क्या दिवालियापन संहिता को रेरा के मुकाबले में खड़ा करना उचित है? | 19 Jun 2018
संदर्भ
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक अध्यादेश पारित कर दिवाला एवं दिवालियापन संहिता 2016 (IBC) में संशोधन किया है जिसके अंतर्गत घर खरीदने वालों को “वित्तीय लेनदार” का दर्ज़ा दिया गया है। ऐसा करके केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 (RERA) जो कि घर खरीदारों के हितों की रक्षा करने के लिये एक विशेष कानून है, को नज़रअंदाज कर दिया है।
रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016
- RERA को रियल एस्टेट क्षेत्र को बढ़ावा देने के साथ-साथ घर-खरीदारों के हितों की रक्षा हेतु एक कुशल और पारदर्शी तरीके से भूखंड, अपार्टमेंट या भवन, या अचल संपत्ति परियोजना की बिक्री सुनिश्चित करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- RERA विवादों के त्वरित निपटान के लिये एक निर्णय तंत्र भी प्रदान करता है तथा अपील सुनने के लिये एक अपीलीय न्यायाधिकरण की स्थापना भी करता है।
RERA क्या है?
अधिनियम की विशेषता
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RERA द्वारा दी जाने वाली सुरक्षा
RERA द्वारा घर खरीदारों को दिये जाने वाले कुछ विशेष सुरक्षा प्रावधान निम्नलिखित हैं:
- धारा 4 (2) (l) (D) अनिवार्य करता है कि निर्माण लागत तथा भूमि लागत को कवर करने के लिये प्रमोटर को आवंटिती (allottees) द्वारा रियल एस्टेट के लिये संपादित की गई राशि का 70 प्रतिशत निर्धारित बैंक में ज़मा किया जाना चाहिये और इस राशि का उपयोग केवल इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु किया जाना चाहिये।
- प्रत्येक प्रमोटर (promoter) को रियल एस्टेट परियोजनाओं के पंजीकरण के लिये रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण को आवेदन करना चाहिये। यदि प्रमोटर RERA द्वारा वांछित किसी भी क्षेत्र में (परियोजना के समयबद्ध समापन सहित) चूक जाता है तो उस स्थिति में प्रमोटर द्वारा कराए गए पंजीकरण को निरस्त किया जा सकता है।
- पंजीकरण रद्द करने पर प्राधिकरण के पास उपर्युक्त बैंक खाते को बंद करने की शक्ति प्राप्त है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रमोटर आवंटियों से संबंधित धन का बेईमानीपूर्वक प्रयोग न कर सके।
- इसके बाद, पंजीकरण रद्द करने पर, प्राधिकरण शेष विकास कार्यों को पूरा करने के लिये सरकार से परामर्श ले सकती है।
- यदि कोई प्रमोटर या रियल एस्टेट एजेंट उस पर लगाए गए किसी भी ब्याज या जुर्माना या मुआवजे का भुगतान करने में विफल रहता है, तो ऐसे से लोगों यह बकाया भू-राजस्व के रूप में वसूलने योग्य होगा। तमिलनाडु में इस प्रकार के अधिनिर्णय को इस प्रकार लागू किया गया है जैसे कि यह सिविल कोर्ट द्वारा दिया गया निर्णय हो।
संक्षेप में RERA घर खरीदारों को उपभोक्ताओं के रूप में मानता है और घर खरीदारों के लिये एक विशेष प्राधिकरण और अपीलीय न्यायाधिकरण के माध्यम से उपभोक्ता-अनुकूल विवाद समाधान तंत्र प्रदान करता है।
IBC के तहत घर खरीदारों को "वित्तीय लेनदारों" के रूप में वर्गीकृत किये जाने के कारण उत्पन्न जटिलता
- कॉर्पोरेट दिवालियापन प्रक्रिया में वित्तीय लेनदार एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऋणदाताओं की समिति (Committee of Creditors-CoC)) में कॉर्पोरेट कर्ज़दारों के सभी वित्तीय ऋणदाता शामिल हैं।
- CoC दिवालियापन पेशेवर की नियुक्ति और पर्यवेक्षण का कार्य करेगी और उसके पास कर्ज़दार के पुनः प्रवर्तन के लिये वियोजित योजना को स्वीकार या अस्वीकार करने की शक्ति है। इसके अलावा, यह देनदार को ऋणमुक्त करने के लिये कदम उठा सकती है।
- पूरी प्रक्रिया समयबद्ध है और इसे 180 दिनों की अवधि के भीतर पूरा किया जाना चाहिये (180 दिन पूरा होने के बाद 90 दिनों का एक बार विस्तार संभव है)।
- दिवालियापन कानून सुधार समिति द्वारा की गई व्याख्या के अनुसार गतिशीलता दिवालियापन संहिता की कार्यप्रणाली का मूलतत्व है।
- इस प्रकार, विलंब के कारणों की पहचान और उन्हें दूर करने से समाधान प्रक्रिया में तेज़ी आएगी।
दिवाला और दिवालियापन संहिता 2016
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वित्तीय लेनदार (Financial creditors)
- वित्तीय लेनदारों में बड़े पैमाने पर बैंक तथा वित्तीय संस्थान शामिल होते हैं, जिनके पास प्रक्रिया में भाग लेने के लिये तथा प्रतिलाभ प्राप्त करने हेतु योगदान के लिये अपेक्षित अधिकार क्षेत्र उपलब्ध हैं जिसमें कंपनी को फिर से ऊपर उठाने के लिये समाधान योजना जैसा एक महत्त्वपूर्ण कार्य शामिल है।
समाधान बनाम परिसमापन
- इस तथ्य के बावज़ूद कि कई नौकरियाँ और आजीविकाएँ दाँव पर हैं सबसे अच्छा प्रतिफल हमेशा कंपनी को एक चिंताजनक स्थिति से बाहर निकाल कर हासिल किया जाता है।
- कंपनी को क्रियाशील रखकर या तो लेनदारों के लिये राजस्व का संचालन और राजस्व उत्पन्न किया जा सकता है या इसे बेचा जा सकता है जिसके परिणामस्वरूप कंपनी की परिसमापन योग्य संपत्तियों की तुलना में अधिक अनुमानित मूल्य प्राप्त होगा।
- इसलिये रियल एस्टेट फर्म पर परिसमापन के लिये दबाव डालने की बजाय एक समाधान योजना के माध्यम से आगे बढ़ना घर खरीदारों सहित सभी वर्गों के लेनदारों के सर्वोत्तम हित में है।
परिसमापन क्या है?
♦ न्यायालय द्वारा अथवा अनिवार्य परिसमापन |
घर खरीदारों के प्रतिनिधित्व से संबंधित अन्य मुद्दे
- CoC की बैठक में विभिन्न मुद्दों, जिनका समाधान निकालने की आवश्यकता है, पर आम सहमति या बहुमत प्राप्त करना एक चुनौती होगी।
- वास्तविकता यह है कि हमारे देश में कुछ अपवादों को छोड़कर लगभग सभी कंपनियाँ जो दिवालियापन समाधान प्रक्रिया में प्रवेश करती हैं, परिसमापन में समाप्त होती हैं।
- इसलिये, "वित्तीय लेनदारों" की श्रेणी में घर खरीदारों को शामिल करने से कॉर्पोरेट परिसमापन प्रक्रिया में अनावश्यक देरी होगी इसके परिणामस्वरूप परिसमापन के तहत परिसंपत्तियों के मूल्य में काफी कमी आएगी, जिससे घर खरीदारों और अन्य के लिये वसूली दर कम हो जाएगी।
- इसके अलावा, यदि कोई घर खरीदार IBC के तहत दिये गए प्रावधानों का उपयोग करने का विकल्प चुनता है और धारा 14 के तहत NCLT उसके स्थगन का आदेश देता है तो RERA के तहत कॉर्पोरेट देनदार के खिलाफ सभी लंबित याचिकाएँ रोक दी जाएंगी।
संक्षेप में अगर घर खरीदारों का एक वर्ग IBC की बजाय RERA को चुनता है तो उनके पास IBC के तहत आगे बढ़ने के अलावा कोई उपाय नहीं बचेगा।
निष्कर्ष
- यह पहली बार नहीं है कि भारत में बैंकिंग और वित्त क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले कानूनों में गड़बड़ी की गई है।
- IBC के अधिनियमन से पहले, हमारे पास बीमार औद्योगिक कंपनी अधिनियम, 1985, बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के शोध्य ऋण वसूली अधिनियम, 1993 और सरफासे अधिनियम, 2002 (SARFAESI Act, 2002) जैसे कई कानून थे।
- RERA को घर खरीदारों को "उपभोक्ता" का दर्ज़ा प्रदान करने के लिये और उन्हें रियल एस्टेट डेवलपर्स के खिलाफ अपने अधिकारों को लागू करने हेतु कई उपाय प्रदान करने के लिये लाया गया था।
- हालाँकि, IBC जो कि RERA की तरह ही एक विशेष कानून भी है, को RERA से अधिक प्राथमिकता दी जाएगी क्योंकि इसे बाद में अधिनियमित किया गया था।
- हालिया अध्यादेश संदेह से परे साबित होता है कि सरकार के पास उचित दृष्टिकोण की कमी है और मसौदा कानूनों में किसी भी प्रकार के कमज़ोर दृष्टिकोण से नागरिक बुरी तरह से प्रभावित होंगे।
- RERA जैसे क्षेत्र-विशिष्ट कानून को इसके वास्तविक प्रदर्शन का इंतजार किये बिना समाप्त करने के लिये कोई कारण दिखाई नहीं देता है।
प्रश्न: क्या वास्तव में घर खरीदारों को दिवाला एवं दिवालियापन संहिता के तहत "वित्तीय लेनदारों" के रूप में वर्गीकृत किये जाने की आवश्यकता है? |