महज़ नाराज़गी व्यक्त करना ही पर्याप्त नहीं | 19 May 2017

सन्दर्भ 
इस लेख में भारत में किशोरों के साथ यौन अपराधों की बढ़ती घटनाओं  पर चिंता व्यक्त  की गई है| साथ ही, इस तरह के अपराधों को रोकने के लिये पुलिस सुधार तथा त्वरित न्याय के लिये न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया गया है| दरअसल, पुलिस तथा न्यायालयों की मौजूदगी के बावजूद किशोरियों पर यौन हमलों की बढ़ती घटनाएँ हमारे समाज के अन्दर बढ़ती बीमारी की ओर इशारा करती हैं| ऐसी घटनाओं को रोकने के लिये नागरिक समाज एवं राज्य, दोनों को एक-साथ मिलकर कार्य करना होगा|

कुछ  प्रमुख घटनाक्रम

  • उच्चतम न्यायालय द्वारा दिसंबर 2012 में देश की राजधानी दिल्ली में हुए दामिनी घटनाक्रम के दोषियों की मौत की सज़ा की पुष्टी पर काफी चर्चा हुई है| गौरतलब है कि इस घृणित तथा भयावह घटना ने पुरे देश को झकझोर दिया था, जिसके कारण महिलाओं के विरुद्ध अपराध करने वालों से तथा कानून तोड़ने वाले किशोरों से निपटने के लिये मौजूदा कानूनों को और भी कठोर बनाया गया|
  • इसी तरह की कुछ अन्य घटनाओं पर नज़र डालें तो हाल ही में हरियाणा के रोहतक में एक युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म के बाद उसकी निर्मम हत्या कर दी गई, दिल्ली में दो साल की बच्ची के साथ उसके पड़ोशी ने दुष्कर्म किया| कुछ दिन पहले बंगलुरु में एक पाँच साल की बच्ची लापता हो गई थी, बाद में उस बच्ची का शव उसके एक पड़ोसी के बिस्तर के नीचे पाया गया जो उस बच्ची को ढूंढने में उसके पिता की मदद कर रहा था|
  • पश्चिम बंगाल के मालदा ज़िले में एक दस साल की बच्ची के साथ एक क्लब में सामूहिक दुष्कर्म करके उसकी हत्या कर दी गई|
  • ये पूरे देश में हो रही इस तरह की घटनाओं के मात्र कुछ उदाहरण हैं| वस्तुतः जब राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो अपने आँकड़े प्रस्तुत करेगा, तब इस विषय पर और भी चर्चाएँ होंगी, जो कि शायद महत्वपूर्ण भी हैं और हो सकता है कि आवश्यक भी हों|

इन घटनाओं को रोकने के लिये क्या किया जाना चाहिये?  

  • गौरतलब है कि इस तरह के अपराध को करने वालों में कुछ अशिछित तो कुछ आईटी पेशेवर भी शामिल हैं| वैसे, इस तरह के मामलों में दोषी ज़्यादातर पड़ोसी, सगे-संबंधी तथा परिचित ही होतें है|
  • सबसे पहले, अधिक जागरूक तथा प्रभावी पुलिस बल का गठन किया जाना चाहिये, क्योंकि कई बार ऐसा देखा गया है कि पुलिस प्रभावी तरीके से कार्य करने की बजाय पीड़िता को ही परेशान करती है| कुछ साल पहले गुडिया नाम की एक बच्ची के साथ ऐसा ही हुआ था| यदि स्थानीय पुलिस समय से अपना कार्य करती तो गुडिया को प्रतारना से बचाया जा सकता था| इसी तरह हरियाणा के कैथल में एक 14 साल की दुष्कर्म की शिकार पीड़िता की पूछताछ पुरूष पुलिसकर्मियों द्वारा की गई थी और पूछताछ के दौरान उसे अनुचित तरीके से स्पर्श किया गया था|
  • देश भर में हर साल इस तरह की हज़ारों घटनाएँ दर्ज की जाती हैं| अतः इसके लिये पुलिस सुधार की शीघ्र आवश्यकता है| इसके आलावा, नागरिक समाज द्वारा विधायिका एवं नौकरशाही पर दबाव डालकर उनसे ठोस कारवाई करवाने की भी आवश्यकता है| 

क्या कहता है  किशोर न्याय (बाल देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम 2015?

  • यह अधिनियम 15 जनवरी, 2016 से लागू हो गया है| यह बच्चों की बेहतर ढंग से देखभाल और संरक्षण सुनिश्चित करता है |
  • इस कानून की धारा 15 के अंतर्गत 16-18 वर्ष की आयु के बाल अपराधियों द्वारा किये गए जघन्य अपराधों के बारे में  विशेष प्रावधान किये गए हैं|
  • बच्चों द्वारा किये गए जघन्य अपराधों के मामलों में किशोर न्याय बोर्ड द्वारा शुरुआती आकलन के बाद इन मामलों को बाल न्यायालय को स्थानांतरित करने का विकल्प होगा|
  • इस कानून के तहत, ऐसे नाबालिग, जिनकी उम्र 16 साल या उससे अधिक है और उनकी संलिप्तता किसी गंभीर अपराध में पाई जाती है, तो उन्हें बालिग मानकर मुक़दमा चलाया जाएगा| इसका निर्णय किशोर न्याय बोर्ड करेगा|
  • इस अधिनियम के तहत मात्र तीन  साल की सज़ा का प्रावधान किया गया है|
  • किशोर न्याय बोर्ड को, नाबालिगों को नियमित रूप से अदालत ले जाने या सुधार गृह भेजने का फैसला लेने का अधिकार होगा|
  • प्रत्येक ज़िले में बाल कल्याण समिति ऐसे नाबालिगो की संस्थागत देखभाल करेगी| 

न्यायपालिका में सुधार

  • इस तरह के मामलों में त्वरित न्याय के लिये न्यायपालिका में भी सुधार उतना ही महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि कई बार ऐसा देखा गया है कि दुष्कर्म पीड़ितों के लिये फास्ट ट्रैक अदालतों की स्थापना करने के राज्य सरकारों के वादों के बावजूद कुछेक हाईप्रोफाइल मामलों को छोड़कर, हज़ारों मामलों में  अक्षम्य विलम्ब होता है|
  • अगर हमें इस तरह के घृणित अपराधों के विरुद्ध दंड को और भी निवारक बनाना है, तो न्याय को समयबद्ध तरीके से प्रदान करना होगा|

समाज को अन्दर से बीमार करती घटनाएँ

  • किशोरियों के प्रति बढ़ती यौन अपराध की घटनाएँ, हमारे समाज के अंदर बढ़ती बीमारी को प्रकट करती हैं| इन नैतिक प्रश्नों का उत्तर सरल नहीं है| इसके लिये नागरिक समाज को संवेदीकरण की चुनौती को शीघ्रता से उठाना पड़ेगा|
  • इसके लिये, झुग्गियों के पास चल थियेटर से लेकर अच्छे स्कूलों तक, जागरूक कार्यक्रमों को आक्रामक तथा लगातार चलाना पड़ेगा| आखिर हमारी बेटियाँ कम से कम इतने सम्मान की हकदार तो हैं ही|

निष्कर्ष 
महज आलोचना करने से इस समस्या का समाधान  नहीं हो  सकता| हमें  परिवार के सदस्यों, सगे-संबंधियों, पड़ोसियों, मित्रों, परिचितों तथा सबसे महत्त्वपूर्ण, एक जागरूक नागरिक की तरह कार्य करना चाहिये तथा ऐसे दरिंदों पर नज़र बनाए रखनी चाहिये| अंततः सतर्कता केवल स्वतंत्रता के लिये ही आवश्यक नहीं है, बल्कि हमारी बेटियों की सुरक्षा के लिये भी आवश्यक है|