जैव विविधता और पर्यावरण
पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी पर संसदीय समिति ने जताई चिंता
- 03 Jan 2019
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संदर्भ
एक संसदीय समिति (Parliamentary Committee) ने पश्चिमी घाट की स्थिति को लेकर अपनी हालिया रिपोर्ट में चिंता जताई है। राज्यसभा की सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति (Rajya Sabha Committee on Government Assurances) का कहना है कि पश्चिमी घाट में पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों (Ecologically Sensitive Areas-ESA) का 56 हज़ार किमी. से अधिक इलाका संबद्ध राज्यों की संवेदनहीनता के कारण निषिद्ध क्षेत्र (No-Go Zone) घोषित नहीं किया जा सका है। इस समिति ने केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय से एक समिति बनाने के लिये कहा है, जो इस क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय लोगों के मुद्दों और शिकायतों का समाधान कर सके।
पश्चिमी घाट
- पश्चिमी घाट महाराष्ट्र और गुजरात की सीमा पर ताप्ती नदी से शुरू होकर देश के धुर दक्षिणी सिरे, तमिलनाडु के कन्याकुमारी तक फैला है।
- लगभग 1600 किलोमीटर की इस लंबाई में 6 राज्यों- तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात (दोनों वन क्षेत्र का भाग) के तटवर्ती इलाके शामिल हैं ।
- पश्चिमी घाट का कुल क्षेत्रफल करीब 1.60 लाख वर्ग किलोमीटर है और यह पूरा इलाका वर्षा बहुल क्षेत्र है।
- प्रायद्वीपीय भारत (Peninsular India) की अधिकांश नदियों का उदगम पश्चिमी घाट से ही होता है।
- इनमें से गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, काली नदी और पेरियार प्रमुख हैं तथा अंतर्राज्यीय महत्त्व की हैं।
- इन नदियों के जल का उपयोग सिंचाई और विद्युत उत्पादन के लिये किया जाता है।
एक चेतावनी है बाढ़
- समिति ने आगाह किया है कि केरल और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में कुछ समय पहले आई प्रलयंकारी बाढ़ को गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों में प्रशासन के लिये चेतावनी के रूप में देखना चाहिये, जो पश्चिमी घाट क्षेत्र में पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों को चिह्नित करने में विफल रहे हैं।
- समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पश्चिमी घाट की पारिस्थितिकी के प्रति असंवेदनशीलता के चलते इससे जुड़े छह राज्यों में बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है।
- रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि हालिया मानसूनी बाढ़ के मद्देनज़र इन छह राज्यों को पश्चिमी घाट में पारिस्थितकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों को चिह्नित करने में देर नहीं करनी चाहिये।
- पश्चिमी घाट को बचाने के वांछित उद्देश्यों तक पहुँचने के लिये संबद्ध राज्य सरकारों के साथ गहन चर्चा होनी चाहिये।
- समिति का मानना है कि कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों का कार्यान्वयन केवल स्थानीय आबादी के सक्रिय सहयोग से ही संभव है।
- समिति ने विभिन्न राज्य सरकारों और अन्य संगठनों के साथ विचार-विमर्श के दौरान 62 आश्वासनों की जाँच की। अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले समिति ने पुणे, मुंबई, चेन्नई और बंगलुरु का दौरा भी किया।
पश्चिमी घाट की प्रमुख पारिस्थितिकीय समस्याएँ
- क्षेत्र की प्रमुख पारिस्थितिकीय समस्याओं में जनसंख्या और उद्योगों का दबाव शामिल हैं।
- पश्चिमी घाट में होने वाली पर्यटन गतिविधियों से भी इस क्षेत्र पर और यहाँ की वनस्पति पर दबाव बढ़ा है।
- नदी घाटी परियोजनाओं के अंतर्गत वन भमि का डूब क्षेत्र में आना और वन भूमि पर अतिक्रमण भी एक बड़ी समस्या है।
- खनन कार्य, चाय, कॉफी, रबड़, यूकेलिप्टस आदि जैसे एक फसली बागान भी इस क्षेत्र की जैव विविधता को प्रभावित करते हैं।
- रेल और सड़क जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ भी इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर दबाव डालती हैं।
- इनके अलावा भू-क्षरण और भू-स्खलन जैसे कई प्राकृतिक और मानवीय कारणों से भी पश्चिमी घाट की जैव विविधता प्रभावित हुई है।
क्या है सरकारी आश्वासनों संबंधी राज्यसभा समिति?
राज्यसभा में प्रश्नों के उत्तर देते समय या अन्य कार्यवाहियों के दौरान मंत्री सदन में आश्वासन, वायदे और वचन देते हैं। उदाहरण के लिये, एक मंत्री यह वायदा करता है कि वह मामले पर विचार करेगा या आश्वासन देता है कि वह सदन द्वारा अपेक्षित सूचना बाद में प्रस्तुत करेगा। सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति का गठन ऐसे आश्वासनों, वायदों या वचनों के क्रियान्वयन पर अनुवर्ती कार्यवाही करने के लिये किया गया है । यह समिति नियम समिति की सिफारिश पर राज्यसभा में पहली बार 1 जुलाई, 1972 को गठित की गई थी। इस समिति में 10 सदस्य होते हैं जो सभापति द्वारा मनोनीत किये जाते हैं। यह समिति नई समिति का मनोनयन होने तक कार्य करती है।
इन मुद्दों पर चेताया समिति ने
- राज्यसभा की सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति ने माधव गाडगिल और के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली दो अलग-अलग समितियों की सिफारिशों के आधार पर पश्चिमी घाट के हिस्सों के वर्गीकरण से जुड़े मुद्दों की पड़ताल की थी।
- समिति ने पाया कि पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों को चिह्नित करने के लिये पिछले चार वर्षों में जारी तीन मसौदा अधिसूचनाओं के बावजूद छह राज्यों ने कोई कार्रवाई नहीं की।
- इसकी वज़ह से 56 हज़ार वर्ग किमी. क्षेत्र को प्रदूषणकारी गतिविधियों के लिये निषिद्ध यानी पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील चिह्नित नहीं किया जा सका।
- समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, बेरोकटोक खनन और निर्माण कार्य पश्चिमी घाट की पारिस्थितिकी को क्षति पहुँचाने का काम कर रहे हैं।
पश्चिमी भारत की प्रमुख जैव विविधता
- पश्चिमी घाट की गिनती विश्व के जैव विविधता के उन प्रमुख केंद्रों में होती है जिन्हें हॉट-स्पॉट के रूप में जाना जाता है।
- जैव विविधता वाला हॉट-स्पॉट उस जैव भौगालिक क्षेत्र को कहते हैं जहाँ ऐसे विविध प्रकार के जीव बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, जिन पर संकट मंडरा रहा है।
- विविध प्रकार के भौगोलिक, जलवायु संबंधी और भू-वैज्ञानिक कारकों के योगदान से जैव विविधता का भंडार संपन्न होता है।
- इस क्षेत्र का लगभग 30 प्रतिशत भाग वनाच्छादित है और यहाँ उष्णकटिबंधीय नमी वाले सदाबहार वन और नमी वाले पतझड़ी वन शामिल हैं।
- पश्चिमी घाट के ऊपरी हिस्से में पाए जाने वाले शोला नामक घास के प्राकृतिक मैदान (Shola Grasslands) इस क्षेत्र की सबसे बड़ी विशेषता हैं।
जैव विविधता अधिनियम और जैवविविधिता नियम
केंद्र सरकार ने 2002 में जैवविविधिता अधिनियम बनाया और 2004 में जैवविविधिता नियम अधिसूचित किये। इस अधिनियम का कार्यान्वयन राष्ट्र, राज्य और स्थानीय स्तर पर तीन स्तरीय संस्थानों द्वारा होता है।
राष्ट्रीय जैवविविधिता प्राधिकरण
राष्ट्रीय जैव विविधिता प्राधिकरण की स्थापना अक्तूबर, 2003 में चेन्नई में की गई। इसका लक्ष्य जनभागीदारी के माध्यम से भारत की समृद्ध जैवविविधिता के सतत इस्तेमाल को सुनिश्चित करना है।
राष्ट्रीय जैव विविधता कार्ययोजना
केंद्र सरकार ने 2008 में राष्ट्रीय जैव विविधता कार्ययोजना तैयार की थी। इस कार्ययोजना में राष्ट्रीय पर्यावरण नीति के प्रमुख सिद्धांतों की व्याख्या की गई है । इसमें संपोषणीय विकास के सरोकारों में मनुष्य को केंद्र में रखा गया है। इसमें जैव विविधता के संरक्षण और सतत इस्तेमाल की वर्तमान और भावी आवश्यकताओं के आकलन पर आधारित कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की जाती है।