डिजिटल वर्ल्ड में असमानताएँ | 12 May 2021
यह लेख दिनाँक 11/05/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Decoding inequality in a digital world” पर आधारित है। इसमें चर्चा की गई है कि डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ किस तरह से शिक्षा एवं स्वास्थ्य को फिर से प्रभावित कर रही हैं तथा पहले से ही असमान समाज में इनकी पहुँच को और अधिक असमान बना रही हैं।
कोविड -19 महामारी ने आर्थिक असमानता बढ़ा दी है। इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि अमीर और भी अमीर बन गए हैं तथा लाखों लोग नौकरी के नुकसान एवं आय के संकट का सामना कर रहे हैं।
महामारी के खिलाफ प्रतिक्रिया के रूप में भारत में डिजिटल तकनीकों का त्वरित उपयोग हुआ है। स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी आवश्यक सेवाएँ इस अभियान में सबसे आगे हैं।
यद्यपि ये डिजिटल पहलें महामारी के कारण होने वाले व्यवधान को कम करने में मदद कर रही हैं, लेकिन ये डिजिटल विभाजन का कारण बन रही हैं क्योंकि डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ शिक्षा और स्वास्थ्य के उन तरीकों को इस प्रकार पुनर्गठित करने का कार्य कर रही हैं जो पहले से ही असमान समाज में इनकी पहुँच को और अधिक असमान बनाते हैं।
डिजिटल असमानताएँ:
डिजिटल प्रौद्योगिकियों और स्वचालित निर्णय लेने वाले उपकरणों ने असमानताओं को बढ़ा दिया है, विशेष रूप से लोगों को उन सेवाओं की प्राप्ति हेतु बाधा उत्पन्न करके जिसके वे हकदार हैं। यह सामाजिक अवसंरचना के मुख्य स्तंभों यानी शिक्षा और स्वास्थ्य में प्रमुखता से दिखाई दे सकता है।
- शिक्षा में डिजिटल असमानता: ऑनलाइन शिक्षा में निरंतर और एक समान शिक्षा के गुण निहित हैं लेकिन तथ्य यह है कि विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग इसमें आगे निकल जाता है। उनके आगे होने का कारण यह नहीं है कि वे अधिक बुद्धिमान हैं बल्कि विशेषाधिकारों के कारण वे इसका आनंद लेते हैं।
- एनसीईआरटी, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन, ASER और ऑक्सफैम द्वारा किये गए सर्वेक्षण का सुझाव है कि 27% से 60% लोग कई कारणों से जैसे उपकरणों की कमी, साझा किये गए डिवाइस, "डेटा पैक" खरीदने में असमर्थता आदि के कारण ऑनलाइन कक्षाओं तक नहीं पहुँच नहीं बना सके।
- इसके अलावा, कई लोगों के पास घर में सीखने का माहौल नहीं होता है। जैसे पढ़ाई के लिये एक शांत जगह कई लोगों के लिये उपलब्ध नहीं है।
- लड़कियों के लिये अतिरिक्त अपेक्षा यह होती है कि वे घर पर होने पर घरेलू कामों में योगदान देंगी।
- ऑनलाइन शिक्षा के कारण कई छात्रों से अपने पीयर ग्रुप के साथ सीखने के अवसरों को छीन लिया गया है।
- अवसर की समानता भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों में से एक है। एक ऐसी प्रणाली में शिफ्ट करना जो केवल लोगों के एक वर्ग को लाभ पहुँचाता है और ज़रूरतमंदों को पीछे छोड़ देता है, संवैधानिक लोकाचार का उल्लंघन है।
- स्वास्थ्य के क्षेत्र में डिजिटल असमानता: शिक्षा की तरह ही स्वास्थ्य देखभाल के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। इसके अलावा, भारत में निजी स्वास्थ्य क्षेत्र में भी असमानता विद्यमान है। दोनों ने गरीबों की अच्छी स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में समस्या उत्पन्न की है।
- आवश्यक वस्तुओं जैसे दवाईयाँ, अस्पताल बेड, ऑक्सीजन, टीके आदि की कमी है; रोगियों को जो भी अस्पताल अपेक्षित हैं, वो अत्यधिक महंगे हैं और दुर्लभ सेवाओं (जैसे ऑक्सीजन) के लिये एक काला बाज़ार विकसित हुआ है।
- इन मुद्दों से निपटने के लिये एक ऐप विकसित करना विभिन्न स्वास्थ्य सेवाओं के आवंटन के समाधान के रूप में देखा जा रहा है। हालाँकि, यह कई मुद्दों को जन्म देता है।
- प्लेटफॉर्म और ऐप-आधारित समाधान गरीबों को पूरी तरह से सेवाओं से वंचित कर सकते हैं या आगे स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुँच को कम कर सकते हैं। जैसे स्लॉट बुक करना फोन, कंप्यूटर और इंटरनेट के बिना उन लोगों के लिये बहुत कठिन हों सकता है।
- महामारी के दौरान डिजिटल स्वास्थ्य आईडी परियोजना को आगे बढ़ाया जा रहा है। हालाँकि, यह देखते हुए कि भारत में एक डेटा गोपनीयता कानून का अभाव है, अत्यधिक संभावना है कि हमारे स्वास्थ्य रिकॉर्ड हमारी सहमति के बिना निजी संस्थाओं के हाथों में चले जाएंगे और इसका उपयोग हमारे खिलाफ हथियार (उदाहरण के लिये , निजी बीमा कंपनियां इसका उपयोग गरीब लोगों को बीमा से इनकार करने के लिये कर सकती हैं) के रूप में किया जा सकता है।
आगे की राह
- शिक्षा के लिये एक बहु-प्रचारित दृष्टिकोण: छात्रों के एक बड़े वर्ग को शिक्षा प्रदान करने के लिये स्कूलों, शिक्षकों और अभिभावकों के साथ मिलकर शैक्षणिक समय सारिणी और विकल्पों की खोज करनी चाहिये।
- उन कम सुविधा वाले छात्रों को प्राथमिकता देना जिनके पास ई-लर्निंग तक पहुँच नहीं है।
- प्रत्येक बच्चे को मौलिक अधिकार के रूप में अच्छी गुणवत्ता वाली न्यायसंगत शिक्षा मिले यह सुनिश्चित करने के लिये वास्तविक प्रयासों में निवेश करना चाहिये।
- स्वास्थ्य के लिये एक बहु-प्रतीक्षित दृष्टिकोण: बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं (वार्ड स्टाफ, नर्स, डॉक्टर, प्रयोगशाला तकनीशियन, दवाइयाँ, बिस्तर, ऑक्सीजन, वेंटिलेटर) पर स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि हुई है। फिर भी आरोग्य सेतु, आधार और डिजिटल स्वास्थ्य आईडी जैसे ऐप में थोड़ा और सुधार अपेक्षित है।
- इसके अलावा, जब तक मेडिकल कदाचार के खिलाफ कानूनों को सख्ती से लागू नहीं किया जाता है, तब तक डिजिटल समाधान हमें वास्तविक समस्या से दूर करेंगे और विचलित करेंगे।
- इस प्रकार स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में प्रणालीगत सुधार करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
- निश्चित रूप से, प्रौद्योगिकी एक उद्धारक के रूप में उभरी है, लेकिन सिक्के का दूसरा पक्ष यह भी है जो कभी-कभी संवेदनशील वर्ग हेतु असंगति उत्पन्न करता है। उम्मीद है महामारी हमें अधिक विवेकशील होकर डिजिटल तकनीकों को अपनाना सिखा पाएगी।
मुख्य परीक्षा प्रश्न: डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ शिक्षा और स्वास्थ्य के उन तरीकों को इस प्रकार पुनर्गठित करने का कार्य कर रही हैं जो पहले से ही असमान समाज में इनकी पहुँच को और अधिक असमान बनाते हैं। चर्चा कीजिये।