हिंद-प्रशांत क्षेत्र और भारत | 17 Dec 2019

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में हिंद-प्रशांत क्षेत्र और उसके प्रति भारत की नीति पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

संपूर्ण विश्व एक मूलभूत परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है और इस परिवर्तन के साथ ही बदल रहा है विश्व का शब्दकोश, जिसमें आवश्यकता और महत्ता के आधार पर अनवरत नए-नए शब्द जोड़े जा रहे हैं। इसी प्रकार का एक शब्द है ‘इंडो-पैसिफिक’ जिसने गत कुछ वर्षों में विश्व की कई अर्थव्यवस्थाओं की भू-रणनीति को आकर देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। आज दुनिया भर के तमाम देश अपने-अपने दस्तावेज़ों में आवश्यकतानुसार ‘इंडो-पैसिफिक’ की व्याख्या कर रहे हैं। भौगोलिक तौर पर हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के कुछ भागों को मिलाकर समुद्र का जो हिस्सा बनता है उसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Area) के नाम से जाना जाता है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र का रणनीतिक महत्त्व

  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र हाल के वर्षों में भू-राजनीतिक रूप से विश्व की विभिन्न शक्तियों के मध्य कूटनीतिक एवं संघर्ष का नया मंच बन चुका है।
    • साथ ही यह क्षेत्र अपनी अवस्थिति के कारण और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है।
  • वर्तमान में विश्व व्यापार की 75 प्रतिशत वस्तुओं का आयात-निर्यात इसी क्षेत्र से होता है तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जुड़े हुए बंदरगाह विश्व के सर्वाधिक व्यस्त बंदरगाहों में शामिल हैं।
  • विश्व GDP के 60 प्रतिशत का योगदान इसी क्षेत्र से होता है। यह क्षेत्र ऊर्जा व्यापार (पेट्रोलियम उत्पाद) को लेकर उपभोक्ता और उत्पादक दोनों राष्ट्रों के लिये संवेदनशील बना रहता है।
  • विदित है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में कुल 38 देश शामिल हैं, जो विश्व के सतह क्षेत्र का 44 प्रतिशत और विश्व की कुल आबादी का 65 प्रतिशत हिस्सा है।
  • जानकार मानते हैं कि इस क्षेत्र में उपभोक्ताओं को लाभ पहुँचाने वाले क्षेत्रीय व्यापार एवं निवेश के अवसर पैदा करने हेतु सभी आवश्यक घटक मौजूद हैं।
  • हाल की कुछ घटनाएँ इस क्षेत्र में ज़ोर पकड़ रही भू-आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा का संकेत देती हैं, जिसमें दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएँ, बढ़ता सैन्य खर्च और नौसैनिक क्षमताएँ, प्राकृतिक संसाधनों को लेकर गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा शामिल है।
  • इस प्रकार देखें तो वैश्विक सुरक्षा और नई विश्व व्यवस्था की कुंजी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के हाथ में ही है।
  • इसके अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र दक्षिण चीन सागर आता है। यहाँ आसियान के देश तथा चीन के मध्य लगातार विवाद चलता रहता है। दूसरा महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है- मलक्का का जलडमरूमध्य। इंडोनेशिया के पास स्थित यह जलडमरूमध्य रणनीतिक तथा व्यापारिक दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रति विभिन्न देशों की नीति

हिंद-प्रशांत क्षेत्र को ‘मुक्त एवं स्वतंत्र’ क्षेत्र बनाने के लिये ट्रंप प्रशासन भारत-जापान संबंधों के महत्त्व को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर चुका है। ट्रंप की हिंद-प्रशांत नीति उनके पूर्ववर्ती ओबामा की एशिया केंद्रित नीति का ही नया रूप है। एक अनुमान के अनुसार, चीन 2027 तक अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा, यह स्थिति अमेरिका के लिये चिंता पैदा कर सकती है। इंडोनेशिया भी आर्थिक रूप से मज़बूत देश बनकर उभरा है तथा इस क्षेत्र में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका तलाश रहा है। साथ ही वह अमेरिका की FOIP (Free and Open Indo-pacific) तथा चीन की BRI (Belt and Road Initiative) का हिस्सा भी नहीं बनना चाहता। वहीं इंडोनेशिया इतनी बड़ी आर्थिक शक्ति नहीं है कि अपने बल पर इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सके। ज्ञात हो कि इंडोनेशिया आसियान संगठन का प्रमुख सदस्य देश है। अतः इस संगठन की भूमिका को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये महत्त्वपूर्ण बनाकर वह अपने हित संवर्द्धन का प्रयास कर रहा है। चीन भी अपने ‘वन बेल्ट वन रोड’ पहल के माध्यम से विश्व की महाशक्ति के रूप में अपने को बदलने के लिये दुनिया के विभिन्न देशों में इन्फ्रास्ट्रक्चर तथा कनेक्टिविटी पर भारी निवेश कर रहा है। सर्वविदित है कि उसकी इस पहल का उद्देश्य इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित करना भी है। उदाहरण के लिये चीन पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का प्रमुख हितधारक है और हाल ही में श्रीलंका सरकार ने हंबनटोटा पोर्ट को चीन के हाथों बेच दिया है। इसके अतिरिक्त जापान ने हिंद-प्रशांत खासकर भारत के पूर्वोत्तर तटीय क्षेत्र में काफी निवेश किया है। उल्लेखनीय है कि जापान के किंग और क्वीन पहली बार जब भारत दौरे पर आए थे तब उन्होंने तमिलनाडु का भी दौरा किया था, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि तमिलनाडु वह प्रमुख राज्य है जहाँ जापानी निवेश सर्वाधिक हुआ है।

भारत और हिंद-प्रशांत क्षेत्र

  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र सदैव ही भारत के लिये काफी महत्त्वपूर्ण रहा है, जानकार इसका सबसे प्रमुख कारण इस क्षेत्र से होने वाले समुद्री व्यापार को मानते हैं।
  • इसके अलावा अपनी सैन्य शक्ति मज़बूत करने के लिये भारत संयुक्त राज्य अमेरिका, आसियान, जापान, कोरिया और वियतनाम जैसे देशों के साथ कई नौसैनिक अभ्यासों में भी शामिल होता है।
  • ओएनजीसी विदेश लिमिटेड वियतनाम के विशेष आर्थिक क्षेत्र में तेल और गैस की संभावनाओं को तलाश रही है। ध्यातव्य है कि भारत अपने तेल का 82 प्रतिशत आयात करता है। भारत को जहाँ से भी तेल मिल सकता है वहाँ से तेल लेना चाहिये। इसलिये दक्षिण चीन सागर तेल की खोज के लिये काफी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), भारत और जापान स्थायी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण हेतु मिलकर कार्य कर रहे हैं जो इस क्षेत्र के विकास के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
    • G20 शिखर सम्मेलन 2019 के मौके पर आयोजित जापान-भारत-अमेरिका (JAI) त्रिपक्षीय बैठक के दौरान हिंद-प्रशांत क्षेत्र चर्चा का प्रमुख विषय था।
  • इस क्षेत्र के विशेष महत्त्व को मद्देनज़र रखते हुए भारत ने अप्रैल 2019 में विदेश मंत्रालय में एक इंडो-पैसिफिक विंग की स्थापना भी की है।
  • भारत के कई विशेष साझेदार जैसे- अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और इंडोनेशिया आदि वास्तव में हिंद-प्रशांत क्षेत्र को ‘एशिया पैसिफिक प्लस इंडिया’ (Asia Pacific plus India) के रूप में देखते हैं।
    • इस प्रकार की नीति का मुख्य उद्देश्य दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में चीन का मुकाबला करने के लिये भारत को एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित करना है।
  • हालाँकि इस क्षेत्र के प्रति भारत की नीति अधिक-से-अधिक शांति पर बल देती है। भारत की नीति में इसे को मुक्त, खुले और समावेशी क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • भारत अफ्रीका के तट से लेकर अमेरिका के तट तक के क्षेत्र को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के रूप में मान्यता देता है।
  • चीन के विपरीत भारत सदैव ही एक एकीकृत आसियान (ASEAN) का हिमायती रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन ने आसियान में ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का प्रयोग किया है।
  • पहले इस क्षेत्र को एक अमेरिकी झील (American Lake) के रूप में देखा जाता था, जहाँ अमेरिका का काफी वर्चस्व था परंतु हाल के कुछ वर्षों में हुए बदलावों के कारण यह डर बढ़ गया है कि कहीं यह क्षेत्र चीनी झील के रूप में न परिवर्तित हो जाए।
    • भारत इस क्षेत्र में किसी भी एक देश का आधिपत्य नहीं चाहता है, जिसके कारण वह भारत-ऑस्ट्रेलिया-फ्रांँस और भारत-ऑस्ट्रेलिया-इंडोनेशिया जैसे त्रिपक्षीय समूहों के माध्यम से यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है कि कि चीन इस क्षेत्र में हावी न हो।

चीन का खतरा

  • चीन हमेशा से एशियाई-प्रशांत देशों के लिये एक बड़ा खतरा रहा है, इसके अलावा वह हिंद महासागर क्षेत्र में भारतीय हितों के लिये भी खतरा पैदा कर रहा है।
    • चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को हथिया लिया है, जो कि भारत के तटों से कुछ सौ मील की दूरी पर है। यह स्थिति स्पष्ट रूप से भारत के लिये काफी चिंताजनक है, हालाँकि श्रीलंका के नए राष्ट्रपति ने अपने हालिया एक बयान में कहा था कि चीन को हंबनटोटा बंदरगाह देना पूर्ववर्ती सरकार की सबसे बड़ी गलती थी।
    • चीन भारत के पड़ोसी देशों- म्याँमार, श्रीलंका, बांग्लादेश और थाईलैंड को सैन्य उपकरण जैसे- पनडुब्बी और युद्ध-पोत आदि मुहैया करा रहा है। जानकार इस स्थिति को सैन्य उपनिवेशवाद के रूप में परिभाषित कर रहे हैं।
  • आसियान के कुछ सदस्य देश चीन के प्रभाव में आसियान की एकजुटता के लिये बड़ा खतरा बने हुए हैं। विदित हो कि चीन आसियान का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और आसियान देश किसी भी स्थिति में उसे दरकिनार नहीं कर सकते, संभव है कि आसियान और चीन का यह समीकरण भारत तथा आसियान के संबंधों को प्रभावित करे।
  • आसियान भारत के लिये विशेष रूप से एक्ट ईस्ट पॉलिसी के दृष्टिकोण से काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

क्वाड (QUAD) की अवधारणा

  • क्वाड को ‘स्वतंत्र, खुले और समृद्ध’ हिंद-प्रशांत क्षेत्र को सुरक्षित करने के लिये चार देशों के साझा उद्देश्य के रूप में पहचाना जाता है।
  • क्वाड भारत, अमेरिका, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया की संयुक्त रूप से अनौपचारिक रणनीतिक वार्ता है। 13वीं ईस्ट एशिया समिट के दौरान ही क्वाड सम्मेलन का भी आयेाजन किया गया था। यह क्वाड सम्मेलन मुख्यत: इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अवसंरचनात्मक परियोजनाओं एवं समुद्री सुरक्षा योजनाओं पर केंद्रित था।
  • यद्यपि समूह का घोषित लक्ष्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र की समृद्धि व खुलेपन से संबंधित है, किंतु इसका मुख्य लक्ष्य बेल्ट रोड पहल के माध्यम से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीनी दबदबे को नियंत्रित करना है।
    • उल्लेखनीय है कि चीन अपनी OBOR के माध्यम से हिंद-प्रशांत सहित अन्य छोटे-छोटे देशों पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित करने की कोशिश कर रहा है।

आगे की राह

  • आवश्यक है कि भारत को विभिन्न चुनौतियों के बावजूद चीन के साथ अपने संबंधों का प्रबंधन करने का प्रयास करना चाहिये, ताकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यथासंभव शांति सुनिश्चित की जा सके। इसके अलावा जापान और भारत के बीच सुगम रिश्ता भी स्थिर और शांत हिंद-प्रशांत क्षेत्र तथा भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी की आधारशिला हेतु प्रमुख घटक रहेंगे।
    • जापान के प्रधानमंत्री की आगामी भारत यात्रा से दोनों देशों के संबंधों को एक नई दिशा मिलने की उम्मीद है।
  • भारत को इस समय आसियान केंद्रित विकास एजेंडे और क्वाड केंद्रित सुरक्षा एजेंडे के बीच विकल्प बनाने की ज़रूरत नहीं है। आवश्यक है कि दोनों को सामानांतर ही देखा जाए।

प्रश्न: वैश्विक भू-राजनीति में बढ़ती अनिश्चितता के दौर में भारत के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र की प्रासंगिकता पर विचार कीजिये।