सामाजिक न्याय
राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल, 2018 : कितना स्वस्थ है भारत?
- 28 Jun 2018
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चर्चा में क्यों?
कुछ समय पहले केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने सेंट्रल ब्यूरो ऑफ हेल्थ इंटेलिजेंस (Central Bureau of Health Intelligence - CBHI) द्वारा तैयार राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल (National Health Profile - NHP), 2018 जारी की। इस वार्षिक दस्तावेज़ का डिजिटल संस्करण भी जारी किया गया है। इसके साथ-साथ मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य संसाधन रिपोजिटरी (National Health Resource Repository - NHRR) को भी लॉन्च किया। यह देश की ऐसी पहली राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा सुविधा है, जिसके अंतर्गत सभी सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों के प्रामाणिक, मानकीकृत और अद्यतन भू-स्थानिक डेटा (Geospatial data) की रजिस्ट्री संबंधी पक्षों को शामिल किया गया है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल, 2018
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल के अंतर्गत स्वास्थ्य के क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे और मानव संसाधनों के बारे में व्यापक जानकारी के साथ-साथ जनसांख्यिकीय, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य स्थिति और स्वास्थ्य वित्त संकेतकों को शामिल किया जाता है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल, 2018 विभिन्न स्वास्थ्य परिणामों के संदर्भ में देश में हुई महत्वपूर्ण प्रगति के घटकों को इंगित करती है।
- इसके अंतर्गत जहाँ एक ओर प्रदत्त आँकड़ों के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं के मध्य मौजूद अंतराल को समझने में मदद मिलती है, वहीं दूसरी ओर, इसकी सहायता से सरकार द्वारा संचालित विभिन्न स्वास्थ्य कार्यक्रमों/योजनाओं की प्रगति की निगरानी भी होती है।
- इसके साथ-साथ यह एसडीजी संकेतकों में होने वाली प्रगति और उनके समय पर अनुपालन के संदर्भ में भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
- रेलवे, ईएसआईसी (Employees' State Insurance), रक्षा और पेट्रोलियम स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों सहित निजी और सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों की व्यापक जानकारी के लिये एनएचआरआर अंतिम मंच होगा।
- इस संबंध में प्रभावी परिणाम प्राप्त करने के लिये CBHI (Central Bureau of Health Intelligence) देश के प्रमुख एसोसिएशनों, सहयोगी मंत्रालयों और कई निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं सहित महत्त्वपूर्ण हितधारकों के साथ सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है।
- यह स्वास्थ्य के अन्य निर्धारकों जैसे- बीमारी, पर्यावरण इत्यादि से उत्पन्न होने वाली स्वास्थ्य देखभाल चुनौतियों के लिये उन्नत अनुसंधान को सक्षम बनाने की दिशा में भी कारगर साबित होगा।
- नेशनल हेल्थ प्रोफाइल के लिये सभी जानकारियाँ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों, केंद्र सरकार के संगठनों, राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों और अन्य संबंधित राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण निदेशालय से प्राप्त आँकड़ों से एकत्रित की गई हैं।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य संसाधन रिपोजिटरी का लक्ष्य
- यह देश के सभी सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों के प्रामाणिक, मानकीकृत इवं अद्यतन भू-स्थानिक डेटा के लिये देश का पहला राष्ट्रीय स्वास्थ्य देखभाल पंजीकरण है।
- इसका लक्ष्य सबूत आधारित निर्णय क्षमता को मज़बूत करना और नागरिक एवं प्रदाता केंद्रित सेवाओं के लिये एक मंच विकसित करना है, साथ ही भारत के हेल्थकेयर संसाधनों को मज़बूत, मानकीकृत और आईटी-सक्षम बनाना है।
- यह स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों के अनुकूलन के लिये केंद्रीय और राज्य सरकार के बीच समन्वय को भी बढ़ाएगा, साथ ही 'लाइव' और यथार्थवादी राज्य परियोजना कार्यान्वयन (Project Implementation Plans - PIPs) का निर्माण करेगा।
- इसके अलावा, यह राज्य के प्रमुख विभागों सहित सभी स्तरों पर डेटा की पहुँच में सुधार करेगा ताकि ज़िला और राज्य स्तर पर निर्णय को विकेन्द्रीकृत किया जा सके।
- NHRR परियोजना के कुछ प्रमुख लाभों में देश के स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों की एक विश्वसनीय, एकीकृत रजिस्ट्री तैयार करना शामिल है जो शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच स्वास्थ्य सुविधाओं एवं सेवाओं के वितरण के पैटर्न को दर्शाए।
- इसके अतिरिक्त, यह स्वास्थ्य और सेवा अनुपात में अंतराल की पहचान करने और स्वास्थ्य संसाधनों के न्यायपूर्व आवंटन एवं प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये वास्तविक खुफिया जानकारी भी एकत्रित करेगा।
- यह जनसंख्या घनत्व, भौगोलिक प्रकृति, स्वास्थ्य की स्थिति, दूरी जैसे विषयों को ध्यान में रखते हुए मौजूदा स्वास्थ्य सुविधाओं को अपग्रेड कर या नई स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थापना कर स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार के प्रमुख तत्त्वों की पहचान करेगा।
प्रभाव के संबंध में बात करें तो
- स्वास्थ्य प्रोफाइल एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण टूल है क्योंकि इससे विभिन्न कार्यक्रमों को तैयार करने में मदद मिलती है। नि:शुल्क दवाएँ, निदान और परिवार विकास मिशन कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिन्हें स्वास्थ्य प्रोफाइल से लाभ हुआ है।
- हाल के वर्षों में भारत ने कई संकेतकों पर काफी प्रगति की है। एक जानकारी के अनुसार, शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate - IMR), मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate - MMR) और कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate - TFR) जैसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकेतकों में तेज़ी से कमी आ रही है।
- सरकार ने सामान्य NCDs (Noncommunicable diseases (NCDs) की सार्वभौमिक जाँच का कार्य शुरू किया है जैसे- मधुमेह, उच्च रक्तचाप और सामान्य कैंसर के साथ-साथ क्षय रोग एवं कुष्ठ रोग। यदि इस कार्य को सफलतापूर्वक संपन्न कर लिया जाता है तो यह देश की बीमारी के बोझ को कम करने में मदद करेगा।
इसका वास्तविक प्रभाव एवं उससे उत्पन्न चिंताएँ
- वर्तमान में भारत सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल के लिये सकल घरेलू उत्पाद का सिर्फ 1.3 प्रतिशत खर्च कर रही है, जबकि वैश्विक औसत 6 प्रतिशत है।
- यही कारण है कि हमारे देश में डॉक्टरों की कम संख्या के चलते आम-जन को ग्रामीण एवं शहरी अस्पतालों में भारी चिकित्सकीय व्यय उठाना पड़ता है। इन सभी गंभीर मुद्दों को शामिल करते हुए नेशनल हेल्थ प्रोफाइल, 2018 को तैयार किया गया है।
इस प्रोफाइल में शामिल कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार हैं -
11,000 की आबादी पर एक डॉक्टर
- रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 11,082 की आबादी पर मात्र एक एलोपैथिक सरकारी डॉक्टर है, जो डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित मानकों से 10 गुना अधिक है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:1,000 होना चाहिये।
- बिहार राज्य में स्थिति सबसे खराब है। यहाँ 28,391 लोगों की आबादी पर महज एक डॉक्टर है। इसके बाद उत्तर प्रदेश (19,962 लोगों पर एक डॉक्टर), झारखंड (18,518), मध्य प्रदेश (16,996), छत्तीसगढ़ (15,916) और कर्नाटक (13,556) का स्थान आता है।
- इन सभी की तुलना में डॉक्टर-आबादी अनुपात के मामले में दिल्ली की स्थिति काफी बेहतर है, यहाँ यह 1:2203 है, हालाँकि अभी भी यह डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुशंसित अनुपात की तुलना में दोगुना है।
औसत स्वास्थ्य देखभाल पर एक भारतीय प्रतिदिन 3 रुपए खर्च करता है।
- एनएचपी रिपोर्ट के अंतर्गत सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च के संदर्भ में सरकार के रुख में लगातार उदासीनता बनी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2015-16 में सरकार ने स्वास्थ्य देखभाल पर सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.02 प्रतिशत खर्च किया। स्पष्ट रूप से वैश्विक संदर्भ में यह काफी कम है।
- इसके अनुसार, सरकार द्वारा स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रति व्यक्ति 1,112 रुपए खर्च किये जाते हैं, अर्थात् प्रतिदिन 3 रुपए का खर्च होता है।
- वैश्विक स्तर पर बात करें तो स्वीडन अपने सकल घरेलू उत्पाद का 9.2 प्रतिशत सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च करता है, जो कि विश्व में सर्वाधिक है।
शिशु और मातृ मृत्यु दर (Infant and maternal mortality)
- राष्ट्रीय स्तर पर शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 पर 34 है, हालाँकि ग्रामीण (38) और शहरी (23) मृत्यु दर के बीच का अंतर अभी भी ऊँचा है।
- भारत के असम राज्य में उच्चतम एमएमआर (300) है, जबकि केरल सबसे कम (61) है।
रेबीज़ सबसे घातक संक्रमणीय बीमारी बनी हुई है।
एक वर्ष में रेबीज़ के 97 मामले दर्ज किये गए जिसमें 100 प्रतिशत मृत्यु दर सामने आई है। स्पष्ट रूप से यह देश में सबसे घातक संक्रमणीय बीमारियों में से एक रहा है।
- पश्चिम बंगाल (26) और कर्नाटक (15) में रेबीज़ की वजह से सबसे ज़्यादा मौत के मामले सामने आए।
- रिपोर्ट के मुताबिक, इन्फ्लुएंजा A H1N1 (स्वाइन फ्लू) के मामलों में 21 गुना वृद्धि (38,811 मामले) देखी गई।
- डेंगू के मामलों की संख्या में भी वृद्धि देखी गई क्योंकि 2016 में 1,29,166 और 2017 में 1,57,996 सामने आए।