भारत-इज़राइल संबंधों में मज़बूती का नया दौर | 02 May 2020
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत-इज़राइल संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
ऐसे समय में जब कोरोना वायरस का प्रसार पूरी दुनिया में अपने चरम पर है, प्रतिदिन होने वाले कई बिलियन डॉलर का व्यापार रुक गया है और अरबों लोगों को उनके घरों तक सीमित कर दिया गया है, निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि COVID-19 महामारी गतिशील दुनिया में ठहराव ले आया है। हालाँकि, कोरोना वायरस भारत और इज़राइल के बीच बढ़ते द्विपक्षीय सहयोग की गति को धीमा नहीं कर सका। वास्तव में, दोनों राष्ट्रों ने न केवल इस महामारी को हराने के लिये सहयोग व समन्वय किया, बल्कि ज़रूरत के समय एक-दूसरे के निकट भी आए।
सहयोग व समन्वय का ताज़ा उदाहरण जून 2019 में भारत के रुख में देखा जा सकता है, जब भारत ने अपने रुख में परिवर्तन करते हुए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (United Nations Economic and Social Council) में इज़राइल के एक प्रस्ताव के समर्थन में मतदान किया है। इज़रायली प्रस्ताव में फिलिस्तीन के एक गैर-सरकारी संगठन 'शहीद' को सलाहकार का दर्जा दिये जाने पर आपत्ति जताई गई थी। इज़राइल का मानना था कि संगठन ने हमास के साथ अपने संबंधों का खुलासा नहीं किया है, परिणामस्वरूप संगठन को संयुक्त राष्ट्र में पर्यवेक्षक का दर्जा देने संबंधी प्रस्ताव निरस्त हो गया।
इस आलेख में भारत-इज़राइल संबंधों की पृष्ठभूमि, दोनों देशों के मध्य सहयोग के क्षेत्र, भारत की डी-हाईफनेशन कूटनीति, सामरिक भागीदारी, मुक्त व्यापार समझौते को लेकर इज़राइल के विचार तथा कोरोना वायरस के दौरान भारत से प्रेरित इज़राइल की 'नो कॉन्टेक्ट पॉलिसी' पर विमर्श करने का प्रयास किया जाएगा।
भारत-इज़राइल संबंधों की पृष्ठभूमि
- 17 सितंबर, 1950 को भारत ने इज़राइल को औपचारिक राजनयिक मान्यता प्रदान की। इसके तुरंत बाद बॉम्बे (वर्तमान मुंबई) में एक आव्रजन कार्यालय स्थापित किया गया, जिसे बाद में एक वाणिज्यिक दूतावास में बदल दिया गया।
- वर्ष 1992 में पूर्ण राजनयिक संबंधों की स्थापना के साथ दूतावास खोले गए। इसके बाद दोनों देशों के संबंधों में आश्चर्यजनक प्रगति देखी गई।
- वर्ष 2017 में भारत व इज़राइल के बीच संबंधों की स्थापना के 25 वर्ष होने पर इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू जनवरी 2018 में भारत की यात्रा पर आए।
क्या है नो कॉन्टेक्ट पॉलिसी?
- विदित है कि कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने में फिजिकल डिस्टेंसिंग एक कारगर उपाय सिद्ध हुआ है।
- भारत में अभिवादन की प्रक्रिया 'नमस्ते' फिजिकल डिस्टेंसिंग का एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसमें अभिवादन के दौरान किसी भी प्रकार का शारीरिक स्पर्श नहीं किया जाता है।
- इज़राइल ने कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिये नो कॉन्टेक्ट पॉलिसी के द्वारा अभिवादन की प्रक्रिया नमस्ते को अपनाया है। जो भारत और इज़राइल के मज़बूत होते संबंधों का प्रतीक है।
भारत-इज़राइल के मध्य सहयोग के क्षेत्र
स्वास्थ्य क्षेत्र
- COVID-19 महामारी प्रसार को रोकने के लिये भारत द्वारा इज़राइल को आवश्यक दवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित कराई जा रही है।
- भारत सरकार ने इज़राइली दवा उद्योग के लिये मेडिकल टीम भेजने और कच्चे माल के लिए N-95 फेस मास्क और अन्य चिकित्सीय उपकरणों की आपूर्ति सुनिश्चित करने को मंजूरी दी है।
रक्षा क्षेत्र
- मार्च 2020 में भारत ने इज़राइल के साथ 880 करोड़ रुपए का एक रक्षा सौदा किया है। इस रक्षा सौदे में भारतीय सशस्त्र बलों के लिये 16,479 लाइट मशीन गन खरीदने का ऑर्डर दिया गया है।
- भारत ने इज़राइल की रक्षा कंपनियों को 'मेक इन इंडिया' में संयुक्त उत्पादन के लिये आमंत्रित किया, क्योंकि भारत में रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में इज़राइल के लिये निवेश के अच्छे अवसर हैं।
- इज़राइल यदि रक्षा उत्पादन क्षेत्र में निवेश करता है तो इससे भारत को अरबों डॉलर की बचत होगी, जो इज़राइल से हथियारों के आयात पर खर्च होता है।
- विदित हो कि रूस के बाद इज़राइल भारत का दूसरा सबसे बड़ा हथियारों का आपूर्तिकर्त्ता है।
- रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में निवेश होने से घरेलू विनिर्माण को लाभ होगा, नौकरशाही के माध्यम से संचालित राज्य के स्वामित्व वाली आयुध कारखानों पर निर्भरता कम होगी तथा नई तकनीक भी प्राप्त होगी।
- भारत ने इज़राइली कंपनियों को रक्षा क्षेत्र में भारत की उदार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति का लाभ उठाने के लिये संयुक्त उत्पादन करने का प्रस्ताव दिया।
कृषि में सहयोग
- भारत के कृषि मंत्री की पिछले वर्ष हुई इज़राइल यात्रा के दौरान दोनों देशों ने कृषि क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाने का निर्णय लिया था।
- दोनों देशों के बीच कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में सहयोग को और अधिक बढ़ाने की प्रतिबद्धता के मद्देनज़र बागवानी के क्षेत्र में 2015 से एक कार्यक्रम क्रियान्वित किया जा रहा है।
- इस कार्यक्रम के तहत विभिन्न फलों एवं सब्जियों की खेती के लिये 21 राज्यों में 27 उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किये जा रहे हैं, जिनमें से अधिकांश की स्थापना का काम पूरा हो चुका है।
- इज़राइल में पानी की कमी के कारण सिंचाई के लिये ड्रिप इरिगेशन पद्धति का उपयोग होता है।
- बागवानी, खेती, बागान प्रबंधन, नर्सरी प्रबंधन, सूक्ष्म सिंचाई और सिंचाई पश्चात् प्रबंधन क्षेत्र में इज़राइली प्रौद्योगिकी से भारत को काफी लाभ मिला है।
- इसका हरियाणा और महाराष्ट्र में काफी उपयोग किया गया है।
जल संसाधन प्रबंधन
- इज़राइल की तुलना में भारत में जल की पर्याप्त उपलब्धता है लेकिन वहाँ का जल प्रबंधन हमसे कहीं बेहतर है।
- पानी की कम उपलब्धता के चलते इज़राइल ने अवजल प्रसंस्करण और खारे पानी को मीठा बनाने की पद्धति में दक्षता प्राप्त कर ली है।
- इज़राइल ने भारत में खारे पानी को पीने योग्य बनाने के लिये कई संयंत्र स्थापित किये हैं।
- इज़राइल में कृषि, उद्योग, सिंचाई आदि कार्यों में पुनर्चक्रित पानी का उपयोग अधिक होता है, इसीलिये वहाँ के लोगों को पानी की किल्लत का सामना नहीं करना पड़ता।
- भारत जैसे विकासशील देश में 80 प्रतिशत आबादी की पानी की ज़रूरत भूजल से पूरी होती है और यह भी सच है कि उपयोग में लाया जा रहा भूजल प्रदूषित होता है।
- इसके अलावा आपसी सहमति के क्षेत्रों के साथ-साथ अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग, अलवणीकरण, जल संरक्षण के तरीकों व जल संसाधन प्रबंधन के क्षेत्रों में अनुभवों और विशेषज्ञता को साझा करने की ज़रूरत भी बताई गई थी।
- कुछ समय पूर्व दोनों देशों के बीच सहयोग के क्षेत्रों का पता लगाने के लिये एक संयुक्त कार्यसमूह का गठन करने पर भी सहमति बनी थी।
सहयोग के अन्य क्षेत्र
- इस वैश्विक महामारी को रोकने के लिये लागू किये गए लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में दोनों देशों के नागरिक फँस गए थे, जिन्हें निकालने के लिये दोनों देशों की वायुसेना ने एक समझौता किया।
- इज़राइल नवाचार के मामले में अग्रणी है और तकनीक के मामले में वैश्विक ताकत है, जबकि भारत रचनात्मक प्रतिभाओं विशेषकर वैज्ञानिकों आदि के मामले में धनी है।
- भारत और इज़राइल के बीच साइबर सुरक्षा और सीमा पर निगरानी तंत्र में भी सहयोग की संभावनाएँ हैं।
- भारत बुनियादी ढाँचा विकास और स्मार्ट सिटी परियोजनाओं में भी इज़राइली विशेषज्ञता की मदद ले सकता है।
- इज़राइल को ‘स्टार्ट-अप’ हब के रूप में भी जाना जाता है जो भारत की नई आईटी कंपनियों के आगे बढ़ने और बाज़ार में बने में सहायता कर सकता है।
मुक्त व्यापार समझौते को लेकर इज़राइल का रुख
- भारत के मध्यम वर्ग को इज़राइल अपना निर्यात बढ़ाने के अवसर के रूप में देखता है। इज़राइल के लिये भारत एक बड़ा निर्यात बाज़ार है।
- इज़राइल का मानना है कि भारत के साथ मज़बूत होते संबंध रक्षा उत्पादों के निर्यात से आगे बढ़कर वस्तु एवं सेवाओं के व्यापार में वृद्धि की दिशा में बढ़ेंगे।
- भारतीय अर्थव्यवस्था इज़राइल निर्यात के लिये प्रमुख गंतव्य बनती जा रही है।
- भारत के 1.3 अरब उपभोक्ताओं में लगभग 30 करोड़ नागरिक मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग में हैं।
- इनकी खरीद क्षमता पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं के समान है और ये इज़राइल के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
- मुक्त व्यापार समझौते की बातचीत में बाधाओं के बने रहने से लंबे समय से इसको लेकर संशय बना हुआ है।
- दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते के मुद्दे पर बातचीत सात साल पहले शुरू हुई थी, जब इसका पहला दौर मई 2010 में हुआ था।
- लंबे समय से लटके पड़े इस समझौते के बारे में इज़राइल का यह मानना है कि भारत इस बारे में फिर से मूल्यांकन कर रहा है।
- जब तक यह नहीं होता तब तक दोनों देशों के बीच उनकी आर्थिक क्षमताओं का लाभ उठाने के लिये अन्य प्रयास किये जा रहे हैं।
फिलिस्तीन के मुद्दे पर भारत का रुख जस-का-तस
- बहुत से लोगों को यह आशंका थी कि भारत और इज़राइल के प्रगाढ़ होते संबंधों से भारत-फिलिस्तीन संबंध प्रभावित हो सकते हैं, लेकिन भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उसके रुख में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है।
- हाल ही में जब अमेरिका ने यरूशलम को इज़राइल की राजधानी स्वीकार करने का विवादास्पद प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में रखा तो भारत सहित 128 देशों ने प्रस्ताव का विरोध किया, जबकि केवल नौ देशों ने ही इसके पक्ष में वोट दिया और 35 देश अनुपस्थित रहे।
- इस प्रस्ताव में कहा गया था कि यरुशलम के दर्जे को लेकर बातचीत होनी चाहिये और बदलाव पर अफसोस जताते हुए अमेरिका के फैसले को अमान्य घोषित किया गया।
- कई दशकों से भारत और फिलिस्तीन संबंध मजबूत रहे हैं और संभवतः यही कारण रहा कि संयुक्त राष्ट्र में भारत ने इज़राइल के खिलाफ वोट दिया।
डी-हाईफनेशन कूटनीति
- जुलाई 2017 में प्रधानमंत्री मोदी इज़राइल की यात्रा पर गए परंतु इस यात्रा के दौरान वह फिलिस्तीन नहीं गए। कूटनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कदम भारत की पूर्व में अपनाई गई नीति से विपरीत है। इससे पहले भारतीय राजनेता एक साथ दोनों पश्चिम एशियाई देशों का दौरा करते रहे हैं।
- भारत द्वारा इज़राइल और फिलिस्तीन को लेकर अपनाई गई इस नीति को कूटनीतिक एक्सपर्ट ‘डी-हाईफनेशन’ नाम देते हैं।
- डी-हाईफनेशन की नीति, अमेरिका द्वारा भारत व पाकिस्तान (भारत और पाकिस्तान की आपसी तल्खी को नज़रंदाज़ करते हुए दोनों देशों के साथ रिश्तों को अलग-अलग तरजीह देना) के संदर्भ में अपनाई गई नीति से प्रभावित है।
निष्कर्ष
इज़राइल ने भारत में कृषि, सिंचाई और अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश किया है और भारत में विनिर्माण के क्षेत्र में निवेश की संभावनाएँ तलाश रहा है। भारत और इज़राइल के संबंध अगर रक्षा क्षेत्रों से इतर तेज़ी से आगे बढ़ाने हैं तो इसके लिये दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता होना चाहिये, जिसके ज़रिये भारत की कई कंपनियाँ इज़राइल की साझेदारी में वैश्विक स्तर पर पहचान बनाने की कोशिश कर सकती हैं। इज़राइल ने Reform, Perform & Transform की माँग की थी, जिसे भारत ने काफी हद तक पूरा करने का प्रयास किया है। वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएँ एक-दूसरे की पूरक बन सकती हैं, लेकिन दोनों देशों को द्विपक्षीय संभावनाओं तथा कारोबार और निवेश का दोहन करने के लिये और कदम उठाने की ज़रूरत है।
प्रश्न- डी-हाईफनेशन कूटनीति से आप क्या समझते हैं? भारत-इज़राइल के मध्य सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए बताएँ कि क्या भारत, फिलिस्तीन के साथ अपने संबंधों की कीमत पर इज़राइल के साथ अपने संबंध विकसित कर रहा है?