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भारतीय राजनीति

​व्यापार सुगमता हेतु ऑनलाइन विवाद समाधान

  • 15 Apr 2023
  • 13 min read

​​यह एडिटोरियल 13/04/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “​India must board the Online Dispute Resolution bus​” लेख पर आधारित है। इसमें संस्थागत मध्यस्थता में भारत की वर्तमान स्थिति, अनुबंधों को लागू करने में इसके समक्ष विद्यमान चुनौतियों और देश के कारोबारी माहौल में सुधार के लिये ऑनलाइन विवाद निवारण में निहित क्षमता की पड़ताल की गई है।​

​​फरवरी 2023 में आयोजित दिल्ली पंचाट सप्ताहांत (Delhi Arbitration Weekend) में केंद्रीय विधि मंत्री ने कारोबार सुगमता की वृद्धि के लिये संस्थागत पंचाट या मध्यस्थता (institutional arbitration) की आवश्यकता पर बल दिया। भारत ने ​विश्व बैंक​ की ‘​ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस​’ रिपोर्ट (जिसका प्रकाशन अब विश्व बैंक ने बंद कर दिया है)​​ में व्यापक सुधार दिखाया था और ​​वर्ष 2014 में 190 देशों के बीच 142वें स्थान से ऊपर बढ़ते हुए वर्ष 2019 में 63वें स्थान पर​​ पहुँच गया था।​

​​हालाँकि भारत अभी भी अनुबंधों/संविदाओं को लागू करने के मामले में संघर्ष कर रहा है और ​​190 देशों की सूची में 163वें स्थान पर​​ है। जबकि भारत एक अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र में रूपांतरित होने से चूक गया है, देश के लिये ​ऑनलाइन विवाद निवारण (Online Dispute Redressal- ODR) ​में विश्व की गति के साथ संगत होने की संभावना अब भी मौजूद ​​है।​

  • ​​लंबे समय तक मामलों के लंबित बने रहने की मौजूदा समस्या के परिदृश्य में ​​ऑनलाइन विवाद निवारण या समाधान (ODR) में सभी को सुलभ न्याय प्रदान करने की और इस प्रकार इस समस्या का समाधान प्रदान करने की क्षमता​​ है।​

​​संस्थागत मध्यस्थता में भारत की वर्तमान स्थिति ​

  • ​​भारत ने हाल के वर्षों में संस्थागत मध्यस्थता में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।​
  • ​​भारत सरकार ने ​​संस्थागत मध्यस्थता के प्रसार के लिये कई कदम ​​उठाए हैं, जिनमें ​​‘मुंबई सेंटर फॉर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन’ (MCIA)​​ और ​​‘दिल्ली इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर’ (DIAC) ​​की स्थापना किया जाना भी शामिल है। इन संस्थानों का लक्ष्य भारत में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के संचालन के लिये एक विश्वस्तरीय मंच प्रदान करना है।​
  • ​​वर्ष 2022 में विवाद समाधान को गति देने के लिये वित्त मंत्री ने​ ‘गिफ्ट सिटी​’ में एक अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र स्थापित करने की घोषणा ​​की थी।​
  • ​​इन संस्थानों की स्थापना के अलावा, ​​भारत सरकार ने ​मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अधिनियम 2019 [Arbitration and Conciliation (Amendment) Act 2019]​ भी लागू किया है​​ जो भारत में मध्यस्थता प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और इसे अधिक समयबद्ध एवं लागत-प्रभावी बनाने पर लक्षित है।​
    • ​​अधिनियम भारत में मध्यस्थता की प्रगति को बढ़ावा देने और मध्यस्थों (arbitrators) के आचरण को विनियमित करने के लिये ​​भारतीय मध्यस्थता परिषद ​(Arbitration Council of India- ACI)​ की स्थापना का प्रावधान​​ करता है।​

​​ऑनलाइन विवाद निवारण भारत के कारोबारी माहौल में किस प्रकार सुधार कर सकता है?​

  • ​​विवादों का तीव्र समाधान:​
    • ​​भारत में पारंपरिक कानूनी प्रणाली अपनी धीमी और बोझिल प्रक्रिया के लिये जानी जाती है। ODR ​​विवादों को तीव्रता से हल करने में मदद कर सकता है क्योंकि यह प्रौद्योगिकी-सक्षम प्रक्रियाओं पर आधारित​​ है और इसमें भौतिक उपस्थिति संलग्न नहीं है।​
  • ​​लागत-प्रभावी:​
    • ​​वाद या मुकदमेबाजी (Litigation) एक खर्चीला मामला सिद्ध हो सकता है और लघु एवं मध्यम उद्यम (SMEs) प्रायः इसके उच्च लागतों को वहन करने में कठिनाई अनुभव करते हैं। ODR भौतिक सुनवाई, यात्रा और अन्य संबंधित खर्चों की आवश्यकता को समाप्त कर लागत को कम करने में मदद कर सकता है।​
  • ​​न्याय तक पहुँच:​
    • ​​भारत एक विशाल आबादी वाला विविधतापूर्ण देश है और इसके दूरदराज के इलाकों के बहुत-से लोग न्यायालयों तक आसान पहुँच का अभाव रखते हैं। ODR दूरस्थ विवाद समाधान के लिये एक मंच प्रदान करके इस अंतराल को दूर करने में मदद कर सकता है।​
  • ​​दक्षता में वृद्धि:​
    • ​​ODR पारंपरिक विवाद समाधान विधियों की तुलना में अधिक कुशल ​​सिद्ध हो सकता है क्योंकि यह प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करता है। इससे विवादों का तीव्रता से समाधान हो सकता है और न्यायपालिका का बोझ कम हो सकता है।​
  • ​​बेहतर अनुपालन:​
    • ​​ODR अनुपालन में सुधार लाने में सहायता कर सकता है क्योंकि यह विवाद समाधान के लिये एक संरचित प्रक्रिया प्रदान करता है।​​ यह कारोबारों के लिये आरंभ में ही विवादों से बचने में मदद कर सकता है जहाँ यह सुनिश्चित करेगा कि अनुबंध स्पष्ट हैं और सभी पक्ष अपने दायित्वों से पूरी तरह अवगत हैं।​

​​ऑनलाइन विवाद निवारण से संबद्ध चुनौतियाँ ​

  • ​​भौतिक उपस्थिति का अभाव:​
    • ​​ODR पूरी तरह से डिजिटल दायरे में होता है, जिससे विवाद में शामिल पक्षों की पहचान को सत्यापित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। ​​भौतिक उपस्थिति की यह कमी निर्णय को लागू करना कठिन भी बना सकती है​​, क्योंकि आस्ति या संपत्ति को भौतिक रूप से जब्त करने का कोई तरीका मौजूद नहीं है।​
  • ​​क्षेत्राधिकार संबंधी मुद्दे:​
    • ​​ऑनलाइन लेन-देन में विभिन्न देशों के पक्षकार शामिल ​​हो सकते हैं, जो क्षेत्राधिकार संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकता है। अलग-अलग देशों में अलग-अलग कानून प्रचलित होते हैं और यह निर्धारित करना कठिन सिद्ध हो सकता है कि किसी विवाद विशेष पर कौन-से कानून लागू होंगे। इससे निर्णयों को लागू करना चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकता है, क्योंकि सीमा-पार प्रवर्तन के लिये परस्पर-विरोधी कानून या कानूनी ढाँचे की अनुपस्थिति की स्थिति बन सकती है।​
  • ​​सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:​
    • ​​ODR मंचों को ​​पारदर्शिता की आवश्यकता के साथ गोपनीयता की आवश्यकता को संतुलित करना होगा​​। विभिन्न पक्षकार संवेदनशील जानकारी को ऑनलाइन साझा करने में संकोच रख सकते हैं, जो समाधान प्रक्रिया में बाधाकारी बन सकती है। इसके अतिरिक्त, ऑनलाइन मंचों को डेटा गोपनीयता कानूनों का पालन करना होगा, जो सीमा-पार विवादों के मामले में चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकता है।​
  • ​​प्रौद्योगिकी संबंधी सीमाएँ:​
    • ​​ODR मंच ​​प्रौद्योगिकी पर निर्भरता​ ​रखते हैं, जो​ ​तकनीकी गड़बड़ियों या साइबर हमलों के प्रति संवेदनशील ​​हो सकते हैं। प्रौद्योगिकी संबंधी समस्याएँ समाधान प्रक्रिया में देरी या बाधा का कारण बन सकती हैं और साइबर हमले संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा से समझौते की स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं।​
  • ​​न्याय तक सीमित पहुँच:​
    • ​​सभी पक्षकारों के पास ODR मंचों तक एकसमान पहुँच नहीं​​ होगी, जो शक्ति असंतुलन को बढ़ा सकती है।​
      • ​​उदाहरण के लिये, ​​सीमित वित्तीय संसाधनों वाले पक्षकार ODR में भाग लेने के लिये आवश्यक तकनीक या कानूनी सहायता प्राप्त करने में सक्षम नहीं​​ भी हो सकते हैं। इसके कारण असमान परिणाम या निर्णय सामने आ सकते हैं और ODR प्रक्रिया की वैधता को कम कर सकते हैं।​

​​आगे की राह​

  • ​​ODR के उपयोग को प्रोत्साहन देना:​
    • ​​सरकार विधायी उपायों के माध्यम से ODR के उपयोग को प्रोत्साहित कर सकती है​​, जैसे ऑनलाइन लेनदेन से उत्पन्न होने वाले विवादों की श्रेणियों के लिये एक डिफ़ॉल्ट विवाद समाधान उपकरण के रूप में ODR को स्थापित करना, ODR के निर्णयों के प्रवर्तन की फास्ट-ट्रेकिंग और स्टांप शुल्क एवं न्यायालय शुल्क से छूट देना या इन्हें कम करना।​
  • ​​अवसंरचनात्मक चुनौतियों को दूर करना:​
    • ​​सरकार को ​​अवसंरचनात्मक चुनौतियों को दूर करने, ‘डिजिटल डिवाइड’ पर अंकुश लगाने और ODR की प्रगति को उत्प्रेरित करने की आवश्यकता​​ है, जिसके लिये ​​आधार केंद्रों​​ जैसे मौजूदा व्यवस्थाओं का ​इष्टतम उपयोग किया जा सकता है जहाँ वे ODR ​कियोस्क के रूप में भी कार्य कर सकते हैं।​
    • ​​प्रत्येक न्यायालय में ​​पूरक तकनीकी और प्रशासनिक सहायता के साथ एक ODR प्रकोष्ठ ​​स्थापित किया जा सकता है।​
    • ​​जिस तरह ​​केंद्रीय बजट 2023​​ में ​​ई-कोर्ट परियोजना​​ के तीसरे चरण के लिये 7,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है, उसी तरह ​​ODR को भी आगे बढ़ाने के लिये एक समर्पित कोष स्थापित किया जाना चाहिये​​।​
  • ​​शिकायत निवारण तंत्र के रूप में ODR की भूमिका की तलाश करना:​
    • ​​सर​​कारी विभागों को ​​शिकायत निवारण तंत्र के रूप में ODR की भूमिका​​ का पता लगाना चाहिये।​
    • ​​सरकारी संस्थाओं द्वारा ODR के सक्रिय उपयोग से न केवल प्रक्रिया के प्रति भरोसे की वृद्धि होगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित होगा कि सरकार के साथ विवादों को हल करने के लिये नागरिकों की सुविधाजनक एवं लागत-प्रभावी साधनों तक पहुँच है।​

​​अभ्यास प्रश्न:​​ ऑनलाइन विवाद समाधान (ODR) भारत के कारोबारी माहौल को किस प्रकार सशक्त बना सकता है और देश में विभिन्न उद्योगों एवं क्षेत्रों में ODR तंत्र को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करने तथा बढ़ावा देने के लिये कौन-से कदम उठाए जा सकते हैं?​

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