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सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021

  • 15 Mar 2021
  • 12 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में हाल ही में अधिसूचित सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 और इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थाओं हेतु दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 को अधिसूचित किया है। ये नियम व्यापक तौर पर सोशल मीडिया, ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफाॅर्मों और डिजिटल समाचार के नियमन से संबंधित हैं।  

इन नियमों का प्राथमिक उद्देश्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, मैसेजिंग एप्लीकेशन, स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म और डिजिटल समाचार प्रकाशकों के लिये एक कानून अनुपालन एवं शिकायत निवारण तंत्र प्रदान करना है। 

सरकार का लक्ष्य इन प्लेटफाॅर्मों के माध्यम से समाज में नफरत फैलाने और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा पैदा करने वाले लोगों को नियंत्रित करना है। हालाँकि आलोचकों का मानना है कि डिजिटल मीडिया के सख्त विनियमन के माध्यम से सरकार द्वारा स्वतंत्र अभिव्यक्ति को सीमित करने और लोकतंत्र को कमतर करने का प्रयास किया जा रहा है।

डिजिटल मीडिया विनियमन की आवश्यकता

  • घरेलू कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करना: भारत में कार्यरत अधिकांश डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म मूलतः विदेश से हैं।
    • ये नियम इन सोशल मीडिया मध्यस्थों और ऑनलाइन कंटेंट प्रदाताओं (मनोरंजन अथवा सूचनात्मक दोनों) द्वारा भारतीय संविधान एवं देश के घरेलू कानूनों का सख्ती से पालन करने की आवश्यकता पर ज़ोर देते है।
  • जवाबदेही का निर्धारण: ये नियम सोशल मीडिया उपयोगकर्त्ताओं द्वारा प्लेटफाॅर्म के दुरुपयोग और दुरुपयोग के विरुद्ध जवाबदेही की भावना उत्पन्न करने पर भी ज़ोर देते हैं, साथ ही यह नियम सोशल मीडिया उपयोगकर्त्ताओं को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के नियामक ढाँचे के तहत लाने वाला अपनी तरह का पहला नियम है।
  • एकरूपता लाना: भारत में गैर-कानूनी और नफरत फैलाने वाले कंटेंट से निपटने के लिये कई कानून पहले से ही लागू हैं। इन नियमों का लक्ष्य सभी कानूनों के बीच एकरूपता स्थापित करना है।
  • सामाजिक अनिवार्यता: ये नियम सोशल मीडिया के माध्यम से होने वाले यौन अपराधों के विरुद्ध महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने पर विशेष बल देते हैं। इन नियमों में फेक न्यूज़ की समस्या का मुकाबला करने और अभद्र भाषा के प्रसार की जाँच करने की भी परिकल्पना की गई है।

नियमों से संबद्ध मुद्दे

  • स्व-नियमन की धारणा का विकृत स्वरूप: नियमों के तहत डिजिटल समाचार एवं करंट अफेयर्स प्रकाशकों के साथ-साथ वीडियो स्ट्रीमिंग सेवा प्रदाताओं के शिकायत निवारण हेतु एक त्रिस्तरीय संरचना प्रदान की गई है।
    • इस त्रिस्तरीय संरचना में सरकारी अधिकारियों की एक अंतर-मंत्रालयी समिति की अपीलीय प्राधिकरण के रूप में अभिकल्पना की गई है। 
    • इस तरह इन नियमों के माध्यम से मीडिया संगठन और उद्योगों द्वारा स्व-नियमन की व्यवस्था में सरकार की भूमिका को अनिवार्य बना दिया गया है।

त्रिस्तरीय निवारण तंत्र

  • अधिसूचित नियमों के तहत एक विस्तृत एवं समयबद्ध त्रिस्तरीय प्रक्रिया निर्धारित की गई है, जिसके तहत प्रत्येक शिकायत को:
    • सर्वप्रथम पोर्टल और प्लेटफाॅर्म द्वारा स्वयं के स्तर पर अपने शिकायत निवारण अधिकारी द्वारा निपटाने का प्रयास किया जाएगा।
    • यदि पहले स्तर पर शिकायत निपटान संभव नहीं हो पाता है तो शिकायत को उद्योग के स्व-नियामक निकाय के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।
    • यदि दूसरे स्तर पर शिकायत का संतोषजनक निपटान संभव नहीं हो पाता है तो शिकायत को केंद्र सरकार की एक अंतर-मंत्रालयी समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।
  • अनुपालन का बोझ: कई आलोचकों का मत है कि शिकायत निपटान से संबंधित इतनी जटिल और लंबी प्रक्रिया डिजिटल समाचार और करेंट अफेयर्स उद्योग के अपेक्षाकृत छोटे डिजिटल उपक्रम के संचालन को बाधित कर सकती है।
    • इसके अतिरिक्त इस तरह के उपाय पहले से ही आर्थिक और कार्यात्मक पहलुओं पर चुनौतियों का सामना कर रहे डिजिटल समाचार मीडिया उद्योग के समक्ष आजीविका की चुनौती उत्पन्न कर सकते हैं।
  • संभावित दुरुपयोग: डिजिटल प्रकाशकों पर अनुपालन बोझ अधिरोपित करने के अलावा ये नियम डिजिटल समाचार कंपनियों में सरकार के हस्तक्षेपों हेतु एक नया उपकरण प्रस्तुत करते हैं।
    • सत्तारूढ़ दल अथवा सरकार की कोई भी आलोचना उसके समर्थकों द्वारा शिकायतों की बाढ़ ला सकती है, जिससे दोनों मीडिया संस्थाओं के समक्ष संचालन की चुनौती उत्पन्न हो सकती है।
    • यह व्यवस्था राजनीतिक और धार्मिक बहुसंख्यकवाद के मौजूदा माहौल में काफी चिंताजनक हो सकती है।
  • विवेकाधीन शक्तियाँ: यह अधिसूचना सरकार की नज़रों में संदिग्ध अथवा संदेहास्पद किसी भी ऑनलाइन कंटेंट को बिना आवश्यक प्रक्रिया का पालन किये अवरुद्ध करने अथवा प्रतिबंधित करने के लिये सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव को आपातकालीन शक्तियाँ प्रदान करती है।
    • इसके अलावा प्रकाशित न होने वाले कंटेंट की एक नकारात्मक सूची की व्यवस्था को कानून के तहत स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर युक्तियुक्त निर्बंधन के रूप में देखा जाएगा। 
  • लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कमज़ोर करना: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (A) में प्रेस एवं मीडिया की स्वतंत्रता को परोक्ष रूप से मौलिक अधिकार के रूप में घोषित किया गया है। भारतीय संविधान का यह अनुच्छेद भारत के सभी नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है। 
    • इन स्वतंत्रताओं को भारतीय लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी प्रेस एवं मीडिया के लिये आवश्यक एवं निर्णायक माना जाता है। 
    • चूँकि सरकार की उपस्थिति का वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, इसलिये ये नियम नियंत्रण और संतुलन की विशिष्ट प्रणाली (मीडिया और अन्य तीन स्तंभों यथा- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका) को कमज़ोर करते हैं।
  • प्रथम प्रवर्तक की पहचान करने की चुनौती: ये नियम व्हाट्सएप और सिग्नल जैसे मैसेजिंग एप्स के लिये समस्या उत्पन्न करने वाले संदेशों के प्रवर्तकों की खोज करना अनिवार्य बनाते हैं।
    • हालाँकि इस संबंध में एक स्वाभाविक प्रश्न यह उठता है कि ये मैसेजिंग एप्स सरकार के इन नियमों का पालन किस तरह करेंगे, क्योंकि इनमें से अधिकांश एप संदेश हस्तांतरण के लिये एंड-टू-एंड एन्क्रिप्ट का दावा करते हैं।

आगे की राह

  • हितधारकों के साथ विचार-विमर्श: एक श्वेत-पत्र के प्रकाशन के माध्यम से इन नियमों को लेकर की जा रही आलोचना का हल खोजने हेतु सभी हितधारकों के साथ नए सिरे से विचार-विमर्श की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।
    • इस श्वेत-पत्र में स्पष्ट रूप से ऑनलाइन वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के विनियमन के माध्यम से संबोधित की जाने वाली चुनौतियों और सार्थक जन परामर्श, जो केवल उद्योग तक सीमित न हो, को रेखांकित करना चाहिये। 
  • सांविधिक समर्थन: हितधारकों से वार्ता के बावजूद यदि नियमों को लागू करना आवश्यक माना जाता है तो इसे कानून के माध्यम से संसद में व्यापक विचार-विमर्श के बाद लागू किया जाना चाहिये, न कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A के तहत प्रदान की गईं कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करते हुए। 
  • डेटा सुरक्षा कानून: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को सूचना साझा करने के लिये मजबूर करना आम नागरिकों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है, क्योंकि नागरिकों के पास किसी भी डेटा गोपनीयता कानून और उससे संबंधित जागरूकता का अभाव है।
    • इस संदर्भ में व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को तीव्रता के साथ पारित करने की आवश्यकता है। 

निष्कर्ष

उदार लोकतंत्र में विनियमन का एक महत्त्वपूर्ण और विशिष्ट स्थान होता है। हालाँकि ऐसे परिवेश और समाज में, जहाँ लोग कंटेंट के प्रति संवेदनशील हों, अत्यधिक सरकारी हस्तक्षेप के साथ एक मज़बूत नियामक तंत्र डिजिटल मीडिया उद्योग के परिचालन में बाधा उत्पन्न करेगा और रचनात्मकता तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। ऐसे में आवश्यक है कि विनियमन की आवश्यक और गोपनीयता के पहलू को ध्यान में रखते हुए संतुलित उपाय खोजा जाए।

अभ्यास प्रश्न: डिजिटल मीडिया का सख्त नियमन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करेगा और लोकतंत्र को कमज़ोर करेगा। हाल ही में अधिसूचित सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थाओं हेतु दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के संदर्भ में कथन का विश्लेषण कीजिये।

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