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भारतीय अर्थव्यवस्था

हर हाथ को काम: आने वाली सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती

  • 16 Apr 2019
  • 7 min read

संदर्भ

हाल ही में अन्य कई संस्थाओं के साथ देश के एक बड़े थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) द्वारा जारी आँकड़ों से तथ्य सामने आया है कि देश में बेरोज़गारी की दर साल 2016 के बाद से अब तक के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। फरवरी, 2019 के दौरान देश में बेरोज़गारी दर 7.2% तक पहुंच गई है, जो एक साल पहली यानी फरवरी, 2018 में 5.9% थी. गौरतलब है कि CMIEC निजी क्षेत्र का एक जाना-माना थिंक टैंक है, जिसके आँकड़े अपेक्षाकृत विश्वसनीय माने जाते हैं। CMIE के यह आँकड़े देशभर के लाखों परिवारों में किये गए सर्वे पर आधारित होते हैं, जिनसे पता चलता है कि नौकरी चाहने वालों की संख्या में कमी के बावजूद बेरोज़गारी की दर में रिकॉर्ड बढ़त हुई है। इस वर्ष फरवरी में करीब 40 करोड़ लोगों के नौकरी में रहने का अनुमान है, जबकि पिछले साल फरवरी में यह संख्या लगभग 40.6 करोड़ थी।

सार्थक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा है बेरोज़गारी

हमारे पास सैन्य साजो-सामान के आधुनिकीकरण के साधन नहीं होंगे...हमारी इतनी आर्थिक क्षमता नहीं होगी कि दुनिया के देशों को इस बात के लिये राजी कर पाएँ कि वे हम पर हमला कर कानून की गिरफ्त से भागे आतंकवादियों को गिरफ्तार कर उनका प्रत्यर्पण करें। अगर हम रोजगापरक आर्थिक वृद्धि दर्ज नहीं कर सके तो देश में राजनीतिक स्थिरता भी खतरे में पड़ सकती है, क्योंकि बेरोज़गार युवा कुंठित हो सकते हैं। अतः रोज़गार पैदा करने वाले आर्थिक विकास के बिना किसी भी देश की सार्थक राष्ट्रीय सुरक्षा संभव नहीं है। 

निर्माण (Construction) क्षेत्र में है रोज़गार देने की अधिक क्षमता 

इसमें कोई दो राय नहीं कि रोज़गार के अवसर बढ़ाने के लिये हमें अपनी विकास दर बढ़ानी होगी, विशेषकर नौकरियाँ देने वाले क्षेत्रों में। इसके लिये हमें नई पीढ़ी के सुधार लागू करने होंगे क्योंकि पुरानी पद्धति बेकार हो चुकी है। भारी संख्या में नए रोज़गार केवल निर्माण क्षेत्र से आ सकते हैं। किफायती घरों, सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों, हवाई अड्डों और कमर्शियल रियल एस्टेट के निर्माण से अर्द्ध-कुशल आबादी को बड़ी संख्या में नौकरियाँ मिल सकती हैं। लेकिन, भूमि अधिग्रहण की जटिल प्रक्रिया और ऋण की अपर्याप्त उपलब्धता की वज़ह से इस क्षेत्र का विकास अपेक्षित स्तर पर नहीं हो पा रहा है। आने वाली सरकार को इन कमियों को दूर करना होगा।

ज़रूरी है डिजिटल मैपिंग की बेहतर व्यवस्था

डिजिटल मैपिंग की बेहतर व्यवस्था और भू-स्वामित्व से संबंधित कानून (राज्यों का विषय) में बदलाव की ज़रूरत होगी। इससे ज़मीन की बिक्री के अलावा लीज़ पर ज़मीन देने की प्रक्रिया भी आसान होगी। इससे कई सीमांत किसान खेती छोड़कर अपनी जमीन लीज़ पर देकर बदले में अच्छा किराया पा सकते हैं। इन विषयों पर दशकों से चर्चा होती रही है, लेकिन गिनती के ही राज्यों ने इन्हें कायदे से लागू किया है।

डुइंग बिज़नेस के पैमानों को छोड़ें

ईज़ ऑफ डुइंग बिज़नेस के लिये विश्व बैंक के पैमाने का पीछा करने के बजाय देश को खुद की ज़रूरतों पर आधारित पैमाने तय करने चाहिये। डुइंग बिज़नेस के लिये विश्व बैंक के मानकों पर जोर देने के बजाय बिज़नेस शुरू करने के नियमों को आसान बनाने का वास्तविक प्रयास करना चाहिये, क्योंकि विश्व बैंक का आधार मुख्य रूप से दिल्ली और मुंबई के कुछ चुनिंदा संकेतकों पर निर्भर होता है।

निर्माण कंपनियों को सलाह

निजी क्षेत्र में अभी और सुधारों की ज़रूरत है। निर्माण क्षेत्र की कंपनियों को जब बैंक कर्ज़ देने में संकोच करने लगे तो फाइनेंस कंपनियों ने यह कमी पूरी की, लेकिन अब वे खुद मुश्किल में फँस चुकी हैं। ऐसे में निर्माण कंपनियों को खुद में सुधार लाना होगा। साफ-सुथरे निर्माण क्षेत्र को बैंकों से कर्ज़ आसानी से मिलेगा, जिससे इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र की कालेधन पर निर्भरता खत्म हो जाएगी।

अन्य क्षेत्रों में भी हों बड़े पैमाने पर सुधार

निर्माण क्षेत्र के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी कई सुधारों की ज़रूरत है। आने वाली सरकार रोज़गार पैदा करने के लिये कई तरह के सुधार कर सकती है। समावेशन का सर्वोत्तम रूप है एक अच्छी नौकरी। इस क्षेत्र में बहुत कुछ करना है। नई सरकार को अतीत से भी सीखना होगा। नए सुधार कार्यक्रम बहुत बड़े पैमाने पर चलाने होंगे और इनमें राज्यों के सहयोग की बहुत ज़रूरत होगी।

साधनों की कमी का रखना होगा ध्यान

हमें साधनों की कमी को भी ध्यान में रखना होगा। सरकार को अपनी कल्याणकारी योजनाओं को भी तार्किक बनाना होगा ताकि बजट पर बहुत अधिक बोझ नहीं पड़े। हालाँकि अनिवार्य लक्ष्यों को कुशलतापूर्वक पूरा करना भी ज़रूरी होगा।

अंत में...सतत् विकास का कोई भी रास्ता सामाजिक शांति से होकर गुज़रता है। कोई भी दल अगर एक बड़े नागरिक समूह को नजरअंदाज़ करता है तो यह सुनिश्चित हो जाता है कि हम न तो विकास करेंगे और न ही हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा में मज़बूती आने वाली है। इस समय सिर्फ एक उद्देश्य होना चाहिए- रोज़गार पैदा करने वाली सतत् आर्थिक वृद्धि।

अभ्यास प्रश्न: “सतत् विकास का कोई भी रास्ता सामाजिक शांति से होकर गुज़रता है। कोई भी दल अगर एक बड़े नागरिक समूह को नजरअंदाज करता है तो यह सुनिश्चित हो जाता है कि हम न तो विकास करेंगे और न ही हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा में मजबूती आने वाली है।“ कथन का परीक्षण कीजिये।

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