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देश में अग्निशमन सेवाओं और नियमों में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता

  • 29 May 2019
  • 16 min read

इस Editorial में The Hindu में 27 मई को प्रकाशित Fire and Laissez-faire: Fix Accountability for Surat Tragedy का विश्लेषण किया गया है तथा वर्तमान में देश में अग्नि सुरक्षा नियमनों की खामियों और जटिलताओं पर चर्चा की गई है।

संदर्भ

हाल ही में गुजरात स्थित सूरत शहर में एक कोचिंग संस्थान में हुए भीषण अग्निकांड में 20 से अधिक होनहार छात्र-छात्राएँ अपनी जान से हाथ धो बैठे। इस अग्निकांड ने एक बार फिर अग्नि सुरक्षा उपायों तथा आपदा प्रबंधन प्रावधानों के मुद्दे पर फोकस करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। तक्षशिला कॉम्प्लेक्स में हुए इस अग्निकांड के बाद सरकार ने हड़बड़ी में पूरे राज्य में कमर्शियल कॉम्प्लेक्सों में चलने वाले कोचिंग सेंटरों को बंद करने का आदेश दे दिया। कमर्शियल कॉम्प्लेक्सों में चल रहे सभी कोचिंग सेंटरों में आग से सुरक्षा के सभी मानकों को पूरा करने के आदेश दिये गए हैं। इन मानकों के पूरा होने तक सभी कोचिंग सेंटरों के संचालन पर रोक रहेगी। पूरे मामले की जाँच के लिये एक उच्चस्तरीय समिति का भी गठन किया गया है।

हर साल हज़ारों लोग मारे जाते हैं

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के नवीनतम उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 में सार्वजनिक और आवासीय दोनों प्रकार के भवनों/इमारतों में लगी आग की विभिन्न घटनाओं के कारण देशभर में 17,700 लोगों की मौत हुई, जो यह बताने के लिये पर्याप्त है कि अग्नि सुरक्षा को लेकर हम कितने गंभीर हैं और इस मामले में हमारा रिकॉर्ड बेहद निराशाजनक प्रतीत होता है।

देश में अग्निशमन सेवाओं की स्थिति

  • भारत में अग्निशमन सेवाएँ संविधान के अनुच्छेद 243W के प्रावधानों के अंतर्गत संविधान की 12वीं अनुसूची के तहत आती हैं तथा 12वीं अनुसूची में सूचीबद्ध कार्यों के ज़िम्मेदारी नगरपालिकाओं के अधिकार क्षेत्र में आती है।
  • वर्तमान में अधिकांश अग्निशमन सेवाएँ संबंधित राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और शहरी स्थानीय निकायों के तहत काम करती हैं तथा इन्हीं पर इन सेवाओं के संचालन का दायित्व है।
  • गुजरात, छत्तीसगढ़ आदि कुछ राज्यों में अग्निशमन सेवाएँ संबंधित नगर निगमों के अधीन हैं। अन्य शेष राज्यों में ये गृह मंत्रालय में बने विभाग के अधीन हैं।
  • देश के विभिन्न राज्यों में अग्निशमन सेवाओं में कमियों-खामियों को देखते हुए इनमें सुधार करने तथा इन्हें अपग्रेड करने के मद्देनज़र केंद्र सरकार ने वर्ष 1956 में गृह मंत्रालय के तहत एक स्थायी अग्नि सलाहकार समिति (SFAC) का गठन किया था। वर्ष 1980 में इसका नाम बदलकर स्थायी अग्नि सलाहकार परिषद (SFAC) कर दिया गया।
  • इस समिति/परिषद में देश के हर राज्य का प्रतिनिधित्व है और इसमें गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा भारतीय मानक ब्यूरो के प्रतिनिधि भी शामिल रहते हैं।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा जारी आवश्यक दिशा-निर्देश

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 6 के तहत अग्निशमन सेवाओं के स्तर-निर्धारण, संबंधित उपकरणों की किस्म, कर्मियों का प्रशिक्षण, अग्निशमन सेवाओं के मानकीकरण और पुनर्गठन तथा अग्नि संबंधित घटनाओं के प्रभावी सक्षम एवं समग्र प्रबंधन के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं। ये दिशा-निर्देश स्थायी अग्निशमन सलाहकार परिषद के सदस्यों और क्षेत्र के अन्य विशेषज्ञों को शामिल करते हुए एक कोर ग्रुप की सहायता से तैयार किये गए हैं। सभी राज्य सरकारों और संबंधित स्थानीय निकायों का ध्यान इस ओर केंद्रित कर इनका योजनाबद्ध तरीके से अनुपालन किये जाने की अपेक्षा की गई है।

दोषपूर्ण है वर्तमान प्रणाली

  • कुछ राज्यों में एकीकृत अग्निशमन सेवाओं का अभाव है, जबकि एकीकृत अग्निशमन सेवाएँ अग्निशमन के लिये सभी आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान कर बेहतर तालमेल बनाने में सहायक होती हैं।
  • देश के अधिकांश राज्यों में अग्निशमन विभागों में अपने कर्मियों के लिये समुचित संगठनात्मक संरचना, प्रशिक्षण और करियर में प्रगति के अवसरों का अभाव है।
  • आधुनिक अग्निशमन उपकरणों और उनकी स्केलिंग, प्राधिकरण और मानकीकरण की व्यवस्था भी बेहद लचर है।
  • अधिकांश राज्यों में अग्निशमन विभागों के पास पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं है, जिसकी वज़ह से अग्निशमन कार्यों में तकनीकी प्रगति कर पाना संभव नहीं हो पाता।
  • अग्निशमन प्रशिक्षण संस्थानों की अनुपलब्धता की वज़ह से भी अग्निशमन सेवाओं में वह पैनापन देखने को नहीं मिलता जिसका होना बेहद आवश्यक है।
  • अग्निशमन कर्मियों के लिये फायर स्टेशन और आवास आदि जैसी मूलभूत अवसंरचनात्मक सुविधाओं का अभाव।
  • सुभेद्यता (Vulnerability) का विश्लेषण अधिकांशतः नहीं किया जाता अर्थात् आसानी से अग्नि की चपेट में आ सकने वाले भवनों, क्षेत्रों आदि की पहचान नहीं की जाती।
  • सार्वजनिक जागरूकता यानी क्या करें क्या न करें की जानकारी आम जनता को न होना, नियमित मॉक ड्रिल और आग लगने पर बचने के उपाय तथा निकासी अभ्यास का संचालन नहीं किया जाना।
  • कुछ राज्यों में एक जैसे अग्नि सुरक्षा कानून का न होना।

अग्निशमन केंद्रों को बनाने के लिये स्थायी अग्नि सलाहकार परिषद के प्रावधान

  • प्रतिक्रिया समय- शहरी क्षेत्रों में 3 से 5 मिनट और ग्रामीण क्षेत्रों में 20 मिनट।
  • अग्निशमन सेवाओं के तहत आने वाली जनसंख्या का पैमाना।
  • अग्निशमन सेवाओं के संचालन के लिये आवश्यक न्यूनतम मानक उपकरणों की संख्या और उनके संचालन के लिये आवश्यक कार्यबल।

देशभर में है भारी कमी

  • अग्निशमन केंद्र – 97.54%
  • अग्निशमन तथा बचाव वाहन – 80.04%
  • अग्निशमन कर्मी – 96.28%

भारत में अग्नि सुरक्षा और उसका नियमन करने वाले प्रमुख कानून

  • भारतीय भवन निर्माण संहिता (National Building Code of India), 2016: इस संहिता के भाग-4 का शीर्षक है- अग्नि तथा जीवन सुरक्षा (Fire & Life Safety)। इसमें भवनों में आग लगने की घटनाओं तथा उनसे बचाव के आवश्यक उपायों का उल्लेख किया गया है।
  • इस संहिता में रहवासियों (भवन में रहने वालों) के आधार (Occupancy-wise) पर वर्गीकरण, रचनात्मक पहलू, आवश्यकताओं की पूर्ति तथा सुरक्षा विशेषताओं की जानकारी दी गई है, जो कि आग से होने वाली जन-धन की हानि तथा खतरों को कम करने के लिये आवश्यक है।
  • इसमें अग्नि क्षेत्रों (Fire Zone) का सीमांकन, प्रत्येक फायर ज़ोन में इमारतों/भवनों के निर्माण पर प्रतिबंध, रहवासियों के आधार पर भवनों का वर्गीकरण, संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक घटकों के अग्नि प्रतिरोधी होने के अनुसार भवन निर्माण के प्रकार तथा इमारतों को खाली करने से पहले आग, धुएँ, लपटों या आग से जीवन को होने वाले खतरे को कम करने के लिये आवश्यक उपायों का ज़िक्र है।

संहिता के प्रमुख प्रावधान

आग से बचाव: इसमें इमारतों के डिज़ाइन और निर्माण से संबंधित आग की रोकथाम के पहलुओं को शामिल किया गया है। इसमें विभिन्न प्रकार की इमारतों की निर्माण सामग्री और उनकी फायर रेटिंग का भी वर्णन किया गया है।

जीवन सुरक्षा: इसमें आग और इसी तरह की आपातस्थिति में जीवन सुरक्षा प्रावधानों को कवर करने के साथ ही निर्माण और रहवास सुविधाओं के बारे में जानकारी है, जो आग, धुएँ, लपटों या आग से जीवन को होने वाले खतरे को कम करने के लिये आवश्यक हैं।

अग्नि सुरक्षा: इसमें वर्गीकरण और इमारत के प्रकार के आधार पर भवन/इमारत की अग्नि सुरक्षा के लिये सही प्रकार के उपकरणों को चुनने में सरलता की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण उपकरणों (सहायक उपकरण भी) और उनके संबंधित घटकों और दिशा-निर्देशों को शामिल किया गया है।

इस संहिता के भाग-4 में ही ऊँची इमारतों के लिये फायर ड्रिल और निकासी के लिये दिशा-निर्देश भी निर्दिष्ट हैं। इसमें यह अनिवार्य किया गया है कि महत्त्वपूर्ण भूमि उपयोग के लिये एक दक्ष अग्निशमन अधिकारी और प्रशिक्षित कर्मचारियों की नियुक्ति की जाए।

मॉडल भवन उपनियम, 2003: अग्नि-संबंधित किसी भी प्रकार की स्वीकृति के लिये बिंदुवार ज़िम्मेदारी मुख्य अग्निशमन अधिकारी को दी गई है। इसमें यह व्यवस्था की गई है कि भवनों के संबंध में स्वीकृति प्राप्त करने के लिये संबंधित विकास प्राधिकरण भवन/इमारत योजनाओं को मुख्य अग्निशमन अधिकारी के पास भेजेगा। पूर्ण हो चुके किसी भी भवन या इमारत को कुछ आवश्यक अनुमोदनों की आवश्यकता होती है। इनके अभाव में पूर्णता (Completion) प्रमाणपत्र सक्षम प्राधिकारी द्वारा प्रदान नहीं किया जाएगा तथा भवन या इमारत को इस्तेमाल में लाने की अनुमति नहीं होगी।

वर्तमान संरचना में प्रमुख समस्याएँ

देश में शहरों का स्वरूप बहुत तेज़ी से बदल रहा है...बिलकुल क्रिया की प्रतिक्रया की तरह यानी Chain Reaction...तेज़ी से बढ़ती आबादी के लिये शहरों में लोगों के रहने के लिये अधिक स्थान यानी घरों/भवनों/ इमारतों की ज़रूरत है। इसके परिणामस्वरूप शहरों में समय के साथ-साथ आवासीय और व्यावसायिक इमारतों का विस्तार और घनत्व बढ़ता जा रहा है।

  • ऐसा होने यानी स्थिति विकट हो जाने के बावजूद फायरमास्टर योजना को अपडेट नहीं किया जा रहा है। इसके अलावा भारत में केवल 30% शहरों में ही कोई मास्टर प्लान है।
  • अधिकांश कमर्शियल और आवासीय भवन, विशेषकर ऊँची इमारतों में अग्नि सुरक्षा मानदंडों का खुलेआम उल्लंघन होते देखा जा सकता है।
  • इन इमारतों से व्यवसाय चलाने वाले अधिकांश व्यवसायी या सोसाइटीज़ अपनी इमारतों में लगी अग्नि निवारक/रोधक प्रणालियों का नियमित रखरखाव नहीं करते।
  • किसी भी संस्थान/संगठन या किसी भी ऐसे भवन में जहाँ लोग रहते हैं, अग्नि सुरक्षा मानकों का आकलन करने के लिये एक प्रभावी साधन के रूप में फायर सेफ्टी ऑडिट किया जा सकता है, लेकिन हमारे देश में किसी भी अग्नि सुरक्षा कानून में फायर सेफ्टी ऑडिट के दायरे, उद्देश्यों, कार्यप्रणाली और आवधिकता के बारे में स्पष्ट प्रावधान नहीं हैं।

आगे की राह

  • देशभर में फायर सेफ्टी ऑडिट को अनिवार्य किया जाना चाहिये और ऑडिट का काम किसी तीसरे पक्ष (Third Party) को सौंपा जाना चाहिये, जिसे इस काम का पर्याप्त अनुभव हो।
  • प्रत्येक भवन और इमारत का हर साल फायर सेफ्टी ऑडिट होना चाहिये।
  • इन सबसे ऊपर आग की रोकथाम और अग्नि सुरक्षा की सफलता मुख्य रूप से इमारत या भवन में रहने वाले सभी लोगों के सक्रिय सहयोग पर निर्भर करती है।
  • खतरे की पहचान और जोखिम मूल्यांकन (Hazard Identification & Risk Assessment-HIRA) का फोकस संभावित खतरों की पहचान करने के लिये किया जा सकता है।
  • व्यापक फायर सेफ्टी ऑडिट इस्तेमाल में लाई जा रही किसी भी इमारत या भवन में रोज़मर्रा की गतिविधियों से जुड़े अंतर्निहित आग के खतरों की पहचान कर सकता है और संभावित खतरों को कम करने के उपायों की सिफारिश कर सकता है।

13वें वित्त आयोग की सिफारिश

अग्नि सुरक्षा तथा संस्थान/संगठन पर 13वें वित्त आयोग की सिफारिश को लागू किया जाना चाहिये। इस सिफारिश में कहा गया है कि 2001 की जनगणना के अनुसार 10 लाख से अधिक आबादी वाले सभी नगर निगमों को अपने अधिकार क्षेत्र के लिये अग्नि खतरे की प्रतिक्रिया और शमन योजना लागू करनी चाहिये। 13वें वित्त आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा था कि शहरी स्थानीय निकाय आयोग द्वारा आवंटित की गई धनराशि का एक हिस्सा अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली अग्निशमन सेवाओं को सुधारने में खर्च कर सकते हैं। शहरी स्थानीय निकाय यदि चाहें तो इस प्रयास में राज्य अग्निशमन विभाग को वित्तीय सहायता दे सकते हैं।

  • आवासीय कॉलोनियों, स्कूलों और इस तरह के अन्य संस्थानों/संगठनों में अग्नि सुरक्षा ड्रिल का नियमित प्रावधान किया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: अग्नि त्रासदी की घटनाओं को दुर्घटना नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इनके पीछे विभिन्न नियामक और संगठनात्मक स्तर पर तैयारियों का अभाव प्रमुख कारण है। टिप्पणी कीजिये।

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