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सामाजिक न्याय

प्रशिक्षित एवं कुशल शिक्षकों की कमी से प्रभावित हो रही शिक्षा की गुणवत्ता

  • 23 Feb 2019
  • 14 min read

संदर्भ

देश के शिक्षा क्षेत्र में देखी जाने वाली अनेक खामियों में से एक है बच्चों में कम सीखने (Low-learning) की स्थिति का लगातार बना रहना...यानी पढ़ने के बाद भी बच्चों के सीख पाने पर प्रश्नचिन्ह। Pratham की वार्षिक शिक्षा रिपोर्ट (ASER) जारी होने के बाद एक बार फिर यह अहम मुद्दा चर्चा में आ गया है। रिपोर्ट में यह कहा गया है कि इस मुद्दे की ओर तुरंत ध्यान न दिया गया तो स्थिति के हाथ से निकल जाने का खतरा है।

विभिन्न शोध यह बताते हैं कि स्कूल-संबंधी गतिविधियों में विद्यार्थियों की उपलब्धियों में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका शिक्षकों की होती है। अर्थशास्त्री एरिक हानुशेक (Eric Hanushek) के अनुसार, एक कुशल तथा प्रशिक्षित शिक्षक द्वारा पढ़ाया गया बच्चा 1.5 ग्रेड-स्तर के समकक्ष प्राप्त करता है। इसके विपरीत एक अकुशल और अप्रशिक्षित शिक्षक द्वारा पढ़ाया गया बच्चा केवल आधे शैक्षणिक वर्ष के लायक ही सीख पाता है यानी सालभर में उसे जितना सीखना चाहिये था उसका आधा।
शिक्षा पर 2018 की विश्व विकास रिपोर्ट बताती है कि अध्यापक का शिक्षण कौशल और प्रेरणा दोनों मायने रखते हैं और यह व्यक्तिगत रूप से लक्षित होना चाहिये। ऐसे में शिक्षकों के माध्यम से सीखने में सुधार के लिये अध्यापकों का निरंतर प्रशिक्षण महत्त्वपूर्ण है।

मुद्दे से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ

  • दुर्भाग्यवश हमारे देश में शिक्षक, विशेषकर सरकारी स्कूल प्रणाली में काम करने वाले शिक्षकों को प्रशासन की समस्या के रूप में देखा जाता है। इसमें सारा ज़ोर अध्यापकों के कौशल और प्रेरणा को विकसित करने के बजाय उन्हें कक्षा में लाने पर केंद्रित रहता है।
  • राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) द्वारा कराए गए एक अध्ययन में पाया गया कि शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिये प्रशिक्षण डिज़ाइनिंग में शिक्षकों के फीडबैक को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता तथा साथ ही स्थानीय मुद्दों में कोई खास बदलाव नहीं किया जाता और न ही इन पर विचार करने को अहमियत दी जाती है।
  • ऐसे प्रशिक्षण का परिणाम बेहद सीमित होता है और न ही यह देखने की चेष्टा की जाती है कि क्या यह कक्षा के स्तर पर प्रभावी है भी या नहीं।
  • अंततः ऐसे कारकों की वज़ह से तरह-तरह के ऐसे प्रभाव पड़ते हैं जिनसे शिक्षकों के एक बड़े वर्ग की कार्यकुशलता प्रभावित होती है तथा उनकी आंतरिक ज़िम्मेदारियों पर भी इसका असर पड़ता है। इनमें शिक्षक जिस वातावरण में काम करते हैं, उसमें अपने कार्य के प्रति समर्पण भी शामिल है।
  • कौशल और मानसिकता में खामियों की एक लंबी श्रृंखला है। लगभग 45% शिक्षकों का यह मानना है कि वर्तमान में उन्हें जो प्रशिक्षण दिया जाता है वह अपर्याप्त है।
  • 70% शिक्षकों को विज्ञान के विभिन्न विषयों के साथ गणित और अंग्रेज़ी में सहायता या वांछित पाठ्यक्रम चाहिये।
  • इसके अलावा, व्यवहार से जुड़ी महत्त्वपूर्ण खामियाँ भी हैं। अध्ययन में शामिल किये गए लगभग आधे शिक्षक मानते हैं कि अपनी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के कारण सभी बच्चे उत्कृष्ट शैक्षिक परिणाम प्राप्त नहीं कर सकते।
  • पढ़ाने के दौरान केवल 25% शिक्षक गतिविधि-आधारित शिक्षा को शामिल करते हैं, जबकि 33% शिक्षक कहानी सुनाने या किसी प्रकार की भूमिका निभाने का दृष्टिकोण अपनाते हैं। इस प्रतिशत के इतना कम होने का प्रमुख कारण यह है कि यह उनकी प्राथमिकतओं में शामिल नहीं था या इसके लिये उनके पास समय नहीं था।
  • शिक्षकों के प्रशिक्षण का वर्तमान तरीका कठिन बिंदुओं को शामिल कर पाने लायक नहीं है और यह ‘एक ही नाप का जूता सबके पैर में फिट’ वाले दृष्टिकोण पर अमल करता है।
  • आदर्श स्थिति तो यह होगी कि शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाए और कक्षा के लिये वे अपनी स्वयं की सामग्री तैयार करें।

शिक्षकों को दिये जाने वाले प्रशिक्षण की समस्याएँ

शिक्षक और शिक्षण संस्थानों पर निगरानी रखने की समस्या: राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् एक नियामक निकाय है जो इन संस्थानों के कामकाज को नियंत्रित करता है और उन्हें वाणिज्यिक (Money Making) संस्थान बनने से रोकता है। लेकिन हमारे देश में बड़ी संख्या में शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों के बीच काफी विविधता है, इसलिये कभी-कभी सभी संस्थानों की निगरानी करना कठिन हो जाता है। अवांछनीय किस्म के कुछ प्रशिक्षण संस्थान सिर्फ पैसा कमाने का ज़रिया बन गए हैं, जो प्रमाणित किंतु अक्षम शिक्षकों की संख्या को बढ़ाने के अलावा और कुछ नहीं करते।

  • शिक्षकों की चयन प्रक्रिया में खामियाँ: शिक्षकों की उचित चयन प्रक्रिया का अभाव होने की वज़ह से अक्षम शिक्षकों का भी चयन हो जाता है।
  • मांग और आपूर्ति में नियमन का अभाव: शिक्षकों की मांग और आपूर्ति के बीच काफी बड़ा अंतराल है। राज्य शिक्षा विभाग के पास ऐसा कोई आँकड़ा नहीं होता, जिसके आधार पर वह अपने संस्थानों के लिये वांछित शिक्षकों की संख्या तय कर सके। इसकी वज़ह से बेरोज़गारी में इज़ाफा हुआ है और बेरोज़गारी छात्र असंतोष को जन्म देती है।
  • विद्यार्थियों-अध्यापकों के लिये सुविधाओं की कमी: अध्यापकों को दी जाने वाली शिक्षा या प्रशिक्षण विद्यार्थियों को दी जाने वाली शिक्षा की आधारशिला है। फिर भी इसके साथ बेहद सौतेला व्यवहार होता है। देशभर में लगभग 20% अध्यापक प्रशिक्षण संस्थान ऐसे हैं जो किराये के भवनों में चल रहे हैं और उनमें किसी भी प्रकार की प्रशिक्षण सुविधा नहीं है। जबकि माना यह जाता है कि एक अच्छे अध्यापक प्रशिक्षण संस्थान में एक प्रायोगिक स्कूल या प्रयोगशाला, पुस्तकालय और अन्य उपकरणों का होना आवश्यक है।
  • प्रोफेशनल विकास के लिये सुविधाओं का अभाव: अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिये चलाए जाने वाले अधिकांश प्रोग्राम बेहद अनियमित और अकल्पनीय तरीके से चलाए जाते हैं। अध्यापन के प्रशिक्षण की समस्याएँ ऐसे प्रोग्रामों का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। इसके लिये सभी प्रकार की व्यवस्था करने के बावजूद प्रशिक्षण के लिये आने वाले शिक्षक शिक्षण कार्य के प्रति लापरवाह, कर्त्तव्यहीन, लक्ष्यहीन, बच्चों के प्रति उदासीन, शिक्षण में नवाचार अपनाने को लेकर गंभीर नहीं हैं। ये सब प्रशिक्षण कौशल के विकास में बड़ी बाधाएँ हैं।
  • प्रशिक्षण पर निगरानी की अपर्याप्त व्यवस्था: अध्यापकों के प्रशिक्षण पर निगरानी रखने वाले संगठनों का उद्देश्य शिक्षण में विभिन्न तकनीकों और व्यावहारिक कौशल का उपयोग कर प्रशिक्षण के लिये आने वाले अध्यापकों की अनुदेशात्मक गतिविधियों में सुधार लाना है और कक्षा की परिस्थितियों का सामना करने के लिये आत्मविश्वास विकसित करने में उनकी मदद करना है। इसका एक अन्य उद्देश्य उनके पाठ्यक्रमों की योजना बनाना, पठन सामग्री को व्यवस्थित करना, उपयुक्त संकेत तैयार करना तथा अन्य संबंधित कौशल विकसित करना है। वर्तमान में पाठ्यक्रमों की सतही जाँच की जाती है और विषय के विशेषज्ञों द्वारा इन पर कोई चर्चा नहीं की जाती।
  • प्रशिक्षण के इच्छुक शिक्षकों की कमज़ोर अकादमिक पृष्ठभूमि: प्रशिक्षण के लिये आने वाले अधिकांश उम्मीदवारों के पास अध्यापन के क्षेत्र में आने के लिये अपेक्षित प्रेरणा और शैक्षणिक पृष्ठभूमि नहीं होती।
  • प्रशिक्षण की गुणवत्ता में कमी: शिक्षा की गुणवत्ता किसी शिक्षक द्वारा किये गए कार्य की गुणवत्ता से संबंध रखती है, जिसका उसके विद्यार्थियों पर अहम प्रभाव पड़ता है। लेकिन अध्यापकों के प्रशिक्षण की प्रक्रिया अपेक्षित मानकों पर खरी नहीं उतरी है और यह प्रशिक्षण विधियों, सामग्री, संगठनों से संबंधित मुद्दों को गंभीर रूप से सोचने और हल करने आदि में सक्षम नहीं है। इसके अलावा, इसमें सैद्धांतिक ज्ञान पर ज़ोर दिया जाता है और अध्यापक वास्तविक कक्षा की स्थितियों में इन सिद्धांतों का उपयोग नहीं कर पाते।
  • विषय की जानकारी का अभाव: शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम मूल विषय के ज्ञान पर ज़ोर नहीं देता, जिससे प्रशिक्षण लेने का इच्छुक अध्यापक संपूर्ण प्रशिक्षण अभ्यास के दौरान विषय के ज्ञान के संबंध में उदासीन रहता है।

क्या किया जा सकता है?

  • प्रशिक्षण के लिये अध्यापकों का चयन और स्तरीय अवसंरचना आदि की व्यवस्था के लिये शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों को नियामक संस्था NCTE के कड़े नियंत्रण में रखा जाना चाहिये।
  • अध्यापक प्रशिक्षण संस्थानों के कामकाज की समय-समय पर जाँच की जानी चाहिये और यदि वे अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुँच पाते तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिये।
  • साथ ही अध्यापक प्रशिक्षण के निजीकरण को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति पर भी अंकुश लगाना होगा। प्रशिक्षण संस्थानों के लिये संबद्धता की शर्त को सख्त बनाया जाना चाहिये।
  • प्रत्येक राज्य शिक्षा विभाग में एक नियोजन इकाई होनी चाहिये। इस इकाई का कार्य स्कूलों के विभिन्न स्तरों पर शिक्षकों की मांग और आपूर्ति को विनियमित करना होना चाहिये। इस इकाई को विभिन्न श्रेणियों में भविष्य में शिक्षकों की आवश्यकताओं को तय करने की ज़िम्मेदारी भी दी जा सकती है।
  • अध्यापकों के प्रशिक्षण कार्यक्रम की गुणवत्ता को उन्नत करना और उसे सुधारना चाहिये। इस कार्यक्रम को विश्वविद्यालय स्तर तक ले जाने का प्रयास करना चाहिये। साथ ही इस कार्यक्रम की अवधि को उचित रूप से बढ़ाया जाना चाहिये।
  • बेहतर प्रोत्साहन, मज़बूत प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से शिक्षकों की क्षमता को बढ़ाना जैसे बुनियादी मुद्दों को हल करके प्रशिक्षण और सीखने की प्रक्रिया को बेहतर बनाया जा सकता है।

आगे की राह

  • हालाँकि सरकार ने DIKSHA पोर्टल शुरू किया है, लेकिन इसमें कुछ खामियाँ हैं जिनका शीघ्र समाधान किया जाना चाहिये।
  • भारत 2021 में अंतर्राष्ट्रीय छात्र मूल्यांकन कार्यक्रम में भाग लेने जा रहा है। ऐसे में सिंगापुर से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, जो लगातार अपने शिक्षकों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने की वज़ह से इस मामले में टॉप पर रहता है।
  • भारत के लिये संदेश और सीख स्पष्ट है...अध्यापक महत्त्वपूर्ण हैं। यह महत्त्व उनकी अति पौराणिक स्थिति से नहीं, बल्कि बच्चों को को दी गई शिक्षा की गुणवत्ता को परिभाषित करने में उनकी भूमिका से तय होगा।

स्रोत: 20 फरवरी को LiveMint में 20 फरवरी को प्रकाशित Spotlight Needed on Training Teachers in India पर आधारित।

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