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भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रवासन केंद्रित विकास

  • 29 Dec 2022
  • 11 min read

यह एडिटोरियल 28/12/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “A retelling of the Indian migrant worker’s plight” लेख पर आधारित है। इसमें प्रवासी आबादी के समक्ष विद्यमान समस्याओं और एक सुदृढ़ एवं व्यापक प्रवासन नीति की आवश्यकता के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी संगठन (International Organization of Migration- IOM) की विश्व प्रवास रिपोर्ट (World Migration Report), 2022 के अनुसार वर्ष 2020 में वैश्विक स्तर पर 281 मिलियन अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी थे, जिनमें से लगभग दो-तिहाई प्रवासी श्रमिक थे।

  • विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों के विकास के साथ शहरों पर आबादी का दबाव बढ़ा है। विश्व शहर रिपोर्ट (World Cities Report), 2022 के अनुसार भारत की शहरी आबादी वर्ष 2035 तक 675 मिलियन तक पहुँच जाएगी। भारत में शहरीकरण और शहरों के विकास का एक परिणाम यह उत्पन्न हुआ है कि आधारभूत संरचनाओं एवं सेवाओं (विशेष रूप से आवास और स्वच्छता) पर दबाव की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। प्रवासी श्रमिक इन बुनियादी ज़रूरतों तक पहुँच की कमी से सबसे अधिक पीड़ित हैं।
  • कोविड-19 महामारी ने शहरी गरीबों/प्रवासी श्रमिकों की खराब आवास दशाओं को और भी बदतर बना दिया है। इस परिदृश्य में, यह उपयुक्त समय है कि भारत प्रवासियों के समक्ष विद्यमान समस्याओं को व्यापक रूप से संबोधित करना शुरू करे और उनकी जीवन दशाओं में सुधार लाने की दिशा में कार्य करे।

भारत में घरेलू प्रवासन के सकारात्मक प्रभाव कौन-से हैं?

  • श्रम बाज़ारों में विविधता लाना: प्रवासन श्रम की मांग एवं आपूर्ति के बीच के अंतर को भरता है और प्रभावी रूप से कुशल, अकुशल एवं सस्ते श्रम का आवंटन करता है ।
  • कौशल का विकास: बाहरी दुनिया के साथ संपर्क और अंतःक्रिया से प्रवासियों के ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि होती है।
  • जीवन की गुणवत्ता: प्रवासन रोज़गार अवसरों और आर्थिक समृद्धि को बढ़ाता है, जिससे फिर जीवन की गुणवत्ता में सुधार आता है। प्रवासी अपने घर भी पैसा भेजते हैं, जिसका उनके परिवारों के रहन-सहन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • सामाजिक विकास: प्रवासन प्रवासियों के सामाजिक जीवन को बेहतर बनाने में मदद करता है, क्योंकि वे नई संस्कृतियों, रीति-रिवाजों और भाषाओं के संपर्क में आते हैं। यह लोगों के बीच भाईचारे को बेहतर बनाने में मदद करता है और वृहत समानता एवं सहिष्णुता सुनिश्चित करता है।
  • खाद्य एवं पोषण सुरक्षा: खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की खाद्य एवं कृषि स्थिति रिपोर्ट (State of Food and Agriculture report), 2018 के अनुसार बाह्य-प्रवासन (outmigration) प्रायः प्रवासियों को बेहतर खाद्य एवं पोषण सुरक्षा की ओर ले जाता है।

भारत में घरेलू प्रवासन से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ

  • कृषि का नारीकरण (Feminisation of Agriculture): पुरुषों को, उन्हें प्राप्त होने वाले शिक्षा के अवसरों और शारीरिक श्रम के लिये वरीयता के कारण, आमतौर पर परिवार के अर्जक के रूप में देखा जाता है। इस परिदृश्य में, भारतीय ग्रामीण क्षेत्र के पुरुष बेहतर नौकरियों की तलाश में शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं, जबकि घरेलू कार्यों एवं कृषि की ज़िम्मेवारी मुख्य रूप से महिलाओं पर आ जाती है।
    • पति-से दूरी, साथी की कमी और घरेलू ज़िम्मेदारियों में वृद्धि के कारण पीछे रह गई पत्नियाँ मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की शिकार हो सकती हैं।
  • ‘WASH’ सुविधाओं का अभाव: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की वर्ष 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार पर्याप्त जल, सफाई एवं स्वच्छता (Water, Sanitation and Hygiene- WASH) सुविधाओं की कमी प्रवासी श्रमिकों के लिये एक बड़ी चुनौती रही है, जबकि सामाजिक सुरक्षा की कमी अच्छे आवास की कमी की समस्या को और जटिल बनाती है।
  • प्रवासियों की पहचान में विद्यमान त्रुटि: प्रवासियों को दो वृहत श्रेणियों में रखा गया है—असंगठित श्रमिक और शहरी गरीब, जिससे लंबे समय से नीति निर्माताओं के लिये एक जटिल स्थिति बनी रही है। ई-श्रम पोर्टल (e-Shram) के उपयोग के बावजूद प्रवासियों को सटीक रूप से पहचानना और लक्षित करना कठिन रहा है।
    • प्रमुख शहरी गंतव्यों में नीतिगत हस्तक्षेप अभी भी शहरी गरीबों को निम्न आय अर्जक प्रवासियों के साथ एक खाँचे में रखकर देखते रहे हैं।
  • मेज़बान शहरों के संसाधनों पर दबाव: श्रमिकों की आमद और जनसंख्या विस्फोट से नौकरियों, घरों, स्कूलों आदि के लिये प्रतिस्पर्द्धा बढ़ जाती है जिसका मेजबान शहरों के संसाधनों, सुविधाओं और सेवाओं पर भारी दबाव पड़ता है।
    • शहरों की ओर बड़े पैमाने पर पलायन के परिणामस्वरूप वहाँ मलिन बस्तियों का विकास होता है, जो आधारभूत संरचना एवं जीवन की गुणवत्ता के मामले में कमतर होते हैं और आगे चलकर अस्वच्छ दशाओं, अपराध एवं प्रदूषण का कारण बनते हैं।
  • प्रवासियों का दोहन: शिक्षा और कौशल की कमी रखने वाले प्रवासी बुनियादी ज्ञान की कमी रखते हैं तथा औपचारिक नौकरियों के दायरे से बाहर बने रहते हैं। यह स्थिति उन्हें दुर्व्यवहार, शोषण, तस्करी, मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार और लिंग आधारित हिंसा (महिला प्रवासियों के विरुद्ध) का शिकार बनाती है।

सतत् विकास लक्ष्य प्रवासियों को कैसे चिह्नित करते हैं?

  • ‘किसी को भी पीछे नहीं छोड़ना’ (leave no one behind) के मूल सिद्धांत के साथ कार्यान्वित सतत् विकास के लिये एजेंडा 2030 में पहली बार प्रवासन को सतत् विकास में योगदानकर्त्ता के रूप में चिह्नित किया गया है।
  • 17 सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) में से 11 में ऐसे लक्ष्य और संकेतक शामिल हैं जो प्रवासन या गतिशीलता (Mobility) के लिये भी प्रासंगिक हैं।
  • SDGs का लक्ष्य 10.7 व्यवस्थित, सुरक्षित, नियमित और उत्तरदायी प्रवासन को सुविधाजनक बनाने के महत्त्व पर बल देता है, जिसमें सुप्रबंधित प्रवासन नीतियों का प्रवर्तन भी शामिल है।

आगे की राह

  • प्रवासन-केंद्रित नीतियाँ: समावेशी वृद्धि एवं विकास प्राप्त करने और संकट-प्रेरित प्रवासन को कम करने के लिये भारत को प्रवासन-केंद्रित नीतियों, रणनीतियों और संस्थागत तंत्रों को विकसित करने की आवश्यकता है जो सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति और गरीबी को कम करने में भी देश की मदद करेंगे।
  • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को संगठित करना: शहर के विकास (जैसे स्मार्ट सिटीज़ मिशन) के लिये प्रवासी आँकड़ा एकत्र किया जाना चाहिये, जहाँ फिर प्रवासियों के लिये बड़ी संख्या में हरित रोज़गार सृजित किये जा सकते हैं।
    • श्रम मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित असंगठित श्रमिक सूचकांक संख्या कार्ड (Unorganised Worker Index Number Card) भी कार्यबल को औपचारिक बनाने में मदद करेगा।
  • शहरी रोज़गार गारंटी: शहरी गरीबों के साथ-साथ प्रवासियों को बुनियादी जीवन स्तर प्रदान करने के लिये शहरी क्षेत्रों में ‘मनरेगा’ जैसी किसी योजना की आवश्यकता है।
    • राजस्थान में ‘इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना’ की शुरूआत इस दिशा में एक अच्छा कदम है।
  • सामाजिक सुरक्षा: स्वास्थ्य संकट, बच्चों के पालन-पोषण या बाल-शिक्षा के दौरान प्रवासियों को धन की कमी न हो, यह सुनिश्चित करने के लिये एक सामाजिक सुरक्षा आवरण का होना महत्त्वपूर्ण है।
    • इसके परिणामस्वरूप प्रवासियों की मनोवैज्ञानिक स्थितियों में भी सुधार होगा।
  • मलिन बस्तियों का उन्नयन: मलिन बस्तियों में स्वच्छ जल, साफ-सफाई और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने पर प्राथमिकता से ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • प्रवास सहायता केंद्र: कार्य की तलाश में शहरों की ओर आने वाले प्रवासियों के संकट को कम करने के लिये प्रवास सहायता केंद्र (Migration Support Centres) स्थापित किये जा सकते हैं।
    • इसके साथ ही, बेसहारा और बेघरों के लिये सहायता को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: भारत में घरेलू प्रवासन से जुड़े प्रमुख मुद्दों की चर्चा कीजिये। प्रवासियों की जीवन दशाओं में सुधार के लिये अभिनव उपाय भी सुझाएँ।

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