अंतर्राष्ट्रीय संबंध
इज़राइल बना यहूदी राष्ट्र
- 24 Jul 2018
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पृष्ठभूमि
इज़राइली संसद (knesset) द्वारा मूल कानून (basic law) जिसे अनौपचारिक रूप से "राष्ट्र राज्य कानून" (nation state law) भी कहा जा रहा है, पारित कर दिया गया है। इस कानून में यह घोषणा की गई है कि इज़राइल ऐतिहासिक रूप से यहूदियों की मातृभूमि है, जो उन्हें संकल्प स्वातंत्र्य का ‘अद्वितीय’ अधिकार प्रदान करता है।
चर्चा में क्यों?
- इज़राइल की संसद ने यह कानून देश को यहूदी लोगों के राष्ट्र राज्य के रूप में परिभाषित करने के लिये अपनाया है।
- अरब सांसदों और फिलिस्तीनियों ने इसे "नस्लीय” कानून करार दिया और संसद में एक कठोर बहस के बाद कहा कि इससे "नस्लवाद” को वैध बनाया गया है।
- नेतन्याहू की सरकार को देश के इतिहास में सबसे दक्षिण पंथी सरकार के रूप में देखा गया है।
- गौरतलब है कि जब 1948 में इज़राइल जब आज़ाद हुआ, उसी समय के अपने 1948 की आज़ादी की घोषणा में यह सुनिश्चित किया गया था कि यहाँ अधिवास करने वाले सभी लोगों को चाहे वह किसी भी लिंग, धर्म और नस्ल के हों “सामाजिक और राजनीतिक मामले में पूर्ण समानता” प्राप्त होगी।
प्रमुख घटनाक्रम:
- इज़राइल की संसद ने 55 के मुकाबले 62 मतों से इस कानून को पारित किया।
- हालाँकि, एक गंभीर विवादास्पद खंड जो विशेष रूप से केवल यहूदी समुदाय की स्थापना को ही वैध बनाने की बात कर रहा था, इज़राइली राष्ट्रपति रूवेन रुवलिन समेत अन्य द्वारा आलोचना किये जाने के बाद परिवर्तित कर दिया गया था।
- कानून पारित होने के समय अरब लोगों के प्रतिनिधियों द्वारा संसद में काले झंडे भी दिखाए गए।
कानून के अनुपालन का प्रभाव:
- इज़राइली संसद द्वारा पारित यह कानून इस क्षेत्र की शांति हेतु प्रतिबद्धता पर प्रश्न,चिह्न लगाता है। इस कानून को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हो जाने के बाद यह मूल कानून इज़राइल का एक शक्तिशाली कानून बन जाएगा, जो इसे यहूदियों के ऐतिहासिक मातृभूमि और अनन्य रूप से राष्ट्रीय संकल्प स्वातंत्र्य या आत्मनिर्भरता का अधिकार प्रदान करता है।
- इस कानून के लागू होने से अरबी को दिया गया अधिकारिक भाषा का दर्जा छीन लिया जाएगा, जो न केवल अरब लोगों के प्रति होनेवाले भेदभाव को इंगित करता है बल्कि यह भी संकेत करता है कि इज़राइल द्वारा बनाए जाने वाली नीतियों में अब यहूदियों को प्राथमिकता दी जाएगी तथा अरब लोगों को उपेक्षा का शिकार होना पड़ेगा।
- यह नया मूल कानून उस संक्रमण के लिये मंच निर्धारित करता है जो समानता की बुनियादी अवधारणाओं को चुनौती देता है। साथ ही यह 1948 की आज़ादी की घोषणा में सुनिश्चित सार्वभौमिक समानता को भी महत्त्वहीन साबित करता है।
- उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 में इज़राइल की जनसंख्या अनुमानतः 8,885,520 थी जिसमें यहूदियों की संख्या लगभग 75 प्रतिशत और अरब लोगों की जनसंख्या लगभग 21 प्रतिशत के आसपास थी। किंतु इज़राइल का खुद को यहूदी विशिष्ट राज्य के रूप में प्रस्तुत करना इस 21 फीसदी जनसंख्या के लिये बलपूर्वक यहूदी धर्म को मानने जैसा ही होगा। इस तरह यह कदम इज़राइल के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को धूमिल करता है।
- इस कानून के माध्यम से पूर्ण एवं एकीकृत येरुशलम को इज़राइल की राजधानी के रूप में स्वीकार किया गया है। इस तरह इज़राइल अब अन्य देशों पर यह दबाव बना पाएगा कि तेल अवीव की जगह येरुशलम को ही राजधानी माना जाए। उल्लेखनीय है कि इस कदम से फिलीस्तीनी बस्तियों पर इज़राइल का अतिक्रमण बढ़ेगा, जो द्वि-राष्ट्र समाधान (two-state solution) के सिद्धांत के भी विपरीत है।
- इसके अतिरिक्त इज़राइल द्वारा दो अन्य कानून भी पारित किये गए थे। पहले कानून में यह कहा गया था कि फिलिस्तीनियों को इज़राइली उच्च न्यायालय तक पहुँच के मामले में यहूदियों की अपेक्षा सीमित अवसर प्राप्त होंगे। जबकि दूसरे कानून में देश के खिलाफ राजनीतिक कार्रवाई की मांग करने वाले व्यक्तियों और समूहों पर प्रतिबंध लगाना है। ये दोनों कानून एक साथ इज़राइल को अल्पसंख्यकों के खिलाफ घर में भेदभाव करने की इज़ाजत देते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया:
- तुर्की ने इज़राइल के इस कदम को सार्वभौमिक कानून का अपमान करने वाला बताया है।
- अरब लीग द्वारा आलोचना करते हुए यह कहा गया है कि यदि इस कानून के माध्यम से इज़राइल द्वारा फिलिस्तीनी भूमि का अतिक्रमण किया जाता है तो इसे वैध नहीं मानी जाएगा।
- यूरोपीय संघ ने इज़राइल के इस कदम को शांति स्थापना की संभावना को शिथिल करने वाला बताया है।
राष्ट्र राज्य कानून क्यों?
हाल ही बेंजामिन नेतन्याहू एवं उनकी पत्नी के ऊपर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे हैं और इससे उनकी लोकप्रियता में कमी आई है। साथ ही यह भी संभावना जताई जा रही है कि नेतन्याहू की नेतृत्व वाली लिकुद पार्टी आगामी चुनाव में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाएगी। ऐसे में नेतन्याहू राष्ट्रवाद की भावना का इस्तेमाल कर बहुसंख्यक यहूदियों को गोलबंद करना चाहते हैं जिससे उनकी पार्टी चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर पाए, साथ ही उनकी लोकप्रियता में भी वृद्धि हो।
निष्कर्ष:
- इज़राइल द्वारा पारित यह कानून निश्चित ही भेदभावपूर्ण है जिसके चलते इज़राइल में लोकतांत्रिक मूल्य खतरे में है।
- यह कदम इस क्षेत्र में अस्थिरता को और अधिक तीव्र करेगा, जो मानवीय मूल्यों के ह्रास को बढ़ावा देगा।
- यह इज़राइल और फिलीस्तीन के बीच सामान्य सुलह के मार्ग को बाधित करेगा। फिलिस्तीनी क्षेत्र में इज़राइली अतिक्रमण को तेज़ करेगा।
- अंततः यह मानवाधिकारों से संबंधित शरणार्थी समस्या को भी उत्पन्न करेगा, जो विश्व के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बाधित करेगा।