कैसी होनी चाहिये भारत की औद्योगिक नीति? | 21 May 2019
इस Editorial में 17 मई को The Hindu में प्रकाशित Why an Industrial Policy is Crucial आलेख का विश्लेषण करते हुए बताया गया है कि भारत की औद्योगिक नीति में किन-किन घटकों का समावेश होना चाहिये। इसमें टीम दृष्टि के इनपुट्स को भी यथास्थान शामिल किया गया है।
संदर्भ
विनिर्माण (Manufacturing) क्षेत्र की रफ्तार धीमी बनी रहने की वजह से इस साल मार्च में देश के औद्योगिक उत्पादन में पिछले साल इसी माह की तुलना में 0.1 प्रतिशत की गिरावट आई है। हाल ही में जारी सरकारी आँकड़ों के मुताबिक औद्योगिक उत्पादन का यह 21 महीने का सबसे कमज़ोर प्रदर्शन है। इसे देश की अर्थव्यवस्था में आने वाली संभावित मंदी के तौर पर भी देखा जा रहा है। ज्ञातव्य है कि विनिर्माण, खनन और बिजली जैसे अन्य अवसंरचनात्मक उद्योगों के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के आधार पर औद्योगिक वृद्धि दर की गणना की जाती है।
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) द्वारा जारी नवीनतम आँकड़े
- केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से जारी नए आँकड़ों के मुताबिक मार्च, 2018 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में 5.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। इससे पहले जून 2017 में इसमें 0.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी।
- CSO द्वारा जारी आँकड़ों के मुताबिक 2018-19 में औद्योगिक वृद्धि दर 3.6 प्रतिशत रही, जो पिछले 3 साल में सबसे कम है। वित्त वर्ष 2017-18 में औद्योगिक उत्पादन 4.4 प्रतिशत वार्षिक की दर से बढ़ा था तथा वित्त वर्ष 2016-17 में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर 4.6 प्रतिशत पर थी, यही आँकड़ा 2015-16 में 3.3 प्रतिशत था।
- यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि फरवरी 2019 में वृद्धि दर के आँकड़े को संशोधित करके 0.07 प्रतिशत कर दिया गया था, जबकि पहले यह वृद्धि दर 0.1 प्रतिशत बताई गई थी। इसी अवधि में विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में पिछले साल मार्च की तुलना में 0.4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। पिछले साल मार्च में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर 5.7 प्रतिशत थी।
- औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान 77.63 प्रतिशत है। पूंजीगत सामान बनाने वाले उद्योग क्षेत्र के उत्पादन में वार्षिक आधार पर 8.7 प्रतिशत की कमी आई। पिछले साल मार्च में इस क्षेत्र में 3.1 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई थी। विद्युत क्षेत्र की उत्पादन वृद्धि दर घटकर 2.2 प्रतिशत रही, जबकि एक साल पहले इस क्षेत्र में 5.9 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई थी।
- इस बार मार्च में खनन क्षेत्र की उत्पादन वृद्धि दर घटकर 0.8 प्रतिशत रही, जबकि एक साल पहले यह 3.1 प्रतिशत थी।
- उपयोग आधारित वर्गीकरण के आधार पर इस वर्ष मार्च में प्राथमिक वस्तुओं का उत्पादन 2.5 प्रतिशत की दर से बढ़ा, जबकि माध्यमिक वस्तुओं में 2.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।
- बुनियादी ढाँचा एवं निर्माण क्षेत्र में काम आने वाली वस्तुओं का उत्पादन वार्षिक आधार पर 6.4 प्रतिशत बढ़ा।
- इसी अवधि में टिकाऊ उपभोक्ता सामान उद्योग का उत्पादन 5.1 प्रतिशत घटा, जबकि गैर-टिकाऊ उपभोक्ता उद्योगों की वृद्धि दर 0.3 प्रतिशत रही।
- उद्योग क्षेत्र की बात करें तो मार्च 2019 में विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन सूचकांक में शामिल 23 उद्योग समूहों में से 12 में गिरावट दर्ज की गई।
- इसके अलावा ऑटोमोबाइल क्षेत्र में भी पिछले 8 साल में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। अप्रैल 2019 में यात्री वाहनों की बिक्री पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 17.07 प्रतिशत घट गई।
समस्या नई नहीं है
- देखने में आया है कि 1991 में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण जैसे आर्थिक सुधारों की शुरुआत के बाद से भारत का विनिर्माण क्षेत्र लगभग स्थिर रहा है। उदाहरण के लिये- 2017 में देश की GDP में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान केवल 16% था।
- यदि भारत अपनी विकास दर की रफ्तार को सतत बनाए रखते हुए गरीबी कम करना चाहता है तो एक मज़बूत विनिर्माण क्षेत्र के बिना यह संभव नहीं हो सकता।
- लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था बाज़ार की विफलता का एक अनूठा नमूना पेश करती है, जिसमें अपने विनिर्माण क्षेत्र को विकसित किये बिना देश की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित अर्थव्यवस्था से सीधे सेवा आधारित अर्थव्यवस्था में बदल गई।
अर्थव्यवस्था में विनिर्माण क्षेत्र का महत्त्व
ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो कोई भी बड़ा देश मज़बूत विनिर्माण क्षेत्र के बिना गरीबी को कम करने या आर्थिक विकास को बनाए रखने में सफल नहीं हुआ है।
विनिर्माण क्षेत्र को आर्थिक विकास का इंजन कहा जा सकता है, इसमें शामिल हैं:
- Economies of Scale. इसका तात्पर्य उस लाभ से है जो किसी फर्म को अपना उत्पादन बढ़ाने से मिलता है। अर्थात् जब किसी फर्म का विस्तार होता है तब उसे Economies of Scale से होने वाले लाभों की प्राप्ति होती है। विस्तार होने से उत्पादित वस्तु की औसत कीमत में जो कमी आती है, उसे Economies of Scale कहा जाता है।
- तकनीकी विकास
- आगामी और पश्चगामी कड़ियों का जुड़ाव
ये कारक सामूहिक रूप से अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों, जैसे- रोज़गार, मांग और उत्पादन आदि पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
Laissez-faire का तर्क
नव-उदारवादी अर्थशास्त्र बाज़ार की स्वतंत्रता (Laissez-faire) का तर्क देता है, लेकिन अमेरिका और यूरोप में 2008 के यूरोज़ोन संकट के बाद नव-उदारवादी सिद्धांतों को खारिज कर दिया गया था और बाज़ार में बहुत कम हस्तक्षेप देखने को मिला था। इन नव-उदारवादी देशों ने अपने औद्योगिक क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिये ऐसे रणनीतिक प्रयास किये, जो नव-उदारवाद के अवधारणा से साम्य नहीं रखते थे। जैसे- अमेरिका ने quantitative easing को अपनाया, जो एक प्रकार की मौद्रिक नीति है, जिसके तहत केंद्रीय बैंक सीधे अर्थव्यवस्था में पैसा डालने के लिये सरकारी बॉण्ड या अन्य वित्तीय परिसंपत्तियों को पूर्व निर्धारित मात्रा में खरीदता है।
भले ही भारत ने ‘मेक इन इंडिया’ नीति बनाई और उस पर अमल करना भी शुरू किया, लेकिन यह विनिर्माण नीति की तुलना में वित्तीय नीति अधिक है और इसके तहत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश बढ़ाने तथा व्यापार करने में आसानी जैसे उपायों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
1991 के आर्थिक सुधारों के बाद भी विनिर्माण क्षेत्र में ठहराव क्यों?
दरअसल, मानव पूंजी (कुशल श्रम) की कमी भारत के लिये एक बड़ी बाधा रही है। वर्ष 1991 में शुरू हुए आर्थिक सुधारों से लेकर 2005 तक लघु तथा कुटीर उद्योगों में उत्पादन के लिये विशेष रूप से आरक्षित उत्पादों की संख्या 500 थी। हालाँकि अब यह संख्या घटकर 16 रह गई है, लेकिन इसने लघु स्तर पर एक ऐसी अनौपचारिकता को जन्म दिया जो भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में प्रवेश कर गई। यही कारण है कि आज भी अधिकांश भारतीय विनिर्माता लघु स्तर पर ही काम कर रहे हैं। इस रुझान की वज़ह से भारतीय उद्यमों के बीच मध्यम स्तर की कंपनियों का विकास नहीं हो पाया। यह एक बड़ा कारण था जिसने भारत को वैश्विक मूल्यवर्द्धन (Global Value Addition) श्रृंखलाओं से व्यावहारिक रूप से बाहर कर दिया है।
कैसी होनी चाहिये भारत की औद्योगिक नीति?
- यह तो स्पष्ट है कि भारत 1991 से पहले की स्थिति में नहीं लौट सकता, लेकिन घरेलू फर्मों की रक्षा कर सकता है
- सरकार एक निश्चित सीमा तक चीन की औद्योगिक नीतियों का अनुसरण कर सकती है, जिनसे लेनोवो और हायर आदि जैसी विशाल फर्म्स खड़ी की जा सकती हैं।
- भारत की औद्योगिक नीति में न केवल समन्वय संबंधी विफलताओं की रोकथाम होनी चाहिये, बल्कि पूंजी उपलब्धता में दुश्वारियों जैसे वर्तमान माहौल में प्रतिस्पर्द्धात्मक निवेशों को रोकने की कोशिश होनी चाहिये।
उदाहरण के लिये, सरकार इस प्रकार की अप्रासंगिक मूल्य प्रतिस्पर्द्धाओं को नियंत्रित कर सकती है, जिनकी वज़ह से जेट एयरवेज़ जैसी कंपनियाँ दिवालिया हो जाती हैं...या ऐसे पूंजी निवेश के दुरुपयोग को रोक सकती है, जिसके कारण दूरसंचार क्षेत्र में NPA नियंत्रण से बाहर हो गया है। ऐसा करना सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि दूरसंचार क्षेत्र के ख़राब प्रदर्शन से अंततः ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार बुनियादी ढाँचे में निवेश बाधित हुआ है, जिसकी वज़ह से डिजिटल विभाजन (Digital Divide) और बढ़ा है।
- औद्योगिक नीति ऐसी होनी चाहिये जिससे विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गारों का सृजन हो, क्योंकि कुल रोज़गार में इसकी हिस्सेदारी 2012 से 2016 के बीच 12.8% से कम होकर 11.5% हो गई।
- निर्यात क्षमता और विनिर्माण क्षमताओं में वृद्धि करना भारत की औद्योगिक नीति का एक और महत्त्वपूर्ण घटक होना चाहिये।
- 2014 से 2018 के बीच भारत से वस्तुओं के निर्यात में डॉलर के संदर्भ में काफी गिरावट देखने को मिली है और किसी भी औद्योगिक नीति को इसका समाधान तलाशना होगा।
- भारत यदि चाहे तो उस निर्यातोन्मुख विनिर्माण मॉडल का भी अनुसरण कर सकता है, जिसे अपनाकर पूर्वी एशियाई देशों के निर्यात व्यापार में चमत्कारिक वृद्धि देखने को मिली है। इस प्रक्रिया में कृषि क्षेत्र में लगे अधिशेष यानी सरप्लस श्रम को विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार मिला तथा इससे श्रमिकों का पारिश्रमिक भी बढ़ा और गरीबी भी तेज़ी से कम हुई।
- निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था बनने के लिये Economies of Scale बेहद महत्त्वपूर्ण है, लेकिन देश के कुल निर्यात में असंगठित क्षेत्र का हिस्सा 45% है। यह स्थिति किसी भी नई औद्योगिक नीति के लिये एक बड़ी समस्या हो सकती है। ऐसे में भारत की औद्योगिक नीति को भारतीय अर्थव्यवस्था के अनुकूल नियमनिष्ठ बनाने की भी आवश्यकता होगी, विशेषकर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के संदर्भ में ऐसा करना ज़रूरी होगा।
- भारत के लिये किसी भी प्रकार की औद्योगिक नीति बड़े पैमाने की कुशल और सतत Economies of Scale हासिल करने के लिये MSME क्षेत्र को बढ़ावा देने वाली होनी चाहिये।
- भारत को एक विनिर्माण शक्ति (Manufacturing Powerhouse) बनने के लिये हर हाल में अपने MSME क्षेत्र की वृद्धि और विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि भारत को अपने IT क्षेत्र के विकास से सीख लेनी चाहिये तथा इसे विनिर्माण क्षेत्र में दोहराने का प्रयास करना चाहिये। देश को IT क्षेत्र में मिली सफलता के पीछे कुछ महत्त्वपूर्ण कारकों ने काम किया है, जिनका अनुसरण विनिर्माण क्षेत्र में यथानुसार किया जा सकता है।
भारत की राष्ट्रीय विनिर्माण नीति के प्रमुख लक्ष्य
- वर्ष 2022 तक GDP में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान बढ़ाकर 25 प्रतिशत तक करना
- विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार के वर्तमान अवसरों को दोगुना करना
- घरेलू मूल्य संवर्द्धन को बढ़ाना
- विनिर्माण क्षेत्र की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना
- देश को विनिर्माण क्षेत्र का अंतर्राष्ट्रीय हब बनाना
इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये विश्वस्तरीय औद्योगिक ढाँचा, अनुकूल व्यापारिक वातावरण, तकनीकी नवाचार हेतु एक पर्यावरण प्रणाली, विशेषकर हरित विनिर्माण के क्षेत्र में, उद्योगों के लिये आवश्यक कौशल के उन्नयन हेतु संस्थाओं और उद्यमियों के लिये सुलभ-वित्त की व्यवस्था का निर्माण करना भी राष्ट्रीय विनिर्माण नीति के लक्ष्यों में शामिल है।
बेशक भारत इस समय विश्व की सबसे तेज़ी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। हमारा लक्ष्य प्रतिवर्ष स्थायी रूप से 9-10 प्रतिशत की GDP वृद्धि दर हासिल करना है और इसके लिये यह आवश्यक है कि विनिर्माण क्षेत्र की प्रगति लंबे समय तक दहाई अंकों में रहे। लेकिन पिछले दो दशकों से GDP में विनिर्माण क्षेत्र के योगदान में ठहराव की स्थिति बनी हुई है। एशिया के अन्य देशों के विनिर्माण क्षेत्र में आए परिवर्तनों के मद्देनज़र भारत के विनिर्माण क्षेत्र की स्थिति विशेष रूप से चिंता पैदा करने वाली है। इससे पता चलता है कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में आई गतिशीलता से उत्पन्न अवसरों का पूरा-पूरा लाभ नहीं उठा पाया है।
ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि भारत को IT क्षेत्र में मिली अपनी सफलता की कहानी को विनिर्माण क्षेत्र में दोहराना चाहिये तथा भविष्य में समावेशी और निरंतर विकास के लिये एक रोडमैप तैयार करना चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: भारत में विनिर्माण क्षेत्र की स्थिति पर टिप्पणी करें। देश में विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिये IT क्षेत्र से क्या सीख हासिल की जा सकती है?