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मात्रात्मक डेटा के आधार पर आरक्षण

  • 12 Nov 2021
  • 10 min read

यह एडिटोरियल 09/11/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “No quota without quantifiable data” लेख पर आधारित है। इसमें आरक्षण के कार्यान्वयन से संबद्ध मुद्दों और मौजूदा आँकड़े की कमी की समस्या के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

मद्रास उच्च न्यायालय के हालिया निर्णय, जिसके तहत अत्यंत पिछड़े वर्गों (Most Backward Classes- MBC) और विमुक्त समुदायों (Denotified Communities- DNC) के लिये समग्र रूप से 20% आरक्षण में से वन्नियाकुला क्षत्रियों को दिये गए 10.5% विशेष आरक्षण को रद्द कर दिया गया था, के कारण एक बार फिर शिक्षा और रोज़गार में आरक्षण के लिये मात्रात्मक आँकड़ों की उपलब्धता के महत्त्व पर प्रकाश पड़ा है।

वर्ष 2020 में तमिलनाडु सरकार ने विशेष कोटा कानून पारित किया था, जिसे मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई थी और उच्च न्यायालय ने इसे असंवैधानिक करार दिया था।

तमिलनाडु के महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) ने सरकार का पक्ष रखते हुए इस बात पर विशेष बल दिया था कि इस कानून को द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा प्रदत्त MBCs और DNCs के पर्याप्त सत्यापित जनसंख्या आँकड़े के आधार पर अधिनियमित किया गया है, लेकिन न्यायालय ने माना कि कानून लाने के लिये राज्य सरकार के पास बेहद कम मात्रात्मक आँकड़े मौजूद थे।  

इस संदर्भ में आरक्षण की बारीकियों और मौजूदा आँकड़ों की कमी पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

आरक्षण की आवश्यकता

  • देश में पिछड़ी जातियों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने हेतु।  
  • पिछड़े वर्गों के लिये प्रगति का समान अवसर प्रदान करने हेतु, क्योंकि वे उन समूहों के साथ सामान्य रूप से प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर सकते जिनकी सदियों से संसाधनों और साधनों तक सामान्य पहुँच रही है।  
  • राज्य के अधीन सेवाओं में पिछड़े वर्गों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व की सुनिश्चितता के लिये।  
  • पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिये। 
  • समानता को योग्यता तंत्र (Meritocracy) का आधार बनाने के लिये; अर्थात योग्यता के आधार पर अवसरों के निर्धारण से पहले सभी व्यक्तियों को एकसमान स्तर पर लाया जाना आवश्यक है।  

आरक्षण के लाभ

  • यह उच्च शिक्षा में विविधता सुनिश्चित करता है, कार्यस्थल पर समानता लाता है और पिछड़े वर्गों की घृणा या द्वेष से सुरक्षा प्रदान करता है।  
  • यह वंचित व्यक्तियों के उद्धार में मदद करता है और इस प्रकार समानता को बढ़ावा देता है।  
  • यह जाति, धर्म और जातीयता के संबंध में विद्यमान रूढ़ियों को समाप्त करता है।
  • यह सामाजिक गतिशीलता की वृद्धि करता है।
  • सदियों के उत्पीड़न एवं भेदभाव की भरपाई करने और समान अवसर प्रदान करने हेतु यह काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • यह 'वर्गीकृत असमानताओं' को संबोधित कर समाज में समानता लाने का प्रयास करता है।

आरक्षण के दोष

  • ऐसी चिंताएँ प्रकट की जाती हैं कि आरक्षण योग्यता के क्षरण की ओर ले जाता है। 
  • कई जानकार मानते हैं कि आरक्षण व्यवस्था रूढ़ियों को सुदृढ़ बनाता है, क्योंकि आरक्षण के माध्यम से प्राप्त वंचित वर्गों की उपलब्धियों को नीची नज़रों से देखा जाता है।
    • आरक्षण के दायरे में आने वाले लोगों की सफलता को उनकी योग्यता और श्रम के बजाय आरक्षण का परिणाम बताया जाता है।  
  • ऐसी चिंताएँ भी प्रकट की जाती हैं कि आरक्षण ‘प्रतिलोम विभेदन’ (Reverse Discrimination) के एक माध्यम के रूप में कार्य कर सकता है।
    • ‘प्रतिलोम विभेदन’ किसी अल्पसंख्यक या ऐतिहासिक रूप से वंचित समूह के सदस्यों के पक्ष में प्रभुत्वशाली या बहुसंख्यक समूह के सदस्यों के साथ भेदभाव का दृष्टिकोण है। 
  • गुज़रते समय के साथ भेदभावजनक विषयों में कमी आने के बावजूद, वोट बैंक की राजनीति के कारण आरक्षण व्यवस्था को समाप्त करना कठिन है।  

संबद्ध मुद्दे

  • विस्तृत अध्ययन का अभाव: यह एक तथ्य है कि तमिलनाडु के द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग (जिसे इसके अध्यक्ष जे.ए. अंबाशंकर के नाम से भी जाना जाता है) द्वारा इसके कार्यकाल (1982-1985) में किये गए अध्ययन के बाद से शिक्षा और रोज़गार के विषय में विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधित्व के संबंध में मात्रात्मक आँकड़े के संग्रह के लिये कोई भी विस्तृत अध्ययन नहीं किया गया है। 
  • आंतरिक आरक्षण: आंतरिक आरक्षण की आवश्यकता एक से अधिक कारणों से महसूस की गई है। यह पाया गया है कि समुदायों के कुछ वर्ग अन्य की तुलना में अधिक पिछड़े हुए हैं। 
    • आरक्षण में ‘क्रीमीलेयर’ की अवधारणा लागू न होने से स्थिति और भी विकट हो गई है।

आगे की राह

  • वर्ष 1992 के निर्णय की समीक्षा करना: सर्वोच्च न्यायालय को एक कदम आगे बढ़ते हुए इंदिरा साहनी मामले की पुनर्समीक्षा करनी चाहिये ताकि उच्च न्यायालयों द्वारा दिये गए विभिन्न निर्णयों के कारण उत्पन्न हुई समस्याओं को संबोधित किया जा सके।
    • आरक्षण व्यवस्था का उद्देश्य जाति आधारित जनगणना में हाशिये पर स्थित समूहों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाना होना चाहिये।
  • संघीय ढाँचे को बनाए रखना: आरक्षण के मुद्दे पर विचार करते समय यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि विभिन्न समुदायों को आरक्षण प्रदान करने में राज्य सरकार संघीय ढाँचे को अक्षुण्ण बनाए रख रहे हैं या उसे नष्ट कर रहे हैं।
    • संविधान के अनुच्छेद 341 और अनुच्छेद 342 के तहत, किसी समुदाय विशेष को अनुसूचित जाति (SC) या अनुसूचित जनजाति (ST) घोषित करना संसद में निहित शक्ति है। 
  • आरक्षण और योग्यता के बीच संतुलन रखना: समुदायों को आरक्षण देते समय प्रशासन की दक्षता को ध्यान में रखना भी आवश्यक है। 
    • सीमा से अधिक आरक्षण योग्यता की अनदेखी करेगा, जो फिर समग्र प्रशासन को कमज़ोर कर सकता है।
    • आरक्षण का एकमात्र उद्देश्य वंचित समुदायों के साथ किये गए ऐतिहासिक अन्याय के मुद्दे को संबोधित करना है, लेकिन एक निश्चित बिंदु से परे योग्यता की भी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिये।
  • पिछड़ों को न्याय, अगड़ों के लिये समानता और समग्र व्यवस्था के लिये दक्षता के बीच संतुलन के लिये एक मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति अनिवार्य है।

निष्कर्ष

आरक्षण समाज के सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लाभ के लिये उपयुक्त सकारात्मक भेदभाव करता है। आरक्षण यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि समाज के सबसे पिछड़े सदस्यों को इसका लाभ मिले।  

अभ्यास प्रश्न: आरक्षण समाज के सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लाभ के लिये उपयुक्त सकारात्मक भेदभाव करता है। इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।

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