कृषि
PM-KISAN Scheme: किसानों की कितनी मददगार होगी यह योजना?
- 11 Feb 2019
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संदर्भ
1 फरवरी को पेश किये गए केंद्रीय अंतरिम बजट में देश के किसानों को आर्थिक मदद देने के लिये प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM-KISAN Scheme) की शुरुआत की गई है। इस योजना के तहत कुछ निर्धारित शर्तें पूरा करने वाले किसानों को 1 दिसंबर, 2018 से सालाना एक निश्चित रकम यानी 6,000 रुपए तीन समान किस्तों में देने का प्रावधान किया गया है। यह भारत सरकार द्वारा लघु और सीमांत किसानों को सहायता प्रदान करने की अब तक की सबसे बड़ी योजना है।
खास क्या है इस योजना में?
- इस योजना के तहत 2 हेक्टेयर तक भूमि वाले छोटी जोत वाले किसान परिवारों को 6,000 रुपए प्रतिवर्ष की दर से प्रत्यक्ष आय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।
- यह आय सहायता 2,000 रुपए की तीन समान किस्तों में लाभान्वित किसानों के बैंक खातों में सीधे ही हस्तांतरित कर दी जाएगी।
- इस योजना का वित्तपोषण भारत सरकार द्वारा किया जाएगा और इससे लगभग 12 करोड़ छोटे और सीमांत किसान परिवारों के लाभान्वित होने की उम्मीद है।
- यह योजना 1 दिसंबर, 2018 से लागू की जा रही है और 31 मार्च, 2019 तक की अवधि के लिये पहली किस्त का इसी वर्ष के दौरान भुगतान कर दिया जाएगा।
- इस योजना पर 75 हज़ार करोड़ रुपए का वार्षिक व्यय आएगा।
- यदि पति-पत्नी और बच्चों की ज़मीन मिलाकर दो हेक्टेयर से अधिक हो जाती है तो ऐसे किसान लघु सीमांत की श्रेणी में नहीं आएंगे।
- यदि पति-पत्नी या पिता सरकारी नौकरी में है या पेंशनर है तो उसे भी इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा।
पक्ष: किसानों की सहायता करना है उद्देश्य
इस योजना के तहत दो हेक्टेयर तक की कृषि योग्य भूमि रखने वाले किसानों को 6,000 रुपए दिये जाएंगे। ऐसा इसलिये किया गया है क्योंकि सरकार का यह मानना है कि किसान के पास जितनी कम ज़मीन होगी, उसे वित्तीय सहायता की आवश्यकता उतनी ही अधिक होगी।
यह एक केंद्रीय योजना है जिसका वित्तपोषण पूरी तरह भारत सरकार द्वारा किया जाएगा। इस योजना के लिये दिशा-निर्देश जारी कर दिये गए हैं। सरकार ने योजना के प्रबंधन के लिये एक पोर्टल (http://pmkisan.nic.in) विकसित किया है।राज्यों को लाभार्थियों का डेटा इस पोर्टल पर अपलोड करना होगा। इसके बाद कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा लाभार्थियों के खातों में राशि हस्तांतरित कर दी जाएगी। यह राशि सरकार द्वारा जारी किये जाने के 48 घंटे के भीतर लाभार्थी के खाते में जमा कर दी जाएगी। पहली किस्त इसी माह पात्र (Eligible) किसानों के खातों में आ जाएगी।
किसानों की दशा सुधारने के लिये सरकार द्वारा किये गए अन्य उपाय
- 2018-19 के बजट में सरकार ने सभी अधिसूचित वस्तुओं के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) उत्पादन की लागत का 1.5 गुना तय किया है।
- किसानों को उनकी लागत का मूल्य सुनिश्चित करने के लिये पिछले साल प्रधानमंत्री अन्नदाता आय अभियान की शुरुआत की गई थी।
- दालों और तिलहन के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये बदलाव किये गए हैं।
- 2016 में सरकार द्वारा किसानों को सभी जोखिमों से बीमा प्रदान करने के लिये प्रधानमंत्री बीमा योजना की शुरुआत की गई।
इनके मद्देनज़र किसानों के कल्याण के व्यापक परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का महत्त्व खुद-ब-खुद स्पष्ट हो जाता है। गौर से देखा जाए तो 500 रुपए प्रतिमाह किसानों के लिये बहुत छोटी राशि नहीं है। गरीब किसान इस पैसे से ज़रूरी उपयोग की वस्तुएँ खरीद सकता है, स्कूल जाने वाले बच्चों की फीस आदि का भुगतान किया जा सकता है तथा तात्कालिक आवश्यकता वाले छोटे-मोटे काम इस पैसे से किये जा सकते हैं।
संस्थागत ऋण के दायरे में लाया जा रहा किसानों को
- पिछले तीन वर्षों में खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन इस बात का सूचक है कि किसान मेहनत तो बहुत करते हैं, लेकिन उन्हें अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता।
- खासकर ऐसी फसलों की पर्याप्त कीमत किसानों को नहीं मिल पाती, जिनका न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकार द्वारा तय नहीं किया जाता।
- अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में लगातार गिरती कीमतों तथा व्यापार की प्रतिकूल शर्तों की वज़ह से भी कुछ फसलों की कीमत का लागत मूल्य तक किसानों को नहीं मिल पाता।
- एक अन्य बात यह है कि सरकार सभी किसानों को संस्थागत ऋण के दायरे में लाने की कोशिश कर रही है।
- छह करोड़ से अधिक किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड (Kisan Credit Card-KCC) देने का लक्ष्य रखा गया है।
- राज्यों और बैंकों को इसके लिये दिशा-निर्देश जारी कर किसानों द्वारा आवेदन करने के 15 दिनों के भीतर KCC जारी करने को कहा गया है।
यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि छोटे और सीमांत किसानों की औसत वार्षिक आय अन्य किसानों की औसत आय से कम है। छोटे और सीमांत किसानों को PM-KISAN योजना के माध्यम से दिया जा रहा लाभ सुनिश्चित पूरक आय प्रदान करेगा और उनके आकस्मिक, खासकर फसल के तुरंत बाद के खर्चों को पूरा करेगा। ऐसे में कहा जा सकता है कि यह योजना टिकाऊ भी है और इससे छोटे एवं सीमांत किसानों का विश्वास बढ़ेगा।
विपक्ष: ऊँट के मुँह में जीरे जैसी है यह राशि
- भारत में कृषि का संकट वास्तविक है और यह लंबे समय से चला आ रहा है।
- यह संकट किसी एक सरकार के कार्यकाल में नहीं बना है, बल्कि लगभग सभी सरकारों द्वारा किसानों की अनदेखी करने का परिणाम है।
यह उन नीतियों का परिणाम है, जो पिछले कई दशकों से लगातार चली आ रही हैं। देखा यह गया है कि किसानों की दुर्दशा पर आँसू बहाने वाला कोई नहीं है, जबकि व्यापार और उद्योग में आने वाली अड़चनों के समाधान के लिये आकाश-पाताल एक कर दिया जाता है। खेती-किसानी से जुड़े मुद्दों पर आवाज उठाने वाला कोई नहीं है और न ही इसके लिये कोई लॉबी काम करती है।
किसानों के लिये विकास के कोई मायने नहीं
- दरअसल, किसानों पर सरकार की यह कृपादृष्टि अचानक इसलिये हुई है क्योंकि 2018 के अंत में पाँच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में से तीन बड़े हिंदी भाषी राज्यों में सत्तारूढ़ भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा।
- इस पराजय के पीछे किसानों की नाराज़गी एक बड़ा कारण बनकर सामने आई।
- ऐसे में इस योजना में अंतर्निहित संदेश क्रिस्टल क्लियर है क्योंकि किसानों के लिये कुछ-न-कुछ ठोस करना सरकार की मजबूरी हो गई थी।
- विगत में संप्रग सरकार ने बहुत बड़ी संख्या में किसानों का कर्ज़ माफ कर वाहवाही बटोरी थी और दोबारा सत्ता में वापसी की थी।
जो भी हो, लेकिन 71 साल की उपेक्षा के बाद खेतों में काम करने वाले भारतीय किसान के लिये 6000 रुपए की रकम अपर्याप्त है।
यदि गौर से देखा और विचारा जाए तो पता चलता है कि पिछली और वर्तमान सरकारों का ज़ोर मुख्य रूप से कॉर्पोरेट कानूनों के पुनर्गठन, उद्योगों को भारी मात्रा में कर्ज़ देने, उद्योगों को सब्सिडी प्रदान करने और विदेशी निवेश आकर्षित करने पर ही केंद्रित रहा है। सरकार को यह समझना होगा कि खेती-किसानी कोई कॉकटेल पार्टी नहीं हैं कि जाम-से-जाम टकरा कर ‘चीयर्स’ बोला और मुद्दे हल हो गए। किसान जिस तरह हाड़ तोड़ श्रम करता है, उसी तरह उसकी समस्याओं को भी ज़मीनी धरातल पर उतर कर ही हल किया जा सकता है।
खेती का संकट ही वास्तविक है
- दो हेक्टेयर तक भूमि रखने वाले किसान हर चार महीने में सिर्फ 2,000 रुपए नहीं चाहते, जैसा कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में प्रावधान किया गया है।
- दरअसल, इतना पैसा तो उनके द्वारा किराए पर लिये गए ट्रैक्टर में डीज़ल भरने के लिये भी अपर्याप्त है।
- शासन व्यवस्था को यह सोचना, देखना और मानना होगा कि किसान अपनी उपज की उचित कीमत मांगते हैं तो वे कोई भीख नहीं माँग रहे होते।
- यहाँ ज़रूरत उन सवालों को हल करने की है, जिनकी वज़ह से किसानों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
इन सवालों में प्रमुख हैं...
♦ शासन व्यवस्था को यह तय करना होगा कि लघु किसान कौन है?
♦ बंटाईदार (साझेदारी में खेती करना) का क्या अर्थ है?
♦ किराएदार किसान कौन है?
♦ क्या ग्रामीण भारत में छोटी भूमि रखने किसानों का रिकॉर्ड है?
♦ भूमि बंदोबस्त क्या है और क्यों अधिकांश राज्यों ने इसे नहीं अपनाया है?
ऐसे सवालों की फेहरिस्त बहुत लंबी है जिसको किसान न जाने कब से सरकारों के सामने रखते आ रहे हैं, लेकिन उनकी आवाज़ को सुनने वाला कोई मज़बूत तंत्र आज भी मौज़ूद नहीं है।
संतुलित मत: एक नए भारत की संकल्पना
यह नए भारत (New India) के निर्माण का दौर है। इस न्यू इंडिया में किसानों के लिये आधुनिक सिंचाई सुविधाओं, उत्तम बीज एवं आधुनिक तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता है, जो लागत कम करने तथा उनका सही मार्गदर्शन करने में मदद कर सके।
- इसे जैविक खेती के क्षेत्र में भी लागू करना चाहिये, लेकिन साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि उपज की कीमतें बहुत अधिक न होने पाएं।
- कृषि उत्पादों और गतिविधियों को पुख्ता कारोबारी आधार देने के लिये किसानों को मज़बूत इनपुट सिस्टम और परिवहन व्यवस्था की आवश्यकता है। इसके बाद उन्हें किसी प्रकार का अनुदान न भी दिया जाए तो काम चलेगा।
- यदि वास्तव में किसानों की मदद करनी है तो बाज़ारों में ग्रामीण बुनियादी ढांचे का निर्माण करना होगा।
- साथ ही कम टैरिफ शुल्क पर होने वाले आयातों के मद्देनज़र किसानों को सुरक्षा प्रदान करने की भी ज़रूरत है।
- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि दो हेक्टेयर भूमि वाले किसानों को सहायता के रूप में वार्षिक आय प्रदान करती है।
- जनगणना और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के अनुसार, भूमिहीन मजदूरों का भी एक बड़ा वर्ग है। शायद इसीलिये उन्हें भी इस सहायता योजना में शामिल करने की मांग की जा रही है।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना को चलाना एक बड़ी चुनौती
आर्थिक लागत की गणना करते समय Terminal Costs (किसी चीज़ की वह कीमत जो उसके उपयोग की अंतिम अवस्था में होती है), GDP या कृषि GDP को लिया जाता है, लेकिन ऐसी योजनाओं को लागू होने में समय लगता है। निःसंदेह इस योजना के लिये पर्याप्त धन (75 हज़ार करोड़ रुपए) उपलब्ध कराया गया है, लेकिन इसके परीक्षण का कोई तरीका नहीं बताया गया है।
वैसे अधिकांश राज्यों में ज़मीन के डिजिटलीकरण का काम शुरू किया जा चुका है और उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में ज़मीन के रिकॉर्ड पहले ही डिजिटल किये जा चुके हैं। यही वज़ह है कि इस योजना को लागू करना मुश्किल नहीं होगा।
पूर्वोत्तर राज्यों में इस योजना को लागू करने में कुछ समय लग सकता है क्योंकि वहां भूमि का स्वामित्व समुदाय के आधार पर होता है। ऐसे में पूर्वोत्तर के लिये वैकल्पिक व्यवस्था विकसित की जाएगी और केंद्रीय मंत्रियों की एक समिति से इसे मंजूरी मिलने के बाद पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय इस योजना को लागू करेगा।
अब देखना यह है कि इस माह के अंत तक इसका प्रथम चरण लागू होने के बाद किस प्रकार की समस्याएँ सामने आती हैं और सरकार किस प्रकार उनका समाधान करती है।