डिजिटल प्लेटफॉर्म का महत्त्व और संभावित खतरे | 03 Oct 2017

संदर्भ


कंप्यूटर और इंटरनेट पर आधारित डिजिटल क्रांति ने अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज तीनों को प्रभावित किया है। फेसबुक और गूगल जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों की अहम् आर्थिक विशेषताएँ भी हैं। दरअसल, इन तक पहुँच, पुनरुत्पादन और वितरण की मार्जिनल लागत शून्य है। नेटवर्क प्रभाव के चलते ये ज़्यादा लोगों के प्रयोग के साथ अधिक मूल्यवान होती जा रही हैं। ऐसे में डिजिटल सेवाओं के महत्त्व और संभावित खतरों तथा आगे की राह के बार में चर्चा करना दिलचस्प होगा।

डिजिटल प्लेटफॉर्मों की कमाई का ज़रिया

  • फेसबुक उपयोग करने के लिये हमसे कोई भी शुल्क नहीं लेता, न ही हम गूगल या व्हाट्सएप को उनका एप यूज़ करने के लिये कोई शुल्क देते हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि इन्हें फिर राजस्व की प्राप्ति कैसे होती है?
  • दरअसल, नि:शुल्क एप विज्ञापन दिखाकर अपने निर्माताओं के लिये धनार्जन करते हैं। उदहारण के लिये आईफोन पर फेसबुक का एप ग्राहकों के लिये नि:शुल्क है, लेकिन वर्ष 2016 की तीसरी तिमाही में फेसबुक के कुल राजस्व में विज्ञापनों की हिस्सेदारी 84 फीसदी थी।
  • जिन कंपनियों के पास इन प्लेटफॉर्मों का मालिकाना हक है वे भी समृद्ध हुई हैं। सीएनबीसी ने बाज़ार पूंजीकरण के आधार पर जिन बड़ी अमेरिकी कंपनियों का ब्योरा जारी किया, उनमें शीर्ष छह में से पाँच प्रौद्योगिकी कंपनियाँ थीं।

उल्लेखनीय राजस्व प्राप्ति के कारण

  • इन प्लेटफॉर्मों को इतनी बड़ी मात्रा में राजस्व की प्राप्ति कैसे हुई यह जानने के लिये हम दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक ई-कॉमर्स कंपनी अमेजॉन का उदाहरण लेते हैं।
  • विदित हो कि सिएटल में जेफ बेजोस ने एमेजॉन की स्थापना सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय के आधार पर की, जिसमें कहा गया था कि किसी राज्य में भौतिक मौजूदगी न होने पर किसी कंपनी को बिक्री और उपयोग कर चुकाने में छूट मिलेगी।
  • एमेजॉन के अधिकांश ग्राहक वॉशिंगटन के बाहर से आते थे इसलिये उन्होंने कोई बिक्री कर नहीं चुकाया। कंपनी को 20 अरब डॉलर की कर बचत हुई।
  • इसके बाद उन्होंने कांग्रेस में सफलतापूर्वक लॉबीइंग की और तत्कालीन राष्ट्रपति क्लिंटन से इंटरनेट टैक्स फ्रीडम अधिनियम पारित कराया, जिसके बाद सरकार इंटरनेट आधारित कर नहीं लगा सकती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि वर्ष 2015 तक स्थानीय बुक स्टोर समाप्त हो गए।
  • अब अमेजॉन कोई गूगल के जैसा ‘सर्च इंजन’ या फेसबुक की तरह लोकप्रिय सोशल साईट तो है नहीं, ऐसे में होता यह है कि अमेजॉन के जैसी ही कई बड़ी कंपनियाँ गूगल और फेसबुक पर विज्ञापन के ज़रिये अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचने की कोशिश करती हैं। इस तरह से ऑनलाइन बाज़ार और डिजिटल प्लेटफॉर्मों दोनों के ही राजस्व में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

समस्याएँ एवं चुनौतियाँ

  • दरअसल, आज फेसबुक और गूगल केवल एक डिजिटल प्लेटफॉर्म ही नहीं, बल्कि विज्ञापन एजेंसियाँ हैं जो निजी जानकारियों को बिना कोई शुल्क दिये इस्तेमाल कर रही हैं और व्यक्तिगत सूचना पर आधारित विज्ञापनों के ज़रिये कमाई कर रही हैं।
  • गूगल ने वर्ष 2015 में लक्षित विज्ञापनों की मदद से 60 अरब डॉलर कमाए। परंतु इस एकाधिकार को कभी अमेरिका के एंटी ट्रस्ट कानून के दायरे में नहीं लाया गया, क्योंकि निष्पक्ष व्यापार आयोग ने उनकी इस दलील को स्वीकार कर लिया कि तकनीक सक्षम नवाचारों से उपभोक्ताओं का फायदा होता है।
  • लेकिन, हाल ही में यूरोपीय संघ ने गूगल पर अपने सर्च इंजन के दबदबे का बेजा फायदा लेने पर 2.91 अरब रुपए का जुर्माना लगाया। इससे संकेत मिलता है कि हालात बदल रहे हैं।
  • ट्विटर और यूट्यूब समेत सोशल मीडिया के इन मंचों की सबसे बड़ी खामी यह है कि वे आतंकियों, अपराधियों, समुद्री डकैतों, घृणा फैलाने वाले समूहों आदि के ठिकाने बने हुए हैं और गलत खबरों का ज़रिया बन रहे हैं।
  • सन 2015 में आईएसआईएस के समर्थकों के ट्विटर पर 46,000 खाते थे और उन्होंने औसतन हर रोज़ 90,000 ट्वीट किये। 2013 में यूट्यूब पर आईएसआईएस के 35,000 से अधिक वीडियो थे।
  • इन प्लेटफॉर्मों ने अपने बचाव में अभिव्यक्ति की आज़ादी का सहारा लिया। यूट्यूब ने तो आईएसआईएस के वीडियो पर विज्ञापन तक लगा दिया था।

आगे की राह

  • आज ज़रूरत इस बात की है कि जो मंच समाचार पत्र की तरह या अन्य मीडिया की तरह व्यवहार करते हैं, जहाँ लोग अपने मन की बात लिख सकते हैं वहाँ गोपनीयता समाप्त की जानी चाहिये।
  • सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाले सभी लोगों की पहचान सुनिश्चित होनी चाहिये। उन पर अमेरिका, ब्रिटेन और भारत के वही सामान्य कानून लागू होने चाहिये जो घृणा फैलाने और झूठे दावों पर लगते हैं।
  • निजता सबसे अहम् है। सर्वोच्च न्यायालय ने तमाम सरकारी और तकनीकी लॉबीइंग के बावजूद इसे मूल अधिकार बताया है। व्यक्तिगत जानकारियों को सेवाप्रदाताओं से साझा करने की सरकारों और कंपनियों की कोशिश बंद होनी चाहिये।
  • व्यक्तिगत आँकड़े पूरी तरह निजी हैं। किसी व्यक्ति के कहे जाने पर उससे संबंधित जानकारी सार्वजनिक मंच से हटानी होगी।

निष्कर्ष

  • यह सच है कि डिजिटल प्लेटफॉर्मों से लोगों के जीवन में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया है, लेकिन असली बदलाव तब आएगा जब किसी शीर्ष टेक कंपनी की मदद लेकर डिजिटल अर्थव्यवस्था को कुछ इस प्रकार डिज़ाइन किया जाए कि उपयोगकर्त्ता अपने से जुड़ी जानकारी पर स्वयं नियंत्रण रख सके।
  • यहाँ हम एप्पल का उदाहरण ले सकते हैं, विदित हो कि उसने आँकड़ों को विज्ञापनदाताओं को बेचने के बजाय बेहतर उत्पाद तैयार करने में इस्तेमाल किया।
  • आज लोकतांत्रिक देशों को एक ऐसा डिजिटल अधिकार संबंधी विधेयक पारित करना होगा, जो इन चिंताओं की संज्ञान लेता हो। ऐसा करके ही डिजिटल कंपनियों और सरकारों की आक्रामकता से बचा जा सकता है।