जनसंख्या स्थिरीकरण | 17 Mar 2021
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में "भारत में जनसंख्या स्थिरीकरण”से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000 में भारत के लिये जनसंख्या स्थिरीकरण की परिकल्पना की गई है। इसके तात्कालिक उद्देश्यों में गर्भनिरोधक, स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे और कर्मियों के लिये आवश्यक ज़रूरतों को पूरा करना शामिल हैं तथा प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य देखभाल हेतु एकीकृत सेवा प्रदान करना है।
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000 ने प्रजनन क्षमता के प्रतिस्थापन स्तर (2.1 की कुल प्रजनन दर) को वर्ष 2010 तक प्राप्त करने की प्रतिबद्धता की पुष्टि की। अधिकांश दक्षिणी राज्यों ने अपनी जनसंख्या को नियंत्रित कर लिया है। हालाँकि उत्तरी और मध्य भारत में कम सामाजिक-आर्थिक विकास के कारण इन क्षेत्रों में जनसंख्या विस्फोट देखा गया है।
जनसंख्या विस्फोट भारत के पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों को प्रभावित करेगा जो अगली पीढ़ी के हक एवं प्रगति को सीमित करेगा। इसलिये सरकार को समय रहते जनसंख्या को नियंत्रित करने के उपाय अपनाने चाहिये।
जनसंख्या स्थिरीकरण की आवश्यकता
- संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग के अनुमान के अनुसार, भारत की जनसंख्या वर्ष 2030 तक 1.5 बिलियन और वर्ष 2050 में 1.64 बिलियन तक पहुँच जाएगी। इस प्रकार भारत, चीन को जनसंख्या के मामले में पीछे छोड़ते हुए विश्व का सबसे बड़ा देश बन जाएगा।
- वर्तमान में भारत के पास विश्व जनसंख्या का 16%, भू-भाग का 2.45% और जल संसाधनों का 4% हिस्सा मौजूद है।
- वैश्विक स्तर पर जनसंख्या विस्फोट को लेकर बहस जारी है क्योंकि हाल के पारिस्थितिकी तंत्र के आकलन के बाद यह पता चला है कि अन्य प्रजातियों के विलुप्त होने और प्राकृतिक संसाधनों के अतिदोहन में मानव आबादी की अहम भूमिका है।
जनसंख्या स्थिरीकरण से संबद्ध चुनौतियाँ
- शिक्षा का स्तर: महिलाओं में शिक्षा की कमी के कारण उनकी जल्दी शादी कर दी जाती है, जिससे न केवल अधिक बच्चों के पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है बल्कि यह महिला के स्वास्थ्य को भी खतरे में डालता है।
- प्रजनन क्षमता में आमतौर पर महिलाओं के शिक्षा स्तर में वृद्धि के साथ गिरावट आती है।
- सामाजिक-आर्थिक कारक: बड़े परिवार की इच्छा, विशेष रूप से पुत्र को प्राथमिकता जैसे कारक जन्म दर में वृद्धि करते हैं।
- पुत्र को वरीयता देने के प्रमुख कारणों में से एक पैतृक संपत्ति में महिलाओं के अधिकारों से संबंधित कानूनों का प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो पाना है।
- चीन पहले से ही जनसांख्यिकीय विभीषिका का सामना कर रहा है क्योंकि लगभग चार दशक लंबी उसकी एक-बच्चे की नीति के कारण बेटों को ज़्यादा तरजीह मिली।
- गर्भनिरोधक का अपर्याप्त उपयोग: यूपी, बिहार जैसे उत्तरी राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ अभी भी चार या इससे अधिक बच्चों को जन्म देती हैं। ऐसा इसलिये है क्योंकि इन राज्यों में गर्भनिरोधक के प्रयोग की दर 10% से भी कम है।
- इन राज्यों के अनेक ज़िलों में महिलाएँ आधुनिक परिवार नियोजन विधियों का उपयोग नहीं करती हैं, जबकि वे पारंपरिक गर्भनिरोधक विधियों पर ज़्यादा भरोसा करती हैं।
- संस ऑफ सॉइल अवधारणा: संस ऑफ सॉइल एक मौलिक अवधारणा है जो लोगों को उनके जन्म स्थान के साथ जोड़े रखती है और इस आधार पर उन्हें कुछ ऐसे विशेष लाभ, अधिकार, भूमिकाएँ और ज़िम्मेदारियाँ प्रदान करती है, जो दूसरों (बाह्य लोगों) को प्रदान नहीं की जा सकती हैं।
- हालाँकि दक्षिणी राज्यों में काम करने वाले उत्तरी राज्यों के लोगों के बढ़ते प्रभाव के कारण ऐसी संभावनाएँ अनिश्चित दिखाई देती हैं।
- जनसंख्या स्थिरीकरण की राजनीति: संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2002 ने लोकसभा और राज्यसभा में सीटों के आवंटन को वर्ष 2026 तक बढ़ा दिया। ऐसा न करने पर जनसंख्या स्थिरीकरण के उद्देश्य के प्रभावित होने की आशंका थी।
- हालाँकि इस लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सका क्योंकि उत्तरी राज्यों में जनसंख्या वृद्धि जारी रही।
- एक और विस्तार के अभाव में अब यह राजनीतिक रूप से अस्थिर करने वाला होगा।
आगे की राह
- महिला केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना: जनसंख्या स्थिरीकरण का आशय केवल जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने से संबंधित नहीं है, बल्कि यह लैंगिक समानता को भी दर्शाता है। संतुलित लैंगिक अनुपात, सामाजिक सामंजस्य को बनाए रखने के लिये भी आवश्यक है।
- इसलिये राज्य को महिला केंद्रित एक ऐसे दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता है, जिससे महिलाओं की विवाह की आयु में बढ़ोतरी, गर्भनिरोधक तक आसान पहुँच, श्रम शक्ति में समान भागीदारी आदि को बढ़ावा मिले।
- आधुनिक गर्भनिरोधक उपायों को अपनाना: विशेष रूप से उत्तरी राज्यों में अवांछित गर्भधारण को रोकने के लिये कार्रवाई किये जाने की आवश्यकता है। गर्भनिरोधक के पारंपरिक तरीकों पर निर्भरता को तेज़ी से विश्वसनीय और आसान विकल्पों से बदलने की ज़रूरत है।
- इस संदर्भ में भारत को अपने पड़ोसी देशों से सीख लेनी होगी। इंडोनेशिया और बांग्लादेश वर्ष 1980 के दशक के अंत से ही इंजेक्शन द्वारा गर्भ निरोधकों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
- एक बार ठीक से निष्पादित होने के बाद यह गर्भावस्था से तीन महीने तक सुरक्षा प्रदान करता है। आशा (ASHA) कार्यकर्त्ता इस संबंध में काफी मदद कर सकते हैं।
- दक्षिणी राज्यों की सफलता का अनुकरण: दक्षिणी राज्यों की प्रजनन दर में कमी उस पारंपरिक ज्ञान के विपरीत है जिसके अनुसार जनसंख्या स्थिरीकरण के लिये साक्षरता, शिक्षा और विकास आवश्यक शर्तें हैं।
- दक्षिणी राज्यों में प्रजनन दर में गिरावट का कारण यह है कि इन राज्यों की सरकारों ने लोगों से आग्रह किया कि वे केवल दो बच्चे पैदा करें और उसके तुरंत बाद नसबंदी कर दी गई।
- लगभग पूरे राज्य तंत्र को इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये व्यवस्थित किया गया था। उत्तरी राज्यों को भी इस दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता है।
- इसके अलावा राष्ट्रीय और राज्य नीतियाँ पुरुष नसबंदी पर ज़ोर देती हैं जो महिला नसबंदी की तुलना में अधिक सुरक्षित है।
निष्कर्ष
दक्षिणी और उत्तरी राज्यों के बीच जनसंख्या स्थिरीकरण का अंतर विषम रूप से बढ़ता जा रहा है। ऐसे परिदृश्य में जनसांख्यिकी ग्रहणशीलता (Eclipse), आर्थिक विकास तथा इस विकास तक युवाओं की पहुँच को प्रभावित करेगी।
इस प्रकार दीर्घकालिक नीति में स्थायी आर्थिक विकास, सामाजिक विकास और पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकताओं के अनुरूप एक स्थिर जनसंख्या की आवश्यकता होती है।
अभ्यास प्रश्न: जनसंख्या विस्फोट जनसांख्यिकी ग्रहणशीलता को बढ़ावा देगा, जिससे आर्थिक विकास अवरुद्ध होगा। चर्चा कीजिये।