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जैव विविधता और पर्यावरण

प्लास्टिक कचरा : खतरे की घंटी

  • 25 Apr 2018
  • 22 min read

संदर्भ
दशकों पहले लोगों की सुविधा के लिये प्लास्टिक का आविष्कार किया गया लेकिन धीरे-धीरे यह अब पर्यावरण के लिये ही नासूर बन गया है। प्लास्टिक और पॉलीथीन के कारण पृथ्वी और जल के साथ-साथ वायु भी प्रदूषित होती जा रही है। हाल के दिनों में मीठे और खारे दोनों प्रकार के पानी में मौजूद जलीय जीवों में प्लास्टिक के केमिकल से होने वाले दुष्प्रभाव नज़र आने लगे हैं। इसके बावजूद प्लास्टिक और पॉलीथीन की बिक्री में कोई कमी नहीं आई है।

प्लास्टिक प्रदूषण

  • प्लास्टिक की उत्पत्ति सेलूलोज़ डेरिवेटिव में हुई थी। प्रथम सिंथेटिक प्लास्टिक को बेकेलाइट कहा गया और इसे जीवाश्म ईंधन से निकाला गया था।
  • फेंकी हुई प्लास्टिक धीरे-धीरे अपघटित होती है एवं इसके रसायन आसपास के परिवेश में घुलने लगते हैं। यह समय के साथ और छोटे-छोटे घटकों में टूटती जाती है और हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करती है।
  • यहाँ यह स्पष्ट करना बहुत आवश्यक है कि प्लास्टिक की बोतलें ही केवल समस्या नहीं हैं, बल्कि प्लास्टिक के कुछ छोटे रूप भी हैं, जिन्हें माइक्रोबिड्स कहा जाता है। ये बेहद खतरनाक तत्त्व होते हैं। इनका आकार 5 मिमी. से अधिक नहीं होता है।
  • इनका इस्तेमाल सौंदर्य उत्पादों तथा अन्य क्षेत्रों में किया जाता है।  ये खतरनाक रसायनों को अवशोषित करते हैं। जब पक्षी एवं मछलियाँ इनका सेवन करती हैं तो यह उनके शरीर में चले जाते हैं।
  • भारतीय मानक ब्यूरो ने हाल ही में जैव रूप से अपघटित न होने वाले माइक्रोबिड्स को उपभोक्ता उत्पादों में उपयोग के लिये असुरक्षित बताया है।
  • अधिकांशतः प्लास्टिक का जैविक क्षरण नहीं होता है। यही कारण है कि वर्तमान में उत्पन्न किया गया प्लास्टिक कचरा सैकड़ों-हज़ारों साल तक पर्यावरण में मौजूद रहेगा। ऐसे में इसके उत्पादन और निस्तारण के विषय में गंभीरतापूर्वक विचार-विमर्श किये जाने की आवश्यकता है।

वर्तमान स्थिति की बात करें तो

  • स्थिति यह है कि वर्तमान समय में प्रत्येक वर्ष तकरीबन 15 हज़ार टन प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है। प्रतिवर्ष हम इतनी अधिक मात्रा में एक ऐसा पदार्थ इकठ्ठा कर रहे हैं जिसके निस्तारण का हमारे पास कोई विकल्प मौजूद नहीं है।
  • यही कारण है कि आज के समय में जहाँ देखो प्लास्टिक एवं इससे निर्मित पदार्थों का ढेर देखने को मिल जाता है।
  • पहले तो यह ढेर धरती तक ही सीमित था लेकिन अब यह नदियों से लेकर समुद्र तक हर जगह नज़र आने लगा है। धरती पर रहने वाले जीव-जंतुओं  से लेकर समुद्री जीव भी हर दिन प्लास्टिक निगलने को विवश है।
  • इसके कारण प्रत्येक वर्ष तकरीबन 1 लाख से अधिक जलीय जीवों की मृत्यु होती है।
  • समुद्र के प्रति मील वर्ग में लगभग 46 हज़ार प्लास्टिक के टुकड़े पाए जाते हैं।
  • इतना ही नहीं हर साल प्लास्टिक बैग का निर्माण करने में लगभग 4.3 अरब गैलन कच्चे तेल का इस्तेमाल होता है।

प्लास्टिक निर्माण की दर

  • वैश्विक स्तर पर पिछले सात दशकों में प्लास्टिक के उत्पादन में कई गुणा बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान तकरीबन 8.3 अरब मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन किया गया।
  • इसमें से लगभग 6.3 अरब टन प्लास्टिक कचरे का ढेर बन चुका है, यह और बात है कि इसमें से केवल 9 फीसदी हिस्से को ही अभी तक रिसाइकिल किया जा सका है।
  • यदि भारत के संदर्भ में बात करें तो यहाँ हर साल तकरीबन 56 लाख टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन होता है। जिसमें से लगभग 9205 टन प्लास्टिक को रिसाइकिल किया जाता है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, देश के चार महानगरों यथा- दिल्ली में रोज़ाना 690 टन, चेन्नई में 429 टन, कोलकाता में 426 टन और मुंबई में 408 टन प्लास्टिक कचरा फेंका जाता है।
  • ‘द गार्जियन’ में हाल में छपे एक लेख के मुताबिक, दुनिया भर में प्रत्येक मिनट लाखों प्लास्टिक की बोतलें  खरीदी जाती हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) 2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल उपभोक्ता वस्तुओं के क्षेत्र में प्लास्टिक उपयोग की कुल प्राकृतिक पूंजी लागत 75 अरब डॉलर है। यह बढ़ते उपभोक्तावाद और प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग के साथ और बढ़ेगा।

इस समस्या के निवारण हेतु किये जा रहे प्रयास 

  • दुनिया भर में प्लास्टिक की बोतलों और इससे निर्मित पदार्थों की खपत सबसे अधिक है। इस समस्या की गंभीरता को समझते हुए इस संदर्भ में वैश्विक स्तर पर जागरुकता फैलाई जा रही है साथ ही इसके समाधान हेतु नए-नए विकल्पों की भी खोज की जा रही है।

प्लास्टिक को खत्म करने हेतु एंजाइम

  • हाल ही में वैज्ञानिकों द्वारा एक ऐसे एंजाइम का निर्माण किया गया है जो प्लास्टिक की बोतलों को अपने आप तोड़ सकता है।
  • पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, पर्यावरण प्रदूषण के क्षेत्र में यह एक क्रांतिकारी खोज साबित होगी। संभव है इससे प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या का समाधान करने में सहायता मिल सकती है।
  • 2016 में जापान में बेकार पड़े कूड़े के ढेर में उत्पन्न हुए एक जीवाणु द्वारा प्लास्टिक को खाने संबंधी जानकारी मिलने के बाद वैज्ञानिकों द्वारा इस संबंध में कार्य आरंभ किया गया। 
  • यूनिवर्सिटी ऑफ पोस्टमाउथ यूके के शोधकर्त्ता प्रोफेसर जॉन मैक्गेहन के अनुसार, म्यूटेंट एंजाइम प्लास्टिक की बोतलों को तोड़ने में कुछ समय लेता है, जबकि इसके विपरीत समद्र में होने वाली इस प्रक्रिया की तुलना में यह कई गुना तीव्र है।
  • प्रयोगशाला में किये गए परीक्षण के दौरान इस एंजाइम ने पॉलीएथाइनील ट्रेफ्थालेट  (पीईटी) में रासायनिक बदलाव करके उसे उसके मूल घटक में परिवर्तित करने में सफलता हासिल की। यह प्लास्टिक खाद्य व पेय पदार्थों के निर्माण में सर्वाधिक इस्तेमाल होता है।
  • दुनिया भर में हर मिनट में लगभग 1 मिलियन प्लास्टिक की बोतलें बेची जाती हैं, जबकि इनका सिर्फ 14 प्रतिशत ही रिसाइकिल हो पाता है, शेष को समुद्र में फेंक दिया जाता है जिससे उत्पन्न होने वाले प्रदूषण से न केवल समुद्री जीवों को हानि पहुँचती है बल्कि समुद्री भोजन का सेवन करने वाले लोगों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

इस खोज के लाभ क्या-क्या होंगे ?

  • मौजूदा समय में प्लास्टिक की रिसाइकिलिंग के बाद उससे चटाई और प्लास्टिक रेशों जैसी कम गुणवत्ता वाली चीज़ें और उत्पाद बनाए जाते हैं।
  • इस प्रकार इस प्रक्रिया में हमें बाज़ार में दो प्रकार की पीईटी प्लास्टिक मिलती है- पहली है वर्जिन ग्रेड और दूसरी है आर-पीईटी यानी रिसाइकिल की गई पीईटी।
  • वर्जिन ग्रेड को बनाने में क्रूड ऑयल का इस्तेमाल किया जाता है। इसी प्लास्टिक से बोतलों समेत उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद तैयार किये जाते हैं, जबकि रिसाइकिल किये गए पीईटी से बढ़िया उत्पाद बनाने का अब तक कोई तरीका मौजूद नहीं हो सका है।
  • यही कारण है कि इस व्यवसाय में लिप्त कंपनियाँ वर्जिन ग्रेड पीईटी का निर्माण करती हैं, जिसमें धन भी अधिक लगता है और पर्यावरण में प्लास्टिक की मात्र में भी वृद्धि होती है। 
  • वैज्ञानिकों द्वारा की गई इस नई खोज के बाद पीईटी बोतलों को रिसाइकिल कर गुणवत्तापरक बोतलों और अन्य उत्पादों का निर्माण किया जा सकता है। 
  • इससे न केवल मौजूदा प्लास्टिक को पुन: इस्तेमाल में लाया जा सकता है, बल्कि नए प्लास्टिक के उत्पादन को भी नियंत्रित किया जा सकता है।

समुद्र से कचरा छानने की विधि

  • वैज्ञानिकों द्वारा सौ मीटर लंबा रबर का एक तिकोना अवरोधक निर्मित किया गया है जिसे समुद्री सतह पर लगाया जाएगा, इस अवरोधक में नीचे की ओर एक लंबी जाली लगी हुई है।
  • इसके माध्यम से समुद्री सतह पर मौजूद प्लास्टिक कचरे को छानने में सहायता मिलेगी।
समुद्र में कचरा फैलाने वाले देश
चीन 88 लाख मीट्रिक टन
इंडोनेशिया 32 लाख मीट्रिक टन
फिलीपींस 19 लाख मीट्रिक टन
वियतनाम 18 लाख मीट्रिक टन
श्रीलंका 16 लाख मीट्रिक टन
मिश्र 10 लाख मीट्रिक टन
थाईलैंड 10 लाख मीट्रिक टन
मलेशिया 09 लाख मीट्रिक टन
नाइजीरिया 09 लाख मीट्रिक टन
बांगलादेश 08 लाख मीट्रिक टन
अमेरिका 03 लाख मीट्रिक टन

प्लास्टिक के विरुद्ध जंग के कुछ विशेष उदाहरण

राष्ट्रीय स्तर पर

  • 2016 में केंद्र सरकार द्वारा ‘प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 (Plastic Waste Management Rules 2016) को अधिसूचित किया गया, जो कि प्लास्टिक कचरा (प्रबंधन एवं संचालन) नियम, 2011 का स्थान लेगा।
  • इसके अंतर्गत प्लास्टिक कैरी बैग की न्यूनतम मोटाई को 40 माइक्रॉन से बढ़ाकर 50 माइक्रॉन कर दिया गया है।
  • साथ ही नियमों के दायरे में वृद्धि करते हुए इन्हें नगरपालिका क्षेत्र से बढ़ाकर ग्रामीण क्षेत्रों तक विस्तारित कर दिया गया है।
  • इसके साथ-साथ प्लास्टिक कैरी बैग के उत्पादकों, आयातकों एवं इन्हें बेचने वाले वेंडरों के पूर्व-पंजीकरण के माध्यम से प्लास्टिक कचरा प्रबंधन के शुल्क संग्रहण की भी शुरूआत की गई है।
  • झारखंड के जमशेदपुर तेलकों के गुरुडबासा गाँव के मानव विकास विद्यालय द्वारा प्लास्टिक की बेकार पड़ी  बोतलों से एक शौचालय का निर्माण किया गया।
  • जमशेदपुर में ही टाटा स्टील के लिये नागरिक सुविधा मुहैया कराने वाली एक कंपनी जुस्को द्वारा बर्मामाइन्स में एक प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित किया जा रहा है।
  • यहाँ कोलतार में दस फीसदी प्लास्टिक मिश्रित करते हुए सड़क का निर्माण किया जा रहा है, प्लास्टिक मिश्रित होने के कारण अलकतरे के कण आपस में एक दुसरे से जुड़े रहते हैं जिसके कारण सड़क जल्दी नहीं टूटती है।
  • हाल ही में छत्तीसगढ़ राज्य में थर्माकोल से बनी प्लेटों के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। इसका उद्देश्य जहाँ एक ओर स्थानीय स्तर पर तैयार होने वाले पत्तों से बने दोने और पत्तलों को बढ़ावा देते हुए रोज़गार के अवसर सुनिश्चित करना है, वहीं दूसरी ओर प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना भी है।

वैश्विक स्तर पर

  • चीन के शंघाई शहर में ‘चाइना प्लास्ट एक्सपो’ का आयोजन किया जा रहा है। इस  एक्सपो में प्लास्टिक से संबंधित विश्व स्तर के उत्पाद प्रदर्शित किये जाएंगे। साथ ही टूल डाइज़, मशीनरी और तकनीकी पहलुओं से भी रूबरू कराया जाएगा।
  • फ़्राँस में 2016 में प्लास्टिक पर बैन लगाने के लिये एक कानून पारित किया गया था। इसके तहत प्लास्टिक की प्लेटें, कप और सभी तरह के बर्तनों को 2020 तक पूरी तरह से प्रबंधित कर दिया जाएगा।
  • रवांडा की सरकार ने प्राकृतिक रूप से सड़ने में अक्षम सभी पदार्थों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। आपको जानकार आश्चर्य होगा कि यह देश 2008 से प्लास्टिक मुक्त है।
  • स्वीडन में प्लास्टिक को बैन करने के स्थान पर इसका एक और बेहतर विकल्प ढूँढा गया है। यहाँ प्लास्टिक को रिसाइकिल कर इससे बिजली बनाई जाती है। इतना ही नहीं इस कार्य के लिये यह पड़ोसी देशों से कचरा खरीदता भी है।
  • आयरलैंड द्वारा 2002 से प्लास्टिक बैग टैक्स लागू किया गया है, जिसके अंतर्गत लोगों को प्लास्टिक बैगों का इस्तेमाल करने पर भारी टैक्स भरना पड़ता है। इस कानून का प्रभाव यह हुआ कि यहाँ प्लास्टिक के उपभोग में 94 फीसदी तक की गिरावट देखी गई।

समुद्री जीवों पर संकट

  • इसमें कोई दो राय नहीं कि दुनिया के तकरीबन 90 फीसदी समुद्री जीव-जंतु एवं पक्षी किसी न किसी रूप में अपने शरीर में प्लास्टिक ले रहे हैं। प्लास्टिक की यह मात्रा न केवल पर्यावरण के लिये खतरनाक है बल्कि इन जीवों के लिये भी जानलेवा साबित हो रही है।
  • आर्कटिक सागर के विषय में किये गए एक शोध के अनुसार, अगर यही स्थिति रहती है तो 2050 तक समुद्र में मछलियों से अधिक प्लास्टिक कचरा नज़र आएगा।
  • आर्कटिक सागर के जल में 100 से 1200 टन के बीच प्लास्टिक मौजूद होने की संभावना है जो तरह-तरह की धाराओं के ज़रिये समुद्र में एकत्रित होता जा रहा है।
  • स्पष्ट रूप से यदि जल्द ही समुद्र में प्रवेश करने वाले इस कचरे पर रोक नहीं लगाई गई तो आगामी तीन दशकों में समुद्री जीव-जंतुओं के साथ-साथ पक्षियों की बहुत बड़ी तादाद खतरे में आ जाएगी।
  • आस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बीच अवस्थित तस्मानिया सागर का क्षेत्र प्लास्टिक प्रदूषण के सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है।
  • हाल ही में पीएनएएस नामक एक जर्नल में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार, 1960 के दशक में पक्षियों के आहार में केवल पाँच फीसदी प्लास्टिक की मात्रा पाई गई थी, जबकि 2050 तक तकरीबन 99 फीसदी समुद्री पक्षियों के पेट में प्लास्टिक होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

महासागरीय प्रदूषण के दुष्परिणाम

  • महासागरों में बढ़ता प्रदूषण चिंता का विषय बनता जा रहा है। अरबों टन प्लास्टिक का कचरा हर साल महासागर में समा जाता है। आसानी से विघटित नहीं होने के कारण यह कचरा महासागर में जस-का-तस पड़ा रहता है।
  • अकेले हिंद महासागर में भारतीय उपमहाद्वीप से पहुँचने वाली भारी धातुओं और लवणीय प्रदूषण की मात्रा प्रतिवर्ष करोड़ों टन है।
  • विषैले रसायनों के रोज़ाना मिलने से समुद्री जैव विविधता भी प्रभावित होती है। इन विषैले रसायनों के कारण समुद्री वनस्पति की वृद्धि पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • पृथ्वी के विशाल क्षेत्र में फैले अथाह जल का भंडार होने के साथ ही महासागर अपने अंदर व आस-पास अनेक छोटे-छोटे नाज़ुक पारितंत्रों को पनाह देते हैं जिससे उन स्थानों पर विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु व वनस्पतियाँ पनपती हैं।
  • महासागरों में प्रवाल भित्ति क्षेत्र ऐसे ही एक पारितंत्र का उदाहरण है जो असीम जैव-विविधता का प्रतीक है। तटीय क्षेत्रों में स्थित मैंग्रोव जैसी वनस्पतियों से संपन्न वन, समुद्र के अनेक जीवों के लिये नर्सरी बनकर विभिन्न जीवों को आश्रय प्रदान करते हैं। 
  • काबिलेगौर है कि महासागर धरती के मौसम को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक हैं। महासागरीय जल की लवणता और विशिष्ट ऊष्माधारिता का गुण पृथ्वी के मौसम को प्रभावित करता है।

महासागरों को प्रदूषणमुक्त करने हेतु प्रयास

  • पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने वाले पारितंत्रों में महासागर की उपयोगिता को देखते हुए यह आवश्यक है कि हम महासागरीय पारितंत्र के संतुलन को बनाए रखें तभी हमारा भविष्य सुरक्षित रहेगा।
  • सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण होने के कारण महासागर अत्यंत उपयोगी हैं। महासागरों के प्रति जागरूकता के उद्देश्य से हर साल 8 जून को विश्व महासागर दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • विदित हो कि प्रत्येक वर्ष एक थीम-विशेष पर पूरे विश्व में महासागर दिवस से संबंधित आयोजन किये जाते हैं। इस वर्ष का थीम थी ‘हमारे महासागर-हमारा भविष्य हैं’।
  • संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में निश्चित किये गए सतत् विकास के लक्ष्यों में महासागरों के संरक्षण एवं उनके सतत् उपयोग को भी शामिल किया गया है।

निष्कर्ष
दुनिया भर में प्रदूषण की समस्या में दिनोंदिन बढ़ोतरी होती जा रही है। इसमें भी प्लास्टिक एक समस्या है जो सबसे अधिक चिंताजनक है क्योंकि यह एक ऐसा पदार्थ होता है जिसे नष्ट होने में काफी समय लगता है। केवल इतना ही नहीं इसके कारण पानी से लेकर हवा और भूमि सभी प्रदूषित होते हैं। महासागर पर शोध करने वाले डॉ. मार्कस एरिक्सन का कहना है कि हमें प्लास्टिक रिसाइकिलंग के बारे में गंभीरता से सोचना होगा और व्यक्तिगत रूप से भी अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाह करना पड़ेगा, तभी यह धरती सुरक्षित रह सकती है। स्पष्ट रूप से हमें इस दिशा में और अधिक गंभीरता के साथ कार्य करने की आवश्यकता है।

प्रश्न: क्या प्रदूषण की बढ़ती समस्या मानव की महत्त्वकांक्षाओं का परिणाम है? बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण के संदर्भ में राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर क्या कदम उठाए गए हैं? साथ ही यह भी बताएँ कि इस संदर्भ में क्या ज़रुरी उपाय किये जाने चाहिये?

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