आपदाओं की बारंबारता: कारण एवं समाधान | 15 Jun 2021
यह एडिटोरियल दिनांक 13/06/2021 को 'द इंडियन एक्सप्रेस' में प्रकाशित लेख “Managing Risks From Overlapping Hazards” पर आधारित है। इसमें आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति एवं इससे बचाव के उपायों पर चर्चा की गई है।
संदर्भ
हाल ही में भारत लगातार दो चक्रवातों से प्रभावित हुआ। पहला, पश्चिमी तट पर चक्रवात ताउते और फिर पूर्वी तट पर चक्रवात यास। पर्यावरणीय आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति जलवायु परिवर्तन के प्रति सुभेद्यता का संकेत देती है।
- हालाॅंकि अधिक चिंता का विषय एक आपदा के समाप्त होने से पहले दूसरी आपदा का आना (Overlapping Hazards) है। उदाहरण के लिये यास चक्रवात के तत्काल क्षति के पश्चात् इससे उत्पन्न बाढ़ ने स्थिति को पूरी तरह से अनियंत्रित एवं बदतर कर दिया।
- इसके अलावा, ये पर्यावरणीय आपदाएॅं एक वैश्विक महामारी, कोविड -19, के दौरान आई जिससे इनका नकारात्मक प्रभाव कई गुना बढ़ गया
- सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं को एक साथ इन अतिव्यापी खतरों (Overlapping Hazards) से उत्पन्न होने वाले कई जोखिमों को स्वीकार करने और उन्हें कम करने की दिशा में तत्काल उपाय करने की आवश्यकता है।
अतिव्यापी खतरों (Overlapping Hazards) के उदाहरण:
- गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदानों में बाढ़: वर्षा के मौसम में गंगा ब्रह्मपुत्र के किनारों पर निवास करने वाले लोग कई तरह की परेशानियों से गुज़रते हैं। इन मैदानों की भौगोलिक स्थिति के कारण एक के बाद एक कई आपदाएॅं आती हैं जिनका अलग-अलग प्रभाव पड़ता हैं। इनमें शामिल हैं:
- जलभराव वाले क्षेत्र,
- वे क्षेत्र जो नदी के किनारे हैं और जहाॅं तट कटाव की संभावना है,
- बिना तटबंध वाले क्षेत्रों में नदी में बाढ़,
- तटबंध टूटने से गाॅंवों में बाढ़,
- बाढ़ इत्यादि।
- चक्रवात प्रेरित बाढ़: चक्रवात यास और यास-प्रेरित बाढ़ के परिणामस्वरूप प्रभावित क्षेत्रों में कई अतिव्यापी खतरों को देखा गया। उदाहरण के लिये:
- जल में लवणता का असंतुलित होना,
- कृषि का नुकसान और मत्स्य पालन पर खतरा,
- समुद्री मत्स्य आपूर्ति श्रृंखला का बर्बाद होना
- सड़ रही मछलियों, पौधों और जानवरों के कारण भीषण दुर्गंध से वायु प्रदूषण एवं जल-जनित रोग होने की संभावना।
- सामाजिक सुभेद्यता: अतिव्यापी खतरों के प्रभाव सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक परिस्थितियों पर भी निर्भर करते हैं।
- ज़्यादातर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से हाशिए पर रह रही आबादी को ऐसे आपदा प्रभावित क्षेत्रों में निवास करना पड़ता है।
- अक्सर भूमि (असंतुलित लवणता या क्षरण के कारण), सुरक्षित आवास, पानी और स्वच्छता, स्थिर आजीविका और बाज़ार जैसे विभिन्न संसाधनों तक उनकी पहुॅंच नहीं होती है।
- यह उनकी सामाजिक भेद्यता का कारण और परिणाम दोनों है।
आगे की राह
- जोखिम के कारणों की पहचान करना: जब अतिव्यापी खतरे होते हैं तो प्रत्येक खतरे का अपना चरित्र होता है। अक्सर इन सभी खतरे का अंतिम प्रभाव का अलग-अलग होता है।
- अतः आपदा जोखिम न्यूनीकरण गतिविधियों को भी आपदा की प्रकृति के अनुसार होना चाहिये।
- बेहतर तैयारी और शमन उपायों के लिये सरकार को भारत का आपदा मानचित्र विकसित करने की आवश्यकता है।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर ध्यान केंद्रित करना: व्यक्तिगत एवं तात्कालिक रूप से आपदा के प्रति प्रतिक्रिया देने से बेहतर है सामुदायिक स्तर पर आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर ध्यान केंद्रित करना एवं इसके प्रति लचीलेपन में वृद्धि करना। यह निम्नलिखित माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है:
- पहली बार में खतरों की घटना की आवृत्ति एवं संभावना को कम करना।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली जैसी रणनीतियाँ।
- निकासी और त्वरित बचाव के लिये पर्याप्त स्थानों की व्यवस्था।
- आपदा प्रभाव आकलन को पर्यावरण प्रभाव आकलन का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाना चाहिये।
- आपदा जोखिम बीमा: यह भू-वैज्ञानिक, मौसम विज्ञान, जल विज्ञान, जलवायु विज्ञान, समुद्री, जैविक, और तकनीकी/मानव निर्मित घटनाओं, या उनके संयोजन से उत्पन्न होने वाले खतरों को कवर करता है।
- विकेन्द्रीकृत किंतु एकीकृत ढाॅंचा: आपदा प्रबंधन दृष्टिकोण को और अधिक विकेन्द्रीकृत करने की आवश्यकता है जैसा कि सेंदाई फ्रेमवर्क और 14वें वित्त आयोग द्वारा सुझाया गया है।
- वार्ड स्तर की आपदा प्रबंधन योजना, मनरेगा के माध्यम से बड़े पैमाने पर एलिवेटेड प्लेटफॉर्म का निर्माण, स्वच्छ जल और स्वच्छता सुविधाओं तक सार्वभौमिक पहुॅंच आदि शामिल हैं।
निष्कर्ष
अतिव्यापी खतरों से निपटने के लिये एवं जोखिम में कमी के लिये एक बहु-विषयक दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी, जहाॅं प्रत्येक जोखिम चालक अंतःविषय विचार-विमर्श के अधीन है। इसके बाद वर्ष भर अलग अलग आपदाओं से बचने हेतु तैयारी की जानी चाहिये, जिससे जोखिम की तीव्रता को कम होगी।
अभ्यास प्रश्न: महामारी के दौरान पश्चिमी और पूर्वी तटों पर आने वाले चक्रवात हमें साल भर आपदा के प्रति तैयारी की आवश्यकता हेतु सचेत करते हैं। आपदाओं को टालने एवं इसके प्रति सुभेद्यता को कम करने के लिये बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये।