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भारतीय राजव्यवस्था

वैश्विक महामारी के दौरान अंतर्राज्यीय संबंध

  • 06 Apr 2020
  • 16 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में वैश्विक महामारी के दौरान अंतर्राज्यीय संबंधों से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

भारतीय संघीय व्यवस्था की सफलता मात्र केंद्र तथा राज्यों के सौहार्दपूर्ण संबंधों तथा  घनिष्ठ सहभागिता पर ही नहीं अपितु राज्यों के अंतर्संबंधों पर भी निर्भर करती है। वैश्विक महामारी COVID-19 के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिये विभिन्न राज्यों में आपसी समन्वय का होना अति आवश्यक है। ऐसी ही परिस्थितियों की कल्पना कर संविधान निर्माताओं ने राज्यों के बीच आपसी समन्वय को मज़बूत करने के उद्देश्य से ही अंतर्राज्यीय संबंधों के प्रावधानों को लिपिबद्ध किया। भारत की संघीय व्यवस्था में विभिन्न मुद्दों को लेकर राज्यों के बीच मतभेद हो जाना कोई नई बात नहीं है।

इसका ताज़ा उदाहरण वैश्विक महामारी COVID-19 से उपज़ी परिस्थितियों के बीच केरल व कर्नाटक के बीच उत्पन्न जुए मतभेदों में देखे जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त राज्यों के बीच आपसी समन्वय के अभाव का एक अन्य उदाहरण विभिन्न राज्यों से कामगारों के अपने गृह जनपदों व गाँवों में हुए पलायन में भी देखा जा सकता है। पिछले कुछ दिनों में हुई इस प्रकार की अव्यवस्था से यह साफ नज़र आता है कि राज्यों के बीच परस्पर समन्वय एवं सहयोग की भावना का तथा विपरीत परिस्थितियों में संकट प्रबंधन का भी अभाव है। 

इस आलेख में केरल व कर्नाटक के बीच उपजे मतभेद व राज्यों के बीच परस्पर समन्वय के अभाव में हुए पलायन के कारणों के आलोक में अंतर्राज्यीय संबंधों व उनकी महत्ता को समझने का प्रयास किया जाएगा।  

पृष्ठभूमि 

  • हाल ही में वैश्विक महामारी COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये कर्नाटक सरकार ने केरल से सटी हुई सीमा को पूरी तरह से सील कर दिया है। कर्नाटक सरकार का कहना है कि चूँकि केरल में बहुत तेज़ी से कोरोना वायरस का प्रसार हो रहा है इसलिये केंद्र सरकार द्वारा विनिर्धारित सुरक्षापायों को लागू करते हुए राज्य में कोरोना वायरस के प्रसार को सीमित करने के लिये यह कदम उठाया गया है।     
  • वहीँ केरल सरकार का कहना है कि कर्नाटक सरकार द्वारा सीमा सील करने से स्वास्थ्य सेवा में लगे वाहनों का परिचालन बाधित हो गया है, जिससे कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने में सरकार द्वारा किये जा रहे कार्यों में रुकावट पैदा हो गई है। 
  • केरल सरकार का यह भी आरोप है कि कर्नाटक सरकार ने केरल के कासरगोड ज़िले को कर्नाटक के मंगलुरु ज़िले से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग को भी बंद कर दिया है जिससे कासरगोड ज़िले के लोग मंगलुरु में स्थित बेहतर चिकित्सीय सुविधाओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। 

केरल उच्च न्यायालय का निर्णय  

  • केरल उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश देते हुए कहा है कि केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्वास्थ्य सेवा में लगे वाहनों के स्वतंत्र परिचालन को सुनिश्चित करे।
  • स्वास्थ्य आपातकाल के दौरान आवश्यक चिकित्सीय सुविधाओं को उपलब्ध कराने से इनकार करना अनुच्छेद-21 के अंतर्गत प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश 

  • केरल उच्च न्यायालय के दिये गए निर्णय के विरोध में कर्नाटक सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की जिसकी सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायलय ने केंद्र सरकार को दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा कि केंद्र सरकार को दोनों राज्यों की समस्याओं का अध्ययन कर स्वास्थ्य आपातकाल के दौरान आवश्यक चिकित्सीय सुविधाओं को सुनिश्चित करना चाहिये।     

कर्नाटक की आपत्ति का कारण

  • कर्नाटक सरकार का कहना है कि केरल के कासरगोड ज़िले में सर्वाधिक कोरोना वायरस से पीड़ित लोग पाए गये हैं। ऐसे में यदि इन्हें कर्नाटक आने दिया जाता है तो संभव है कि वायरस का प्रसार यहाँ भी तेज़ी से हो जाए क्योंकि यह एक संक्रामक रोग है जो मानव से मानव में स्थानांतरित होता है।
  • कर्नाटक के मंगलुरु ज़िले की स्वास्थ्य अवसंरचना पर पहले से ही अत्यधिक दबाव है। ऐसे में यदि कासरगोड ज़िले के रोगियों के परीक्षण का अत्यधिक दबाव पड़ता है तो इस स्वास्थ्य अवसंरचना के ध्वस्त हो जाने की आशंका है।
  • कर्नाटक सरकार के अनुसार, राज्य सरकार के पास किसी भी समय अपने राज्य की सीमाओं को सील करने की भी शक्ति होती है।
  • कर्नाटक सरकार ने आरोप लगाया कि केरल के राज्यपाल द्वारा कुछ दिनों पूर्व ही संक्रामक बीमारियों के रोकथाम से संबंधित ‘केरल एपिडमिक डीज़ीज़’ नामक एक अध्यादेश पारित किया है जो ऐसी स्थिति में राज्य को अपनी सीमा सील करने की अतिरिक्त शक्ति प्रदान करता है।     

केरल एपिडमिक डीज़ीज़ अध्यादेश 

  • केरल एपिडमिक डीज़ीज़ अध्यादेश का उद्देश्य महामारी के दौरान रोगों के विनियमन और  रोकथाम से संबंधित सभी कानूनों को समेकित करना है।
  • अध्यादेश की धारा 4 में सरकार को इस महामारी से निपटने के लिये विशेष उपाय करने और नियमों को लागू करने की अनुमति मिलती है। इसमें आवश्यक सेवाओं के साथ-साथ मीडिया, बैंकिंग, स्वास्थ्य सेवा आदि को प्रतिबंधित करने की भी शक्ति शामिल है।
  • यह अध्यादेश राज्य सरकार को आवश्यक या आपातकालीन सेवाओं जैसे बैंक, मीडिया, स्वास्थ्य देखभाल, खाद्य आपूर्ति, बिजली, पानी, ईंधन, आदि में सेवाओं की अवधि को प्रतिबंधित करने की अनुमति देता है।
  • इसके अलावा, यह अध्यादेश राज्य सरकार को कई अन्य व्यापक अधिकार देता है। उदाहरण के लिये यह सरकार को सभाओं पर प्रतिबंध लगाने की अनुमति देता है, राज्य की यात्रा करने वालों की निगरानी करने, राज्य की सीमाओं को सील करने,  सार्वजनिक और निजी परिवहन को प्रतिबंधित करने, सरकारी और निजी कार्यालयों, शैक्षिक संस्थानों, दुकानों, कारखानों आदि के कार्य को प्रतिबंधित करने की शक्ति प्रदान करता है। 
  • अध्यादेश में 10,000 रुपये तक के जुर्माने के साथ या बिना दो वर्ष के कारावास के दंड का भी प्रावधान है। 

राज्यों के बीच समन्वय के अभाव के अन्य उदाहरण  

  • कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के दौरान विभिन्न राज्यों यथा आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार, दिल्ली आदि से कामगारों के व्यापक पैमाने पर पलायन की घटना देखने को मिली 
  • दिल्ली, उत्तरप्रदेश और बिहार सरकार के बीच कामगारों के पलायन के दौरान समन्वय का स्पष्ट अभाव दिखा जिससे दिल्ली व उत्तरप्रदेश की सीमा पर बहुत बड़े पैमाने पर लोग एकत्रित हो गए और सोशल डिस्टेंसिंग के सिद्धांत का भी पालन सुनिश्चित नहीं कर पाए

अंतर्राज्यीय सौहार्द बढ़ाने की दिशा में किये गए प्रयास 

  • संविधान ने अंतर्राज्यीय सौहार्द के संबंध में निम्न प्रावधान किये हैं-
    • अंतर्राज्यीय जल विवादों का न्याय-निर्णयन 
    • अंतर्राज्यीय परिषद द्वारा समन्वयता 
    • सार्वजनिक कानूनों, दस्तावेज़ों तथा न्यायिक प्रक्रियाओं को पारस्परिक मान्यता 
    • अंतर्राज्यीय व्यापार, वाणिज्य तथा समागम की स्वतंत्रता 
    • क्षेत्रीय परिषद
  •  अंतर्राज्यीय जल विवाद न्याय-निर्णयन
    • संविधान का अनुच्छेद 262 अंतर्राज्यीय जल विवादों के न्यायनिर्णयन से संबंधित हैं
    • संसद कानून बनाकर अंतर्राज्यीय नदियों तथा नदी घाटियों के जल प्रयोग, बँटवारे तथा नियंत्रण से संबंधित किसी विवाद पर शिकायत का न्यायनिर्णयन कर सकती है
    • संसद यह भी व्यवस्था कर सकती है कि ऐसे किसी विवाद में न ही कोई अन्य न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करें
  • अंतर्राज्यीय परिषद
    • संविधान के अनुच्छेद 263 के अनुसार, राज्यों के परस्पर विवादों का निर्णय करने और उनमें सहयोग की भावना उत्पन्न करने के लिए राष्ट्रपति अंतर्राज्यीय परिषद की स्थापना कर सकता है। 
    • इसी प्रावधान के अनुसार राष्ट्रपति ने वर्ष 1990 में अंतर्राज्यीय परिषद की स्थापना की थी।
    • अंतर्राज्यीय परिषद संघ तथा राज्य सरकारों की नीतियों में समन्वय उत्पन्न करने और राज्यों के परस्पर विवादों को निपटने के लिये संघ सरकार को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती है।
  • सार्वजनिक कानूनों, दस्तावेज़ों तथा न्यायिक प्रक्रियाओं को पारस्परिक मान्यता   
    • अनुच्छेद 261 के अनुसार, भारत के राज्य क्षेत्र में सर्वत्र संघ की तथा प्रत्येक राज्य की सार्वजनिक क्रियाओं अभिलेखों तथा न्यायिक कार्यवाहियों को पूरी मान्यता दी जाएगी।
    • इनकी प्राथमिकता सिद्ध करने की रीति और शर्ते तथा उनके प्रभाव का निर्धारण संसद द्वारा उपबंधित रीति के अनुसार होगा। 
    • भारत के राज्य क्षेत्र के किसी भाग में सिविल न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णय तथा आदेश उस राज्य क्षेत्र के भीतर सभी स्थानों पर निष्पादित किये जाएँगे।  
  • अंतर्राज्यीय व्यापार, वाणिज्य तथा समागम की स्वतंत्रता
    • संविधान के भाग 13 में अनुच्छेद 301 से 307 में भारतीय क्षेत्र में व्यापार, वाणिज्य तथा समागम का वर्णन है।  
  •  क्षेत्रीय परिषद
    • राज्‍यों के बीच और केंद्र एवं राज्‍यों के बीच मिलकर काम करने की संस्कृति विकसित करने के उद्देश्‍य से राज्‍य पुनर्गठन कानून (States Reorganisation Act), 1956 के अंतर्गत क्षेत्रीय परिषदों का गठन किया गया था। राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के भाग-।।। के तहत चार क्षेत्रीय परिषदें स्थापित की गई। 
    • वर्ष 1971 में पूर्वोत्तर क्षेत्रों के लिये एक अतिरिक्त पूर्वोत्तर परिषद का गठन पूर्वोत्तर परिषद अधिनियम, 1971 द्वारा किया गया।
    • प्रत्येक क्षेत्रीय परिषद का अध्यक्ष केंद्रीय गृहमंत्री होता है। प्रत्येक क्षेत्रीय परिषद में शामिल किये गए राज्यों के मुख्यमंत्री, रोटेशन से एक समय में एक वर्ष की अवधि के लिये उस क्षेत्र के क्षेत्रीय परिषद के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं।
    • प्रत्येक राज्य के मुख्यमंत्री और प्रत्येक केंद्रशासित प्रदेश के राज्यपाल तथा क्षेत्र के प्रत्येक राज्य से नामित दो अन्य मंत्री क्षेत्रीय परिषद के सदस्य होते हैं।
    •  प्रत्येक क्षेत्रीय परिषदों के लिये योजना आयोग द्वारा एक व्यक्ति को नामित किया गया, क्षेत्र में शामिल किये गए प्रत्येक राज्यों द्वारा मुख्य सचिवों एवं अन्य अधिकारी/विकास आयुक्त को नामित किया गया।

निष्कर्ष

संकट की इस घड़ी में प्रत्येक राज्य को सामूहिक प्रयत्न करने की आवश्यकता है ताकि इस समस्या से हम शीघ्र बाहर निकल सकें। ऐसे कठिन समय में समन्वय और सहयोग की ज़रूरत है। इन समन्वित प्रयासों के माध्यम से ही इस वैश्विक महामारी के संक्रमण को रोका जा सकता है। इस दिशा में भारत द्वारा सार्क सदस्य राष्ट्रों के साथ की गई समन्वय की पहल सराहनीय है। हमें राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे ही प्रयासों को मूर्त रूप देने की आवश्यकता है।  

प्रश्न- कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी के संक्रमण को रोकने के लिये सभी हितधारकों के समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिये

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