पीएसयू बैंक कर रहे हैं रिज़र्व बैंक की ‘त्वरित सुधारात्मक कार्यवाही’ का सामना | 31 May 2017
संदर्भ
उल्लेखनीय है के वित्तीय अनुपात के असामान्य स्तर के चलते यूको(UCO Bank) और आईडीबीआई बैंक के पश्चात् सार्वजानिक क्षेत्र के कम से कम 10 अन्य बैंक भी भारतीय रिज़र्व बैंक की ‘विनियामक गतिविधियों’ (regulatory action) अथवा त्वरित सुधारात्मक कार्यवाहियों(prompt corrective action -PCA) का सामना कर रहे हैं। विदित हो कि वर्तमान में इन बैंकों की कुल गैर-निष्पादनकारी संपत्तियां(non-performing assets -NPAs) केन्द्रीय बैंक द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक हो चुकी हैं।
प्रमुख बिंदु
- पिछले माह त्वरित सुधारात्मक कार्यवाही के ढाँचे को और अधिक जटिल बनाते हुए रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक एनपीए वाले बैंकों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने का भी निर्णय लिया गया था। त्वरित सुधारात्मक कार्यवाही के अंतर्गत शामिल कार्यवाहियों में एनपीए के विस्तार पर प्रतिबन्ध लगाना तथा जोखिम और लाभांश भुगतान शामिल हैं। कुछ गंभीर मामलों के संबंध में त्वरित सुधारात्मक कार्यवाही के अंतर्गत रिज़र्व बैंक के पास बैंकों के विलय का विकल्प भी मौजूद है।
- खराब ऋणों(bad loan) के बढ़ते अनुपात के संदर्भ में केंद्रीय बैंक का यह कहना था कि यदि किसी बैंक का कुल एनपीए अनुपात 6% से अधिक हो जाएगा तो एनपीए की पूर्व निर्धारित सीमा को समाप्त कर दिया जाएगा। 12% से अधिक खराब ऋणों के अनुपात तथा एक निर्धारित सीमा से कम कॉमन इक्विटी टियर-1(Common Equity Tier-1 -CET1) पूंजी के कारण भी बैंकों का विलय किया जा सकता है।
- उल्लेखनीय है कि इंडियन ओवर सीज बैंक और आईडीबीआई बैंक का एनपीए पहले से ही 12% से बढ़कर क्रमशः 13.99% और 13.21% हो चुका है। बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र का एनपीए भी शीघ्र ही 12% हो जाएगा। मार्च 2017 में समाप्त हुई तिमाही में बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र का कुल एनपीए 11.76%,सेंट्रल बैंक का कुल एनपीए 10.20% (जिसमें पिछले वर्ष की तुलना में 8.54% की वृद्धि हुई थी), देना बैंक का एनपीए 10.66% तथा जबकि यूनाइटेड बैंक ऑफ़ इंडिया का कुल एनपीए 10.02% था।
- रिज़र्व बैंक पहले से ही आईडीबीआई के संदर्भ में पीसीए ढाँचे का प्रयोग करने पर विचार कर रहा था क्योंकि इस बैंक के खराब ऋणों में होने वाली बढ़ोतरी के कारण इसकी संपत्तियों के नकारात्मक रिटर्न में निरंतर वृद्धि हो रही है। 31 मार्च 2017 को समाप्त हुई तिमाही में इस बैंक का कुल घाटा 5,158 करोड़ रूपये का था जबकि राजकोषीय वर्ष 2016 में यह घाटा 3,665 करोड़ रूपये ही था। पिछले राजकोषीय वर्ष की चौथी तिमाही की तुलना में बैंक के सकल एनपीए में दोगुनी वृद्धि(लगभग 21.25%) हुई है। केन्द्रीय बैंक ने इस माह के प्रारंभ में यूको बैंक के विरुद्ध भी त्वरित सुधारात्मक कर्यवाही की शुरुआत की थी।
- ध्यातव्य है कि अक्टूबर 2015 में रिज़र्व बैंक ने इंडियन ओवरसीज बैंक के विरुद्ध भी त्वरित सुधारात्मक कार्यवाही की शुरुआत की थी परन्तु इसके बावजूद भी इन बैंकों की वित्त व्यवस्था में बमुश्किल ही कोई सुधार हुआ है। यद्यपि इंडियन ओवरसीज बैंक का कुल एनपीए 12% पर स्थिर हो चुका है परन्तु मार्च की तिमाही में इस बैंक को 646.66 करोड़ रूपये का नुकसान हुआ था जोकि इसकी लगातार सातवीं नुकसानदेह तिमाही थी।
- वर्तमान में बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र का कुल एनपीए 11.76% पर पहुँच गया है जबकि पिछले वर्ष इसका कुल एनपीए 10.67% था। हालाँकि पिछले वर्ष इसी तिमाही में इस बैंक का एनपीए 6.35% था। यह पाया गया है कि मार्च माह की तिमाही में बैंक को कुल 455.45 करोड़ का नुकसान हुआ है।
- विदित हो कि पंजाब नेशनल बैंक ने अपने एनपीए अनुपात में सुधार कर इसे 9.09 % से घटाकर 7.81% कर दिया है। बैंक ऑफ़ इंडिया के कुल एनपीए(6.90%) में भी सुधार हो चुका है। वर्ष 2017 में मार्च माह की तिमाही में कारपोरेशन बैंक(8.33%) और आंध्रा बैंक(7.57%) के एनपीए में भी गिरावट दर्ज की गई है।
क्या है आरबीआई के नए मानदंड?
- आरबीआई के नए मानदंडों के अनुरूप, यदि किसी बैंक का पूंजी-जोखिम अनुपात 7.75% से कम हो जाता है तो उस पर नियामकीय कार्यवाही की जाएगी। यदि यह अनुपात 3.625% से कम हो जाता है तो बैंक का विलय अथवा उसे बंद किया जा सकता है। यदि सेट 1(CET 1) पूंजी 5.125% से कम हो जाती है और कुल एनपीए 9 से 12% के मध्य बना रहता है तो रिज़र्व बैंक लाभांश भुगतान, मुनाफे के प्रेषण और शाखा के विस्तार पर सख्त प्रतिबन्ध लगाएगा। इसके पश्चात सहायक को अधिक पूंजी लगानी होगी तथा बैंक प्रमुखों को भी बैंकों में कुछ नियम लागू करने होंगे।
- त्वरित सुधारात्मक कार्यवाही के शुरू हो जाने पर रिज़र्व बैंक किसी बैंक के बोर्ड को यह आदेश देगा कि वे बैंक में उस सुधार योजना का क्रियान्वयन करें जिसे सुपरवाइजर द्वारा स्वीकृत कर लिया गया है। उन्हें कारोबारी मॉडल के टिकाऊपन के संबंध में कारोबारी गतिविधियों से प्राप्त लाभों, मध्यावधि एवं दीर्घावधिक व्यवहार्यता और बैलेंस शीट अनुमान की भी समीक्षा करने का भी आदेश दिया जाएगा। यह बोर्ड मध्यावधिक कारोबारी योजनाओं तथा प्राप्त किये जाने वाले लक्ष्यों की समीक्षा करेगा। इसके अतिरिक्त यह उपयुक्त कार्यों का क्रियान्वयन भी करेगा।
- रिज़र्व बैंक के शासन संबंधी कार्यों में नए बोर्ड प्रबंधन की नियुक्ति के लिये सरकारों अथवा सहयोगियों के समक्ष सिफारिश करना, प्रबंधक को अपदस्थ करना और बोर्ड का अधिग्रहण करना शामिल है। इसके सुधारात्मक कार्यों में पूंजी को संरक्षित करने के लिये अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में जोखिम को कम करना और सहायक और अन्य कंपनियों में बैंकों की बढ़ती हिस्सेदारी पर प्रतिबन्ध लगाना शामिल है।
- रिज़र्व बैंक हाल ही में घोषित किये गए नए एनपीए संकल्पों के पश्चात त्वरित सुधारात्मक कार्यवाही का भी निरीक्षण करेगा। स्पष्ट है कि राज्य-स्वामित्व वाले बैंकों की कम से कम एक शाखा नए नियमों के तहत एनपीए की समस्या से जूझ रही है। नए नियमों में संघर्षरत बैंकों की समस्याओं का समाधान करने के लिये नियमाकीय कार्यों को करने की प्रबल इच्छाशक्ति जताई गई है परन्तु इनका प्रभावी क्रियान्वयन तभी होगा जब बैंकों के संपत्ति संबंधी मुद्दों और पूंजी की कमी को समाप्त करने के लिये विश्वसनीय योजनाएँ बनाई जाएंगी।
- दरअसल, इससे पूर्व पीसीए को एक असाधारण कदम के रूप में देखा गया था जिसे रिज़र्व बैंक ने नजरंदाज़ कर दिया था परन्तु अब केन्द्रीय बैंक की विचारधारा में परिवर्तन आ रहा है। पूर्व के प्रावधानों के अंतर्गत रिज़र्व बैंक की शक्तियाँ केवल बैंक से उधारी लेने तक ही सीमित थी परन्तु इस संशोधित ढाँचे के तहत अब सभी संभावित नियमाकीय कार्यों का विस्तार हो चुका है। हालाँकि, यह अभी भी अस्पष्ट है कि रिज़र्व बैंक द्वारा इस साधन के उपयोग की सीमा क्या होगी।
सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों से क्या तात्पर्य हैं?
- भारत में उन बैंकों को सार्वजानिक क्षेत्र के बैंक कहा जाता है जिनमें सरकार(केंद्र अथवा राज्य) की हिस्सेदारी 50% से अधिक होती है। इन बैंकों के शेयर, शेयर बाज़ारों(stock exchanges) में सूचीबद्ध होते हैं।
क्या है गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ?
- इन्हें अनर्जक आस्ति भी कहा जाता है। इसका तात्पर्य बैंकिंग या वित्त क्षेत्र में लिये गए ऐसे ऋण से है जिसका लौटना संदिग्ध हो।
- बैंक अपने ग्राहकों को जो ऋण प्रदान करता है उसे अपने खाते में संपत्ति के रूप में दर्शाता है। यदि किसी कारणवश बैंक को यह प्रतीत हो कि ग्राहक यह ऋण नहीं लौटा पाएगा तो ऐसे ऋणों को ही गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ अथवा अनर्जक आस्ति कहा जाता है।
- वास्तव में, यह किसी भी बैंक की साख को मापने का एक महत्वपूर्ण पैमाना है तथा इसमें वृद्धि होना बैंक के लिये चिंता का विषय बन जाता है। अतः यह आवश्यक है कि बैंक अपने एनपीए के स्तर को न्यूनतम स्तर पर बनाए रखें।