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  • 24 Feb 2017
  • 10 min read

22 फरवरी को इसरो (Indian Space Research Organisation - ISRO) ने इतिहास रचते हुए अपने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (Polar Satellite Launch Vehicle - PSLV) से 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित कर वर्ष 2017 के लिये अपनी प्रक्षेपण गतिविधियों का मार्ग खोल दिया| 

  • इसरो द्वारा इस वर्ष मार्च में भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle- GSLV) से ‘दक्षिण एशिया के लिये उपग्रह’ (Satellite for South Asia) भेजने का प्रयास किया जाएगा|
  • ध्यातव्य है कि यह वही उपग्रह है जिसे बनाने का निर्देश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा तीन वर्ष पूर्व इसरो को दिया गया था| जीसैट-9 (GSAT-9) पड़ोसी देशों (हालाँकि पाकिस्तान ने इसे अपनाने से इनकार कर दिया है) को विभिन्न संचार और प्रसारण सेवाएँ उपलब्ध कराएगा|
  • गौरतलब है कि यह देश के अत्यधिक शक्तिशाली प्रक्षेपण यान जीएसएलवी मार्क-3 के द्वारा पहली विकासात्मक उड़ान होगी, जिसके इसी वर्ष अप्रैल के अंत में पूरा होने की संभावना व्यक्त की गई है|
  • यह एक बड़ा प्रक्षेपास्त्र है जिसका भार इसके पूर्व के जीएसएलवी से डेढ़ गुना अधिक है| इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इसकी क्षमता पहले की तुलना में दो गुना अधिक है, जिसके कारण यह उन संचार उपग्रहों को ले जाने में भी सक्षम होगा जो बहुत अधिक भारी होते हैं|
  • विदित हो कि हाल ही में 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की उपलब्धि हासिल करने के ठीक दो दिन पश्चात् एक अन्य अभूतपूर्व घटना घटित हुई| दरअसल, तमिलनाडु के महेंद्रगिरी में स्थित इसरो के नोदन कॉम्पलेक्स (Propulsion Complex) से मार्क-3 के क्रायोजेनिक चरण (Mark-III’s Cryogenic Stage) के लिये अंतिम स्तरीय परीक्षण को सफलतापूर्वक पूर्ण किया गया|

क्रायोजेनिक तकनीक

  • उल्लेखनीय है कि किसी क्रायोजेनिक इंजन (Cryogenic engine - CE) का संचालन उच्च कुशलता युक्त प्रणोदक के संयोजन, द्रव हाइड्रोजन और द्रव ऑक्सीजन के परिणामस्वरूप होता है| यह और बात है कि इन तत्त्वों का अत्यधिक  कम तापमान (मुख्यतः द्रव हाइड्रोजन का) उस समय अत्यधिक कठिनाई उत्पन्न करता है जब इन्हें प्रक्षेपास्त्रों में उपयोग किया जाता है|
  • वस्तुतः क्रायोजेनिक चरण किसी इंजन को वैसे ही व्यवस्थित रखने का कार्य करता है जैसे कि प्रणोदकों और सभी पाइपों के लिये कुचालक टैंक, वाल्व और अन्य तत्त्वों को इंजन में होने वाले प्रवाह को नियंत्रित करने के लिये आवश्यकता होती है|   

पृष्ठभूमि

  • हालाँकि इस प्रौद्योगिकी को समझना आसान नहीं है| तथापि इस लेख में इसका संक्षिप्त परन्तु व्याख्यायित वर्णन करने का प्रयास किया गया है|
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 1991 में, भारत सरकार द्वारा क्रायोजेनिक इंजन तथा क्रायोजेनिक चरण के विकास हेतु प्रौद्योगिकी को प्राप्त करने के लिये रूस के साथ एक समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किये गए थे|
  • परन्तु, अमेरिका के दबाव के चलते दो वर्ष बाद ही रूसियों ने इस समझौते को तोड़ दिया| जिसके उपरांत इसरो द्वारा स्वयं ही इस क्षमता को विकसित करने का प्रयास किया गया|
  • हालाँकि, रूस द्वारा भारत को सात प्रक्षेपण करने योग्य क्रायोजेनिक चरणों की आपूर्ति भी की गई, जिनमें से छह को जीएसएलवी प्रक्षेपास्त्रों के ऊपरी चरण के द्वारा संचालित किया गया था|
  • यहाँ यह स्पष्ट कर देना अत्यंत आवश्यक है कि इसरो को रुसी इंजनों के समान स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन और अन्य क्रायोजेनिक चरणों को बनाने में पूरे 20 वर्ष का समय लगा|
  • विदित हो कि एक स्वदेशी क्रायोजेनिक ऊपरी चरण (Cryogenic Upper Stage- CUS) से लैस जीएसएलवी ने अभी तीन वर्ष पूर्व ही एक उड़ान भरी थी| इस प्रकार भारत क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी को प्राप्त करने वाला विश्व का छठा राष्ट्र बन गया है|
  • ध्यातव्य है कि  जीएसएलवी मार्क-3 के CE-20 क्रायोजेनिक इंजन और C25 क्रायोजेनिक चरण पूरी तरह से भारतीय बनावट पर आधारित हैं जो कि CUS (Cryogenic Upper Stage-CUS) की तुलना में काफी साधारण हैं| हालाँकि ये प्रणोदक उपभोग के सम्बन्ध में थोड़े कम कुशल हैं|
  • इसके अतिरिक्त जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट होता है CE-20 क्रायोजेनिक इंजन के द्वारा 20 टन बल को उत्पन्न किया जा सकता है जो कि CUS इंजन की तुलना में ढाई गुना अधिक शक्तिशाली है| 
  • इसरो के अनुसार, इसे विश्व में ऊपरी चरण के सर्वाधिक शक्तिशाली क्रायोजेनिक इंजनों (Upper stage Cryogenic Engines) की श्रेणी में शामिल किया गया है|
  • CUS इंजन और इसकी विनिर्माण प्रक्रिया के कुछ तत्त्वों को मार्क-3 के CE-20 इंजन में शामिल किया गया है| 
  • गौरतलब है कि अभी हाल ही में 17 फरवरी को मार्क-3 के C25 चरण का सफल परीक्षण किया गया| सभी स्तरों पर परीक्षण के सफलतापूर्वक पूर्ण होने का तात्पर्य यह है कि CE-20 और CE-25 इंजन अब उड़ान भरने के लिये पूरी तरह से तैयार हैं|
  • यह एक महत्त्वपूर्ण घटना थी जिसने भविष्य में क्रायोजेनिक तकनीक में भारत के महत्त्व को रेखांकित करने का कार्य किया है|
  • ध्यात्वय है कि मार्क-3 की पहली विकासात्मक उड़ान के लिये क्रायोजेनिक चरण को संगठित किया गया था|
  • अगले माह मार्च 2017 में प्रक्षेपित किये जाने वाले मार्क-3 के मुख्य चरण को पीएसएलवी और जीएसएलवी में प्रयोग किये जाने वाले ट्विन विकास द्रव प्रणोदक (Twin Vikas liquid Propellant Engines) से शक्ति प्रदान की जा रही है| इतना ही नहीं बल्कि यह विश्व का सबसे बड़ा ठोस प्रणोदक बूस्टर भी है जिसमें 200 टन प्रणोदक का इस्तेमाल किया गया है|
  • विदित हो कि वर्ष 2014 में इसरो द्वारा एक प्रायोगिक मिशन के तहत एक कृत्रिम क्रायोजेनिक चरण का उपयोग कर जीएसएलवी मार्क-3 का परीक्षण किया गया था| इस मिशन का उद्देश्य वास्तविक उड़ान के समय प्रक्षेपास्त्र के प्रदर्शन से सम्बन्धित कुछ प्रमुख प्रश्नों का उत्तर देना था|
  • वर्तमान में जीएसएलवी लगभग 2.2 टन के संचार उपग्रह (Communication Satellite) को समायोजित करने की क्षमता रखता है| यह और बात है कि वर्ष 2002 से अभी तक इसरो द्वारा तकरीबन 11 इनसेट और जीसेट संचार उपग्रहों का प्रक्षेपण किया जा चुका है जिनकी क्षमता इस निर्धारित क्षमता से कहीं अधिक थी|
  • चूँकि इन उपग्रहों का भार 2.7 टन से 3.4 टन के मध्य था, अतः इन्हें यूरोप के एरिन प्रक्षेपास्त्रों (Europe’s Ariane rockets) के माध्यम से अंतरिक्ष में भेजा गया था|
  • तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (प्रक्षेपण यान के विकास के लिये मुख्य संस्थान) के अध्यक्ष के.सिवान के अनुसार, अपनी आगामी उड़ान में जीएसएलवी मार्क-3, 3.3 टन के संचार उपग्रह जीसेट -19 को ले जा सकने में समर्थ होगा| इस संबंध में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस प्रक्षेपास्त्र की भार क्षमता को विभिन्न तरीकों से 4.5 टन तक बढ़ाया जा सकता है|
  • वर्तमान में इसरो 200 टन भार के अर्द्ध क्रायोजेनिक इंजन (Semi-Cryogenic Engine) पर कार्य कर रहा है| इस इंजन को द्रव ऑक्सीजन और केरोसिन के माध्यम से संचालित किया जाता है| इस इंजन के विषय में विशेष बात यह है कि ऐसे इंजन का एक मुख्य चरण मार्क-3 की क्षमता में 6 टन तक की बढ़ोतरी करने की क्षमता रखता है|
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