नेबरहुड फर्स्ट नीति की भूमिका | 04 Dec 2018
संदर्भ
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मालदीव के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सालेह के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री के रूप में उनकी यह पहली मालदीव की यात्रा है जिसे दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों को मज़बूत करने की कोशिश के साथ ही ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ के तहत उठाया गया कदम माना गया है। हालाँकि, संबंधों का यह दौर कोई नया नहीं है इसी वर्ष चुनाव में जीत हासिल करने के बाद सालेह स्पष्ट रूप से कह चुके हैं कि उनकी नीति ‘इंडिया फर्स्ट’ की रहेगी। संबंधों के लचीलेपन को एक नई, उदारवादी पड़ोस नीति या ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ के क्रियान्वयन के तौर पर देखा जा रहा है।
‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ (Neighbourhood first policy)
- तेज़ी से बदलते परिदृश्य के साथ बाहरी मामलों से निपटने के लिये नीतियाँ भी बदलती रहती हैं। अतः भारत भी समय-समय पर अपनी विदेश नीति में ऐसे बदलाव करता रहता है ताकि समयानुसार स्थितियों का सर्वाधिक लाभ प्राप्त किया जा सके।
- भारत ने वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय एकीकरण की आवश्यकता को संबोधित करने के लिये ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ (Neighbourhood first policy) को वर्ष 2005 में प्रारंभ किया।
- ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ का अर्थ अपने पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देने से है अर्थात ‘पड़ोस पहले’ (Neighbourhood first)।
- इस नीति के तहत सीमा क्षेत्रों के विकास, क्षेत्र की बेहतर कनेक्टिविटी एवं सांस्कृतिक विकास तथा लोगों के आपसी संपर्क को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- उल्लेखनीय है कि यह सॉफ्ट पॉवर पॉलिसी का ही एक माध्यम है।
- इस नीति के तहत शामिल महत्त्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं :
- इस नीति के माध्यम से भारत अपने पड़ोसी देशों तथा हिंद महासागर के द्वीपीय देशों को राजनीतिक एवं कूटनीतिक प्राथमिकता प्रदान करने का इच्छुक है।
- पड़ोसी देशों को संसाधनों, सामग्रियों तथा प्रशिक्षण के रूप में सहायता प्रदान कर समर्थन देना है।
- भारत की इस नीति का उद्देश्य भारत के नेतृत्व में क्षेत्रवाद के ऐसे मॉडल को प्रोत्साहित करना है जो पड़ोसी देशों के भी अनुकूल हो।
- वस्तुओं, लोगों, ऊर्जा, पूँजी तथा सूचना के मुक्त प्रवाह में सुधार हेतु व्यापक कनेक्टिविटी और एकीकरण।
- साथ ही सांस्कृतिक विरासत के माध्यम से पड़ोसी देशों के साथ संपर्क स्थापित करना।
वर्ष 2018 की नेबरहुड फर्स्ट नीति का कार्यान्वयन
- वर्तमान सरकार द्वारा सामान्य रूप से पिछले एक वर्ष के भीतर अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मज़बूती प्रदान करने पर बल दिया गया है, हालाँकि रूस और चीन जैसी प्रमुख शक्तियों के साथ संबंधों के क्षेत्र में अभी असहमतियाँ प्रमुखता पर हैं।
- इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री द्वारा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ "वुहान शिखर सम्मेलन" और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ "सोची रिट्रीट" पर बहुत ध्यान दिया गया, लेकिन वर्तमान में इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण अपने वर्तमान पड़ोसियों के साथ संबंधों को मधुर बनाए रखना है।
- भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी में नेपाल सबसे प्रथम स्थान पर आता है और संबंधों की मज़बूती के लिये ही मई 2018 को नेपाल के जनकपुर से अयोध्या और अयोध्या से जनकपुर एक बस सेवा की शुरुआत की गई है।
- नेपाल के साथ संबंधों में, वर्ष 2015 की नाकाबंदी के बाद से सरकार की नीति में थोड़ी कठोरता देखी गई । वर्ष 2018 में जब श्री ओली को भारत विरोधी अभियान के बावजूद फिर से निर्वाचित किया गया, तो वर्तमान सरकार ने तत्परता दिखाते हुए अपने कदम नेपाल की तरफ बढ़ाए और अपरंपरागत कदम के रूप में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने काठमांडू की यात्रा की।
- इसके बाद नेपाल के प्रधानमंत्री श्री ओली को अधिकारिक रूप से दिल्ली में आमंत्रित किया गया है और वर्तमान प्रधानमंत्री द्वारा दो बार नेपाल की यात्रा की गई है तथा दिसंबर में प्रधानमंत्री की नेपाल के "विवाहा पंचमी" नामक त्योहार का हिस्सा बनने की भी संभावना है।
- मालदीव में अब्दुल्ला यामीन के पिछले शासन के दौरान जब आपातकाल घोषित किया गया था, तो भारत ने घरेलू टिप्पणीकारों और पश्चिमी राजनयिकों की अपेक्षाओं के बावजूद उन्हें सैन्य रूप से धमकी देने का कोई प्रयास नहीं किया था।
- जब यामीन ने हज़ारों भारतीयों (नौकरी तलाशने वालों) और नौसेना तथा सैन्यकर्मियों को वीज़ा देने से इनकार कर दिया, तब भी भारत ने उसकी इस प्रतिक्रिया पर कहा कि हर देश को अपनी वीज़ा नीति तय करने का अधिकार है।
- इसके अतिरिक्त भूटान, बांग्लादेश तथा श्रीलंका में चल रहे राजनीतिक संकट और चुनावों के संबंध में, भारत ने न तो कोई सार्वजनिक राजनीतिक बयान दिया साथ ही किसी भी बयान से दूरी बनाए रखी जो एक तरफा हस्तक्षेप या वरीयता के रूप में माना जा सकता है।
- शायद इस वर्ष सबसे बड़ा नीतिगत बदलाव काबुल में अशरफ घनी सरकार को रियायत देकर किया गया था। तालिबान के साथ जुड़ने से इनकार करने के दो दशकों से अधिक के बाद, दोनों देश एक वार्ता के भागीदार रहे और नवंबर में भारत ने अफगानिस्तान में मास्को सम्मेलन के दौरान अपने राजदूत भेजे जहाँ तालिबान के प्रतिनिधि भी मौजूद थे।
- साथ ही यू.एस. ने मॉस्को में एक राजनयिक को "पर्यवेक्षक" के रूप में भेजने का फैसला किया, लेकिन इस क्षेत्र में पूर्व राजदूतों का भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने अनौपचारिक रूप इस दौरान भागीदार बना।
- उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व भारत सरकार उपर्युक्त प्रक्रिया से अलग रहती थी और अफगानिस्तान के बाहर किसी भी बैठक को 'अफगान-स्वामित्व और अफगान-नेतृत्व वाले समाधान' (“Afghan-owned and Afghan-led solution”) पर रेडलाइन को पार करने वाला माना जाता था।
- हालाँकि, रूसी सरकार ने उच्च स्तरीय पहुँच द्वारा स्थिति को परिवर्तित कर दिया, जिसने सम्मेलन को एक बड़ी राजनयिक सफलता के रूप में पेश किया है, जबकि भारत की भागीदारी को स्वयं राष्ट्रपति घनी ने कम करके आँका था।
- अपनी दिल्ली की यात्रा के दौरान राष्ट्रपति घनी ने तालिबान के साथ वार्ता का समर्थन करने के लिये एक मज़बूत आधार बनाया था।
- दोनों देशों की संयुक्त वार्ता के दौरान राष्ट्रपति घनी ने जोर देकर कहा था कि अफगानिस्तान में इस्लामी राज्य और 'विदेशी आतंकवाद' जैसी समस्याएँ मौजूद थीं और इसलिये अफगान के तालिबान इसके विरोध में है।
करतारपुर लिंक एक अग्रगामी कदम
- उपर्युक्त परिप्रेक्ष्य में ही सरकार ने बीते दिनों सिखों के पवित्र धर्मस्थल करतारपुर साहिब को भारत और पाकिस्तान से जोड़ने वाले करीब छह किमी लंबे गलियारे की आधारशिला रखी।
- पाकिस्तान सरकार भी उचित सुविधाओं के साथ अपने क्षेत्र में ऐसा ही 4 किलोमीटर लंबा गलियारा बनाने पर राज़ी हो गई।
- भारत ने पाकिस्तान के साथ नरमी का व्यवहार बरतते हुए दो केंद्रीय मंत्रियों को पाकिस्तान में करतारपुर कॉरिडोर के समारोह में शामिल होने के लिये भेजा।
- करतारपुर कॉरिडोर को भी भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ का ही भाग माना जा रहा है।
- गौरतलब है कि सितंबर 2016 में उरी हमले के बाद से किसी भारतीय मंत्री द्वारा पाकिस्तान का दौरा नहीं किया गया था और इसी वर्ष संयुक्त राष्ट्र में विदेश मंत्रीस्तर की वार्ता रद्द करने के बाद, यह माना गया कि सरकार इस्लामाबाद की नई सरकार के साथ किसी भी समझौते का प्रस्ताव नहीं करेगी।
- हालाँकि, ऐसा लगता है कि सार्क शिखर सम्मेलन के लिये प्रधानमंत्री की पाकिस्तान यात्रा से पूर्व किसी बड़े बदलाव की संभावना नहीं है।
- इसके बावजूद लोगों के बीच आपसी संबंधों (people-to-people ties) को बढ़ावा देते हुए प्रधानमंत्री ने भी करतारपुर गलियारे के संबंध में किये गए प्रयास की प्रशंसा करने के साथ ही इसकी तुलना बर्लिन की दीवार गिराए जाने से की, जिसे दोनों देशों के बीच एक नई आशा का संचार होने के रूप में माना जा रहा है।
‘बिग ब्रदर’ से ‘नेबरहुड फर्स्ट’ की नीति को अपनाने का कारण
- उपर्युक्त सभी नीतियों के चलते सवाल उठता है कि, सरकार ने अपने पड़ोस में ‘बिग ब्रदर’ की भूमिका की बजाय अधिक वास्तविक और अनौपचारिक संस्करण में बदलने का फैसला क्यों किया है?
- इसका एक प्रमुख कारण निश्चित रूप से नेपाल और मालदीव जैसे कुछ छोटे पड़ोसियों से प्राप्त प्रतिक्रिया है, जो सशस्त्र और मज़बूत होने के बाद अपनी नीतियों को लेकर कठोर हुए हैं, भले ही भारत ने उनके हित में ही सलाह क्यों न दी हो।
- इसके अतिरिक्त चीन द्वारा भारत के पड़ोसियों को बुनियादी ढाँचे के निर्माण के नाम पर ऋण-जाल में फँसाने और भारत विरुद्ध गतिविधियों को संचालित करने हेतु विवश करने की नीति के प्रत्युत्तर में भारत की वर्तमान नीति अहम है।
- अतः चीन की संबंधों को ‘सहयोग और प्रतिस्पर्द्धा’ दोनों के साथ-साथ संचालित करने की भावना और स्वयं के पुनरुत्थान करने की भावना ने इस नीति को अहम बना दिया है।
अस्थायी या टिकाऊ विकल्प
- इसमें कोई मतभिन्नता नहीं है कि भारत की वर्तमान में विशाल आबादी, तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय सैन्य मंच पर अन्य राज्यों को प्रभावित करने के लिये विशाल सैन्य ताकत और अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति ने इसे स्वाभाविक रूप से दक्षिण एशिया में एक शक्ति के रूप में उभारा है।
- ऐसे में भारत को आक्रामक स्थिति में पीछे हटने पर ज्यादा बल नहीं देना चाहिये क्योंकि इससे यह यू.एस.-चीन की प्रतिद्वंद्विता के लिये एक खेल का मैदान बनकर रह जाएगा।
- इसके साथ ही वर्तमान नीति कितनी स्थायी या टिकाऊ है इसका अनुमान तो भविष्य के गर्त में छिपा है, हालाँकि हमेशा से संबंधों की कड़वाहट के चलते चर्चित रहे भारत और पाकिस्तान आज करतारपुर कॉरिडोर के माध्यम से आपस में संवाद स्थपित करने को तैयार हुए हैं तो इस नीति की सार्थकता पर प्रश्नचिह्न लगाना भी उचित नहीं है।
आगे की राह
- भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ साझा इतिहास, उसकी विरासत, मूल्य और जीवन जीने के तरीके उसे एक साझा मंच प्रदान करते हैं।
- भारत महान शक्तियों के साथ स्वयं को सुपर पावर के रूप में स्थापित करने का संतुलित प्रयास कर रहा है और अपने घरेलू विकास के लिये अधिकतम लाभ प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है।
- अतः इसकी सफलता के लिये आवश्यक है कि हमारे पड़ोसियों द्वारा कम से कम गतिरोध उत्पन्न किये जाएँ, ऐसे में नेबरहुड फर्स्ट नीति की नीति एक कारगर विकल्प साबित हो सकती है, बशर्तें इसकी निरंतरता को प्रतिबद्धता के साथ कायम रखा जाए।
- इसमें कोई शक नहीं है कि भारत, शीघ्र ही विश्व की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा लेकिन इस विकास के साथ भारत में हमेशा शांति को बनाए रखने के लिये आवश्यक है कि भारत अपने पड़ोसियों के संबंधों को लेकर चिंतित न रहे।