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क्या उचित है कृषिगत आय को कर के दायरे में लाना?

  • 04 May 2017
  • 10 min read

प्राचीन काल में राजाओं के राजस्व का प्रमुख हिस्सा कृषि से ही आता था, भारत में अंग्रेज़ शासक कृषि पर भारी लगान लगाने के लिये कुख्यात हुए थे। परन्तु औद्योगिक क्रांति ने कृषि को पीछे धकेल दिया और अब अधिकांश देशों में कृषिगत आय पर कोई कर नहीं लगाया जाता है, बल्कि उन्हें अनुदान (सब्सिडी) दिया जाता है। हालाँकि कृषिगत आय को कर के दायरे में लाने की बात गाहे-बगाहे होती ही रहती है।

वर्तमान परिस्थितियाँ

  • जनहित में लोकपरक नीतियों का निर्माण एवं उनका समुचित क्रियान्वयन एक कल्याणकारी राज्य के प्रमुख लक्षण हैं। लेकिन बात जब कृषि की हो तो लोक कल्याणकारी राज्य एक छलावा ही प्रतीत होता है।
  • आजादी के 70 वर्षों के बाद भी जब देश के किसानों के जीवन में कोई बदलाव नहीं आया तो हमें बैठकर सोचना होगा कि हम आखिर कहाँ चूक रहे हैं? हाल ही में जब नीति आयोग के गवर्निंग कौंसिल की तीसरी बैठक राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आयोजित हुई तो हमारे नीति निर्माताओं के पास यह सोचने का एक उपयुक्त मौका था।
  • लंबे समय से इस बात पर चर्चा होती रही है कि करदाताओं की संख्या बढ़ाने के लिये कृषिगत आय को भी कर के दायरे में शामिल किया जाना चाहिये।
  • हाल ही में नीति आयोग की कार्ययोजना पेश करते समय आयोग के सदस्य विवेक देबरॉय ने कृषिगत आय को कर प्रणाली में शामिल करने का सुझाव दिया।
  • हालाँकि देबरॉय के बयान के तत्काल बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस संभावना को खारिज कर दिया। वहीं नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगडिय़ा ने भी कहा कि सरकार किसानों की आय को दोगुना करने की योजना बनाने में लगी हुई है, लिहाजा कर लगाने का सवाल ही नहीं उठता है।
  • भले ही सरकार ने ऐसी किसी योजना से इनकार कर दिया है लेकिन कृषिगत आय को करों के दायरे में लाना उचित क्यों है इस बात पर बहस तो होनी ही चाहिये।

क्या कहते हैं संबंधित प्रावधान

  • कृषि आय से तात्पर्य उस आय से है जो कृषकों को भूमि पर उत्पादित कृषि उत्पादों से प्राप्त होती है। 
  • विदित हो कि “आयकर अधिनियम 1961 के सेक्शन 10 (1) में कृषि आय को छूट दी गई है।
  • हालाँकि,भारतीय संविधान में कृषि के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों पर आयकर लगाने का अधिकार केन्द्र सरकार को तथा कृषि क्षेत्र से प्राप्त आय पर आयकर लगाने का अधिकार राज्य सरकारों को प्राप्त है।

कृषिगत आय को कर के दायरे में लाना उचित क्यों?

  • “राम गरीब है, राम एक किसान है, अतः सभी किसान गरीब हैं”। कृषिगत आय के सन्दर्भ में यही धारणा आज भी कायम है। हमें जबकि समृद्ध और गरीब किसानों के बीच फर्क करना होगा।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि देश में ऐसे हज़ारों किसान हैं जिन्होंने कृषि से उल्लेखनीय आय अर्जित की है। यह सर्वविदित है कि कृषि आय पर कर न लगाने के प्रावधान का कुछ लोग दुरुपयोग कर रहें हैं और देश को मिल सकने वाले राजस्व को डकार जा रहे हैं।
  • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 70वें दौर की गणना पर आधारित रिपोर्ट के मुताबिक, 86% से अधिक कृषकों के पास 2 हेक्टेयर से कम ज़मीन हैं जिसके कारण आज देश में बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं वही एक कार्पोरेट किसान हैं जो आयकर छूट से करोड़ों का फायदा कमा रहा है।
  • भारत में भी कृषि से प्राप्त आय पर कोई कर नहीं लगता है। इस प्रावधान का दुरुपयोग बढ़ता जा रहा है। अतः इस प्रावधान के दुरुपयोग को रोकने की पहल अपरिहार्य हो गई है।

छोटे किसानों को आयकर के दायरे से बाहर रखना आवश्यक क्यों?

  • गौरतलब है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में कृषि का हिस्सा करीब 14 से 16 फीसद है जबकि कुल श्रमशक्ति का 49 और ग्रामीण श्रमशक्ति का 64 फीसद हिस्सा कृषि कार्यों में लगा हुआ है।
  • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 70वें दौर की गणना पर आधारित रिपोर्ट के मुताबिक देश के तकरीबन नौ करोड़ किसान परिवारों में तकरीबन सवा छह करोड़ किसान परिवारों के पास एक हेक्टेयर या इससे कम ज़मीन है और इन परिवारों का कुल मासिक खर्च उनके मासिक उपभोग खर्च से अधिक है।
  • रिपोर्ट यह भी बताता है कि देश में 0.41 से एक हेक्टेयर तक की जोत वाले किसान परिवारों की संख्या तकरीबन 3 करोड़ 15 लाख है। खेती से ऐसे प्रत्येक परिवार की कुल मासिक आमदनी 2,145 रुपये थी।
  • खेतिहर मजदूरी (2,011 रुपये), पशुधन (629 रुपये) और गैर खेतिहर कामों (462 रुपये) से ऐसे प्रत्येक परिवार की औसतन आय 3,102 रुपये होती है। सभी स्नोतों से कुल 5,247 रुपये हासिल होते हैं, जबकि सीमांत कृषक-परिवारों का मासिक उपभोग खर्च 6,020 रुपये है।
  • अतः जब छोटे किसान बमुश्किल अपना खर्च चला पा रहे हैं तो उनसे कर लेने के बजाय उन्हें और अधिक सब्सिडी दी जानी चाहिये और उनकी बेहतरी के अन्य उपाय किये जाने चाहिये।

क्या हो आगे की राह?

  • यदि सरकार कर दायरा बढ़ाना चाहती है तो उसका स्वाभाविक तरीका यह है कि करारोपण से दी जाने वाली छूटों और अपवादों को या तो खत्म कर दिया जाए या न्यूनतम किया जाए।
  • विवेक देबरॉय की राय के मुताबिक एक खास सीमा से अधिक कृषि आय पर ही कर लगाया जाना चाहिये। लेकिन सियासी नजरिये से भी इस राह पर कदम बढ़ा पाना सरकार के लिये मुश्किल होगा।
  • फिर भी यदि सरकार कृषि आय को कर दायरे में लाती है तो होने वाला राजकोषीय लाभ कम ही होगा। इसकी वज़ह यह है कि कर दायरे में लाए जाने वाले किसानों की संख्या काफी कम होगी।
  • दरअसल पिछले कुछ दशकों में भारत में खेतों का आकार लगातार सिकुड़ता चला गया है जिससे कृषि अधिक लाभ का व्यवसाय नहीं रह गया है।
  • वर्तमान वित्त वर्ष में 2.5 लाख रुपये से अधिक आय पर ही कर लगाने का प्रावधान किया गया है। लेकिन राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के नवीनतम आँकड़ों की मानें तो 10 हेक्टेयर से अधिक खेत वाला एक कृषक परिवार भी साल भर में औसतन 2.35 लाख रुपये ही कमा पाएगा।
  • इस तरह कृषि आय पर निर्भर बहुत  कम परिवार ही कर दायरे में लाए जा सकेंगे। यदि बढ़ते राजकोषीय बोझ के चलते ऐसा फैसला किया जाता है तो उसके लिये कई अन्य तरीके भी हो सकते हैं।

निष्कर्ष

  • विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें हमें सीमित संसाधनों का इष्टतम उपयोग करना होता है, कृषि आय पर कर लगाने से अच्छा है कि कृषि क्षेत्र को समर्थन मूल्य और अन्य तरीकों से दी जा रही तमाम सब्सिडी पर रोक लगा दी जाए।
  • सब्सिडी देने के बजाय प्रत्यक्ष आय समर्थन का तरीका आजमाया जा सकता है, जो पहले से ही कई देशों में लागू है। लेकिन इस आय को कुछ समय बाद अर्जित आयकर प्रणाली में शामिल करने की व्यवस्था भी होनी चाहिये। इससे लोग स्वेच्छा से कर प्रणाली का हिस्सा बनने के लिये प्रोत्साहित होंगे।
  • यह भी सही है कि कुछ लोगों द्वारा कृषि आय पर मिली छूट का इस्तेमाल अन्य स्रोतों से प्राप्त आय पर कर देने से बचने के लिये किया जा रहा है तो कर नियमों को अधिक प्रभावी तरीके से लागू करना ही उसका सही तरीका हो सकता है।
  • निश्चित रूप से कृषि आय पर कर लगाने जैसे प्रस्ताव पर फैसला करने से पहले सभी बिंदुओं पर गौर करना होगा। इसके अलावा नीति आयोग को ग्रामीण क्षेत्र के लिये कारगर संरचनात्मक बदलावों पर अधिक ध्यान देना चाहिये।
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