भारतीय राजव्यवस्था
लंबे समय से अधर में लटका पुलिस सुधारों का मुद्दा
- 21 Jan 2019
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हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पाँच राज्यों- पंजाब, केरल, पश्चिम बंगाल, हरियाणा और बिहार में पुलिस प्रमुखों (Police Chief) के चयन और नियुक्ति हेतु राज्यों के कानून को लागू करने संबंधी याचिका खारिज कर दी। यह याचिका पुलिस महानिदेशक (DGP) की नियुक्ति के लिये अपनाई जाने वाली प्रक्रिया में शीर्ष अदालत के पूर्व के आदेशों में संशोधन के लिये दायर की गई थी।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
- यह मामला बड़े पैमाने पर जनहित से जुड़ा है, अतः पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति में राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिये।
- राज्यों द्वारा पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति के विषय पर उनका बनाया हुआ कोई भी नियम या कानून सुप्रीम कोर्ट की अवमानना एवं आदेश का उल्लंघन माना जाएगा।
- कुछ राज्य सरकारें सेवानिवृत्त होने से काफी पहले अपने पसंदीदा अधिकारियों को DGP के रूप में नियुक्त कर देती हैं। परिणामस्वरूप उसी पद पर आसीन व्यक्ति 62 वर्ष की आयु तक दो बार पद पर बने रहते हैं।
- शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि यद्यपि राज्यों द्वारा नियुक्त किये गए DGP को पदभार ग्रहण करने के बाद भी पद पर बने रहने की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन कार्यकाल का यह विस्तार केवल ‘उचित अवधि’ के लिये होना चाहिये।
क्या करेगा UPSC?
गौरतलब है कि जुलाई 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकारों को UPSC की सलाह के बिना DGP की नियुक्ति करने से रोक दिया था। इस प्रक्रिया में संबंधित राज्य सरकारों को कार्यकारी DGP के रिटायर होने से तीन महीने पहले UPSC को इस पद के दावेदारों का नाम भेजना होता है। DGP के पद पर नियुक्त किये जाने के लिये उपयुक्त तीन अधिकारियों का एक पैनल UPSC तैयार करेगा और उसे राज्यों को वापस भेजेगा। जहाँ तक व्यावहारिक होगा UPSC ऐसे लोगों को चुनेगा जिनकी सेवानिवृत्ति में कम-से-कम दो साल शेष हों। इसके साथ योग्यता एवं वरिष्ठता को भी वरीयता दी जाएगी। इसके बाद राज्य सरकारें UPSC द्वारा चुने गए व्यक्तियों में से किसी एक को DGP पद पर नियुक्त करेगी।
मॉडल पुलिस अधिनियम का प्रारूप
गृह मंत्रालय द्वारा गठित एक समिति ने 30 अक्तूबर, 2006 को मॉडल पुलिस अधिनियम का प्रारूप पेश किया था।
उपलब्ध सूचना के अनुसार 15 राज्यों– असम, बिहार , छत्तीसगढ़ , हरियाणा , हिमाचल प्रदेश , केरल , महाराष्ट्र , मेघालय , मिज़ोरम , पंजाब राजस्थान, सिक्किम , तमिलनाडु , त्रिपुरा तथा उत्तराखंड ने अपना राज्य पुलिस अधिनियम तैयार किया है और दो राज्यों– गुजरात तथा कर्नाटक ने वर्तमान पुलिस अधिनियम में संशोधन किया है। इस तरह कुल 17 राज्यों ने या तो अपना पुलिस अधिनियम तैयार कर लिया है या वर्तमान अधिनियम में संशोधन किया है।
प्रमुख विशेषताएँ
- सक्षम, कारगर तथा लोगों की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रोफेशनल पुलिस सेवा की आवश्यकता।
- अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी निभाते हुए पुलिस निष्पक्षता और मानवाधिकार के तौर-तरीकों के अनुसार काम करे।
- अल्पसंख्यकों सहित कमज़ोर वर्गों की रक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाए।
- प्रतिक्रियाशील और उत्तरदायी पुलिस व्यवस्था के लिये कामकाजी स्वायत्तता दी जाए।
- अपराध जाँच, नागरिक पुलिस तथा सशस्त्र पुलिस के लिये अलग कैडर बनाया जाए।
- पुलिस के कार्य-प्रदर्शन और आचरण में ज़िम्मेदारी दिखाई देनी चाहिये।
- काम के घंटों को तर्कसंगत बनाना, प्रत्येक सप्ताह में एक दिन का अवकाश या इसके बदले में पूरक अवकाश देना।
- पुलिस कल्याण ब्यूरो बनाया जाए ताकि पुलिसकर्मियों की स्वास्थ्य देखभाल, आवास तथा कानूनी सहायता और सेवा काल में मृत्यु की स्थिति में परिजनों को आर्थिक सहायता दी जा सके।
- सरकारों द्वारा सभी पुलिस अधिकारियों को बीमा सुरक्षा दी जाए।
- विशेष इकाइयों में तैनात अधिकारियों को काम के जोखिम के अनुरूप विशेष भत्ता दिया जाए।
पुलिस सुधारों पर प्रकाश सिंह समिति की रिपोर्ट
इससे पहले 1977 में IAS अधिकारी धर्मवीर की अध्यक्षता में गठित समिति (इसे राष्ट्रीय पुलिस आयोग नाम दिया गया) ने पुलिस सुधार को लेकर एक रिपोर्ट पेश की थी, लेकिन कई अदालती फैसलों और प्रक्रियाओं के बावजूद इसे लागू नहीं किया जा सका। इसका गठन 14 मई 1977 को सभी राज्यों में पुलिस सुधार के लिये सिफारिशें देने के लिये किया गया था। राष्ट्रीय पूलिस आयोग ने फरवरी 1979 और 1981 के बीच कुल आठ रिपोर्ट पेश कीं। इस आयोग की महत्त्वपूर्ण सिफारिशें इस प्रकार थीं:
- किसी राज्य के पुलिस प्रमुख का कार्यकाल एक निश्चित समय के लिये सुनिश्चित हो और कार्यात्मक स्वतंत्रता को प्रोत्साहन दिया जाए।
- पुलिस के कामकाज में किसी प्रकार का बाहरी हस्तक्षेप न हो।
- प्रत्येक राज्य में पुलिस सुधार आयोग की स्थापना की जाए।
पुलिस सुधारों से जुड़ी धर्मवीर समिति की सिफारिशों को लागू करवाने के लिये उत्तर प्रदेश के पूर्व DGP प्रकाश सिंह ने 1996 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। उन्होंने पुलिस के राजनीतिक और गलत इस्तेमाल को लेकर सवाल उठाया था। इस अपील पर 2006 में फैसला आया और सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस सुधारों को लेकर व्यापक गाइडलाइंस देते हुए सभी राज्यों में उन्हें लागू करने का आदेश दिया था। लेकिन आज तक इस दिशा में राज्य सरकारों ने प्रभावकारी कदम नहीं उठाए हैं।
सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख गाइडलाइंस
- स्टेट सिक्योरिटी कमीशन का गठन किया जाए, ताकि पुलिस बिना दवाब के काम कर सके।
- पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी बनाई जाए, जो पुलिस के खिलाफ आने वाली गंभीर शिकायतों की जाँच कर सके।
- थाना प्रभारी से लेकर पुलिस प्रमुख तक की एक स्थान पर कार्यावधि 2 वर्ष सुनिश्चित की जाए।
- नया पुलिस अधिनियम लागू किया जाए।
- अपराध की विवेचना और कानून व्यवस्था के लिये अलग-अलग पुलिस की व्यवस्था की जाए।
अन्य समितियों ने भी दी सिफारिशें
इससे पहले विधि आयोग, मलिमथ समिति, पद्मनाभैया समिति तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी पुलिस सुधारों को लेकर अपने-अपने सुझाव दे चुके हैं। लेकिन इनमें से किसी की भी सिफारिशों और सुझावों पर अमल नहीं हुआ। इन सभी ने अपनी सिफारिशों में राज्यों में पुलिस की संख्या बढ़ाने और महिला कांस्टेबलों की भर्ती करने का सुझाव दिया था।
पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के लिये अम्ब्रेला योजना
पुलिस के महत्त्व को मद्देनज़र रखते हुए केंद्र सरकार ने ‘पुलिस बलों के आधुनिकीकरण की वृहद् अम्ब्रेला योजना’ को 2017-18 से 2019-20 के लिये स्वीकृत किया है। इस योजना के लिये तीन वर्ष की अवधि में 25,060 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है, जिसमें से 18636 करोड़ रुपए केंद्र सरकार तथा 6424 करोड़ रुपए राज्यों को देने हैं।
प्रमुख विशेषताएँ
- योजना के तहत आंतरिक सुरक्षा, कानून-व्यवस्था, महिला सुरक्षा, आधुनिक हथियारों की उपलब्धता, पुलिस बलों की गतिशीलता, लॉजिस्टिक सपोर्ट, किराये पर हेलीकॉप्टर, पुलिस वायरलेस का अपग्रेडेशन, राष्ट्रीय सैटेलाइट नेटवर्क, CCTNS परियोजना आदि शामिल हैं।
- योजना में जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर राज्यों एवं वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों के लिये आंतरिक सुरक्षा संबंधी व्यय हेतु 10,132 करोड़ रुपए के केंद्रीय अंश का प्रावधान भी शामिल है।
- वामपंथी उग्रवाद से सर्वाधिक प्रभावित 35 ज़िलों के लिये 3000 करोड़ रुपए की विशेष केंद्रीय सहायता का प्रावधान किया गया है। इससे वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों द्वारा सुरक्षा तथा विकास गतिविधियों के क्षेत्र में किये जा रहे प्रयासों से वृद्धि होगी।
- पूर्वोत्तर राज्यों में पुलिस इंफ्रास्ट्रक्चर की अपग्रेडिंग, ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, इनवेस्टीगेशन सुविधाओं के लिये 100 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।
- इस योजना के कार्यान्वयन से उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर क्षेत्रों जैसे विभिन्न राज्यों में चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना करने में सरकार को मदद मिलेगी।
- क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में मौलिक सुधार लाने के उद्देश्य से पुलिस थानों को आपस में जोड़कर अपराध एवं अपराधियों के रिकॉर्ड का राष्ट्रीय डेटाबेस स्थापित करना तथा इसे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के अन्य घटकों, जैसे- कारागार, फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरीज़ तथा इनवेस्टीगेशन ऑफिस से जोड़ना शामिल है।
इसके अलावा, आंध्र प्रदेश की नई बन रही राजधानी अमरावती में एक अत्याधुनिक विधि विज्ञान प्रयोगशाला की स्थापना करने का भी प्रावधान है। साथ ही जयपुर में सरदार पटेल वैश्विक सुरक्षा केंद्र का उन्नयन, आतंकवाद निरोधी एवं आतंकवादी गतिविधि रोकथाम केंद्र बनाने की बात भी कही गई गई है। इस अम्ब्रेला योजना के तहत गांधीनगर, गुजरात में विधि विज्ञान विश्वविद्यालय की स्थापना का भी प्रावधान है।
पुलिस व्यवस्था और पुलिस दोनों राज्य के विषय हैं और यह भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची-II की प्रविष्टि 1 और 2 में है। ऐसे में विभिन्न पुलिस सुधारों को लागू करने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों/ केंद्रशासित प्रदेशों पर है। इसीलिये देश में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के अपने-अपने पुलिस बल हैं। राज्य पुलिस पर कानून एवं व्यवस्था तथा अपराधों की जाँच करने की ज़िम्मेदारी होती है, जबकि केंद्रीय बल खुफिया और आंतरिक सुरक्षा से जुड़े विषयों में उनकी सहायता करते हैं। केंद्र और राज्य सरकारों के बजट का लगभग 3 फीसदी हिस्सा पुलिस पर खर्च होता है।
राज्य और केंद्रीय पुलिस बलों की जिम्मेदारियाँ भिन्न-भिन्न हैं। राज्य पुलिस बल मुख्य रूप से स्थानीय विषयों, जैसे- अपराध को रोकने और उसकी जाँच करने तथा कानून एवं व्यवस्था बहाल रखने का काम करते हैं। हालांकि वे आंतरिक सुरक्षा की अधिक गहन चुनौतियों की स्थिति (जैसे- आतंकवादी घटनाएँ या उग्रवादी हिंसा) में सबसे पहले प्रतिक्रिया देते हैं, लेकिन केंद्रीय बलों को ऐसे संघर्षों से निपटने की विशेषज्ञता प्राप्त होती है। केंद्रीय बलों को स्थानीय पुलिस की तुलना में जान-माल को न्यूनतम नुकसान पहुंचाए बिना बड़े पैमाने पर भड़के दंगों को काबू करने का प्रशिक्षण मिला होता है। इसके अतिरिक्त केंद्रीय बल सीमा सुरक्षा करने वाले सुरक्षा बलों की सहायता भी करते हैं।