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भारतीय अर्थव्यवस्था

किसानों की अशांति का मुख्य मुद्दा: भूमि

  • 08 May 2018
  • 9 min read

संदर्भ

हाल ही में लगभग 30,000 से अधिक किसानों ने महाराष्ट्र सरकार के साथ अपनी शिकायतों को साझा किया। इन शिकायतों का मुख्य एजेंडा ऋण छूट और बेहतर एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) था जबकि इसमें भूमि संबंधी मांग नहीं थी इसी संदर्भ में कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने उम्मीद जताई थी कि भूमि की मांग उनकी मांगों का प्रमुख हिस्सा होना चाहिये था।

आखिर क्यों ज़रूरी है भूमि प्रशासन की व्यवस्था में सुधार?

  • किसानों की आमदनी को बढ़ावा देने के लिये देश में भूमि प्रशासन की व्यवस्था में सुधार करने की तत्काल आवश्यकता है, क्योंकि यह कृषि क्षेत्र की वार्ता में आपूर्ति श्रृंखला की दक्षता या बीज और उर्वरकों जैसे इनपुट की गुणवत्ता में सुधार पर केंद्रित है।
  • भूमि एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है, जो अक्सर इन वार्तालापों के माध्यम से उठाया जाता है। भूमि एक इनपुट है जिसे बनाया नहीं जा सकता है, लेकिन इसका मूल्य खराब नीति के माध्यम से नष्ट ज़रूर किया जा सकता है।
  • दो विशिष्ट क्षेत्रों में, जहाँ सरकार पिछले 70 वर्षों में असफल रही है, वे निम्नलिखित हैं-

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भारत का भूमि बाज़ार

  • पहली प्रमुख चुनौती भारत के भूमि बाज़ार से संबंधित है, जो कृषि उत्पादकता को रोकता है। 
  • कृषि जनगणना 2010-11 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की कुल उपयोग की जाने वाली भूमि के 85 प्रतिशत क्षेत्र में से अधिकतर भूमि जोतों का आकर 2 हेक्टेयर से भी कम है अर्थात् कृषि जोतों का आकार छोटा है।
  • ऐसे छोटे भूखंडों से होने वाली उपज से किसान मुश्किल से अपने परिवार का भरण-पोषण कर पाते हैं, इसके साथ ही बाज़ार में बेचने के लिये  उपज अधिशेष भी नहीं होता है।
  • भूमि अधिग्रहण का एकीकरण उच्च दक्षता और पैदावार को बढ़ा सकता है, लेकिन इसके लिये एक भूमि बाज़ार की आवश्यकता होती है, जो लोगों को भूमि खरीदने या किराए पर लेने की अनुमति देता हो।
  • हालाँकि, बिक्री लेनदेन को पंजीकृत करने में उच्च लागत और जटिलता के साथ ही सटीक शीर्षक और मानचित्रों की अनुपस्थिति तथा स्वामित्व और अन्य उपयोग आदि, इस प्रकार की लेनदेन प्रक्रिया में विवाद पैदा करते हैं।
  • इसके अलावा, मौजूदा कानून औपचारिक भूमि पट्टे पर रोक लगाते हैं। एनएसएसओ की वर्ष 2013 की एक रिपोर्ट का अनुमान है कि 13 फीसदी घरों की भूमि पट्टे पर है, लेकिन गैर-सरकारी संगठनों की अन्य रिपोर्टों से पता चलता है, कि यह अनौपचारिक किरायेदारी व्यवस्था के कारण 50 प्रतिशत तक भी हो सकती है।

सटीक भूमि अभिलेखों का अभाव

  • दूसरी आधारभूत चुनौती सटीक भूमि अभिलेखों का अभाव है क्योंकि इसके बिना, किसानों के लिये  महत्त्वपूर्ण कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठा पाना मुश्किल है।
  • सरकार हर साल उर्वरक सब्सिडी पर सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक प्रतिशत खर्च करती है, जबकि अन्य बड़ी सब्सिडी बीज, कीटनाशकों, फसल बीमा और कृषि ऋण के रूप में मौजूद है।
  • यदि अंतर्निहित भूमि रिकॉर्ड मालिकों के वास्तविक नामों और किसानों या भूखंडों के सही आकार क को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं, तो लाभ लक्षित लाभार्थियों तक नहीं पहुँचेंगे।
  • ऐसे कई अलग-अलग कारण हैं जिनके कारण जमीनी स्तर की वास्तविकता प्रतिबिंबित नहीं हो पाती है इनमें अनियंत्रित बिक्री, विरासत और किरायेदारी से लेकर, दशकों पुराने आधिकारिक मानचित्र शामिल हैं।
  • इसे एक उदाहरण के माध्यम से समझा जा सकता है जैसे-एक जनजातीय किसान वन अधिकार अधिनियम के तहत अपने अधिकार की प्रतीक्षा कर रहा हो तो ऐसा किसान हर स्तर पर अपने लाभों की प्राप्ति में पिछड़ जाएगा और स्थानीय बाज़ार में कम कीमतों पर ही अपने उपज को बेच देगा।
  • अतः हमें कृषि क्षेत्र के वार्तालाप के लिये भूमि प्रशासन हेतु कुशल सरकारी प्रणालियों के महत्त्व को बढ़ाने की ज़रूरत है। हालांकि, यह एक जटिल विषय है।
  • साथ ही, इसके व्यवस्थित मुद्दों को अकेले सार्वजनिक नीति के माध्यम से तय नहीं किया जा सकता है इसके लिये सरकारों, परोपकारी संस्थानों, उद्यमियों और नागरिक समाज समेत कई हितधारकों के बीच नई सोच और सहयोग की आवश्यकता होगी।

अपेक्षित कदम 

उपर्युक्त विशिष्ट चुनौतियों से निपटने  के लिये निम्नलिखित अपेक्षित कदम उठाए जाने की आवश्यकता है –

बहु-अनुशासनात्मक पहुँच

  • बेहतर भूमि प्रशासन के लिये सामाजिक, राजनीतिक, कानूनी और आर्थिक मुद्दों की समझ होना आवश्यक है और भारत को ऐसी क्षमता बनाने की सख्त ज़रूरत है। 
  • इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स के भीतर सेंटर फॉर लैंड गवर्नेंस की स्थापना सार्वजनिक और निजी स्थान और ड्राइविंग पॉलिसी रिसर्च के भीतर प्रतिभा को पोषित करने का एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन हमें ऐसे कई और अग्रणी संस्थानों की आवश्यकता है।

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भूमि अभिलेखों का एकीकरण 

  • परोपकारी संस्थानों  और राज्य सरकारें पूरे भारत में कृषि कार्यक्रमों पर लाखों डॉलर की राशि खर्च करती हैं, लेकिन उन्हें भूमि और भूमि अभिलेख की भूमिका के बारे में समग्र दृष्टिकोण अपनाने के लिये अपने कदम आगे बढ़ाने चाहिये।
  • इससे संबंधित कार्यक्रमों हेतु बड़े पैमाने पर संसाधनों के आवंटत करने की आवश्यकता है, ताकि लक्षित किसान आबादी को सटीक भूमि अभिलेख प्राप्त हो सकें।

तकनीक की भूमिका 

  • भू-स्थानिक और मोबाइल प्रौद्योगिकी की उपलब्धता का प्रयोग करके हम भूमि अभिलेखों को अपडेट करने के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं, जिसके माध्यम से भूमि अभिलेख आसानी से एवं सस्ते तरीके से उपलब्ध हो सकते हैं।
  • ध्यातव्य है कि, ओडिशा ऐसे पहले राज्य के रूप में उदाहरण स्थापित कर रहा है, जहाँ ऐसे दस्तावेज प्राप्त करने के लिये तथा हज़ारों झुग्गी वाले घरों का सही अभिलेख जानने के लिए ड्रोन का उपयोग किया जा रहा है।

उद्यमशील समाधान

  • समस्या की व्यापकता लाखों नवप्रवर्तनकों और उद्यमियों के लिये कदम उठाने हेतु एक बड़ा अवसर प्रदान करता है।
  • उपर्युक्त वर्णित सभी क्षेत्रों की समस्यायों के निजात हेतु भूमि प्रशासन के एक अधिक गतिशील और सक्रिय दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता है। अतः आवश्यक है कि सभी क्षेत्रों के उद्यमी इन विशिष्ट समस्यायों  को लक्षित कर नवाचार को बढ़ावा दें।
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