आधारभूत ढाँचा जो आपदाएँ झेल सके | 03 Aug 2017

दुनिया के लगभग प्रत्येक देश को आपदाओं से दो-चार होना पड़ता है, लेकिन एक बेहतर आपदा-प्रबंधन वाला देश वह है, जिसने इन आपदाओं को झेलने लायक आधारभूत ढाँचे का निर्माण कर रखा है।

जब आपदाएँ आती हैं तो बुनियादी सेवाएँ ठप हो जाती हैं और आम आदमी की दिक्कतें बढ़ जाती हैं क्योंकि पानी, बिजली, मोबाइल और इंटरनेट जैसी सेवाएँ समय पर और तेज़ी से बहाल नहीं हो पातीं।

यातायात संपर्क टूट जाता है और कई समुदाय बहुत दिनों तक मुख्य धारा से कट जाते हैं। इन दिक्कतों से निपटने में वक्त लगता है। चेन्नई में आई बाढ़, हिमालय में अचानक आई बाढ़, गुजरात और नेपाल में आए भूकंप, सूनामी और चेर्नोबिल व फूकुशिमा में परमाणु त्रासदियाँ आदि हमारी याददाश्त में ताज़ा हैं।

आपदा प्रबंधन और भारत 

  • विदित हो कि 23 दिसंबर 2005 को भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम का गठन किया। इस अधिनियम के अधीन ही राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकार (एनडीएमए) के गठन की अवधारणा प्रस्तुत की गई।
  • इसका नेतृत्व प्रधानमंत्री के पास है और राज्यों के आपदा प्रबंधन प्राधिकार (एसडीएमए) का नेतृत्व राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सौंपा गया है। विचार यही रहा कि देश में आपदा प्रबंधन को लेकर एक समग्र और एकीकृत रुख अपनाया जाए।
  • उल्लेखनीय है कि आपदाओं के विघटनकारी प्रभाव को तभी कम किया जा सकता है, जब इनसे निपटने के लिये 'डिजास्टर रिजिल्यंट इन्फ्रास्ट्रक्चर' (डीआरआई) यानी आपदाएँ झेल सकने लायक आधारभूत ढाँचा तैयार किया जाए और आपदाओं के जोखिम को कम करने के लिये 'डिजास्टर रिस्क रिडक्शन (डीआरआर)' की तैयारी की जाए।
  • ध्यातव्य है कि ‘डीआरआई’ और ‘डीआरआर’ को लेकर नया विचार 'सेनडाई फ्रेमवर्क फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन' से सामने आया है, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2015 में अगले 15 वर्ष के लिये अपनाया है।
  • वस्तुतः सेंडाई एक जापानी शहर है, जिसका चयन इसलिये किया गया, क्योंकि वर्ष 2011 के भूकंप और सूनामी से निपटने में इस शहर ने अद्भुत कौशल दिखलाया था।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 जून, 2016 को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (एनडीएमपी) जारी की, जो देश में इस तरह की पहली राष्ट्रीय योजना है।
  • यह सेंडाई फ्रेमवर्क पर ही आधारित है और इसमें केंद्र, राज्य, ज़िला, कस्बे और पंचायत स्तर पर सभी विभागों को शामिल किया गया है। इसमें जिन क्षेत्रों को शामिल किया गया है, वे हैं जोखिम का आकलन, विभिन्न एजेंसियों के बीच तालमेल, डीआरआई और डीआरआर में निवेश और क्षमता निर्माण।
  • इस योजना में 15 आपदाओं को शामिल किया गया है और इनसे निपटने के प्रबंधन और इनका प्रभाव कम करने के नाम पर विभिन्न मंत्रालयों को इसमें शामिल किया गया है। उदाहरण के लिये सूनामी या चक्रवात की बात करें तो भूविज्ञान मंत्रालय को आपदा प्रबंधन की जवाबदेही दी जाएगी।
  • भूस्खलन के मामलों में यह काम खनन मंत्रालय के पास होगा। जैव आपदाओं से निपटने का काम स्वास्थ्य मंत्रालय के ज़िम्मे और शहरी विकास मंत्रालय के पास शहरों में आने वाली बाढ़ से निपटने का काम होगा।

करने होंगे और अधिक प्रयास

  • आपदा के घटित होने के बाद बुनियादी सेवाएँ जल्द बहाल हों और अबाध ढंग से चलती रहें, इसके लिये ज़रूरत इस बात की है कि कर्मचारियों को संवेदनशील बनाया जाए। परिसंपत्तियों का समुचित रखरखाव हो, ताकि दिक्कतों के दौरान भी उनसे काम लिया जा सके।
  • उदाहरण के लिये अगर नाली की व्यवस्था का उचित रखरखाव नहीं किया गया तो भारी बारिश की स्थिति में कभी भी बाढ़ आ सकती है। दूसरा बड़ा हिस्सा परिचालन टीमों के प्रशिक्षण से संबंधित है, ताकि वे आपदा से निपट सकें और सेवाओं को शीघ्र बहाल कर सकें।
  • द इकनॉमिस्ट ने हाल ही में जानकारी दी थी कि अक्सर आपदा से जूझते रहने वाले देश ‘हैती’ को कैसी तैयारी करनी चाहिये। इसमें व्यय संबंधी सलाह भी शामिल थे। विदित हो कि आपदा आने के बाद सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वालों को प्रशिक्षित करने में 20 लाख डॉलर खर्च करने की ज़रूरत बताई गई है।
  • भारत में अभी 30-40 वर्ष का समय तो बुनियादी ढाँचा विकसित करने में ही लग जाएगा। ऐसे में पहली कोशिश यही होनी चाहिये कि ठोस बुनियादी ढाँचा तैयार किया जाए। बेहतर नियमन और उस नियमन का बेहतर प्रवर्तन आवश्यक है।
  • जापान के उदहारण से दुनिया ने सीखा है कि किसी आपदा से निपटने की कोई भी तैयारी पर्याप्त नहीं कही जा सकती है। हमें बुरी से बुरी स्थिति के लिये खुद को तैयार रखना होगा। मसलन परमाणु आपदा, सूनामी से लेकर भूकंप तक, आपदा चाहे जैसी भी हो उसे झेल सकने लायक आधारभूत निर्माण करना होगा।

कैसे हो फंड अभाव की समस्या का समाधान ?

  • गौरतलब है कि असैन्य क्षेत्रों में अशांति और उसके कारण उत्पन्न आपात स्थितियों से निपटने के लिये त्वरित कार्य बल की तैनाती की तरह ही आपदा प्रबंधन के लिये भी तत्काल फंड की आवश्यकता होती है, वह भी बिना किसी खास देरी के।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (एनडीएमपी) के वित्तीय हालात पर नज़र दौड़ाएं तो पता चलता है कि वर्ष 2015-16 के दौरान उसका बजटीय आवंटन 445 करोड़ रुपए का था, जबकि वर्ष 2016-17 में यह आवंटन 678 करोड़ रुपए रहा। 
  • ज़ाहिर है कि एनडीएमए से जिस पैमाने पर काम करने की अपेक्षा की जा रही है उसे देखते हुए यह धनराशि अपर्याप्त है। इस संबंध में जितनी व्यापक नीति, योजना, परिचालन और क्षमता निर्माण आदि की कल्पना की गई है, उसके लिये काफी अधिक धनराशि की आवश्यकता होगी।
  • इस संबंध में तत्काल एक डिजास्टर रैपिड एक्शन मिटिगेशन फंड (डीआरएएम) का गठन करना चाहिये, ताकि ज़रूरत पडऩे पर बिना किसी विलम्ब के  धनराशि मुहैया कराई जा सके।
  • देश के बुनियादी क्षेत्र के विकास में सालाना 15 लाख करोड़ रुपए के निवेश की तैयारी है। सरकारी और निजी डेवलपर दोनों से कहा जा सकता है कि वे देशहित में परियोजना लागत का 0.25 फीसदी डीआरएएम में दें। यानी 10,000 करोड़ रुपए की परियोजना में 25 करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी।
  • निश्चित तौर पर अकेले इस प्रक्रिया के ज़रिये ही काफी धनराशि डीआरएएम के लिये जुटाई जा सकती है। प्रधानमंत्री राहत कोष से अतिरिक्त सहयोग और बजटीय आवंटन से आने वाली राशि का इस्तेमाल करके इस कोष को और मज़बूत किया जा सकता है।
  • देश में व्यापक राष्ट्रीय लक्ष्यों की पूर्ति के लिये प्रासंगिक उपकर लगाने का प्रावधान रहा है। ईंधन उपकर और कोयला उपकर आदि इसके उदाहरण हैं। इसके बारे में एक अच्छी बात यह है कि डीआरएएम कोई ऐसा राजस्व व्यय नहीं है, जो बार-बार सामने आए। यह एकबारगी शुल्क है, जो किसी परियोजना की पूंजीगत लागत पर लगेगा।

निष्कर्ष

  • हमारे देश में प्रत्येक वर्ष किसी न किसी क्षेत्र में भयानक बाढ़ आती है। विदित हो कि भारत में लगभग 400 लाख हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ के खतरे वाला है। यह देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का आठवां भाग है। अत्यधिक वर्षा होने पर शहरी क्षेत्रों में होने वाले जल-भराव एवं हानि के लिये स्थानीय प्रशासन ही पूरी तरह से उत्तरदायी है।
  • दरअसल, हमारे यहाँ नगर नियोजन कभी भी भविष्योन्मुख नहीं रहा है। नदियों के किनारे बसे हुए कस्बों एवं शहरों में विगत वर्षों में जो विस्तार एवं विकास हुआ है, उसमें पानी की उचित निकासी की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। गन्दे नालों की सफाई न किये जाने से उनकी पानी बहा ले जाने की क्षमता लगातार कम होती जा रही है। 
  • अधिकांश नगरों में नदियों के पानी को शहर में प्रवेश न करने देने के लिये तटबंध आदि भी नहीं बनाए गए हैं। भारी बारिश और अचानक आई बाढ़ की भयावहता के मद्देनज़र राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने ऐसी आपदाओं से निपटने के लिये विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने की योजना बनाई थी, लेकिन सबसे बड़ी चिंता यह है कि एक प्राधिकरण सिर्फ 678 करोड़ रुपए के सालाना बजट में क्या कर सकता है।
  • आधारभूत ढाँचे के निर्माण से लेकर प्रशिक्षण तक को तभी अंजाम दिया जा सकता है, जब राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के आवंटन में वृद्धि हो और इसके लिये उपरोक्त सुझावों पर गौर करना चाहिये।