एकीकृत करना आवश्यक है, जिससे पुनर्भरण क्षेत्रों, आर्द्रभूमि और जल निकासी प्रणालियों की सुरक्षा हो सके।
    • तूफानी जल संचयन, जलभृत पुनर्भरण, तथा विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल पुनः उपयोग को शहरी विकास में शामिल किया जाना चाहिये।
    • स्मार्ट मीटरिंग, रिसाव का पता लगाने और जल पुनर्चक्रण संबंधी बुनियादी अवसंरचना को तत्काल बढ़ाने की आवश्यकता है।
      • शहरों को चक्रीय शहरी जल अर्थव्यवस्था हासिल करने के लिये बाध्य किया जाना चाहिये।
    • इसके अलावा, स्तरीकृत आयतन आधारित जल मूल्य निर्धारण की भी आवश्यकता है, जिसे पुनर्नवीनीकृत या गैर-पेयजल (सफाई और बागवानी जैसे कार्यों के लिये प्रयुक्त) के लिये कम कीमत तथा पीने योग्य जल के लिये अधिक कीमत वसूल कर लागू किया जा सकता है।
      • यह दृष्टिकोण गैर-आवश्यक उद्देश्यों के लिये उपचारित अपशिष्ट जल के उपयोग को प्रोत्साहित करता है, जिससे महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं के लिये स्वच्छ जल की बचत होती है।
  • भूजल जलभृत मानचित्रण और विनियमन: किसी भी निष्कर्षण की अनुमति से पहले जलभृतों का व्यापक मानचित्रण और क्षेत्रीकरण किया जाना चाहिये।
    • भूजल प्रबंधन को ‘निजी कल्याण’ की मानसिकता से बदलकर विनियमित सामुदायिक संसाधन प्रबंधन की ओर स्थानांतरित करना होगा।
    • जलभृत-आधारित सामूहिक प्रबंधन मॉडल के लिये कानूनी कार्यढाँचे की आवश्यकता है।
      • प्रौद्योगिकी-संचालित भूजल निगरानी नेटवर्क का देश भर में विस्तार किया जाना चाहिये।
  • नदियों, झीलों और जलभृतों पर सख्त प्रदूषण नियंत्रण लागू करना: जल निकायों को अपशिष्ट निर्वहन मानकों और शून्य तरल निर्वहन आदेशों के सख्त प्रवर्तन के माध्यम से संरक्षित किया जाना चाहिये।
    • उद्योगों, नगर पालिकाओं और कृषि अपवाहों पर प्रदूषणकर्त्ता-भुगतान सिद्धांत और दंड को सख्ती से लागू किया जाना चाहिये।
    • नदी में मुक्त किये जाने से पहले सीवेज उपचार संयंत्रों को तृतीयक स्तर तक उन्नत किया जाना चाहिये।
      • शहरी झीलों और आर्द्रभूमियों का पुनरुद्धार (जैसे गुड़गाँव में वज़ीराबाद झील का पुनरुद्धार) स्थानीय निकायों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाया जाना चाहिये।
  • शिक्षा, व्यवहार परिवर्तन और सांस्कृतिक पुनरुत्थान में जल संरक्षण को बढ़ावा देना: जल साक्षरता अभियान को पूरे भारत में स्कूल पाठ्यक्रम और वयस्क शिक्षा कार्यक्रमों का हिस्सा बनना चाहिये।
    • पारंपरिक जल संचयन प्रणालियों को पुनर्जीवित करने और सांस्कृतिक रूप से अंतर्निहित संरक्षण नैतिकता से स्थानीय प्रबंधन को बढ़ावा मिल सकता है।
    • नागरिक समाज की भागीदारी के माध्यम से "जल एक पवित्र संसाधन है" के बारे में जन आंदोलन चलाए जाने चाहिये।

निष्कर्ष:

जलवायु परिवर्तन, भूजल की कमी और असंवहनीय प्रथाओं के कारण भारत में बढ़ते जल संकट के लिये तत्काल, बहुआयामी समाधान की आवश्यकता है। संकट को कम करने के लिये, देश को एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन, विकेंद्रीकृत शासन और जल-स्मार्ट कृषि का अंगीकरण करना चाहिये। SDG6 (स्वच्छ जल और साफ-सफाई) को प्राप्त करने की दिशा में जल दक्षता, संरक्षण और समान वितरण को बढ़ाने के लिये केवल सरकार या कोई एक संस्था काफी नहीं है, बल्कि सभी क्षेत्रों— जैसे सरकार, उद्योग, कृषि, समुदाय और नागरिकों को मिलकर सामूहिक रूप से काम करना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. "भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण आपेक्षिक जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। इसमें योगदान देने वाले प्रमुख कारकों पर चर्चा कीजिये तथा इस संकट से निपटने के लिये एक व्यापक रणनीति भी प्रस्तावित कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर अपने उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बाँधों की शृंखला का निर्माण किया गया था और संबद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता था? (2021)

(a) धौलावीरा 
(b) कालीबंगा
(c) राखीगढ़ी 
(d) रोपड़

उत्तर:(a)


प्रश्न 2. ‘वाटरक्रेडिट’ के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये- (2021)

  1. यह जल एवं स्वच्छता क्षेत्र में कार्य के लिये सूक्ष्म वित्त साधनों (माइक्रोफाइनेंस टूल्स) को लागू करता है। 
  2. यह एक वैश्विक पहल है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक के तत्त्वावधान में प्रारंभ किया गया है।
  3. इसका उद्देश्य निर्धन व्यक्तियों को सहायिकी के बिना अपनी जल-संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये समर्थ बनाना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सेे सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर:(c)


मेन्स 

प्रश्न 1. जल संरक्षण एवं जल सुरक्षा हेतु भारत सरकार द्वारा प्रवर्तित जल शक्ति अभियान की प्रमुख विशेषताएँ क्या है? (2020)

प्रश्न 2. रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिये जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों को सुझाइये। (2020)