रायसीना हिल्स वार्ता | 22 Feb 2017

आर्थिक सर्वेक्षण और केन्द्रीय बजट जैसी नीतियों के संबंध में व्यस्त संसद के शीतकालीन सत्र में अर्थव्यवस्था से सबंधित सभी पक्षों पर विस्तार में विचार-विमर्श किया गया| परन्तु सबसे अधिक ध्यान अवसंरचना क्षेत्र (Infrastructure Sector) पर ही केन्द्रित किया गया| वस्तुतः इस चर्चा का उद्देश्य निजी निवेशों के जीर्णोद्धार के लिये सतही स्थितियों को पुनः स्थापित करना तथा नई स्थितियों को निर्मित करना था|

प्रमुख बिंदु

  • स्पष्टतः मोदी सरकार के सत्ता में आते ही, वर्ष 2014 के ग्रीष्मकालीन सत्र में अवसंरचना क्षेत्र में निवेशों को प्रोत्साहित करने पर ज़ोर दिया गया था| इसके लिये आवश्यक  सार्वजानिक व्यय को भी पहले की अपेक्षा और अधिक बेहतर ढंग से व्यवस्थित करने की दिशा में कार्यवाही करने तथा और बेहतर बनाने पर विशेष बल दिया गया|
  • वित्त मंत्रालय द्वारा अपनी क्षमता के अनुसार सटीक कार्य किया जा रहा है| ध्यातव्य है कि अवसंरचना क्षेत्र में प्रगति करने के लिये केंद्र सरकार ने बजटीय क्षमता के तकरीबन 18.5% धन (21.47 लाख करोड़ में से 3.96 लाख करोड़) का आवंटन मात्र इस क्षेत्र के लिये किया है|
  • ध्यातव्य है कि 12वीं पंचवर्षीय योजना (अप्रैल 2012-मार्च 2017) के अंतिम वर्ष में तक़रीबन 12 लाख करोड़ रुपए के कुल अवसंरचना आवंटन की आवश्यकता का अनुमान व्यक्त किया गया था|
  • यही कारण है कि इस सन्दर्भ में यह आशा व्यक्त की जा रही है कि 13वीं पंचवर्षीय योजना में वार्षिक अवसंरचना हेतु 15 लाख करोड़ रुपए से अधिक की आवश्यकता नहीं होगी|
  • इसी क्रम में वर्ष 2017-18 के केन्द्रीय बजट में अवसंरचना क्षेत्र पर कुल 3.96 लाख करोड़ रुपए के निवेश का लक्ष्य रखा गया है|
  • यदि ऐसा माना जाए कि यह आवंटन राशि देश के सभी राज्यों, मंत्रालयों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और विभागों के लिये उपलब्ध बजटीय स्रोतों से सौ प्रतिशत मिलान करती है तो संभव है कि यह सार्वजनिक कोष की क्षमता को लगभग 8 लाख करोड़ रुपए तक बढ़ाने में सक्षम होगी|
  • हालाँकि, इसके बावजूद भी यह वर्तमान की आवश्यकता का मात्र आधा भाग ही होगा| स्पष्ट है कि शेष 7 लाख करोड़ रुपए प्रति वर्ष की धनराशि की पूर्ति निजी पूंजी के रूप में की जाएगी|

चुनौतियाँ तथा समाधान 

  • दुर्भाग्यवश, वर्तमान परिदृश्य इस प्रकार के किसी भी निजी निवेश को आकर्षित करने के अनुकूल साबित होता नहीं दिखाई पड़ता है|
  • विदित हो कि आर्थिक सर्वेक्षण के अंतर्गत भी इस बात का खुलासा किया गया है कि इस सन्दर्भ में राजनीतिक गतिशीलता (जो कि निजी क्षेत्र को आकर्षित करने की दिशा में सबसे बड़ी बाधा है) मुख्य चुनौतियों में से एक है|
  • उक्त सन्दर्भ में यहाँ ऐसे नौ सुझाव दिये गए हैं जिनके क्रियान्वयन से निजी क्षेत्र को पुनः इस दिशा में आकर्षित करने हेतु आवश्यक सहायता प्राप्त होने की प्रबल संभावना है|

(i). जुड़वाँ बैलेंस शीट की समस्या का समाधान (The twin balance sheet problem)

  • गौरतलब है कि आर्थिक सर्वेक्षण में जुड़वाँ बैलेंस शीट की समस्या की ओर विशेष ध्यान दिया गया है| 
  • जुड़वाँ बैलेंस शीट की समस्या का अर्थ है, बैंकों की गैर-निष्पादनकारी परिसम्पत्तियों (Non-Performing assets - NPAs) तथा निजी क्षेत्रों की ऋणग्रस्त बैलेंस शीट से जुड़ी समस्याएँ|
  • इस समस्या का समाधान करने के लिये आर्थिक सर्वेक्षण के अंतर्गत ‘पारा’ (Public Sector Asset Rehabilitation Agency- PARA) नामक एक नई एजेंसी को क्रियान्वित करने का समाधान सुझाया गया है|

(ii). सार्वजनिक परिसम्पतियों का पुनर्चक्रीकरण (Public assets recycling)

  • वस्तुतः भारत में अवसंरचना प्रोजेक्टों के क्रियान्वयन हेतु विदेशी संस्थागत निवेशकों (foreign institutional investors) के द्वारा किये जाने वाले निवेशों की ओर एक आशापूर्ण दृष्टि रखी जाती है|
  • हालाँकि वे ऐसे ब्राउनफील्ड (Brownfield) प्रोजेक्टों के संचालन के लिये धन का निवेश करते हैं जो कि संदिग्ध नए ग्रीनफ़ील्ड (Greenfield) प्रोजेक्टों से अलग होते हैं|
  • इसके लिये आवश्यक है कि कर और अन्य मानकों के माध्यम से राज्यों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को संपत्ति विक्रय जैसे नए प्रोजेक्टों में धन का पुनर्चक्रीकरण करने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिये| 

(iii). संशोधित भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Modifying the Prevention of Corruption Act)

  • कभी कभी अनुभवी नौकरशाहों (यहाँ तक कि सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंककर्मियों) द्वारा भी प्रासंगिक व्यावसायिक निर्णय नहीं लिये जाते हैं|
  • वस्तुतः इसका प्रमुख कारण यह होता है कि ये प्रभावशाली व्यक्ति स्वयं के निर्णयों के संबंध में जाँच एजेंसियों द्वारा उठाए जाने वाले प्रश्नचिन्हों तथा उसके कारण करियर एवं सेवानिवृत्ति पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर भयभीत रहते हैं|
  • अत: इसके लिये आवश्यक है कि भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम,1988 (Prevention of Corruption Act) को संशोधित किया जाना चाहिये| 

(iv). विवाद समाधान (Dispute resolution)

  • जनता के अनुबंध (विवादों के समाधान)विधेयक, 2015 [Public Contracts (Resolution of Disputes) Bill] के अनुसार, सरकारी अनुबंधों से उपजे विवादों का समाधान करने के लिये एक सशक्त न्यायाधिकरण को स्थापित किया गया है| 
  • ध्यातव्य है कि इस संबंध में विशेष राहत अधिनियम (Specific Relief Act),1983 में किये गए संशोधनों की जाँच करने के लिये गठित एक विशेषज्ञ समिति द्वारा 20 जून 2016 को अपनी रिपोर्ट भी प्रस्तुत की गईं है|
  • यही कारण है कि वित्त मंत्री के बजटीय भाषणों में भी इस पहल को आगे बढ़ाने की दिशा में सकरात्मक संकेत दिये गए है|

(v). मध्यस्थता पुरुस्कारों में अवरोधित राशि का वर्णन (Release of locked amounts in arbitration awards)

  • ध्यातव्य है कि अगस्त 2016 में, वित्त मंत्रालय द्वारा निजी क्षेत्रों के पक्ष में निर्णय करते हुए तकरीबन 75 फीसदी कोषों को मध्यस्थता पुरुस्कारों (Arbitration Awards) के रूप में मुक्त करने की अनुमति प्रदान की गई |
  • हालाँकि इस संदर्भ में इस बात पर भी गौर करने की आवश्यकता है कि इस प्रक्रिया को नौकरशाही प्रक्रियाओं (जिसमे बैंक गारंटी की कष्टदायक स्थिति भी शामिल है) द्वारा पंगु बनाने का प्रयास किया जा रहा है, अत: इस दिशा में विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है|

(vi). राष्ट्रीय निवेश एवं अवसंरचना कोष (National Investment and Infrastructure Fund - NIIF)

  • राष्ट्रीय निवेश एवं अवसंरचना कोष निजी धन को बढ़ावा देने की दिशा में एक नया कदम है|
  • पहले की भाँति अवसंरचना क्षेत्र में निजी पूंजी के प्रवाह को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2017-18 में राष्ट्रीय निवेश एवं अवसंरचना कोष एक प्रेरक शक्ति साबित होगा|

(vii). स्मार्ट शहरों और नगर निगम बांड (Smart cities and municipal bonds)

  • अर्थव्यवस्था को सशक्त आधार प्रदान करने के लिये दी जानी वाली सुविधाओं को निजी पूँजी के रूप में लामबंद करके ही प्रदत्त करना चाहिये| यदि ऐसा होता है नगर निगम बांड बाज़ार को और अधिक प्रेरित करने के लिये कुछ अन्य उपायों को भी अपनाना होगा|

(viii). स्वतंत्र नियामक (Independent regulation) 

  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2015 के बजट में वित्त मंत्री द्वारा की गई एक घोषणा में नीति आयोग को नियामकीय सुधार विधेयक (Regulatory Reforms Bill) को अंतिम रूप देने को कहा गया था|
  • सार्वजनिक निजी भागीदारी को पुनर्जीवित करने में स्वतंत्र नियामक एक आवश्यक प्रणेता (precursor) के रूप में अवस्थित होता है|
  • जैसा ही ज्ञात है कि इस समय देश की  अर्थव्यवस्था के समक्ष नियमाकीय अनिश्चितता और असम्भाव्यता प्रमुख जोखिम धारणाएँ बनी हुई हैं|

निष्कर्ष

स्पष्ट है की उपरोक्त मानकों के सटीक अनुपालन से रायसीना हिल द्वारा अवसंरचना क्षेत्र के संबंध में आवश्यक महत्त्वपूर्ण निणर्य, जैसे कि भारतीय अवसंरचना क्षेत्र में निजी निवेश को पुनर्जीवित करना इत्यादि जैसे निर्णय लिये जा सकते हैं|