पीडीएस और बॉयोमीट्रिक ऑथेंटिकेशन: चिंताजनक हैं प्रौद्योगिकी केंद्रित समाधान | 18 Jan 2018
संदर्भ:
- तकनीक एवं प्रौद्योगिकी के विकास का मूल उद्देश्य मानव जीवन को बेहतर बनाना है।
- लेकिन यदि यही तकनीकी विकास लोगों के लिये परेशानियों का सबब बनने लगे तो हमारे नीति निर्माताओं को ठहरकर सोचना होगा कि कैसे इन परेशानियों का हल निकाला जाए?
- दरअसल, एक कल्याणकारी राज्य में नीतियों का स्वरूप ऐसा होना चाहिये जिससे कि उनका लाभ आखिरी जन तक पहुँचे।
- आज कई राज्यों में पीडीएस (सार्वजानिक वितरण प्रणाली) ध्वस्त होने के कगार है।
- दरअसल, यह स्थिति पीडीएस में बॉयोमीट्रिक ऑथेंटिकेशन (बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण) जैसे प्रौद्योगिकी केंद्रित उपाय किये जाने के कारण देखी जा रही है।
क्या है पीडीएस?
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) कम कीमत पर अनाज के वितरण और आपातकालीन स्थितियों में प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये लाई गई एक प्रणाली है।
- इस प्रणाली की शुरुआत वर्ष 1947 में हुई है और यह देश में गरीबों के लिये सब्सिडाज्ड दरों पर खाद्य तथा अखाद्य पदार्थों के वितरण का कार्य करता है।
- इसे भारत सरकार के उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के तहत स्थापित किया गया है और इसे केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से प्रबंधित किया जाता है।
- ‘फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया’ पीडीएस के लिये खरीद और रखरखाव का कार्य करता है जबकि राज्य सरकारों को राशन एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं का वितरण सुनिश्चित करना होता है।
पीडीएस की पृष्ठभूमि
- गौरतलब है कि वर्ष 1992 तक पीडीएस बिना किसी विशिष्ट लक्ष्य के सभी उपभोक्ताओं के लिये चलाई जाने वाली एक सामान्य पात्रता वाली योजना थी।
- वर्ष 1992 से पीडीएस को आरपीडीएस (revamped PDS) यानी सुधरा हुआ पीडीएस कहा जाने लगा जिसमें गरीब परिवारों खासकर दूर-दराज़, पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों पर विशेष ध्यान दिया गया।
- वहीं 1997 में आरपीडीएस, टीपीडीएस (targeted PDS) यानी लक्षित पीडीएस बन गया, जिसमें सब्सिडाज्ड दरों पर अनाज के वितरण के लिये फेयर शॉप की स्थापना की गई।
पीडीएस का महत्त्व एवं इसकी कमियाँ
वर्तमान चिंताएँ
बॉयोमीट्रिक ऑथेंटिकेशन जैसे प्रौद्योगिकी केंद्रित सुधारों के कारण कई राज्यों में पीडीएस व्यवस्था पटरी से उतरी हुई प्रतीत हो रही है।
- झारखंड:
⇒ वर्ष 2016 के मध्य तक झारखंड में पीडीएस प्रणाली सुचारु ढंग से काम कर रही थी।
⇒ किंतु, जैसे ही पीडीएस में आधार आधरित बॉयोमीट्रिक ऑथेंटिकेशन अनिवार्य बना दिया गया विधवाओं एवं बुजुर्गों जैसे कमज़ोर समूहों से संबंध रखने वाले लोग इससे से बाहर हो गए।
⇒ साथ ही पीड़ितों को सूचित किये बिना उन राशन कार्डों का सत्यापन रद्द कर दिया गया जो आधार से नहीं जुड़े थे। यह व्यवहार अमानवीय और अवैध दोनों है।
⇒ झारखंड पीडीएस के अस्थिरता के मामलों में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य है।
- राजस्थान:
⇒ राजस्थान में भी बॉयोमीट्रिक ऑथेंटिकेशन के कारण झारखंड जैसी ही परिस्थितियाँ देखने को मिलीं हैं और यह स्वयं सरकार के लेन-देन के आँकड़ों से स्पष्ट है।
- छत्तीसगढ़:
⇒ छत्तीसगढ़ जो कि अपने मॉडल पीडीएस के लिये जाना जाता है, आधार आधारित तकनीक सुधारों को अपनाने के बाद दबाव झेल रहा है।
समस्या के कारण
- सीडिंग की बाध्यता:
जिस प्रक्रिया के तहत राशन-कार्ड पर घर के प्रत्येक सदस्य की आधार संख्या दर्ज कराई जाती है उसे सीडिंग कहते हैं।
⇒ सीडिंग, आधार आधारित बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण (Aadhaar-based Biometric Authentication -ABBA) की पहली शर्त है।
⇒ ध्यातव्य है कि पीडीएस के लिये सीडिंग और एबीबीए को अनिवार्य बना दिया गया है।
⇒ दरअसल, हुआ यह है कि 100% आधार-सीडिंग का लक्ष्य हासिल करने के उत्साह में लाभार्थियों की सूची से उन लोगों के नाम हटा दिये गए हैं, जिन्होंने आधार का विवरण जमा नहीं किया था।
⇒ सरकार का दावा है कि ये हटाए गए नाम फर्ज़ी हैं और इन्हें लाभार्थियों की सूची से हटाकर कईं करोड़ रुपए की बचत की गई।
⇒ इस पूरी प्रक्रिया में उन लोगों का भी नाम सूची से बाहर हो गया जिनके पास या तो आधार नहीं है या फिर आधार तो है लेकिन उसकी सीडिंग नहीं हुई है। - तकनीकी व व्यावहारिक बाधाएँ :
⇒ पीडीएस के ज़रिये अनाज की खरीद के लिये सीडिंग तो अनिवार्य है ही साथ में इनका भी होना ज़रूरी है:
► आधार-आधारित बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण सिस्टम के लिये अनवरत बिजली आपूर्ति।
► सुचारु ढंग से काम करने वाली एक पीओएस मशीन।
► मोबाइल और इंटरनेट कनेक्टिविटी।
► केंद्रीय पहचान डाटा रिपोजिटरी (State and Central Identities Data Repository-CIDR)) का क्रियाशील सर्वर।
► फिंगर-प्रिंट का सफल प्रमाणीकरण। - उपरोक्त में से किसी भी एक शर्त का पालन न हो पाना लाभार्थी को राशन पाने से वंचित कर सकता है।
- इसका उदाहरण झारखंड में ही कथित तौर पर भूख से अपनी जान गँवा बैठे रूपलाल मरांडी हैं, जिन्हें फिंगर-प्रिंट मैच न होने की वज़ह से राशन नहीं दिया गया था।
प्रौद्योगिकी केंद्रित उपायों के सकारात्मक प्रभाव
तकनीकी विकास का मूल उद्देश्य ही मानव जीवन को सुविधाजनक और बेहतर बनाना है और पीडीएस में लाए गए प्रौद्योगिकी केंद्रित उपायों के सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिले हैं।
- डोर-टू-डोर डिलीवरी की व्यवस्था:
⇒ लक्षित समूहों के लिये डोर-टू-डोर डिलीवरी की व्यवस्था की गई है।
⇒ इससे चलने-फिरने में असमर्थ लोगों तक राशन और आवश्यक वस्तुएँ पहुँचाई जा रही हैं।
⇒ सूचना और संचार उपकरणों का उपयोग:सूचना और संचार उपकरणों के उपयोग लीकेज में कमी देखने को मिल रही है।
⇒ अब इस योजना से संबंधित तमाम आँकड़ें वेब पोर्टल पर उपलब्ध हैं जिससे पीडीएस प्रणाली में पारदर्शिता बढ़ी है। - सामान्य सूची का विस्तारीकरण:
⇒ पीडीएस प्रणाली के तहत वितरित की गई वस्तुओं की सामान्य सूची का विस्तारीकरण किया गया है। - अभिनव प्रयोग एवं योजनाएँ:
⇒ कैश ट्रांसफर, फूड कूपन इत्यादि के उपयोग जैसे अभिनव प्रयोगों के कारण पीडीएस प्रणाली सशक्त हुई है।
आगे की राह
- कमियों को दुरुस्त करने की ज़रूरत:
⇒ निसंदेह प्रौद्योगिकी केंद्रित उपायों के कारण गरीबी में कमी लाने के संदर्भ में पीडीएस की प्रासंगिकता काफी बढ़ गई है, हालाँकि अभी भी कुछ कमियाँ विद्यमान हैं।
⇒ हमें साइटों का क्रैश हो जाना, बुनियादी ढाँचे की कमी और लाभार्थियों के प्रवासन की स्थिति में अपर्याप्त अद्यतन आँकड़ों जैसी समस्यायों पर ध्यान देने की ज़रूरत है। - वैकल्पिक उपायों पर विचार की ज़रूरत:
⇒ बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण के साथ स्मार्ट कार्ड जैसी तकनीकों के उपयोग पर भी ज़ोर देना चाहिये।
⇒ इससे फिंगर प्रिंट मैच न होने की स्थिति में लाभार्थी राशन की दुकानों में स्मार्ट कार्ड स्वाइप कर राशन प्राप्त कर सकता है।
निष्कर्ष
- इसमें कोई शक नहीं है कि पीडीएस को आधार से जोड़कर “डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर” जैसे उपक्रमों को आसान बनाया जा सकता है और भ्रष्टाचार तथा लीकेज में कमी लाई जा सकती है।
- लेकिन, इससे जुड़ी हुई तमाम चिंताओं को नज़रअंदाज़ करना उचित नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि कल्याणकारी राज्य और चयन की स्वतंत्रता लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
- यह सही है कि तकनीकी नवाचार के माध्यम से प्रशासन को चपल और प्रभावी बनाया जाना चाहिये, लेकिन यह नवाचार यदि किसी एक भी व्यक्ति की मौत का कारण बनता है तो हमें रुककर सोचना होगा कि हम कल्याणकारी राज्य निर्माण के उद्देश्यों से कहीं भटक तो नहीं रहे।