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भारतीय अर्थव्यवस्था

अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार की आवश्यकता

  • 22 May 2020
  • 19 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार, वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण वर्ष 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था तकरीबन 1 प्रतिशत तक कम हो सकती है। साथ ही यह चेतावनी भी दी है कि यदि बिना पर्याप्त राजकोषीय उपायों के आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिबंध और अधिक बढ़ाया जाता है तो वैश्विक अर्थव्यवस्था और अधिक प्रभावित हो सकती है। COVID-19 के वैश्विक महामारी घोषित होने के 3 माह बाद अब संयुक्त राष्ट्र का उपरोक्त अनुमान सही प्रतीत हो रहा है। विश्व के अन्य देशों की अर्थव्यवस्था के साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है।

विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर घटकर मात्र 5 प्रतिशत रह जाएगी, तो वहीं 2020-21 में तुलनात्मक आधार पर अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में भारी गिरावट आएगी जो घटकर मात्र 2.8 प्रतिशत रह जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह महामारी ऐसे वक्त में आई है जबकि वित्तीय क्षेत्र पर दबाव के कारण पहले से ही भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्ती की मार झेल रही थी। कोरोना वायरस के कारण इस पर और दवाब बढ़ गया है। सरकार इस स्थिति से उबरने व अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिये विशेष आर्थिक पैकेज प्रदान कर रही है, जो सार्वजनिक व निजी निवेश (घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों) को राहत प्रदान करने में सहायक होगी।

इस आलेख में अर्थव्यवस्था के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ, समाधान के संभावित उपाय, भारत के सम्मुख उभरते नए अवसर तथा भविष्य के रणनीति पर विमर्श करने का प्रयास किया जाएगा।

अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियाँ 

  • सकल घरेलू उत्पाद: विभिन्न रेटिंग एजेंसियों ने चालू वित्त वर्ष के लिये अपने संशोधित अनुमानों में जीडीपी वृद्धि दर में उल्लेखनीय कमी का अनुमान लगाया है। उदाहरण के लिये इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट ने हाल ही में भारत के विकास पूर्वानुमान को संशोधित करके 6 प्रतिशत से 2.1 प्रतिशत कर दिया है।
  • रिवर्स माइग्रेशन: लॉकडाउन के कारण निर्माण, विनिर्माण और तमाम आर्थिक गतिविधियों के बंद होने से प्रवासी मज़दूर महानगरों से अपने गाँव की ओर लौट रहे हैं। जिससे महानगरों की आर्थिक गतिविधियाँ लॉकडाउन में छूट देने के बावज़ूद सुचारू रूप से कार्य नहीं कर पा रही हैं। इन महानगरों आने वाले कुछ समय तक मानव संसाधन की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मांग में गिरावट: लॉकडाउन के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि गतिविधियाँ ठप्प हैं परिणामस्वरूप कृषकों की आय समाप्त हो गई है। कृषकों की आय समाप्त होने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था से उत्पन्न होने वाली मांग तेज़ी से घट रही है। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (National Sample Survey Organisation-NSSO) और नाबार्ड के अखिल भारतीय वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले पाँच वर्षों से कृषि के दौरान ग्रामीण परिवारों की आय स्थिर रही है। 
  • ग्रामीण बाज़ार की तालाबंदी: वैश्विक महामारी और जारी लॉकडाउन के कारण ग्रामीण बाज़ार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। बाज़ार बंद होने के कारण थोक कृषि, बागवानी और डेयरी उत्पादन से संबंधित आपूर्ति श्रृंखला बुरी तरह से प्रभावित हुई है। जिसके कारण किसान अपनी उपज को न्यूनतम मूल्य पर बेचने में असमर्थ हैं।
  • न्यून कृषि गतिविधियाँ: पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे कृषि संपन्न राज्यों में व्यापक तौर पर कृषि कार्य किया जाता है, रिवर्स माइग्रेशन के कारण इन राज्यों में खड़ी फसल को काटने के लिये पर्याप्त मज़दूर नहीं मिल पा रहे हैं जिससे खड़ी फसल बर्बाद हो गई है और अब किसान अगली फसल की बुवाई नहीं करना चाहते हैं।
  • उत्पादन में कमी: लॉकडाउन के कारण उद्योगों में काम न होने से उत्पादन में गिरावट हुई है। किंतु लॉकडाउन के समाप्त होने के बाद भी मानव संसाधन की आपूर्ति न हो पाने के कारण इन उद्योगों में पुनः उत्पादन होने की संभावना काफी कम है।
  • महिलाओं की दयनीय स्थिति: पारिवारिक आय में कमी से महिलाओं की स्थिति में गिरावट होगी क्योंकि भारतीय सामाजिक व्यवस्था में पूर्व में भी महिलाओं को सामाजिक वंचनाओं का शिकार होना पड़ा है।
  • आर्थिक आपातकाल की संभावना: लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था में विकास का आर्थिक चक्र घूमना बंद हो चुका है। ऐसे में सरकार के द्वारा सार्वजनिक खर्चों में कटौती के साथ अपने कर्मचारियों के वेतन में कटौती भी की जा सकती है तथा अनावश्यक व्यय पर रोक लगाने हेतु आर्थिक आपातकाल के विकल्प पर भी विचार हो सकता है।

समस्या समाधान के संभावित उपाय 

  • भारत को कुछ तात्कालिक नीतिगत उपायों की आवश्यकता है, जो न केवल महामारी को रोकने और जीवन को बचाने की दिशा में कार्य करें बल्कि समाज में सबसे कमज़ोर व्यक्ति को आर्थिक संकट से बचाने और आर्थिक विकास तथा वित्तीय स्थिरता बनाए रखने में भी सहायक हों। 
  • विश्लेषकों के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था पर वायरस के प्रभाव को कम करने के लिये सही ढंग से तैयार किया गया राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज की आवश्यकता है, जिसमें वायरस के प्रसार को रोकने के लिये स्वास्थ्य व्यय को प्राथमिकता और महामारी से प्रभावित परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करना शामिल हो। केंद्र सरकार द्वारा घोषित किया गया आर्थिक पैकेज इस दिशा में उठाया गया सराहनीय कदम है।
  • रिवर्स माइग्रेशन के प्रभाव को सीमित करने के लिये पिछड़े राज्यों में छोटे और मध्यम उद्योगों जैसे- कुटीर उद्योग, हथकरघा उद्योग, हस्तशिल्प उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण और कृषि कार्यों को प्रारंभ करने की दिशा में कार्य करना चाहिये।  
  • भारत की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिये सरकार को विनिर्माण क्षेत्र को विकसित करने पर ध्यान देना होगा। हमारे सामने चीन एक बेहतरीन उदाहरण है जिसने विनिर्माण क्षेत्र को विकसित कर न केवल बड़े पैमाने पर रोज़गार का सृजन किया बल्कि देश की अवसंरचना को भी मज़बूती प्रदान की। 
  • भारत के सभी राज्यों को श्रम कानूनों में सुधार करना चाहिये ताकि घरेलू निवेशकों को निवेश करने हेतु प्रोत्साहित किया जा सके।  
  • विदेशी निवेशकों में चीन के प्रति शंका भारत के लिये एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करती है क्योंकि कई कंपनियाँ चीन से अपना कारोबार समेट कर बाहर जाना चाहती हैं ऐसे में भारत को निवेश प्रक्रिया को सरल बनाकर निवेशकों को आकर्षित करना चाहिये। 
  • भारतीय अर्थव्यवस्था के शीघ ही पटरी पर लौटने की उम्मीद है ऐसे में एक सार्वजनिक समर्थित नीति, निज़ी क्षेत्र की भागीदारी और नागरिकों के समर्थन के माध्यम से एकीकृत बहुआयामी दृष्टिकोण विकसित करने की आवश्यकता है। 

सरकार के द्वारा किये गए प्रयास

  • भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने हेतु प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत निर्माण की दिशा में विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। यह पैकेज COVID-19 महामारी की दिशा में सरकार द्वारा की गई पूर्व घोषणाओं तथा RBI द्वारा लिये गए निर्णयों को मिलाकर 20 लाख करोड़ रुपये का है। 
  • यह आर्थिक पैकेज भारत की ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (Gross domestic product- GDP) के लगभग 10% के बराबर है। पैकेज में भूमि, श्रम, तरलता और कानूनों (Land, Labour, Liquidity and Laws- 4Is) पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • सरकार द्वारा पैकेज के तहत घोषित प्रत्यक्ष उपायों में सब्सिडी, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, वेतन का भुगतान आदि शामिल होते हैं। जिसका लाभ वास्तविक लाभार्थी को सीधे प्राप्त होता है।
  • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग तथा अन्य क्षेत्रों के लिये सरकार द्वारा विभिन्न क्रेडिट गारंटी योजनाओं की घोषणा की गई है।

क्रेडिट गारंटी से तात्पर्य 

  • बैंकों द्वारा MSMEs को दिया जाने वाला अधिकतर ऋण MSMEs की परिसंपत्तियों (संपार्श्विक के रूप में) के आधार पर दिया जाता है। लेकिन किसी संकट के समय इस संपत्ति की कीमतों में गिरावट हो सकती है तथा इससे MSMEs की ऋण लेने की क्षमता बाधित हो सकती है। अर्थात किसी संकट के समय परिसंपत्तियों की कीमतों में गिरावट होने से बैंक इन उद्यमों की ऋण देना कम कर देते हैं।
  • सरकार द्वारा इस संबंध में बैंकों को क्रेडिट गारंटी दी जाती है कि यदि MSMEs उद्यम ऋण चुकाने में सक्षम नहीं होते हैं तो ऋण सरकार द्वारा चुकाया जाएगा। उदाहरण-यदि सरकार द्वारा एक फर्म को 1 करोड़ रुपए तक के ऋण पर 100% क्रेडिट गारंटी दी जाती है इसका मतलब है कि बैंक उस फर्म को 1 करोड़ रुपए उधार दे सकता है। यदि फर्म वापस भुगतान करने में विफल रहती है, तो सरकार 1 करोड़ रुपए का भुगतान बैंकों को करेगी।
  • सरकार द्वारा MSME की परिभाषा में बदलाव किया गया है क्योंकि ‘आर्थिक सर्वेक्षण’ के अनुसार लघु उद्यम लघु ही बने रहना चाहते हैं क्योंकि इससे इन उद्योगों को अनेक लाभ मिलते हैं। अत: MSME की परिभाषा में बदलाव की लगातार मांग की जा रही थी।
  • सरकार ने आर्थिक पैकेज में कोयला, खनिज, रक्षा उत्पादन, नागरिक उड्डयन क्षेत्र, केंद्र शासित प्रदेशों में बिजली वितरण कंपनियों, अंतरिक्ष क्षेत्र और परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के संरचनात्मक सुधारों पर भी ध्यान केंद्रित किया है।
  • आंशिक रूप से उत्पादन किये जा चुके कोयला-ब्लॉक के लिये अन्वेषण-सह-उत्पादन प्रणाली को लागू किया जाएगा। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि वर्तमान समय में कोयला ब्लॉक की नीलामी कोयले के ‘पूर्ण खनन’ के लिये की जाती है परंतु अब आंशिक रूप से खनन किये जा चुके कोयला ब्लॉक की भी नीलामी की जा सकेगी। इन सुधारों से निजी क्षेत्र की भूमिका में वृद्धि होगी। 
  • कोल इंडिया लिमिटेड के नियंत्रण वाली कोयला खदानों के 'कोल बेड मीथेन' (CBM) निष्कर्षण अधिकारों की नीलामी की जाएगी।
  • 'व्यवसाय करने में सुगमता' (Ease of Doing Business) की दिशा में 'खनन योजना सरलीकरण' (Mining Plan Simplification) जैसे उपायों को लागू किया जाएगा।
  • रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिये 'मेक इन इंडिया' पहल पर बल दिया जाएगा।'आयुध निर्माणी बोर्ड' (Ordnance Factory Board) का निगमीकरण किया जाएगा ताकि आयुध आपूर्ति में स्वायत्तता, जवाबदेही और दक्षता में सुधार हो सके।
  • स्वचालित मार्ग के तहत रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में FDI निवेश सीमा 49% से बढ़ाकर 74% की जाएगी।
  • सामाजिक अवसंरचना क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ाने के लिये व्यवहार्यता अंतराल अनुदान(Viability Gap Funding- VGF) योजना को प्रयुक्त किया जाएगा।
  • VGF के रूप में कुल परियोजना लागत की 30% तक की राशि अनुदान के रूप में प्रदान की जा सकेगी।
  • निजी क्षेत्र की क्षमता में सुधार करने के लिये निजी क्षेत्र को इसरो की सुविधाओं और अन्य प्रासंगिक संपत्तियों का उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी। भविष्य की इसरो की योजनाएँ जैसे- ग्रहों की खोज, बाहरी अंतरिक्ष यात्रा आदि में निजी क्षेत्र को प्रवेश की अनुमति होगी।
  • सरकार ने निजी क्षेत्र की कंपनियों को विदेशी शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध करने के नियमों में ढील देने का प्रस्ताव किया है।
  • केंद्र सरकार की घोषणा के अनुसार, COVID-19 से जुड़े ऋण को इनसॉल्वेंसी कार्यवाही शुरू करने का आधार नहीं माना जाएगा और साथ ही केंद्र सरकार द्वारा अगले एक वर्ष के लिये दिवालियापन से जुड़ी कोई कार्रवाई नहीं शुरू की जाएगी।
  • केंद्रीय वित्तमंत्री ने स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधारों हेतु ‘स्वास्थ्य और देखभाल केंद्रों’ के सरकारी खर्च में वृद्धि और हर ज़िले में संक्रामक रोगों के लिये विशेष अस्पताल तथा ब्लॉक स्तर पर प्रयोगशालाओं की स्थापना की बात कही।
  • COVID-19 और लॉकडाउन के कारण हो रहे अकादमिक नुकसान को देखते हुए केंद्र सरकार द्वारा ‘पीएम ई-विद्या' (PM e-Vidya) योजना की घोषणा की गई है।

चुनौतियाँ

  • विशेषज्ञों के अनुसार, ऋण सीमा में वृद्धि के साथ रखी गई अनिवार्य शर्तों के कारण राज्य सरकारें इसके तहत अधिक धन नहीं निकलना चाहेंगी और राज्य सरकारों को महँगी दरों पर बाज़ार से धन जुटाना पड़ेगा। अतः इन योजनाओं में केंद्र व राज्य सरकारों के बीच और विचार-विमर्श किया जाना चाहिये था। 
  • वर्तमान में वैश्विक मंदी जैसी स्थितियों के बीच PSUs के विलय या निजीकरण से सरकार को अधिक खरीददार नहीं मिलेंगे और प्रतिस्पर्द्धा के अभाव में निजीकरण से अपेक्षित धन नहीं प्राप्त हो सकेगा। 
  • घोषित किया गया पैकेज वास्तविकता में घोषित मूल्य से बहुत कम माना जा रहा है क्योंकि इसमें सरकार के 'राजकोषीय' पैकेज के हिस्से के रूप में RBI द्वारा पूर्व में की गई घोषणाओं को भी शामिल किया गया हैं।

आगे की राह 

  • भारत सरकार को स्वास्थ्य प्रतिबद्धताओं को पूरा करते हुए लगातार विकास की गति का अवलोकन करने की आवश्यकता है, साथ ही चीन पर निर्भर भारतीय उद्योगों को आवश्यक समर्थन एवं सहायता प्रदान करनी चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के साथ मिलकर भारत को COVID-19 जैसी बीमारी की पहचान, प्रभाव, प्रसार एवं रोकथाम पर चर्चा की जानी चाहिये ताकि इस बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सके।

प्रश्न- भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का विश्लेषण करते हुए इस समस्या के समाधान में सरकार के द्वारा किये जा रहे प्रयासों का मूल्यांकन कीजिये

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