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शासन व्यवस्था

जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु सहकारिता की आवश्यकता

  • 11 Jun 2022
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 06/06/2022 को ‘द हिंदू बिज़नेस लाइन’ में प्रकाशित "Greening India Through Cooperatives" लेख पर आधारित है। इसमें जलवायु परिवर्तन प्रभावों के शमन में निकट भविष्य में विभिन्न सहकारी समितियों द्वारा निभाई जा सकने वाली महत्त्वपूर्ण भूमिका के संबंध में चर्चा की गई है।

वैश्विक तापमान में वृद्धि और विश्व भर में अतिरिक्त जन-विरोधाभासों के परिदृश्य में जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रभाव के शमन के लिये अभिनव समाधान ढूँढने की आवश्यकता है। इस संबंध में स्थानीय स्तर पर अपने अनूठे समाधानों के साथ सहकारी समितियाँ (Co-operative societies/Co-operatives) जलवायु परिवर्तन के जोखिम को कम करने की दिशा में वैकल्पिक समाधान प्रदान कर सकती हैं। पर्याप्त धन और नीतिगत समर्थन के साथ सरकार द्वारा उनकी इस भूमिका में उल्लेखनीय सहयोग दिये जाने की आवश्यकता है 

सहकारी समितियाँ क्या हैं? 

  • सहकारी समितियाँ या को-ऑपरेटिव (Co-operatives) जन-केंद्रित उद्यम हैं जिनका स्वामित्व, नियंत्रण और संचालन उनके सदस्यों द्वारा उनकी सामान्य आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति के लिये किया जाता है। 
  • सहकारी समितियाँ लोगों को लोकतांत्रिक तरीके से और बराबरी के स्तर पर एक साथ लाती है। इसके सदस्य चाहे ग्राहक हों, कर्मचारी हों, उपयोगकर्त्ता हों या निवासी हों— सहकारी समितियों का प्रबंधन लोकतांत्रिक तरीके से ‘एक सदस्य, एक वोट’ ('one member, one vote) नियम के माध्यम से किया जाता है। 
    • सदस्यों ने उद्यम में कितनी भी पूंजी लगाई हो, उन्हें एकसमान मतदान अधिकार प्राप्त होता है 

भारत में सहकारी समितियों का समर्थन करने के लिये सरकार द्वारा क्या पहल की गई है? 

  • भारतीय संदर्भ में सहकारी समितियों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत ‘‘संगम या संघ (या सहकारी सोसाइटी)’’ के रूप में शामिल किया गया है। आगे फिर ाग 4 में ‘राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व’ के अंतर्गत अनुच्छेद 43B को शामिल किया गया जो सहकारी समितियों के संवर्द्धन से संबंधित प्रावधान करता है 
  • संविधान (97वाँ संशोधन) अधिनियम, 2011 ने भारत में कार्यरत सहकारी समितियों के संबंध में भाग IXA (नगरपालिका) के ठीक बाद एक नया भाग IXB शामिल किया 
  • हाल में केंद्र सरकार द्वारा ‘सहकार से समृद्धि’ (Prosperity through Cooperation) के विन को साकार करने और सहकारिता आंदोलन को एक नई प्रेरणा देने के लिये एक पृथकसहकारिता मंत्रालय’ का निर्माण किया गया है। 

जलवायु परिवर्तन शमन में सहकारी समितियाँ कैसे महत्त्वपूर्ण हैं? 

  • सामूहिक और अभिनव समाधान: सहकारी समितियाँ सामूहिक रूप से बढ़ते तापमान, नौकरियों के नुकसान, जल संसाधनों के ह्रास, भूमि एवं वन संसाधनों की गिरावट और अपशिष्टों के संचय के कारण स्वास्थ्य के लिये खतरे जैसे उभरते प्रभावों के लिये समाधान प्रदान करती हैं। 
  • सर्वसम्मति के माध्यम से कार्यान्वयन: सहकारी समितियों द्वारा पर्यावरणीय-सामाजिक एजेंडे को स्पष्ट रूप से अपनाना व्यवहार्यता और जीवन शक्ति में योगदान करता है; यह समान विचारधारा के लोगों, हितधारकों और रणनीतिक सहयोगियों के लिये सकारात्मक भेदभाव और मबूत संबंधों का आधार प्रदान करता है। 
  • उत्सर्जन तटस्थ योगदान: सहकारी समितियाँ प्राकृतिक संसाधनों के सतत् प्रबंधन में कई तरह से योगदान करती हैं। 
  • मिशन में नवाचार का योग: सहकारी समितियों में अपने अभिनव कौशल के साथ वास्तविक दुनिया की समस्याओं को हल करने (जैसे समुदायों के लिये स्वच्छ जल का वैकल्पिक स्रोत प्रदान करना) और ऊर्जा पहुँच, ऊर्जा दक्षता एवं निम्न उत्सर्जन के सतत् लक्ष्यों की पूर्ति में मदद करने की क्षमता है। 

कुछ वास्तविक उदाहरण  

  • गुजरात के खेड़ा ज़िले के ढुंडी गाँव ने ‘ढुंडी सौर ऊर्जा उत्पादक सहकारी मंडली’ (DSUUSM) के रूप में वर्ष 2016 में विश्व की पहली सौर सिंचाई सहकारी समिति की स्थापना की है 
    • इस सहकारी समिति के सदस्यों को प्रायः ‘सौर उद्यमी’ कहा जाता है जो सौर ऊर्जा संचयन (Solar Energy Harvesting) कर रहे हैं। 
    • इससे उन्हें बेहतर संचयन में मदद मिली है और वे अतिरिक्त आय के लिये ग्रिड से जुड़े हुए हैं। 
  • भारतीय कृषि वानिकी विकास सहकारी निगम (Indian Farm Forestry Development Co-operative- IFFDC), जो सहकारी समितियों की छत्र संस्था है, भारत के तीन उत्तर-मध्य राज्यों- राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में बंजर भूमि को पुनः वन में रूपांतरित कर रहा है 
  • पर्यावरण, जलवायु, जल, स्वच्छ ऊर्जा आदि के संबंध में स्व-नियोजित महिला संघ (Self Employed Women’s Association- SEWA) के हस्तक्षेप और जागरूकता प्रसार वर्तमान समय के उपयुक्त हैं और वर्ष 2030 तक प्राप्त किये जाने वाले हमारे राष्ट्रीय लक्ष्यों (सतत् विकास लक्ष्यों) का समर्थन करते हैं। 
  • इसके साथ ही AMUL, IFFCO और NAFED जैसे प्रमुख सहकारी दिग्गजों के भी उदाहरण मौजूद हैं जिन्होंने उत्पादन प्रमाणन, खाद्य सुरक्षा के अनुपालन और बाज़ार-संचालित मूल्य शृंखला से संबद्धता के लिये सहकारी समितियों को समर्थन दे जैविक खेती में विविधता का प्रवेश सुनिश्चित किया है 
    • इस तरह की पहल ने सहकारी समितियों को प्राकृतिक एवं जैविक खेती की ओर उन्मुख किया है और वे जैविक उत्पादों की मांग को पूरा करने के लिये पूरी तरह तैयार हैं। 

सहकारी समितियों के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ  

  • नीति-निर्माताओं द्वारा उपेक्षा: नीति-निर्माताओं द्वारा दूरदर्शिता की कमी के कारण सहकारी समितियों की भूमिका को विभिन्न स्तरों पर अनदेखा किया गया है। 
  • जागरूकता की कमी: व्यावसायिक रणनीतियों और बाज़ार कार्यकरण के बारे में जागरूकता और जानकारी की कमी है। 
  • वित्तपोषण और क्षमताओं की कमी: चाहे सार्वजनिक क्षेत्र हों या निजी क्षेत्र— दोनों ने ही इस क्षेत्र पर अधिक भरोसा नहीं दिखाया है, क्योंकि सहकारी समितियों के लिये बहुत कम या कोई वित्तीय सहायता उपलब्ध नहीं है, जो उनकी क्षमता को नुकसान पहुँचाता है। 
  • खराब प्रबंधन: बाज़ाके बारे में समझ की कमी और श्रमिकों में कौशल के खराब स्तर के कारण कई सहकारी समितियाँ खराब प्रदर्शन करती रही हैं और वांछित परिणाम देने में सक्षम नहीं रही हैं। 

आगे की राह  

  • सहकारी समितियों की द्वैध भूमिका: सरकार और कॉर्पोरेट्स सहित विभिन्न हितधारकों को सहकारी समितियों के सबसे उल्लेखनीय प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ (यानी एक संगठन और एक उद्यम के रूप में उनकी दोहरी स्थिति) को सामने लाकर उनकी भूमिका को पूर्णता प्रदान करनी चाहिये और उन्हें आगे और समर्थन देना चाहिये 
  • आर्थिक, सामाजिक और समाजीय भूमिका: वे आर्थिक, सामाजिक और समाजीय भूमिका (Economic, Social and Societal Role) के रूप में अपनी तिहरी भूमिका का निर्वहन करें जहाँ एक ओर लाभ कमाकर और एक व्यवसाय को जीवंत बनाए रखकर अर्थव्यवस्था का समर्थन करें, वहीं दूसरी ओर समृद्धि का सृजन कर समाज को इसका लाभ देकर अपनी अपनी सामाजिक भूमिका निभाएँ 
  • संवर्द्धित क्षमताओं की आवश्यकता: सहकारी समिति सदस्यों में संवर्द्धित क्षमताओं की आवश्यकता है ताकि वे जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण के व्यापक प्रभाव को समझ सकें 
  • जागरूकता और कार्रवाई: पर्यावरणीय समस्याओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने हेतु सहकारी समितियों की मदद लेने, अनुकूलन एवं शमन पर प्रशिक्षण, मिलकर कार्य करने के लिये गठबंधन का निर्माण और सहकारी उद्यमों एवं नवाचारों में निवेश में एक हरित एजेंडे का होना आवश्यक है ताकि संवहनीय भविष्य का निर्माण हो सके 
  • सरकार की भूमिका: सरकार को उनकी क्षमताओं के संवर्द्धन हेतु कार्य करना होगा जहाँ उन्हें बाज़ार और व्यापारिक समुदायों की ओर से उचित मार्गदर्शन एवं समर्थन मिल सकना सुनिश्चित किया जाए, ताकि वे एक उद्यम के संचालन हेतु आवश्यक कौशल एवं ज्ञान का वांछित स्तर प्राप्त कर सकें और पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान में आगे इन क्षमताओं का उपयोग कर सकें।  

अभ्यास प्रश्न: “सहकारिता क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की अपार संभावनाएँ मौजूद हैं; हालाँकि अब तक इसे इष्टतम रूप से साकार नहीं किया गया है।’’ इस कथन के आलोक में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिये इस क्षेत्र की क्षमता का पूरी तरह से उपयोग कर सकने हेतु उपाय सुझाएँ 

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