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जैव विविधता और पर्यावरण

गिर के एशियाई शेर

  • 06 Oct 2018
  • 8 min read

संदर्भ

हाल ही में गुजरात के गिर अभयारण्य के पूर्वी हिस्से में 23 शेरों की मृत्यु हो गई है। एशियाई शेरों की मौतों की श्रृंखला के बाद, प्रारंभिक रिपोर्टों में कहा गया है कि ये एशियाई शेर कैनाइन डिस्टेंपर वायरस के संक्रमण के कारण मारे गए हैं। उल्लेखनीय है कि वन्यजीवों की सामूहिक रूप से मृत्यु दर हमेशा चिंता का कारण रही है और वर्तमान मामला और भी चिंताजनक है क्योंकि गुजरात के जंगल में ही एशियाई शेर अंतिम निवास के रूप में वास करतें हैं। वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश जारी किया था कि महामारी के खतरे के कारण गुजरात से शेरों को मध्य प्रदेश के कुनो अभयारण्य में स्थानांतरित किया जाएगा लेकिन जंगली जानवर भी राज्य की राजनीति से परे नहीं हैं। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने एशियाई शेरों की मौत को एक गंभीर घटना मानते हुए केंद्र सरकार से इस मामले को देखने के लिये कहा है।

कैनाइन डिस्टेंपर क्या है?

  • कैनाइन डिस्टेंपर वायरस जनित संक्रामक बीमारी है जिससे तमाम तरह की पशु प्रजातियाँ प्रभावित होती हैं। इस वायरस से श्वसन प्रणाली, आँतें और तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है।
  • मूत्र, रक्त या लार के साथ सीधे संपर्क के माध्यम से यह वायरस एक पशु प्रजाति से दूसरे पशु प्रजाति तक पहुँचता है।
  • कैनाइन डिस्टेंपर पहली बार यूरोप के स्पेन में 1761 में सामने आया।
  • कैनाइन डिस्टेंपर के खिलाफ पहला टीका इटली के पंटोनी (Puntoni) ने विकसित किया था।

अदालत का आदेश क्या था?

  • अपने 2013 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एशियाई शेरों का केवल एक ही आवास है यानी गिर राष्ट्रीय वन और इसके आस-पास के क्षेत्रों तक सीमित क्षेत्र तथा संभावित महामारी या प्राकृतिक आपदा का प्रकोप पूरी प्रजाति को समाप्त कर सकता है।
  • उल्लेखनीय है कि सीमित एशियाई शेरों की एक छोटी आबादी बड़ी और व्यापक आबादी की तुलना में बीमारियों और अन्य आपदाओं के प्रति अधिक संवेदनशील है।
  • कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी ध्यान दिलाया कि तंजानिया के सेरेनेगी में शेर की कुल आबादी का 30% कैनाइन डिस्टेंपर (एक वायरल बीमारी जो जानवरों को प्रभावित करती है) के फैलने के कारण मारे गए थे।

गुजरात राज्य की प्रतिक्रिया

  • गुजरात अपने शेरों को स्थानांतरित करने के लिये तैयार नहीं है क्योंकि वह उन्हें अपना "गर्व" मानता है।
  • गुजरात राज्य की प्रतिक्रिया यह थी कि शेर अब ग्रेटर गिर क्षेत्र में फैले हुए हैं और इससे उनके प्रति खतरा कम हो जाता है।
  • गुजरात ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि, "वर्तमान में एशियाई शेरों की आबादी एक ही जगह तक सीमित नहीं है बल्कि ग्रेटर गिर क्षेत्र के भीतर कई स्थानों पर इनके मेटापॉपुलेशन का प्रसार किया गया है।
  • इस प्रकार शासन ने संरक्षण व्यवस्था और मज़बूत वन्यजीव स्वास्थ्य देखभालों, महामारी मुक्त की उचित व्यवस्था की है।
  • उल्लेखनीय है कि ये क्षेत्र एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और यह भौगोलिक दृष्टि से दूर इनकी आबादी को बसाने की मुख्य चिंता को भी दूर करता है।

चिंता के बिंदु

  • वन्यजीव संरक्षण पशु प्रजातियों और उनके निवासों की रक्षा करने का अभ्यास है।
  • यह कार्य आंशिक रूप से लुप्तप्राय प्रजाति अधिनियम जैसे कानून के द्वारा तथा जिम्मेदार सार्वजनिक व्यवस्था के माध्यम से संरक्षित करके किया जाता है।
  • वन्यजीव संरक्षण खुद को पारिस्थितिकीय प्रक्रियाओं में बनाए रखने और लुप्तप्राय प्रजातियों हेतु खतरे को कम करने जैसे मुद्दों को लेकर चिंतित है, किंतु यह बीमार जंगली जानवरों के इलाज को अपने कार्य में शामिल नहीं करता है।
  • हालाँकि, जंगली जानवरों का इलाज और देखभाल करना ज़रूरी है लेकिन यह जीवन और मृत्यु की स्वाभाविक प्रक्रिया के लिये अनुकूल नहीं है और अंततः यह प्रतिरक्षा से समझौता करता है।
  • इस तरह के प्रबंधन का एक और उदाहरण राजस्थान के रणथंभौर की बाघिन माचली थी जिसे दुनिया की सबसे अधिक छायाचित्रों वाली बाघिन के रूप में जाना जाता है और वर्ष 2016 में इसकी मृत्यु हुई।
  • ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि उसे चिकित्सकीय इलाज दिया जाता था और अक्सर कृत्रिम रूप से भोजन खिलाया जाता था।
  • जब जंगली जानवर स्थानीय रूप से विलुप्त हो जाते हैं, तो उन्हें फिर से पेश किया जाता है - जैसे राजस्थान के सरिस्का में बाघों को किया गया था।
  • भूखे होने पर उन्हें कृत्रिम रूप से खाना खिलाया जाता है और यहाँ तक ​​कि पूरक के रूप में लवण भी प्रदान किया जाता है। इसका प्रमुख उदाहरण जम्मू-कश्मीर के दाचिगम में हंगुल (लाल हिरण) की आबादी है।
  • इसके अलावा भारत के अन्य हिस्सों में जंगली जानवर कृत्रिम खाइयों, बाधाओं और बाड़ों में फँस जाते हैं या कई बार वन्यजीव संरक्षण के नाम पर उन्हें संरक्षित क्षेत्र यानी चिड़ियाघर में रखा जाता है।

आगे की राह

  • अधिकांश संरक्षणवादी इस बात से सहमत होंगे कि जंगली जानवरों के स्थायित्त्व के लिये लंबे समय तक किये जा रहे अधिक कृत्रिम चिकित्सा उपचार उचित नहीं है।
  • साथ ही, वन्यजीव प्रबंधकों की भूमिका वन्यजीवों के लिये अप्राकृतिक खतरों को कम करने की होनी चाहिये, न कि उनके जीवन को अनैसर्गिक रूप से अधिक समय तक बनाए रखने के लिये।
  • हालाँकि, गुजरात ने शेरों को संरक्षित करने का अच्छा काम किया है, लेकिन उसे इस रोग के संचालकों को कम करने पर भी ध्यान देना चाहिये, जिसमें जंगली कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करना भी शामिल है।
  • साथ ही भौगोलिक दृष्टि से एशियाई शेरों की अलग आबादी बनाई जानी चाहिये और गुजरात को राज्य के भीतर तथा गिर परिदृश्य के बाहर नए आवासों को बनाने की दिशा में भी काम करना चाहिये।
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