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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत में परोपकारिता

  • 21 Jun 2017
  • 8 min read

भूमिका
पिछले हफ्ते अमेज़न के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी जेफ बेजोस ने परोपकारिता की रणनीति के संबंध में अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि वे ‘अमेज़न’ और ‘वाशिंगटन पोस्ट’ संस्थाओं के माध्यम से इस दिशा में कार्य कर रहे हैं, ताकि परोपकारिता के लाभों को लम्बे समय तक बनाया रखा जा सके। उनके इस विचार से अनेक सामाजिक उपक्रमों की ओर से जो इस प्रकार का वित्तपोषण करना चाहते हैं, हज़ारों प्रतिक्रियाएँ भी सामने आई हैं। इस परिप्रेक्ष्य में भारतीय परोपकारिता के विषय में भी विचार किया जा सकता है।

परोपकारिता (Philanthropy)
परोपकार दो ग्रीक शब्दों के योग से बना है, जिसमें philos का अर्थ ‘प्यार’ और anthropos का अर्थ ‘मानवता’ होता है, अर्थात मानवता से प्यार। आधुनिक समय में इसे सार्वजनिक भलाई और जीवन की गुणवत्ता पर केंद्रित निजी पहल (Private Initiatives) माना जाता है। 

भारत की स्थिति

  • बैन (Bain’s) की “भारत परोपकार रिपोर्ट-2017” के अनुसार भारत में परोपकारिता बाज़ार काफी विकसित है, खासकर व्यक्तिगत परोपकारिता से संबंधित। 
  • रिपोर्ट के अनुसार पाँच वर्षों में भारतीय परोपकारिता बाज़ार में छः गुना बढ़ोतरी हुई है। यह वर्ष 2011 में 6,000 करोड़ रुपए से वर्ष 2016 में 36,000 करोड़ रुपए हो गई है। 
  • भारत में व्यक्तिगत परोपकरियों द्वारा किये गए योगदान में किसी अन्य स्रोत जैसे विदेशी सहायता या कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी (CSR) की तुलना में तीव्र वृद्धि हुई है।  
  • रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारत अगर 2030 तक संयुक्त राष्ट्र के ‘सतत्  विकास लक्ष्यों’ को प्राप्त करना चाहता है तो उसे 533 खरब रुपए की आवश्यकता पड़ेगी। अत: व्यक्तिगत परोपकारियों द्वारा किया गया योगदान इस दिशा में महत्त्वपूर्ण  भूमिका निभा सकता है। 
  • विकास क्षेत्रों (Development Sector) में कुल अनुदान भी बढ़ रहा है। वर्ष 2016 में विकास क्षेत्रों में कुल निजीदान (Private Donations) बढ़कर 32% हो गया, जो वर्ष 2011 में केवल 15% था। 
  • अभी भी सरकार द्वारा किया गया योगदान सबसे अधिक है। वर्ष 2016 में सरकार द्वारा विकास क्षेत्रों में 1.5 खरब रुपए खर्च किये गए। 

क्या है समस्या?

  • परोपकारी संस्थाओं के बीच आपस में सहयोग की कमी है। 
  • डलबर्ग अध्ययन (Dalberg Study) ने पाया कि भारत विकास क्षेत्र के भ्रष्ट और अक्षम होने, नियामकिएँ बाधाओं और प्रतिकूल कर नीतियों के कारण परोपकारिता के संभावित लाभों का फायदा नहीं उठा पा रहा है।
  • वर्ष 2013 के मैकिन्से अध्ययन (McKinsey found) द्वारा पाया गया कि कम-से-कम 50 ऐसे उप-क्षेत्र है, जो वित्त की कमी से जूझ रहे हैं, लेकिन दानदाता आपदा राहत, स्वास्थ्य और प्राथमिक शिक्षा जैसे सात से दस उपक्षेत्रों में ही अपना पैसा खर्च कर रहे हैं।
  • उल्लेखनीय है कि अमेरिका में परोपकारिता काफी विकसित रूप में विद्यमान है। वहाँ सार्वजनिक मामलों, पर्यावरण, शिक्षा और स्वास्थ्य सहित व्यापक उप-क्षेत्रों में दानदाता अपना योगदान कर रहे हैं।
  • अनेक सर्वेक्षणों में भारत को दानशीलता के संदर्भ में काफी नीचे स्थान प्रदान किया गया है। यह स्थान इसलिये नहीं है कि भारतीयों द्वारा कम योगदान किया गया, बल्कि इसलिये दिया गया कि दान अनौपचारिक चैनलों के माध्यम से किया गया है। इसी प्रकार का पैटर्न पाकिस्तान में भी देखा गया।

क्या किया जाए?

  • परोपकारिता की दिशा में प्रयासों को प्रभावी बनाने के लिये सरकार का यह दृष्टिकोण है कि परोपकारी संस्थाओं के बीच आपस में सहयोग को बढ़ाया जाए। ध्यातव्य है कि इस दिशा में स्थानीय स्तर पर पहले ही प्रयास शुरू किये जा चुके हैं,  लेकिन केंद्र के साथ सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है। 
  • सरकार को इस क्षेत्र में पारदर्शिता के साथ-साथ जवाबदेहीता को भी बढ़ावा देना चाहिये।
  • प्रभावी परोपकारिता के लिये खाका (Design) बनाने की आवश्यकता है।
  • दानदाताओं को भी यह तय करना चाहिये कि वह अपना पैसा शिक्षा, स्वास्थ्य, आपदा राहत कार्य, सार्वजनिक नीति, कला और संस्कृति आदि क्षेत्रों में से कहाँ खर्च करना चाहते हैं।
  • उदहारणस्वरुप अगर दानदाता यह स्वयं फैसला करे कि वह शिक्षा के क्षेत्र में अपना पैसा खर्च करना चाहता है तो अब उसके पास विकल्पों की एक श्रृंखला विद्यमान होगी, जैसे: स्कूल के निर्माण में, शिक्षकों और स्कूल प्रशासकों के लिये प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना करने में, एक एजेंसी की स्थापना जो शिक्षा से संबंधित योजनाओं को लागू करने हेतु सरकार की सहायता करे या सरकार के साथ प्रत्यक्ष रूप से शिक्षा नीति बनाने में मदद करे। उपर्युक्त किसी भी योजना में वह अपना पैसा खर्च कर सकता है।
  • यह महत्त्वपूर्ण है कि भारतीय दानदाताओं को परोपकारी गतिविधियों से संबंधित खाका बनाने और उन्हें प्रभावी बनाते हुए विकास गतिविधियों के साथ सावधानीपूर्वक तालमेल बिठाने की ज़रूरत है। 

निष्कर्ष
यह सही है कि परोपकारिता ने देश की विकास गतिविधियों में योगदान दिया है, लेकिन जैसे-जैसे देश में सामाजिक-आर्थिक संदर्भ बदल रहे हैं ऐसे में हमें उसी के अनुरूप परोपकारिता के क्षेत्र को भी समायोजित करना चाहिये। इसके साथ ही सरकार के सकारात्मक सहयोग की भी आवश्यकता होगी। अत: इस प्रकार हम आशा कर सकते हैं कि आने वाले समय में परोपकारिता देश के विकास में महती भूमिका निभा सकेगी।

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